विभाजन के समय जब इस मुद्दे पर द्वंद्व चल रहा था तो महात्मा गांधी ने नेहरू पटेल से कहा था – माउंटबेटन को जाकर कहो हम तो राजी हैं ये बुढ्ढा ही नहीं मानता। मैं बनिया हूं सब सम्भाल लूंगा। बनिया हिसाब किताब और बहिखाते से नहीं मन से गुणा भाग करके जीवन और जीवन की लड़ाई लड़ी जा सकती है। तो क्यों न मान लें कि गांधी जी ने आजादी के समूचे संघर्ष में चतुर बनिये की चतुराई से एक एक कदम उठाया और सफलता हासिल की। आज मोदी से लड़ने के लिए उसी बनियागिरी की जरूरत लगती है। जो कहीं किधर भी दिखाई नहीं देती। पर मोदी स्वयं की हर चाल या दांव उसी के बलबूते उठाते हैं। आज पूरे देश में जबरदस्त तरीके से बदनाम होने के बावजूद आप कह सकते हैं कि मोदी की पांचों उंगलियां घी में हैं। बेशर्मी और बेहयाई की चाशनी में हर मैनेजमेंट सधा हुआ है। बनियागिरी से हर उत्सव और हर ईवेंट टाइम फ्रेम करके हमारे समक्ष परोसा जाता है। आप स्वीकार करें न करें। जिनके लिए परोसा जाता है वहां सफलता लिखी ही होती है। सब जानते हैं मोदी के पास देश दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है। मीडिया है। आईटी सेल और उस पर आधारित व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी है। हमारे पास क्या है। सोशल मीडिया। कांग्रेस के पास क्या है। कांग्रेस सेवादल। वह कहां है। हम दरअसल आधे अधूरे पारम्परिक तरीकों से लड़ना चाहते हैं। मोदी और अमित शाह सब जानते हैं। इसीलिए वे बेखौफ हैं। महंगाई, पेट्रोल, खाद्यपदार्थ की बढ़ती कीमतों पर विपक्ष करेगा क्या। कांग्रेस, वामपंथी दल, श्रेत्रीय दल सब कागजी साबित हो रहे हैं। गांधीवादी भी गांधी की बनियागिरी नहीं समझ पाये। वे शायद जानते ही नहीं कि महात्मा गांधी ने ऐसा कुछ कहा था। कब कहा था। इसीलिए जब अमित शाह ने गांधी के लिए कहा कि वे बनिया थे तो बवाल खड़ा हो गया था।

मोदी का गुणा भाग सीधा और सपाट है। वहां कोई छल नहीं है। वे अनपढ़ और संसाधनों से अछूती जनता की मानसिकता को बड़े गहरे समझते हैं। उन्हें उनके प्रति कोई हमदर्दी नहीं है। पर भरपूर हमदर्दी का प्रदर्शन अनिवार्य है। ऐसा कि वे साबित कर सकें कि पिछली किसी भी सरकार ने उनके लिए कोई वैसा काम नहीं किया जो मैं कर रहा हूं। वे हिटलर और मुसोलिनी से अलग लोकतंत्र की सीढ़ी पर खड़े होकर उसी दिशा में कदम बढाना चाहते हैं जहां तक मसीहा की छवि बनती हो । मोदी और उनका समूचा तंत्र इतना ऊपर हो चला है कि सोशल मीडिया सबकुछ करके भी बेबस नजर आता है। कल ही की बात है। वैक्सीन लगाने में देश ने सौ करोड़ का आंकड़ा पार किया। यह उपलब्धि किसकी है और किसके खाते में जानी चाहिए। किसी भी देश का प्रधान ऐसा गुणा भाग नहीं कर सकता जैसा मोदी और उनकी टीम करके दिखाती है। समूची उपलब्धि मोदी के खाते में, मोदी का जश्न, जश्न का संदेश। बंगाल से बुरी तरह मात खाया हुआ कोई भी व्यक्ति महीनों तक बाहर नहीं निकलता। पर वे मोदी हैं। आप समझ सकते हैं क्या है उनका व्यक्तित्व और क्या है उनका चरित्र। संवेदनशील मनुष्य मोदी सरीखा हो ही नहीं सकता। सोशल मीडिया चलाने वाली कितनी वेबसाइट्स के कर्ता धर्ता ऐसा गुणा भाग लगा कर सामने आते हैं? घिसे पिटे बौद्धिक विश्लेषण करके वे सोचते हैं हम मोदी को मात दे देंगे या मोदी के खिलाफ कोई जमीन तैयार कर देंगे। मेरी समझ से मूर्ख हैं ये लोग। कोई डिबेट, कोई बहस इस मूर्खता से पार नहीं पा सकती। उदाहरण के तौर पर देखिए कर ‘वायर’ के लिए आरफा खानम शेरवानी ने वैक्सीन के सौ करोड़ आंकड़े पर चर्चा करके बाजी मार ली। जबकि बाकी सब आर्यन खान में लगे रहे। आरफा ने जो चर्चा की वह जरूरी थी। होनी चाहिए थी। पर निचोड़ क्या है? यहां आदर्शवाद नहीं चलता कि हमारा जो धर्म कर्म था एक पत्रकार के नाते वह हमने पूरा किया। वही तो सब कहेंगे।

