मोदी सरकार दो साल पूरे होने पर पूरे देश में ‘विकास पर्व’ मना रही है, लेकिन जमीनी स्तर पर विकास कहीं दिख नहीं रहा है. बिहार का गौरव देश का दूसरा तेल शोधक कारखाना बरौनी रिफाइनरी विकास को तरस रहा है. यह कारखाना विकास की बात तो दूर, अपने मानक से भी पिछड़ रहा है.
केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की सारी घोषणाएं हवा-हवाई साबित हो रही हैं. प्रधान ने जितनी भी घोषणाएं की थीं, उसमें से एक भी पूरी नहीं हुईं. धर्मेंद्र प्रधान ने घोषणा की थी कि बरौनी रिफाइनरी की शोधन क्षमता का विस्तार किया जाएगा. युवाओं को आत्मनिर्भर एवं कुशल बनाने के लिए कौशल विकास केंद्र की स्थापना की जाएगी, जहां पर विभिन्न ट्रेड की जानकारी दी जाएगी एवं उसका प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके साथ ही महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जाएगा. उन्होंने एक अतिमहत्वपूर्ण घोषणा की थी कि बरौनी रिफाइनरी पर आधारित यहां पेट्रोकेमिकल उद्योग कॉम्प्लेक्स की स्थापना की जाएगी. साथ ही प्रधान ने यह भी कहा था कि बरौनी रिफाईनरी की शोधन क्षमता 6 मिलियन टन सेे बढ़ाकर 9 मिलियन टन की जाएगी. केंद्र में भाजपा की सरकार बनते ही केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बरौनी रिफाइनरी का दौरा किया था. बरौनी रिफाइनरी कारखाने का निरीक्षण करने के बाद आयोजित एक समारोह में धर्मेंद्र प्रधान ने ये सारी घोषणाएं की थीं. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच धर्मेंद्र प्रधान ने यह भी घोषणा की थी कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शीघ्र ही यहां आकर इन उपक्रमों का शिलान्यास करेंगे. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के आने की बात तो दूर धर्मेंद्र प्रधान के द्वारा की गईं एक भी घोषणाएं मोदी सरकार के दो साल बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हुईं. क्या धर्मेंद्र प्रधान ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये सारी घोषणाएं की थीं और बिहार चुनाव में करारी हार के बाद की गई सारी घोषणाएं मोदी सरकार भूल गई?
पेट्रोलियम मंत्री की उक्त घोषणाओं से न सिर्फ बेगूसराय बल्कि बिहार वासियों में विकास की आशा का संचार हुआ था कि बरौनी रिफाइनरी के साथ-साथ उनके भी अच्छे दिन आएंगे. लेकिन पेट्रोलियम मंत्री के द्वारा की गई घोषणाओं को मोदी सरकार के द्वारा भूल जाने के बाद बिहार की जनता में घोर निराशा है. लोकसभा चुनाव में मिले अपार समर्थन से उत्साहित धर्मेंद्र प्रधान ने उपरोक्त घोषणाएं की थी. इन घोषणाओं के पीछे राजनीतिक उद्देश्य था कि बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को लोकसभा चुनाव जैसी ही सफलता मिलेगी, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार हुई. बेगूसराय जिले की विधानसभा की सभी सातों सीट पर भाजपा की करारी हार हुई. इस चुनाव परिणाम का खामियाजा बरौनी रिफाइनरी को भुगतना पड़ रहा है. धमेंद्र प्रधान द्वारा किया गया एक भी वादा पूरा नहीं हुआ. गौरतलब है कि जिस समय धर्मेंद्र प्रधान बरौनी रिफाइनरी की क्षमता बढ़ाने की बात करे रहे थे, उस समय बरौनी रिफाइनरी अपनी निर्धारित क्षमता 6 मिलियन टन से अधिक 6.75 मिलियन टन उत्पादन कर रही थी.
रिफाइनरी के इंजीनियरों का कहना है कि बरौनी रिफाइनरी के पास जो उपलब्ध संसाधन है उसी का थोड़ा सा विस्तार कर दिया जाए, तो घोषित लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. बरौनी रिफाइनरी असम के बाद देश की दूसरी रिफाइनरी है. बरौनी रिफाइनरी के बाद भारत में जितनी भी रिफाइनरीज स्थापित हुईं, सभी की शोधन क्षमता का दो से तीन गुना विस्तार हुआ. एक रिफाइनरी की घोषित क्षमता का विस्तार तो उसके उद्घाटन होेने से पहले ही कर दिया गया, क्योंकि वह पेट्रोलियम मंत्री के क्षेत्र की रिफाइनरी है. बरौनी रिफाइनरी के बाद स्थापित सभी रिफाइनरीज में पेट्रोकेमिकल उद्योग कम्प्लेक्स की स्थापना हुई, लेकिन बरौनी रिफाइनरी राजनीतिक द्वेष का खामियाजा भुगत रही है. जिस समय केंद्र में मोदी सरकार आई उसके पहले वित्तीय वर्ष में (डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में) बरौनी रिफाइनरी को 474 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था, जबकि वित्तीय वर्ष 2015-16 में बरौनी रिफाइनरी को 150 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. वित्तीय वर्ष 2015-16 में बरौनी रिफाइनरी का शानदार रिकॉर्ड रहा है. उसने अनेक क्षेत्रों में पारितोषिक प्राप्त किया है. लेकिन बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद बरौनी रिफाइनरी को वर्ष 2015-16 में 150 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. राजनीति एवं क्षेत्रवाद की दोहरी पाट के बीच पीसती बरौनी रिफाइनरी के अच्छे दिन कब आएंगे? क्या अगामी लोकसभा चुनाव के समय फिर एक बार बरौनी रिफाइनरी चुनावी मुद्दा बनेगी? यह आने वाला समय ही बताएगा.