modiगंगा की सफाई को लेकर अजीबोगरीब आंकड़े सामने आ रहे हैं. इन आंकड़ों से गंगा की सफाई के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भावनात्मक जुड़ाव के बयानों पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवालों पर जो आधिकारिक जवाब और आंकड़े उजागर हुए हैं वे आश्‍चर्यजनक हैं और हास्यास्पद भी. भाजपा के पिछले दो वर्षों के शासन काल में गंगा की सफाई के लिए करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन इस खर्च का कोई असर गंगा पर दिख नहीं रहा है.

लखनऊ के एक स्कूल की 10वीं कक्षा की छात्रा ऐश्‍वर्या पाराशर ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से सात सवालों का जवाब मांगा था. गंगा सफाई को लेकर पूछे गए सवाल बजटीय प्रावधानों, खर्चों और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठकों के विवरण से संदर्भित थे. लेकिन इन सवालों का जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय ने नहीं दिया. पीएमओ के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी सुब्रतो हजारा ने इतना ही कहा कि ऐश्‍वर्या का पत्र केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के पास भेज दिया गया है. विडंबना यह है कि इस मंत्रालय ने भी कई महत्वपूर्ण सवालों का जवाब नहीं दिया और उसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास भेज दिया. केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय के अवर सचिव केके सप्रा ने अपने इस बुद्धिमत्ता भरे कृत्य के बारे में लिखित तौर पर जानकारी दी.

बहरहाल जो जवाब सामने आए, वे भी अत्यंत रोचक हैं. मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन के लिए 2014-15 में 2,137 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. बाद में इसमें 84 करोड़ रुपये की कटौती कर इसे 2,053 करोड़ रुपये कर दिया गया. लेकिन केंद्र सरकार ने भारी प्रचार-प्रसार के बावजूद सिर्फ 326 करोड़ रुपये खर्च किए, और इस तरह 1,700 करोड़ रुपये बिना खर्च हुए रह गए. वर्ष 2015-16 में केंद्र सरकार ने प्रस्तावित 2,750 करोड़ रुपये के बजटीय आवंटन को घटाकर 1,650 करोड़ रुपये कर दिया. जिसमें से 18 करोड़ रुपये बचे रह गए. मौजूदा वित्त वर्ष (2016-17) में आवंटित 2,500 करोड़ रुपये में से अबतक कितना खर्च हुआ, केंद्र सरकार के पास उसका कोई विवरण मौजूद नहीं है. राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (एनजीआरबीए) की तीन बैठकों में से प्रधानमंत्री ने सिर्फ एक बैठक की अध्यक्षता 26 मार्च, 2014 को की थी. अन्य दो बैठकों की अध्यक्षता केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने की थी, जो 27 अक्टूबर 2014 और चार जुलाई 2016 को हुई थीं. पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान हुई एनजीआरबीए की सभी तीन बैठकों की अध्यक्षता की थी. ये बैठकें पांच अक्टूबर 2009, पहली नवंबर 2010 और 17 अप्रैल 2012 को हुई थीं.

कल-कारखानों से लेकर नागरिक तक फैला रहे गंदगी

आरटीआई के तहत केंद्र सरकार से सवाल-जवाब की कागजी औपचारिकताओं के बरक्स जमीनी स्थिति और भी भयावह दिखती है. गंगा की अविरल और निर्मल धारा बहाल करने में गंगा के किनारे-किनारे स्थित 764 उद्योग और उनसे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट विशाल चुनौती की तरह सामने हैं. आधिकारिक तथ्य है कि गंगा नदी के किनारे कुल 764 उद्योग हैं, जिनमें 444 चमड़ा उद्योग, 27 रसायनिक उद्योग, 67 चीनी मिलें, 33 शराब उद्योग, 22 खाद्य और डेयरी उद्योग, 63 कपड़ा एवं रंग उद्योग, 67 कागज एवं पल्प उद्योग और 41 अन्य उद्योग शामिल हैं. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्‍चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन 112.3 करोड़ लीटर जल का उपयोग किया जाता है. इनमें रसायन उद्योग 21 करोड़ लीटर, शराब उद्योग 7.8 करोड़ लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग 30.6 करोड़ लीटर, चीनी उद्योग 30.4 करोड़ लीटर, चमड़ा उद्योग 2.87 करोड़ लीटर, कपड़ा एवं रंग उद्योग 1.4 करोड़ लीटर एवं अन्य उद्योग 16.8 करोड़ लीटर गंगा जल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा नदी के तट पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और गंगा जल के अंधाधुंध दोहन से नदी का अस्तित्व संकट में है. गंगा की सफाई हिमालय क्षेत्र में इसके उद्गम से शुरू करके मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी एवं सहायक नदियों में होनी चाहिए, जो अबतक नहीं हुई है. उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बनने वाली जलविद्युत परियोजनाएं गंगा की धारा के मार्ग में बड़ी बाधा हैं. इसके कारण गंगा नदी के ही समाप्त हो जाने का खतरा सामने है, क्योंकि नदी पर बांध बनाने की परियोजनाएं इसके उद्गम पर ही अवस्थित हैं. नमामि गंगे योजना को कारगर करने के लिए सरकार ने प्रतिष्ठित संगठनों एवं एनजीओ को इस काम में जोड़ने का निर्णय लिया ताकि त्यौहारों के मौसम और सामान्य दिनों में गंगा में फुल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक और ऐसे ही कचरे बहाने पर नियंत्रण किया जा सके, केदारनाथ से लेकर बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, मथुरा, वृंदावन, गढ़मुक्तेश्‍वर, इलाहाबाद, वाराणसी, वैद्यनाथ धाम, गंगासागर तक मानव-प्रेरित गंदगियों से मुक्ति का अभियान चलाने की कोशिश हो रही है, लेकिन लोग गंगा को गंदगी दान करने में कतई पीछे नहीं हट रहे हैं.

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