उर्मिलेश जी भी वही कर रहे हैं, प्रसून वाजपेयी, रवीश कुमार, न्यूज़ क्लिक, सत्य हिंदी सब वही तो कर रहे हैं। आप सबके करने के बाद भी मोदी की जय जयकार होती है तो किस कोने में बैठेंगे आप। इस लड़ाई को बदलना होगा। हमारी आपकी मोदी पर तोहमत को हर गरीब नकारता है। इसलिए कि मोदी का गुणा भाग हम आप सब पर भारी है। आज जिससे पूछिए कि तुमने ही मोदी को वोट दिया था वही नकारेगा। क्योंकि वह आज के हालात से त्रस्त है। ऐसे में आपको लगेगा कि जब हर आदमी मोदी से त्रस्त दिखाई पड़ता है तो मोदी कैसे जीत सकते हैं। यही तो जादू है और यह जादू कोई अजूबे की तरह नहीं, इसे हर कोई जानता है। फिर भी यह जादू है। सारा गणित सामने है। मोदी अपने तंत्र के साथ हावी हैं। विपक्ष है ही नहीं। कांग्रेस अपनी बनाई उलझनों के जाल से नहीं निकल पा रही। सोशल मीडिया गोदी मीडिया का विकल्प नहीं बन पा रहा। समाज अपनी गैरत खो चुका है।लोगों के जीवन में यथास्थितिवाद ने घर कर लिया है। भगत सिंह, लोहिया और जेपी या क्रांति जैसे नाम और शब्द भोथरा हो चुके हैं। इस सरकार ने इस सदी का सबसे बड़ा खेल यही किया है कि स्थायित्व को खण्डित करके राजनीति को ‘इंस्टेंट’ कर दिया है।

अपनी हर विफलता पर धूल की चादर ओढ़ा कर समय को आगे सरकार दिया है और हम परम्परा की पगडंडियों पर खरामा खरामा चल रहे हैं। कोई यह नहीं पूछ रहा कि कांग्रेस को भंग क्यों नहीं किया जाता। कोई नहीं पूछता टिकट कांग्रेस का सेवादल कहां किस हाल में है। क्या यह वक्त का तकाजा नहीं कि बुद्धिजीवियों की ओर से कोई सार्थक पहल हो नयी राजनीति की। मोदी सबसे ज्यादा बुद्धिजीवियों से खौफ खाते हैं। और कुछ नहीं तो विपक्ष की एकजुटता के लिए प्रयास किये जाएं। बहस और चर्चाएं निरर्थक हैं। हम अभय दुबे को सुनते हैं। इसलिए कि हमें अच्छा लगता है। लोगो की राय है कि ज्ञान बढ़ता है उनके विश्लेषण से। बस इतना ही। और क्या इतना ही आज काफी है ? इस हफ्ते अभय दुबे शो में सावरकर और गांधी विवाद पर बात होनी है जैसा बताया गया। यह मुद्दा तो पुराना पड़ गया। बीजेपी और आरएसएस मुद्दे छेड़ते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें सब पता है कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। आपको लकीर पीटनी है तो पीटते रहिए। वही हो रहा है। मोदी, बीजेपी और आरएसएस का गुणा भाग आप आधे अधूरे तरीकों से समझ रहे हैं इसीलिए फेल हो रहे हैं। हर किसी का आकलन हो सकता है कि इस बार तो योगी मोदी की सत्ता गयी। अगर सत्ता गयी तो जादू कैसे काम करेगा ? प्रसून वाजपेयी जरा ध्यान दें। बहुत गूढ़ता बेमानी सी लगती है। रवीश के श्रोता तो वही सुनना चाहते हैं जो रवीश प्रस्तुत करते हैं। पर इन सबको सुनिश्चित करना चाहिए कि केवल मध्य या उच्च मध्यवर्ग ही देश नहीं है। कम से कम मोदी तो नहीं मानते। उनका देश तो अंतिम आदमी से शुरू होकर उसी पर खत्म होता है। गांधी के अंतिम आदमी की गफलत न पालें। मोदी के कारपोरेट जगत की परिभाषा कुछ और है।

Adv from Sponsors