एक तरफ राजनीति में जहां विरोधी नेता एक-दूसरे को फूंटी आंख नहीं सुहाते, वहीं सभी दलों के नेताओं से व्यक्तिगत एवं आत्मीय रिश्ते कायम करने में अटल बिहारी वाजपेयी को हमेशा याद किया जाएगा. उनके इसी व्यक्तित्व के कारण सभी दलों के नेताओं ने उन्हें बराबर सम्मान दिया.

‘द अनटोल्ड वाजपेयीः पॉलिटिशियन एंड पैराडॉक्स’ पुस्तक में ऐसे ही एक वाकये का जिक्र है. इसमें अटल जी ने बताया है कि कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बीमारी में उनकी मदद की थी. विपरीत राजनीतिक ध्रुवों पर खड़े इन दोनों नेताओं के बीच मधुर संबंध आज के राजनेताओं के लिए मिसाल है, जो एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते.

1987 में अटल बिहारी वाजपेयी किडनी की समस्‍या से ग्रसित थे. उस वक्‍त उसका इलाज अमेरिका में ही संभव था. लेकिन आर्थिक साधनों की तंगी के कारण वह अमेरिका नहीं जा पा रहे थे. इस दौरान तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पता नहीं कैसे वाजपेयी की बीमारी के बारे में पता चल गया. उन्‍होंने अपने दफ्तर में वाजपेयी को बुलाया. उसके बाद कहा कि वे उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र में न्‍यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने वाजपेयी जी को कहा कि उम्‍मीद है कि वे इस मौके का लाभ उठाकर वहां अपना इलाज भी करा सकेंगे.

इस घटना का जिक्र मशहूर पत्रकार करण थापर ने अपनी हाल में प्रकाशित किताब द डेविल्‍स एडवोकेट में भी किया है. थापर ने लिखा है कि 1991 में राजीव गांधी की हत्‍या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको याद करते हुए इस बात को पहली बार सार्वजनिक रूप से कहा. उन्‍होंने करण थापर को बताया, ”मैं न्‍यूयॉर्क गया और इस वजह से आज जिंदा हूं.”

दरअसल न्‍यूयॉर्क से इलाज कराकर जब वे भारत लौटे तो इस घटना का दोनों ही नेताओं ने किसी से भी जिक्र नहीं किया. कहा जाता है कि इस संदर्भ में उन्‍होंने पोस्‍टकार्ड भेजकर राजीव गांधी के प्रति आभार प्रकट किया था. राजीव गांधी की मौत के बाद इस घटना के बारे में जब खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने करण थापर के प्रोग्राम Eyewitness में ये बात कही, तभी पूरी दुनिया को इस बारे में पता चला.

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