चम्पारण महात्मा गांधी के सत्याग्रह की धरती है. सत्याग्रह के सौ वर्षों बाद और आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी अगर चम्पारण में मजदूरों को आत्मदाह करना पड़ता है तो यह चिन्ता और चिन्तन का विषय है. ऐसे में यह आकलन करना आवश्यक है कि इन सौ वर्षों में हमने क्या खोया, क्या पाया! उक्त उद्गार हैं थिंक टैंक माने जाने वाले प्रख्यात चिंतक और समाजसेवी केएन गोविन्दाचार्य के. चीनी मिल के दो श्रमिकों द्वारा आत्मदाह की घटना से द्रवित होकर श्री गोविन्दाचार्य दस दिनों के प्रवास पर मोतिहारी आए थे.
बापू के चम्पारण सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने पर केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा सत्याग्रह शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है. इस दौरान कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. कई आयोजन होने वाले हैं. इस दौरान कितने ही केन्द्रीय मंत्री, राज्य सरकार के मंत्री और स्वयं मुख्यमंत्री मोतिहारी आए, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया कि सत्याग्रह की प्रथम प्रयोग स्थली पर श्रमिकों को आत्मदाह क्यों करना पड़ रहा है.
बकौल गोविन्दाचार्य दिल्ली के एक अखबार में यह समाचार पढ़कर वे अपनी वेदना रोक नहीं पाए. आत्मदाह क्यों, किसी ने रोका क्यों नहीं, घटना के बाद सरकारी स्तर पर क्या हुआ, आत्मदाह करने वालों के परिवार को क्या मिला, सत्याग्रह की धरती पर इतनी संवेदनहीनता का माहौल क्यों, कुछ ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए गोविन्दाचार्य मोतिहारी पहुंचे हैं.
बापू ने चम्पारण के किसान-मजदूरों की दुर्दशा देख कर उससे त्राण दिलाने के लिए सत्याग्रह का शंखनाद किया था, फिर महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर ऐसी घटना निश्चय ही चिन्तन का विषय है. क्या अब सत्याग्रह का कोई नया स्वरूप खोजना होगा? लोेकतांत्रिक तरीके से समस्याओं के समाधान का कौन सा नया स्वरूप हो सकता है.
गोविन्दाचार्य गांव-गांव जाकर किसानों-मजदूरों से मिले और उनकी व्यथा से रूबरू हुए. इस दौरान लोगों की परेशानियों को समझा. उन्होंने चीनी मिल जाकर श्रमिकों से भी बात की. वे आत्मदाह करने वाले श्रमिक नेता नरेश श्रीवास्तव और सूरज बैठा के परिजनों से भी मिले. एक जनसुनवाई के दौरान गंभीरता से समस्याओं की जानकारी ली.
एक खास भेंट में उन्होंने जो बताया, वह पूरी व्यवस्था को कठघरे में खड़े कर देती है. उन्होंने बताया कि पूरी जानकारी के बाद यह स्पष्ट हो गया कि दोनों श्रमिक नेता योगक्षेमं वहाम्यहं के िइश आन्दोलन कर रहे थे. वे वास्तविक मजदूर नेता थे, जो अपने साथियों के हक और मिल को पुन: चालू कराने के लिए सत्याग्रह कर रहे थे.
घटना के बाद पुलिस के बर्बरतापूर्ण रवैये से स्पष्ट है कि पुलिस पूरी तरह संवेदनहीन है. कोई बोलने की हिम्मत नहीं कर रहा है. निर्दोषों को जेल में डाल दिया गया है, जिससे अन्य लोगों में दहशत का माहौल है. प्रशासन की भूमिका भी संवेदनहीन रही है. राज्य सरकार ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी सरकार ने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि क्यों श्रमिकों के आत्मदाह की नौबत आई? उल्टे निदोर्र्षों को जेल में डालकर भय का माहौल बना दिया गया.
गोविन्दाचार्य ने कहा कि पूरे तथ्यों की जानकारी के बाद एक रिपोर्ट बनाकर राज्य सरकार को दी जाएगी. राज्यपाल और मुख्यमंत्री से वार्ता होगी. सरकार से दोनों पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने और श्रमिकों-किसानों के बकाया भुगतान के अलावा मिल चालू करने के लिए कहा जाएगा.
वहीं केन्द्र सरकार को भी तथ्यों के आधार पर आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा जाएगा. सरकार को उनके किए वादे याद दिलाए जाएंगे ताकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चीनी मिल के चीनी की चाय पीने की इच्छा पूरी की जा सके. यहां उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अगर भाजपा जीत कर आती है तो चीनी मिल को शुरू कराया जाएगा और अगली बार आऊंगा, तब इसी चीनी मिल के चीनी की चाय पिऊंगा.
