biharबिहार के सियासी दलों और उनके नेताओं को सूबे में चुनावी आहट सुनाई देने लगी है. लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखते हुए सभी दल तैयारियों में जुट गए हैं. नेता विपक्ष तेजस्वी यादव जनता की नब्ज टटोलने और मतदाताओं के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए न्याय यात्रा कर रहे हैं. जदयू में भी संगठन का काम तेजी से चल रहा है और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की टीम बनाने का काम जारी है. भाजपा तो हमेशा चुनावी मोड में ही रहती है और उनके कार्यक्रम चल रहे हैं. हालांकि कांग्रेस का जनता के बीच जाने का प्रोगाम रद्द हो गया है, लेकिन एक बार फिर पार्टी में सुगबुगाहट तेज हो गई है.

सूबे में चल रही राजनीतिक गतिविधियों के बीच एक और महत्वपूर्ण सियासी जोड़-तोड़ में रणनीतिकार अपना दिमाग लगा रहे हैं. यह माथापच्ची इसलिए हो रही है ताकि वोटबैंक का प्रतिशत इतना बढ़ा लिया जाए कि हर हाल में जीत की गारंटी हो. राजद और भाजपा के बेस वोट को सभी जानते हैं और इस  बेस वोट में फिलहाल बदलाव की कोई आशंका नहीं है. जदयू और भाजपा के मिलन ने एनडीए का हौसला बढ़ाया है, लेकिन राजद और भाजपा की चाहत यह है कि बेस वोट के अलावा एक ऐसा चंक वोट इसमें शामिल हो जाए जो हर हाल में जीत दिलवा दे. इसी जीत की ख्वाहिश ने राजद और भाजपा को अतिपिछड़ा वोट बैंक की ओर मुखातिब कर दिया है.

लालू का जिन्न अतिपिछड़ा वोट बैंक था

इतिहास के पन्नों को पलटें तो साफ होगा कि लालू प्रसाद के उभार में इन्हीं अतिपिछड़ों ने अहम भूमिका निभाई थी. लालू बराबर कहते थे कि मतपेटियों से जिन्न निकलेगा. दरअसल लालू का जिन्न यही अतिपिछड़ा वोट था जो उन्हें चुनावी राजनीति की बुलंदियों पर ले गया और एक समय उन्हें सत्ता की राजनीति का बेताज बादशाह बना दिया. लोग बोलचाल में कहने लगे थे कि लालू प्रसाद टेबल-कुर्सी को भी टिकट देंगे तो वह भी विधायक और सांसद हो जाएगा. ऐसा हुआ भी. लालू प्रसाद ने ऐसे अनजान चेहरों को राजनीति के शीर्ष पर पहुंचा दिया जिसे लोग ठीक से जानते तक नहीं थे.

अतिपिछड़ों पर आज किसी दल का दबदबा नहीं 

दरअसल माय यानी यादव व मुसलमानों की एकजुट ताकत में जैसे ही कुछ सवर्ण जाति और अतिपिछड़ों के वोट जुट गए वैसे ही लालू अपराजेय हो गए. लालू का इशारा ही उम्मीदवारों की जीत की गारंटी हो गई, लेकिन धीरे-धीरे सवर्ण जातियों और अतिपिछड़ों का आकर्षण राजद से कम होता चला गया. नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा पाशा फेंका कि लालू प्रसाद चित हो गए. लगभग 120 जातियों के समूह अतिपिछड़ा वर्ग पर आज किसी एक दल का दबदबा नहीं रह गया है. यह वोट अब सभी दलों में बंट गया है और चुनाव दर चुनाव अतिपिछड़ों की प्राथमिकता बदलती रहती है.

