मोदी की जो सबसे चौंकाने वाली नीति है, वह है कल्याणकारी प्रावधानों पर ज़ोर देना. यूपीए ने अपनी कल्याणकारी योजनाएं ग़रीबी रेखा के आधार पर तैयार की थीं, लेकिन कुछ ग़रीब ऐसे भी हैं, जो ग़रीबी रेखा के नीचे नहीं हैं. ताज़ा बजट में हमने देखा कि सस्ती प्रीमियम दरों पर 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा और पेंशन के साथ-साथ सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की महत्वाकांक्षी योजना की बात कही गई है. जब इसे व्यापक रूप से लागू किया जाएगा, तो इससे करोड़ों लोगों को लाभ पहुंचेगा. मोदी उन लोगों में से हैं, जो बीपीएल में नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद वह उनके (बीपीएल) भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं. इसीलिए वह रिटायरमेंट पेंशन और स्वास्थ्य बीमा की योजना लेकर आए हैं. इस दृष्टि से देखा जाए, तो मोदी हमें लाल बहादुर शास्त्री की याद दिलाते हैं. वह शास्त्री ही थे, जिन्होंने यह सवाल उठाया था कि सरकारी योजनाओं की वजह से आम आदमी के जीवन स्तर में कितना सुधार आया है?
नौ महीने की सत्ता के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि कैसी है? चुनाव से पहले उनके आलोचक उन्हें हिटलर या उससे भी बुरे शख्स के रूप में पेश कर रहे थे. ऐसा कहा जा रहा था कि उनके सत्ता में आते ही मुसलमानों पर हमले शुरू हो जाएंगे. चुनाव के नतीजे आने से एक दिन पहले मेरी एक दोस्त ने मुझसे कहा था कि वह दिल्ली की आख़िरी कव्वाली की मजलिस में हिस्सा लेने के लिए वहां जा रही हैं. ये वे लोग थे, जो नरेंद्र मोदी का खौफ तरह-तरह से उजागर करने की कोशिश कर रहे थे. वहीं उनके बहुत से प्रशंसक ऐसे भी थे, जो अपनी खुद की कल्पनाओं को उनसे जोड़कर देख रहे थे. इसमें कोई शक नहीं था कि वह एक शक्तिशाली नेता बनने जा रहे थे, लेकिन कुछ लोगों का ख्याल था कि वह रातोंरात देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था दुरुस्त कर देंगे या कांग्रेस की राज्यवादी नीति (जिसमें सब कुछ सरकारी नियंत्रण में हो) ख़त्म कर देंगे या फिर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर की तरह वामपंथियों एवं दक्षिणपंथियों, सबका निजीकरण कर देंगे. बिग-बैंग की तरह कोई बड़ी घटना होगी, जो मोदी काल के आगमन की घोषणा करेगी. यानी मोदी को लेकर पूरे देश में अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय थी.
लेकिन हमने जिस मोदी को देखा, वह एक बिल्कुल अलग व्यक्तित्व था. अपने कार्यकाल के पहले ही दिन से लोगों तक पहुंचने के लिए उन्होंने अलग रास्ता अपनाया. यह सोचने की बात है कि उनसे पहले किसी भी प्रधानमंत्री को यह क्यों नहीं सूझा कि वह अपने शपथ ग्रहण को एक बड़े सार्वजनिक समारोह में बदल सकता है. देश में और विदेश जाकर विश्व के नेताओं से उनके मिलने का सिलसिला जारी है. 10 लाख रुपये का सूट छोड़कर अब तक उन्होंने कोई ग़लत क़दम नहीं उठाया है. मोदी ने पूर्वी देशों के साथ रिश्तों को मज़बूती प्रदान की और अमेरिका एक सहयोगी देश बन गया. इस लिहाज़ से देखा जाए, तो मोदी अटल बिहारी वाजपेयी की याद दिलाते हैं. वाजपेयी एक सफल विदेश मंत्री थे और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वह अपनी विदेश नीति में सफल रहे. अभी तक कोई बिग-बैंग परिवर्तन नहीं हुआ और न पुरानी शासन व्यवस्था में कोई दरार पड़ी है. यूपीए सरकार के समय से जारी
नीति-गतिहीनता अभी भी बरकरार है. विकास के लिए आर्थिक सुधारों की कोशिश में आश्चर्यजनक रूप से ठहराव है. रेलवे या सरकारी क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की संभावना सरकार ने सिरे से ख़ारिज कर दी है. यहां तक कि विनिवेश की रफ्तार भी सुस्त है. मोदी को सरकारी क्षेत्र से लगाव है, इसलिए वह इसे बेचने के बजाय अधिक कारगर बनाना चाहेंगे.
