गोरखपुर के बेसिक शिक्षा विभाग में अधिकारियों के घालमेल के रवैये से आए दिन अजीबोगरीब कारामातें देखने को मिल रही हैं. कहीं स्वर्गीय हो चुके शिक्षकों को वेतन भेजा जा रहा है, तो कहीं एक शिक्षिका को दो-दो शिक्षकों का वेतन मिल रहा है. इस तरह के कारनामे चल ही रहे थे कि एक ही नाम पते की शिक्षिका का बलरामपुर और गोरखपुर में फर्जी तरीके से वेतन उठाने का मामला सामने आ गया. इसके उजागर होने से अधिकारियों में बेचैनी है. बेचैनी इसलिए भी है कि मामला खुल जाने के बाद वे पैसे कैसे खा पाएंगे.
ऐसा नहीं है कि अधिकारियों को इन घपलों के बारे में पता नहीं रहता. उन्हें पता सब रहता है, लेकिन कमीशनखोरी के चक्कर में अनदेखी की जाती है. मामला प्रकाश में आने पर अधिकारीगण लापरवाही का ठीकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ने में लग जाते हैं. सात महीने पहले अलग-अलग दुर्घटनाओं में जनपद के दो शिक्षकों की मौत हो गई. इसकी जानकारी पूरे विभाग को थी, लेकिन विभाग मृत शिक्षकों के बैंक खाते में हर महीने वेतन भेजता रहा. किसी ने गोपनीय शिकायत की तो मामला उजागर हुआ और मई महीने का वेतन रोका गया. अब बीएसए और लेखा अधिकारी एक दूसरे के मत्थे दोष मढ़ रहे हैं.
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कौड़ीराम ब्लॉक के मलाव द्वितीय प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षक नवीन चन्द मल्ल की गत सितम्बर 2015 में ही सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. सूचना मिलने के बाद विभाग के अधिकारी और शिक्षक संगठन के नेतागण भी दुर्घटना स्थल पर पहुंचे थे. मरहूम शिक्षक का इकट्ठा हिसाब-किताब करने के लिए उनकी मृत्यु के बाद वेतन रोका भी गया, लेकिन फिर अगले ही महीने से मरहूम शिक्षक का वेतन भुगतान नियमित(रेगुलर) कर दिया गया. विभाग के अधिकारियों, लिपिकों और कुछ शिक्षक नेताओं की मिलीभगत से वेतन जारी होने का सिलसिला इस वर्ष (2016) के अप्रैल महीने तक चला. शिक्षक की पत्नी भी एक परिषदीय स्कूल में सहायक अध्यापिका हैं.
इसी तरह कौड़ीराम ब्लॉक के ही सोनवापार पूर्व माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक रामप्रकाश की मौत पिछले वर्ष (2015) जुलाई महीने में हो गई थी. उनके परिजनों ने इस बारे में विभाग को बाकायदा समय से सूचना भी दे दी थी. लेकिन उन मरहूम शिक्षक का वेतन भी एक महीने रुकने के बाद दोबारा जारी हो गया. मृतक शिक्षक के बैंक खाते में हर महीने वेतन भेजने का सिलसिला इस साल अप्रैल महीने तक जारी रहा. मई में यह मामला खुलने के बाद वेतन रोका गया. उक्त दोनों मामले में खंड शिक्षाधिकारी की भूमिका संदेह के घेरे में है. वित्त एवं लेखाधिकारी आलोक राय का कहना है कि शिक्षकों की उपस्थिति का सत्यापन खंड शिक्षाधिकारियों के द्वारा ही किया जाता है. वेतन बिल का सत्यापन भी एबीएसए ही करते हैं. उसके बाद ही शिक्षकों के खाते में वेतन भुगतान होता है.
बेसिक शिक्षाधिकारी ओपी यादव का कहना है कि शिक्षकों के खाते में लेखा विभाग वेतन भेजता रहा है. सात और नौ माह पहले मृत शिक्षकों के बैंक खाते में वेतन कैसे जाता रहा, यह लेखाधिकारी ही बता पाएंगे. इतना कह कर बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली.
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हद तो यह भी हो गई कि खजनी की एक शिक्षिका को कई महीने तक दो-दो शिक्षकों का वेतन दिया जाता रहा. मामला उजागर होने के बाद शिक्षिका से वेतन की रिकवरी की गई. हालांकि वसूली गई रकम अब-तक विभाग के खाते में जमा नहीं हुई है. खास बात यह है कि शिक्षिका को पुरुष शिक्षक बनाकर वेतन बैंक खाते में भेजा जाता रहा. खजनी ब्लॉक के शिक्षकों के मार्च के वेतन बिल में शिक्षिका का नाम सीरियल से दो बार दर्ज मिला. खाते में एक से अधिक वेतन जाने के बाद भी शिक्षिका ने शिकायत दर्ज नहीं कराई. वहीं गोरखपुर और बलरामपुर जिले में भी एक ही नाम, पता, डिग्री और पैन नंबर पर दो शिक्षिकाएं अलग-अलग वेतन उठा रही हैं. असली नकली की पहचान के लिए विभाग ने जांच शुरू की है.
खजनी और कौड़ीराम ब्लॉक में शिक्षा विभाग का एक गिरोह सक्रिय है. लेखा विभाग के लिपिकों की मिलीभगत से यह गिरोह तरह-तरह के फर्जीवाड़े करता रहता है. दो मरहूम शिक्षकों के मामले में भी वेतन बंटवारे का सौदा हुआ था. सूत्रों का कहना है कि पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब सांप को रस्सी और रस्सी को सांप साबित करने के विशेषज्ञ शिक्षा विभाग के अधिकारी जी-जान से अपने इसी पुनीत कर्तव्य में जुट गए हैं.