दुनिया में हर कोई कुछ भी बना सकता है, लेकिन कोई आज तक इंसान नहीं बना पाया है, पर इस इंसान को मारने के लिए क्या-क्या नहीं बन रहे हैं. ज़िन्दगी बड़ी मुख्तसर है. पता नहीं कब वापसी का बुलावा आ जाए.
क्योंकि यह कैलेंडर नहीं है कि 10-20 वर्ष और. कुछ लोग अगर कुछ करके जाते हैं, तो वो हमेशा अमर रहते हैं और हमेशा ज़िदा रहते हैं. हालांकि जिनका नकारात्मक किरदार रहता है, उन्हें भी लोग याद करते हैं लेकिन दूसरे तरीक़े से. अपने-अपने धर्म के लिहाज़ से हम समझते हैं कि जन्नत है, जहन्नुम है और सोचते हैं कि हमसे हमारे कामों का हिसाब लिया जाएगा.
साहिर लुधियानवी का एक शेर मुझे याद आता है:-
ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है
खून फिर खून है, टपकेगा तो जम जाएगा...
मैं उन जवान बच्चों का दर्द कैसे बयां करूं जिनकी दुनिया ही बेरंग हो गई, जिनकी आंखें चली गईं. इसमें एक बच्ची इंशा भी घायल हुई. उसे शाह साहब ने एडॉप्ट किया, उसको ढाई महीने एम्स में रखा गया, लेकिन वहां के डॉक्टरों ने कहा कि कुछ पहले अगर वह यहां आई होती, तो एक आंख बच जाती, क्योंकि उसका सिर भी फटा हुआ है और उसके दांत भी टूट गए हैं और अभी 300-400 पैलेटगन उसके चेहरे में मौजूद हैं.
डॉक्टर कहते हैं कि अगर हम इन पैलेट्स को निकालेंगे तो इंफेक्शन हो सकता है. अभी बहुत सारी समस्याएं हैं उसे. ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं, जिनकी दुनिया बेरंग हो गई. अब आप दुनिया भी उनकी झोली में डाल दो, तो इसका तो औचित्य ही नहीं बनता. इसके बाद तो महबूबा मुफ्ती का मतलब ही नहीं बनता था सत्ता में रहने का.
इसके ऊपर उस प्रकार से आवाज़ उठी ही नहीं, जैसी उठनी चाहिए थी. हर घर में मातम है, मासूम बच्चों की दुनिया बेरंग हो गई है. हमने हर दरवाज़ा खटखटाया और कोशिश की कि इस मसले पर बातचीत की जानी चाहिए. कश्मीर के मसले पर इस्लाामाबाद को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. मेरी आधी ज़िन्दगी तो जेल में गुजरी है. मैं 64वें वर्ष में चल रहा हूं.
मैं यहां एक-दो घटनाओं का उल्लेख करना चाहूंगा. यहां हाईवे हैं, यहां अपराइजिंग बहुत थी. पैलेट गन से हमारे 100 जवान मारे गए. यहां एक आर्मी ट्रक चल रही थी और चलते-चलते वह खाई में गिर गई. उस समय तो लोगों का जुलूस था, वे कुछ भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी जान पर खेलकर उन सेना के जवानों को वहां से निकाला.
अमरनाथ यात्रा से यात्री वापस आ रहे थे, यात्री जब वहां फंस गए थे, तो यहां के लोगों ने कर्फ्यू को तोड़कर उन्हें वहां से निकाला. एक बार सैलाब यहां आ गया, तो हमने यहां कैंप्स लगाए और अपने घरों में इन्हें रखा. खुद उन्हें रिसीव किया और कहा कि आप जब तक चाहें हमारे घर में रहें.
आपने सुना होगा कि यहां जो बसने वाले लोग उन्हें म़ुकामी ज़ुबान में मकीन कहते हैं. मकीनों को भी मारा और मकानों को भी तोड़ा गया. बाथरूम यहां तक कि वॉशबेसिन तक को तोड़ दिया गया.
अगर आपको किसी बच्चेे की गिरफ्तारी करनी है तो आप करिए, लेकिन आप उसके घर तक को तबाह कर दें, तो यह कहां का क़ानून है. मैं चाहता हूं कि मैं दिल्ली कभी आऊं. भारत में मैं कई जगहों पर गया हूं.
मदर टेरेसा के अंतिम संस्कार में भी गया हूं. हमने कहा कि अगर आपकी बातों में लॉजिक होगा तो हम आपकी बात मानेंगे, अगर हमारी बातों में लॉजिक होगा तो आपको हमारी बात मान लेनी चाहिए. मेरा मानना है कि माइट इज नेवर राइट. जैसे हम बचपन में पढ़ते थे माइट इज राइट.
मेरा मानना है कि माइट इज नेवर राइट. बन्दूक़ से लैस साढ़े सात लाख फौजी लेकर आप यहां बैठेंगे, हमारे सर पर हुकूमत करेंगे, आ़खिर कब तक? हमारे दिल में हिन्दुस्तान के लोगों के लिए इज्ज़त है. क्योंकि वे भी इंसान हैं, हम भी इंसान हैं. 17 करोड़ मुसलमान हिन्दुस्तान में भी बसते हैं.
कभी-कभी हम समझते हैं कि शायद क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना का जो स्टैंड था, वह बड़ा सही था. यहां जो हम सियासी लड़ाई लड़ रहे हैं, तो हमने यहां फ्लैक्सिविलिटी भी दिखाई.
अटल बिहारी वाजपेयी साहब ने प्रधानमंत्री बनने से पहले मुझसे दो-ढाई घंटे तक बातचीत की थी. हमने उनसे भी कहा था कि यह जो सब हो रहा उसकी वजह से भी दूरियां बढ़ रही हैं. आप देखिए डिफेंस पर अरबों-खरबों रुपये का खर्चा किया जाता है. इस मसले की चाबी तो मोदी जी के पास है. क्योंकि उनके पास बहुमत है.
मुझे नहीं लगता कि वह यहां के हालात से अच्छी तरह वाक़ि़फ नहीं हैं. हम लोग कोई ग़लत बात नहीं कह रहे हैं. हमारा पक्ष बिल्कुल स्पष्ट है. आपने 1994 में करार पास किया, सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया. आपने इतने फैसले करवाए, लेकिन तब भी यह मसला वहीं का वहीं है. यह वाक़ई एक मसला है और जब तक आप एड्रेस न करें, तब तक उपमहाद्वीप में अनिश्चितता रहेगी.
दुनिया को भी देखना चाहिए कि दोनों देश परमाणु शक्ति से लैस हैं और दोनों आमने-सामने खड़े हैं. आपको बैठकर बात करनी चाहिए. सिविलियन गवर्नमेंट पाकिस्तान में भी है और यहां मोदी भी बहुमत में हैं, तो वह कोई भी भारत के लिए निर्णय ले सकते हैं.
गांधी जी ने एक भूमिका निभाई, गांधी जी हमेशा के लिए अमर हैं. नेहरू ने एक भूमिका की, उसके बाद भी बहुत सारे प्रधानमंत्री आए. हालांकि हमारा मसला उन्हीं की वजह से लटका हुआ है.
यहां पास में ही नीलम चौक है, वहां टेबल पर खड़े होकर नेहरू जी ने वादा किया था कि आपके लोगों से राय ली जाएगी. संसद के अन्दर भी और बाहर भी. हम चाहते हैं कि वही राय हमसे पूछ ली जाए. अगर वाक़ई यह अटूट है तो यह आपके लिए अवसर है, यह सुनहरा मौक़ा है आपके लिए.