santosh bhartiyaएक अद्भुत बाज़ीगरी पूरे देश के साथ हुई है. जब लोकसभा चुनाव हो रहे थे, उस समय पहले आडवाणी ने, फिर बाबा रामदेव ने और आखिर में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने देश के लोगों से कहा कि विदेशों में इतना कालाधन जमा है, जिसे अगर हिन्दुस्तान ले आया जाए, तो हर व्यक्ति के खाते में 15 से 20 लाख रुपए जमा हो जाएगा. देश को कोई टैक्स देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.

लोकसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी ने रैलियों में यह खुलकर कहा कि अच्छे दिन आएंगे. उन्होंने पक्का वादा किया कि हम काला धन, जो विदेशी बैंकों में जमा है, उसे भारत लेकर आएंगे और हरेक के खाते में 15 से 20 लाख रुपए पहुंच जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाने में मौजूदा केंद्र सरकार यानी कांग्रेस की सरकार कोई कोशिश नहीं कर रही है.

वह लाना भी नहीं चाहती, क्योंकि उसके संपर्क और निजी संबंधियों  का पैसा ही विदेशों में जमा है, लेकिन हम इसे लेकर आएंगे. देश के लोगों ने इस बात पर आंख मूंद कर विश्वास किया. उन्होंने नरेन्द्र मोदी में एक नया चेहरा देखा. उन्होंने ये मानने से इंकार कर दिया कि यह वादा झूठा भी हो सकता है, चुनाव प्रचार भी सकता है, वोट लेने के लिए लोगों को बरगलाना भी हो सकता है.

सरकार बनने के बाद जब लोगों ने 15 या 20 लाख रुपए, जो चुनाव के दौरान प्रत्येक व्यक्ति को देने की घोषणा की गई थी, तलाशने शुरू किए, तब पहली बार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि यह तो एक चुनावी जुमला था. मतलब चुनाव में हम जो कहेंगे या हमने जो कहा है, वह झूठ है. वो पूरा होगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है. इसके बाद ताबड़तोड़ 50 से ज्यादा घोषणाएं हुईं.

देश के सामने एक नया नक्शा रखा गया. सत्ता में आने के ढाई साल बाद 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री ने कालाधन के खिला़फ युद्ध की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि हम 500 और हज़ार रुपए की सारी करंसी बंद करते हैं, ताकि आतंकवाद और कालाधन के रूप में इस्तेमाल होने वाला पैसा जहां है, वहीं समाप्त हो जाए. हम नई करंसी लेकर आएंगे, जिसे बदलना है, वह तीन महीने के भीतर बदल ले.

इसके बाद शुरू हुआ भारत सरकार का अनिश्चय का खेल. हर रोज़ नियम बदले गए, हर रोज़ लोग कंफ्यूजन में रहे. लोग अपना ही पैसा बदलवाने के लिए बैंकों में लाइनों में खड़े हुए और फिर यह घोषणा की गई कि देखा, कालाधन रखने वाले लोग लाइनों में खड़े हैं. आज माहौल ऐसा बन गया है कि 125 करोड़ लोगों के देश में हर व्यक्ति चोर है. बैंक में कोई भी दस हज़ार रुपए लेकर जाए तो बैंक का अधिकारी पूछता है कि ये पैसे कहां से लाए. जो पांच लाख रुपए लेकर जाए, वो तो जा ही नहीं सकता है.

वो सोचता है कि 20-20 हज़ार या 5-5 हज़ार के टुकड़ों में अपनी मेहनत का पैसा कैसे हम बैंक में जमा करें, निकालने पर तो सरकार ने रोक लगा दी. पहले चार हज़ार, फिर 2 हज़ार, फिर 24 हज़ार, फिर 49 हज़ार इससे ज्यादा आप नहीं निकाल सकते हैं यानी अपना खुद का कमाया हुआ मेहनत का पैसा, पीढ़ियों से बचाया हुआ पैसा, हमने बैंक में रखा है, लेकिन हम निकालने जाएंगे तो हम नहीं निकाल सकते हैं.

सरकार ने उस पैसे के ऊपर क़ब्ज़ा कर लिया है और अब पैसा निकालकर हम किसको देते हैं, इसकी जानकारी हम सरकार को दें. सरकार को अगर नहीं देंगे तो हमारा पैसा ज़ब्त हो सकता है, ये माहौल सरकार ने बना दिया है. अब तक पिछले 70 सालों से इस देश के लोग ज़मीन या मकान में निवेश करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि उनका निवेश वहां सुरक्षित है.

इसी देश में बैंकों ने बड़े-बड़े स्कैम किए, बैंकों ने पैसा साइफन किया, इसी देश में सरकारी वित्तीय संस्थानों ने बॉन्ड्‌स निकाले, इसी देश में वित्तीय संस्थाओं ने बाज़ार आधारित निवेश प्रक्रिया शुरू की और लाखों-करोड़ों लोगों का पैसा डूब गया. बहुत सारे लोग बाज़ार आधारित इकॉनामी का शिकार हमारे देश में हुए हैं, जिनमें से बहुतों ने आत्महत्या कर ली. इसी वजह से किसान आत्महत्या कर रहा है, जिसे मौजूदा सरकार के मंत्री फैशन बता रहे हैं. वे कहते हैं कि किसान का आत्महत्या करना एक फैशन हो गया है.