मोदी की जो सबसे चौंकाने वाली नीति है, वह है कल्याणकारी प्रावधानों पर ज़ोर देना. यूपीए ने अपनी कल्याणकारी योजनाएं ग़रीबी रेखा के आधार पर तैयार की थीं, लेकिन कुछ ग़रीब ऐसे भी हैं, जो ग़रीबी रेखा के नीचे नहीं हैं. ताज़ा बजट में हमने देखा कि सस्ती प्रीमियम दरों पर 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा और पेंशन के साथ-साथ सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की महत्वाकांक्षी योजना की बात कही गई है. जब इसे व्यापक रूप से लागू किया जाएगा, तो इससे करोड़ों लोगों को लाभ पहुंचेगा. मोदी उन लोगों में से हैं, जो बीपीएल में नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद वह उनके (बीपीएल) भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं. इसीलिए वह रिटायरमेंट पेंशन और स्वास्थ्य बीमा की योजना लेकर आए हैं. इस दृष्टि से देखा जाए, तो मोदी हमें लाल बहादुर शास्त्री की याद दिलाते हैं. वह शास्त्री ही थे, जिन्होंने यह सवाल उठाया था कि सरकारी योजनाओं की वजह से आम आदमी के जीवन स्तर में कितना सुधार आया है? शास्त्री अपनी साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि कभी नहीं भूले. इसीलिए उन्हें याद रहा कि उनके जैसे करोड़ों और लोग हैं. दुर्भाग्यवश वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सके, ताकि नेहरूवादी भारी उद्योग की नीति बदल सकें.
शास्त्री में युद्ध का निर्णय लेने की क्षमता नेहरू से अधिक थी. आज़ादी के बाद देश को किसी युद्ध में उन्होंने पहली जीत दिलाई थी. हालांकि, मोदी को अभी तक वैसी स्थिति से नहीं गुज़रना पड़ा है, लेकिन यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अगर ऐसी कोई नौबत आई, तो वह पूरे नंबरों के साथ पास हो जाएंगे. दरअसल, कोई भी नरेंद्र मोदी में एक उदारवादी आम नेता देखने की उम्मीद नहीं रखता था. कुछ लोगों को निराशा है कि जिस तेजी से बदलाव की उम्मीद थी, वह नहीं हो रही है. मोदी भारत में विकास की दर में तेजी लाने के दृढ़ संकल्प के साथ-साथ पिछली सरकारों की तरह ग़रीब एवं कमज़ोर वर्ग की उम्मीदें पूरी करना चाहते हैं. इसके अलावा भारत को विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों के साथ खड़ा करने का उनका निरंतर प्रयास भी जारी है. मोदी के लिए कई ख़तरे हैं. उन्हें राज्यसभा में एक लंबे समय तक ज़बरदस्त विरोध का सामना करना पड़ेगा. उन्हें देश में भी उसी स्टेटमैनशिप (राजनीतिक कुशलता) को अपनाना होगा, जिसका प्रदर्शन उन्होंने विदेशों में किया है. आम चुनाव में भाजपा को ज़बरदस्त कामयाबी दिलाकर उन्होंने पार्टी के दूसरे नेताओं को हाशिये पर डाल दिया है. लेकिन, कामयाबी का वह स्तर कायम रखना असंभव ही नहीं, नामुमकिन है. अगर विकास की रफ्तार धीमी होती है, तो धोखे खाने के लिए तैयार हो जाइए, क्योंकि दोस्त ही सबसे बड़े दुश्मन होते हैं.