मेरा यह उपन्यास “ जाग मुसाफिर “ शब्द संख्या करीब 55,500, मुख्यतः पारुल और राघव की कहानी है ! साथ में और भी किरदार हैं जैसे प्रकाश, मेनका मैडम आदि।
बेहद पठनीय और सहज भाषा-शैली में रचा गया यह एक मार्मिक उपन्यास है ! जो ऐसी मासूम लड़की की कथा को लेकर आगे चलता है जिसे दुनियादारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है ! कभी अपने घरवालों के बिना अकेले कहीं भी बाहर नहीं गयी है लेकिन अपने ख्वाबों को पूरा करने के कारण उसे घर से जाना पड़ता है ! आगे बढ़ने की ललक, कुछ कर दिखाने की तमन्ना उसे हिम्मत और साहस देते हैं ! उसके पापा का विश्वास हमेशा उसके साथ है जिसके कारण वो बेहिचक कुछ भी कर गुजरने को प्रेरित होती है ! पारुल नाम की यह लड़की ख्वाब भरे मन के साथ उस दुनिया को देखती है जो उसके लिए एकदम से नई और अनूठी है ! यह नयापन, अनोखापन उसे बहुत कुछ सिखाता है !
बेहद खूबसूरत और कोमल पारुल अभी एम बी ए कर रही है ! वो अपनी भोली अदाओं के कारण सबको बहुत प्यारी लगती है ! जीवन के सफर में मुसाफिर बनी पारुल प्रेम में पड जाती है और अपने उस प्रेम के लिए दिवानगी की हद तक सब करती चली जाती है ! वो राघव को प्रेम करने लगती है जबकि प्रकाश उसे प्रेम करता है ! उसका हर तरह से ख्याल रखता है किन्तु उसके दिल में तो राघव बसा हुआ है और वो राघव के साथ अपने सपने पूरे करने को सुदूर प्रदेश तवांग की सामूहिक यात्रा करती है ! जहां राघव और पारुल का प्यार परवान चढ़ता है ! वो सच्चे दिल से सिर्फ राघव को समर्पित हो जाती है और किसी भी तरह से अपने प्रेम की राह से भटकती नहीं है ! सारा दर्द अकेले ही सहती रहती है और खुद को आंसुओं में डूबा देती है फिर भी अपने विश्वास को खोने नहीं देती ! राघव बहुत प्यारा, समझदार और एक खुशदिल इंसान है ! उसे लगता है कि प्रेम आजादी देता है बंधन नहीं इसलिए वो उसे बेहद प्रेम तो करता है पर अभी शादी के बंधन में बंधने को तैयार नहीं होता ! हालांकि वे दोनों ही एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। पागलपन की हद तक ! साथ रहने पर वे बहुत खुश होते हैं !
सफर में अनेकों तरह के अनुभवों से दो चार होती हुई पारुल जीवन को नए आयाम देती है ! सुख दुख के बीच झूलती हुई खुद को संभालती है परंतु अपने पापा के दिये हुए संस्कारों की डोरी थामें रहती है और जीत अंततः सच्चे विश्वास की होती है और फिर किस तरह से उन्हें मिलाने के लिए प्रकृति भी अनोखी साजिश रच देती है !
बेहद सरल भाषा में लिखा गया यह उपन्यास प्रकृति के सजीव वर्णन के साथ साथ मनुष्य के मानवीय मूल्यों को दिखाता है और इंसान के मन की भावनाओं को भी बहुत ही बारीकी से दर्शाता जाता है !
एक बेहद रोचक, पठनीय और धाराप्रवाह उपन्यास जो अंत तक पाठकों को बांधे रहेगा ! पाठक एक ही सिटिंग में पढ़ना चाहेगा क्योंकि इसकी कहानी कहीं पर बाधित नहीं करेगी और बीच में छोडने का मन भी नहीं करेगा।
सीमा असीम