अब मेरी समझ में नहीं आता कि वो वादा कहां गया कि हमारा पैसा कालाधन के रूप में विदेश में जमा है, जिसे हम हिन्दुस्तान लेकर आएंगे. उसकी अब कहीं चर्चा नहीं होती. हमने इस देश में गरीबों, सामान्य लोगों या मध्यम वर्ग का वह पैसा नोट बदलने के बाद निकलवाया, जिसे वह अपनी बीमारी, मुसीबत, परेशानी के वक़्त घर में कैश के रूप में रखते थे.

गरीब से गरीब आदमी भी किसी न किसी तरह पांच से 10 हज़ार रुपए बचाकर मुसीबत के लिए रखता था. अब उस पैसे को कालाधन बताकर देश में एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि हम सब चोर नज़र आते हैं. कोई भी व्यक्ति बैंक में पैसा जमा करने जाता है तो लोग देखते हैं कि ओ, हो!  ये पैसा चोरी का है, ये पैसा छिपाया हुआ है, ये जमा करने आया है.

इसकी आड़ में वे सारे लोग बच गए, जो कालाधन का धंधा करते हैं, जो कालाधन की इकोनॉमी चलाते हैं और जिनका पैसा विदेशी बैंकों में जमा है. अब सरकार ने घोषणा की है कि सारा कालाधन वापस आ गया है यानी आज की तारीख़ में देश में कहीं कोई कालाधन नहीं है. हमें सरकार की बात पर विश्वास करना चाहिए, लेकिन बहुत सारे लोग एक लाख, पांच लाख, 10 लाख, 50 लाख की नए नोटों की गडि्‌डयों के साथ पकड़े गए हैं.

आज भी टेलीविज़न पर कुछ खबरें नए नोटों के बंडल के साथ दिखाए जाते हैं कि यह-यह रुपया पकड़ा गया. ये सारी चीज़ यह कहकर  टाल दी जा रही हैं कि बैंकिंग व्यवस्था में ही कुछ अपराधी हैं, जो रुपए बदल रहे हैं या रुपयों को बाहर निकाल कर निहित स्वार्थों के हाथों में दे रहे हैं.

हमने जब तहकीकात की तो बैंक के लोगों ने कहा कि हमारे पास कितना रुपया आता है, यह रिज़र्व बैंक को पता होता है. छोटे बैंकों में 2 लाख, 5 लाख, 10 लाख और बड़े बैंकों में रोज़ 20 लाख रुपए तक की नोटों की आपूर्ति की गई. जब इन नोटों की आपूर्ति हुई, तब हमारे यहां लंबी-लंबी लाइनें लगी थीं. हम लोगों को पैसे दे रहे थे.

पर यह 5, 10, 20 लाख, एक करोड़, दो करोड़, 50 करोड़ की संख्या में ये दो-दो हज़ार रुपए के नोट किस बैंक से निकले. बैंकिंग अधिकारियों का कहना है कि ये हमारे यहां से नहीं निकले हैं. ये नोट सीधे या तो जहां छपाई हो रही है, वहां से निकले हैं या फिर ये नोट रिज़र्व बैंक से निकले हैं. ये नोट सामान्य बैंकों की शाखाओं से नहीं निकले हैं. यह सवाल बहुत जायज़ है कि जो रुपया पकड़ा जा रहा है, वह निकल कहां से रहा है?

दूसरा सवाल कि ये सारे लोग जो पकड़े गये, इनका रिश्ता एक विशेष राजनीतिक पार्टी से कैसे है? यह रहस्य कोई नहीं समझ पा रहा है कि जितने भी लोग पकड़े गए हैं, उनका सीधा-सीधा रिश्ता एक विशेष राजनीतिक पार्टी से है. वे पकड़े इसलिए गए क्योंकि जो निचले स्तर पर जांच करने वाली एजेंसियां हैं, उन्हें नहीं पता था कि इन लोगों को छोड़ देना है, इसलिए उन्होंने पकड़ लिया.

तीसरा सवाल पांच-पांच, 10-10, 20-20 करोड़ रुपए लगाकर एक विशेष राजनैतिक दल की रैलियां हुईं, वो पैसे कहां से आए? पैसा तो दिया गया, बसों को दिया गया, जिनमें लोग भरकर आए. कुर्सी वालों को दिया गया, माइक वालों को दिया गया, टैंट वालों को दिया गया, प्रचार करने वालों को दिया गया, टेलीविज़न चैनलों को दिया गया, ये पैसा कहां से दिया गया. ये नए नोट कैसे दिए गए क्योंकि पुराने नोट तो कहीं चलन में हैं नहीं और न ही कोई ले रहा है.