जानकार कहते हैं कि इस वोट बैंक का ज्यादा हिस्सा अभी नीतीश कुमार के पास है. भाजपा के साथ तालमेल हो जाने के बाद एनडीए के पास इसकी 75 फीसदी हिस्सेदारी मानी जा रही है. अतिपिछड़ा वोटों का यही झुकाव राजद के रणनीतिकारों को सता रहा है. राजद चाहता है कि एक बार फिर अतिपिछड़ा वोटर पार्टी से जुड़ जाए. इससे एनडीए कमजोर होगा और गठबंधन में नीतीश कुमार की हैसियत कम होगी. सबसे बड़ी बात यह होगी कि राजद के पास एकमुश्त एक बड़ा वोट बैंक जुट जाएगा, लेकिन राजद के लिए यह कोई आसान काम नहीं है. वहीं राजद ने एक खास प्लान बनाकर इस काम को पूरा करने का संकल्प लिया है. इसकी पहली कड़ी में पटना में सफल धानुक सम्मेलन किया गया.

इस सम्मेलन की जिम्मेदारी पूर्व विधान पार्षद रामबदन राय पर सौंपी गई थी. पटना में आयोजित इस सम्मेलन में बिहार भर से धानुक समाज के लोग आए और राजद को मदद करने का भरोसा तेजस्वी यादव को दिला गए. धानुकों की उमड़ी भीड़ से तेजस्वी यादव का हौसला बढ़ा है और उन्हें लगने लगा है कि इस तरह के आयोजनों से अतिपिछड़ों को अपनी तरफ जोड़ा जा सकता है. गौरतलब है कि बिहार में मुंगेर, बेगूसराय, झंझारपुर और भागलपुर संसदीय क्षेत्र में धानुक वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इसी तरह विधानसभा की पांच दर्जन सीटों पर धानुकों की अच्छी आबादी है, इसलिए राजनीतिक तौर पर धानुकों के महत्व को कोई भी दल नजरअंदाज करने की हैसियत में नहीं है. अतिपिछड़ों में धानुकों को साधने का मतलब है कि अन्य जातियों का भी स्वाभाविक झुकाव उसी ओर हो जाएगा.

अतिपिछड़ों के वरिष्ठ नेता रामबदन राय कहते हैं कि आज हमारे देश में सत्तारूढ़ दल के नेतृत्व में मनुवादी एवं यथा स्थितिवादियों द्वारा दलितों, पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है. जातीय विषमता के विरुद्ध बोलने वाले हर आवाज को कुचलने की घृणित साजिश हो रही है. बिहार के भूभाग पर धानुक समाज की अपनी गौरवशाली परंपरा रही है. धानुक जाति का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. ये यहां के मूल निवासी हैं. डॉ. आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव ने मध्यकालीन इतिहास में लिखा है कि ये जाति अत्यंत साहसी होती थी तथा ये मगध सेना में धनुष सैनिक के रूप में जाने जाते थे. परन्तु आज इतनी आबादी के बावजूद सत्ता और राजनीति में हाशिए पर धकेल दिए गए हैं.

आजादी के 70 वर्षों के बाद भी इनकी सामाजिक एवं शैक्षणिक स्थिति अत्यंत दयनीय है. शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालय सेवाओं, भारतीय प्रशासनिक सेवाओं, भारतीय पुलिस सेवाओं में इनकी उपस्थिति शून्य के बराबर है. यह जाति बिहार में अत्यंत पिछड़ी जातियों में शामिल है. 1978 के बाद अतिपिछड़ी जातियों की श्रेणी में लगभग 113 जातियों को शामिल किया जा चुका है, पर आरक्षण का प्रतिशत वही है. नीतीश सरकार ने आर्थिक रूप से संपन्न पिछड़ी जातियों में शामिल कर अतिपिछड़ों को मिले आरक्षण को मृतप्राय बना दिया है. धानुक सम्मेलन में तेजस्वी यादव की मौजूदगी में कुछ प्रस्ताव भी पास किए गए.

