हमने आम आदमी पार्टी के नेताओं को सरेआम झगड़ते देखा. ये झगड़े तब तक होते रहे, जब तक यह स्थापित नहीं हो गया कि इस पार्टी का केवल एक ही नेता है, जिसका नाम है अरविंद केजरीवाल. बाकी लोग उनके बराबर में खड़े होने के योग्य नहीं हैं. एक ऐसा आंदोलन, जो एक समान सोच रखने वाले दोस्तों के एक समूह ने शुरू किया था, अब अकेला अरविंद पार्टी (आप) बन गया है. अरविंद केजरीवाल ने उसी मीडिया से झगड़े मोल लिए, जिसके सहयोग से उन्हें चुनाव में कामयाबी मिली. 

AAPएरिक फ्रोम्म ने सामजिक आंदोलनों का मनोवैज्ञनिक विश्लेषण प्रस्तुत किया था. उन्होंने फासीवाद की वजह से स्वतंत्रता को लेकर लोगों के भय का विश्लेषण किया. लोगों ने खुद सोचने के बजाय आदेश पालन को पसंद किया. ऐसे बहुत से लोग मिलेंगे, जो तानाशाही पसंद करते हैं, क्योंकि प्रजातंत्र चीज़ों को जटिल बना देता है और फैसला लेने की प्रक्रिया को मुश्किल. लेकिन क्या आपने जो सत्ता हासिल की है, उसके इस्तेमाल से आपको डर लगता है? अरविंद केजरीवाल 49 दिनों की सत्ता में आए थे. उनकी अल्पमत सरकार को कांग्रेस समर्थन दे रही थी. उस समय केजरीवाल मुख्यमंत्री के बजाय एक छात्र आंदोलनकारी की तरह व्यवहार कर रहे थे. इस बार उन्हें पूर्ण बहुमत मिला है. उनकी पार्टी को दिल्ली की 70 में से 67 सीटें मिली हैं. वह जिस तरह के नीति आधारित फैसले लेने चाहते हैं, ले सकते हैं. वह अपने चुनावी वादे पूरे कर सकते हैं. लेकिन, वह शासन चलाने के बजाय जनता का ध्यान भटकाने के लिए तरह-तरह की रणनीति अपना रहे हैं.
हमने आम आदमी पार्टी के नेताओं को सरेआम झगड़ते देखा. ये झगड़े तब तक होते रहे, जब तक यह स्थापित नहीं हो गया कि इस पार्टी का केवल एक ही नेता है, जिसका नाम है अरविंद केजरीवाल. बाकी लोग उनके बराबर में खड़े होने के योग्य नहीं हैं. एक ऐसा आंदोलन, जो एक समान सोच रखने वाले दोस्तों के एक समूह ने शुरू किया था, अब अकेला अरविंद पार्टी (आप) बन गया है. अरविंद केजरीवाल ने उसी मीडिया से झगड़े मोल लिए, जिसके सहयोग से उन्हें चुनाव में कामयाबी मिली. अब महज़ उनका नाम लेने मात्र पर वह मीडिया पर मानहानि का मुक़दमा दायर करना चाहते हैं, आलोचना तो दूर की बात है. इतने बड़े नेता के ऊपर उंगली उठाने की मीडिया को हिम्मत कैसे हुई! अभी तक उनका सामान्य अपरिपक्व व्यवहार सामने आया है. उन्होंने अभी तक उन लोगों से झगड़े मोल लिए हैं, जिन्हें वह अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं. अब उनका हठ यह है कि उप-राज्यपाल उनके लिए ग़ैर-ज़रूरी हैं. केजरीवाल अपने राज्य के एकमात्र नेता बने रहना चाहते हैं, लेकिन उनके लिए हताशा और क्रोध की बात यह है कि दिल्ली केवल एक केंद्र शासित राज्य है.
अब इससे बेहतर क्या हो सकता है कि हालात को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जाए कि केंद्र के पास राष्ट्रपति शासन लागू करने के अलावा कोई चारा न बचे. उसके बाद ज़ाहिर है, केजरीवाल अपने आपको पीड़ित दिखाना शुरू कर देंगे. दरअसल, इस बार उनका कार्यकाल 49 दिनों से कुछ ज़्यादा होगा और उसके बाद अगला चुनाव वह इस मुद्दे पर लड़ेंगे कि पूरी दुनिया उनके ़िखला़फ है. इसके लिए वह बहुत से अज़ीबा़ेगरीब तर्क गढ़ते हैं. दरअसल, एक कभी न ख़त्म होने वाली लड़ाई केजरीवाल का पसंदीदा खेल है. इसकी शुरुआत उन्होंने अन्ना हजारे के साथ की और वह आज भी एक छात्र आंदोलनकारी की तरह व्यवहार कर रहे हैं. वह जब पिछली बार मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने धरना दिया था. जब जनता अपनी समस्याएं सामने लाती है, तो उनके हल के लिए वह उसे धरना देने का मशविरा देते हैं. अपनी सरकार के लिए मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर वह खुद भी एक तरह के धरने पर हैं. त्रासदी यह है कि हाल के दिनों में एक लोकतांत्रिक पार्टी के जन्म की आशा दिखाई दी थी, लेकिन वह आशा अब एक व्यक्ति की सनक बन गई है. राजनीतिक मोर्चे पर एक खालीपन है. ऐसा लगता है कि बिहार और उत्तर प्रदेश की यादव यूनियन की पार्टियां मृतप्राय: हो गई हैं. राहुल गांधी के भारत एक खोज के बावजूद कांग्रेस पार्टी का पुनरुत्थान नहीं हो सकता.
सीताराम येचुरी चाहे जो कर लें, वामपंथ का आधार खिसक रहा है. एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भारत को एक विश्वसनीय विपक्षी पार्टी की आवश्यकता है, जो भाजपा का मुकाबला कर सके. बावजूद इसके, आम आदमी पार्टी के बर्ताव की वजह से उसे यह मुकाम नहीं दिया जा सकता है. आप से लोगों को आशा थी कि वह दिल्ली की समस्याएं हल कर लेगी. मसलन प्रदूषण, जिसकी वजह से जन-स्वास्थ्य और स्कूली बच्चों एवं बुजुर्गों का जीवन खतरे में पड़ गया है. आप का अर्थ है ग़रीब समर्थक, लेकिन बिना किसी आर्थिक रणनीति के. बहुत जल्द उन्हें (अरविंद केजरीवाल को) बजट संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की तरह, जिसने पुनर्वितरण के नाम पर पश्चिम बंगाल को दिवालिया बना दिया, आप भी वही काम कर रही है.
अब जयललिता का व्यवहार. उन्होंने अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए अपनी कुर्सी छोड़ दी थी और दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए धैर्यपूर्वक इंतज़ार किया. हम यह उम्मीद कर सकते थे कि इंदिरा गांधी ने सही आचरण का प्रमाण देते हुए आपातकाल न घोषित किया होता. तमिलनाडु देश के उन गिने-चुने राज्यों में से एक है, जो संपन्न है और अच्छा कल्याणकारी राज्य है. अब सवाल यह उठता है कि उत्तर भारत दक्षिण से आ़िखर कब सबक लेगा?

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