तब ये पैसे कहां से आए, कहां से निकले? इन सवालों का जवाब मुझे नहीं लगता कि हमें कभी मिलेगा.   ये एक ऐसा रहस्य है, जो है तो खुला, लेकिन कभी कोई कहने की हिम्मत नहीं करेगा. जो भी इन सवालों को पूछेगा वह देशद्रोही मान लिया जाएगा. आज एक माहौल बन गया है कि अगर आप सरकार के खिला़फ कोई बात करते हैं तो आप देशद्रोही हैं क्योंकि सरकार इस देश को नया बनाने के लिए जी-जान लगाए हुए है.

हमने अगर बचपन में अपने परिवार के किसी सदस्य की जेब से पतंग उड़ाने के लिए चार आने चुराए, तो आज हमसे कहा जा रहा है चूंकि तुमने चार आने चुराए थे, तो इसलिए तुम इस लाखों करोड़ों रुपयों की चोरी पर सवाल नहीं उठा सकते. तुम्हारी और हमारी चोरी में नैतिक रूप से कोई फर्क़ नहीं है, स़िर्फ मात्रा का फर्क है.

तुमने चार आने  चुराए, हम चार लाख करोड़ रुपए चुरा लें, इससे क्या फर्क पड़ता है? यह तर्क इस समय देश में उन लोगों द्वारा तेज़ी से फैलाया जा रहा है, जो एक विशेष राजनीतिक पार्टी के सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने वाले किराए के लोग हैं. ये लोग 24 घंटे धुआंधार झूठ की बमबारी कर रहे हैं.

अब यहां एक और सवाल उठता है. सवाल यह है कि आजकल देश का माहौल अजीब हो गया है. कश्मीर के लोग, जिनकी संख्या 60 से 80 लाख है, पूर्णतया देशद्रोही हो चुके हैं. देश को समझा दिया गया है कि ये सब पाकिस्तान समर्थक हैं, चाहे वे कितना भी चिल्लाएं कि हम पाकिस्तान के साथ नहीं हैं.

हम हिन्दुस्तान से अपनी इज्जत, अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब या बंगाल के लोग कर रहे हैं. कश्मीर के अलावा दूसरे प्रदेश के लोगों की मांगें-मांगें हैं, कश्मीर के लोगों की मांगें सीधे पाकिस्तान के साथ कश्मीर को जोड़ती हैं, ये माहौल देश में बना दिया गया है.

एक तऱफ कश्मीर के लोग देशद्रोही हो गए, दूसरी तऱफ कश्मीर के अलावा सारे देश के लोग बड़ी संख्या में, आप उन्हें 100 करोड़, 110 करोड़, 120 करोड़ कह सकते हैं, ये सारे लोग चोर हो गए हैं, जो चोरी से बैंक में जाते हैं. पैसा निकालने के लिए लाइन में खड़े होते हैं या बैंक में पैसा जमा करने जाते हैं. वहां उन्हें चोर की नज़र से देखा जाता है.

ईमानदार कौन हैं, बस कुछ लोग. क्यों? क्योंकि उनके हाथ में सत्ता है और वो सारे देश को चोर बनाने का माहौल सफलतापूर्वक बना चुके हैं. उनका यह मानना है कि जो हम कहते हैं, वही सही है. लोकतंत्र में ये नए मूल्य जिन्हें आज डाला गया है, वो इतने खतरनाक हैं कि उन्होंने संपूर्ण विपक्ष को सकते में डाल दिया है. विपक्ष का कोई नेता सवाल खड़ा करने की स्थिति में नहीं है क्योंकि उसे लगता है कि उसे फौरन देशद्रोही या देश के विकास में बाधक घोषित कर दिया जाएगा.

अब अगले हमले के लिए उन चन्द लोगों को तैयार रहना चाहिए, जो कोने में फुसफुसाहट के रूप में ही सही, लेकिन सही बात, सही आवाज़ उठा रहे हैं. देश का ये माहौल ऐसा लगता है कि हज़ारों साल की उस परंपरा को समाप्त करने के लिए बनाया गया है, जिसे इस देश ने गर्व के साथ मानवीयता, भाईचारा, बंधुत्व, सर्वधर्म समभाव, सबको एक साथ जीने के समान अवसर के रूप में स्वीकार किया था.

आज इन सारे मूल्यों के खिला़फ नए मूल्यों को इंट्रोड्‌यूस करने वाली ताकतें बेखौ़फ मुस्कुरा रही हैं और ये देश धीरे-धीरे अपने मूल्यों को समाप्त होते देख रहा है. कहीं सवाल नहीं उठ रहा है कि भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी कितनी बढ़ गयी है? कहीं सवाल नहीं उठा रहा है कि नौकरियां, शिक्षा, स्वास्थ्य की क्या स्थिति है? कहीं सवाल नहीं उठा रहा है कि विकास की गाड़ी क्यों रुक गई है? बस सब सकते में हैं और देख रहे हैं कि क्या हो रहा है?

लोकतंत्र की यह स्थिति लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी आदि के लिए एक सबक़ है. देश के हर आदमी के लिए एक सबक़ है. बस देखना है कि यह सबक़ उनके गले पूरी तरह उतर गया है या नहीं.

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