  1. धानुक समाज अपनी राजनैतिक सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण 19 प्रदेशों में यथा पश्चिम बंगाल, उतर प्रदेश, ओड़ीसा में अनुसूचित जाति में शामिल है. ठीक उसी तर्ज पर बिहार में भी धानुक को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए.
  2. बिहार सरकार के ठेकेदारी प्रथा में प्रदत्त आरक्षण 15 लाख की सीमा से बढ़ाकर 5 करोड़ किया जाए तथा बैंक की गारंटी स्वयं वहन करें.
  3. केन्द्र सरकार की नौकरियों में मंडल कमीशन के तहत प्रदत्त आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत में से 18 प्रतिशत अतिपिछड़ों के लिए किया जाए.
  4. बिहार सरकार की नौकरियों में प्रदत्त आरक्षण 18 प्रतिशत को बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया जाए, क्योंकि नीतीश सरकार द्वारा दर्जन भर जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल किया गया है.
  5. स्वतंत्रता संग्राम में शहीद स्व. रामफल मंडल की आदमकद प्रतिमा पटना के किसी चौराहे पर लगाई जाए.

इन प्रस्तावों के माध्यम से राजद धानुकों में यह संदेश देना चाहती है कि सत्ता में आने के बाद उनके अच्छे दिन आ जाएंगे. रामबदन राय कहते हैं कि वे पूरे बिहार में घूम-घूमकर अतिपिछड़ों को राजद के पक्ष में गोलबंद करने का काम कर रहे हैं. उनका दावा है कि अतिपिछड़ा के तीर से ही नीतीश कुमार राजनीतिक तौर पर परास्त होंगे. राजद की इन तैयारियों को देखते हुए भाजपा भी सतर्क हो गई है. उसने भी अतिपिछड़ों को गोलबंद करने के लिए आयोजनों का सिलसिला शुरू कर दिया है.

भाजपा अतिपिछड़ा वर्ग मोर्चा की ओर से पटना  में ‘आभार समारोह’ का आयोजन किया गया. इस मौके पर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने कहा कि अति पिछड़ा वर्ग पूरी तरह से राजग के साथ है. उन्होंने कहा कि 2014 में अति पिछड़ा समाज की एकजुटता की वजह से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे. मैं अपील करता हूं कि एक बार फिर अतिपिछड़ा वर्ग 2019 में वोट देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के विकास का मौका दे. बकौल मोदी, केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण के लिए पिछड़े वर्गों की केंद्र की सूची के वर्गीकरण के लिए केंद्र की सरकार ने आयोग का गठन किया है. राज्ससभा में बहुमत होने पर केंद्र सरकार पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाएगी. बिहार में जब 2005 में राजग की सरकार बनी, तब जाकर स्थानीय निकाय के चुनाव में अति पिछड़ों को आरक्षण दिया गया, जबकि राजद-कांग्रेस ने तो 17 वर्षों बाद 2002 में आरक्षण का प्रावधान किए बिना पंचायत का चुनाव करा दिया था.

सुशील मोदी कहते हैं कि देश में लगातार 40 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस और बिहार में 15 वर्षों तक सरकार चलाने वाले राजद ने कभी पिछड़ों की चिंता नहीं की. भाजपा चाहती है कि नीतीश कुमार के साथ का उसे पूरा फायदा मिले और इसलिए अररिया लोकसभा के उपचुनाव के प्रत्याशी चयन में भी अतिपिछड़ा वोटों का पूरा ख्याल रखा गया. भाजपा की तरह जदयू ने भी अतिपिछड़ों के लिए अपना अभियान छेड़ रखा है. बताया जा रहा है कि विधान परिषद के लिए उम्मीदवारों के चयन में जदयू अतिपिछड़ों का खास ख्याल रखने वाला है. कहा जाए तो गोलबंदी दोनों ओर से हो रही है और जिसकी रणनीति मेें दम होगा वही अगले चुनावों में अतिपिछड़ों का वोट ले जाएगा.

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