गांधी जी का मानना था कि अहिंसक और शांतिपूर्ण आन्दोलन से ही सफलता मिल सकती है. आन्दोलन में हिंसा का पुट आने से शोषणकर्ताओं को प्रताड़ित करने का मौका मिल जाता है और आन्दोलन धाराशायी हो जाता है. गोविन्दाचार्य ने कहा कि समूचे घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि बापू के सत्याग्रह को एक तरह से नकार दिया गया, ऐसे में लोकतांत्रिक तरीके से आन्दोलन का विकल्प क्या होगा?
गोविन्दाचार्य क्षेत्र के सामाजिक और आर्थिक हालात को देखकर चिंतित नजर आए. उन्होंने कहा कि सत्याग्रह के सौ वर्षों बाद भी बापू के बताए गए रास्ते और उनकी नीतियों को नजरअंदाज किया जा रहा है. शिक्षा को विशेष महत्व देते हुए महात्मा गांधी ने चम्पारण में बुनियादी विद्यालय की स्थापना की थी. स्वयं उन्होंने और कस्तूरबा गांधी ने विद्यालय का संचालन किया था, लेकिन अब कुछ बुनियादी विद्यालय ही बचे हैं. कुछ विद्यालयों में कमरे और शौचालय तो बना दिए गए, पर बुनियादी विद्यालय की पद्धति मूल शिक्षा नीति नहीं बन पाई.
गांधी जी के बुनियादी विद्यालय का मूलमंत्र था शिक्षा के साथ रोजगार के लिए कौशल निर्माण, लेकिन वर्तमान सरकार ने गांधी की शिक्षा नीति को सिरे से खारिज कर दिया है. इस दौरान कई नियोजित शिक्षकों से भी उन्होंने मुलाकात की. शिक्षकों ने उन्हें बताया कि विगत पांच माह से वेतन नहीं मिला है. भूखमरी की स्थिति है.
उन्होंने प्रश्न किया कि क्या ऐसी स्थिति विधायकों और पदाधिकारियों के साथ होती है! ऐसी स्थिति में शिक्षा के माहौल और उसकी गुणवत्ता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह स्थिति केवल शिक्षकों की नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रों में सेवा दे रहे कर्मियों की भी है. उन्होंने कहा कि जबतक सबको समान रूप से न्याय नहीं मिलेगा, तबतक व्यवस्था परिवर्तन नहीं हो सकता. बापू ने भी न्याय की मांग को लेकर ही सत्याग्रह किया था.
गोविन्दाचार्य तब और अब की समीक्षा में लगे हैं. आजादी के पूर्व 1911 ईस्वी में सेन्सेक्स हुआ था, तब और 2011 के सेन्सेक्स अर्थात अब की सामाजिक आर्थिक स्थिति के तुलनात्मक अध्ययन में वे इन दिनों जुटे हैं. दस दिनों के प्रवास के दौरान जो तथ्य उनके सामने आए, उसके आधार पर उनका मत है कि समाज पहले से काफी कमजोर हुआ है. किसानों-श्रमिकों की स्थिति पूर्ववत है. तब अंग्रेजों के अत्याचार से किसान-मजदूर त्रस्त थे और अब व्यवस्था के चक्रव्यूह में फंसकर आत्महत्या करने को मजबूर हैं.
गोविन्दाचार्य ने कहा कि वे लगातार चम्पारण आते रहेंगे. पूरे आकलन के बाद सरकार को तथ्यों से अवगत कराएंगे, वहीं मजदूरों-किसानों की स्थिति में सुधार के लिए स्वयं तात्कालिक और दीर्धकालिक कार्यक्रम चलाएंगे. उन्होंने कहा कि ग्रामीण समाज के विकास के लिए कम खर्च में बहुआयामी खेती पर जोर दिया जाएगा.
भारत कृषि प्रधान देश है, किसान को सम्पन्न और कृषि को उन्नत बनाये बिना भारत के सम्पूर्ण विकास की कल्पना नहीं की जा सकती. भारत स्वाभिमान आन्दोलन के प्रणेता गोविन्दाचार्य देश के कई हिस्सों में किसान और कृषि की समृद्धि के लिए काम कर रहे हैं. उनका मानना है कि केवल सरकार पर निर्भर रह कर परिवर्तन की बात नहीं सोची जा सकती है.
चीनी मिल के दो मजदूरों के आत्मदाह की घटना के बाद आन्दोलन ने व्यापक रूप ले लिया है. स्वामी अग्निवेश, जन अधिकार पार्टी प्रमुख सांसद पप्पू यादव ने भी एक मंच से गैर राजनीतिक आन्दोलन का शंखनाद किया था. वहीं झारखण्ड के भूतपूर्व आईजी पीके सिद्धार्थ ने सामाजिक जागरूकता और पीड़ित परिवार और मजदूरों के कल्याणार्थ कार्य शुरू किया है. इस आन्दोलन की धमक अब दिल्ली में भी दिखने लगी है. ऐसे में उम्मीद है कि गोविन्दाचार्य के आने के बाद निश्चय ही आन्दोलन को एक नया आयाम मिलेगा.