तिब्बती बुद्धिज्म का केंद्र होने के कारण कभी सुर्खियों में रहने वाला अरुणाचल प्रदेश का तवांग क्षेत्र अब जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के विरोध के कारण चर्चा में है. हाल में तवांग के स्थानीय लोगों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं, जो अपने नेता लामा लोसांग ग्यातसो को पुलिस हिरासत से छोड़े जाने की मांग कर रहे थे. 2 मई को करीब दो हजार लोग तवांग के जिला मुख्यालय के सामने शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे. पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर बिना चेतावनी के गोलियां चलानी शुरू कर दी. इस घटना में तवांग मोनेस्ट्री के 21 वर्षीय बौद्ध भिक्षु नियमा वांगड़ी और जांगोड़ा गांव के तेसरिंग टेंपा (31 वर्ष) की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गई. जबकि अन्य 19 लोग घायल हुए, जिनमें से 4 की हालत अब भी नाजुक बनी है. ग्यातसो को पुलिस ने आईपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तार किया था. उन्हें ज़मानत भी नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में लोगों को यह आशंका थी कि कहीं उनके साथ कुछ गलत न हो जाए. वहीं, पुलिस ने आरोप लगाया कि विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस थाने पर हमला करने की कोशिश की, पुलिस को मजबूरन ऐसा कदम उठाना पड़ा है.
पुलिस अधिकारियों की यह तहरीर लोगों के गले नहीं उतर रही है. स्थानीय लोगों का मानना है कि जलपरियोजनाओं के विरोध के कारण प्रशासन ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाई. इस क्षेत्र में तकरीबन 125 छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं पर काम चल रहा है. जिनमें 13 बड़ी परियोजनाएं हैं. पर्यावरणीय और धार्मिक दृष्टिकोण के कारण साल 2011 से ही लोग इसका विरोध कर रहे हैं. स्थानीय लोग लंबे समय से 780 मेगावाट की, 6400 करोड़ रुपए लागत वाली न्यामंग चू पॉवर परियोजना के विरोध में थे. इस परियोजना के लिए 2012 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मंजूरी दे दी थी. लेकिन हाल में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने इस पर रोक लगा दी थी. इस परियोजना के निर्माण स्थल पर ठंड के दिनों में काले गले वाले क्रेन (सारस) का प्राकृतिक आवास है. स्थानीय बौद्ध मोनपा समुदाय के लोग इस पक्षी को 6वें दलाई लामा का अवतार मानते हैं जो तवांग घाटी के रहने वाले थे. काले गले वाले क्रेन(सारस) तिब्बत के पठार में प्रजनन करते हैं और सर्दियों में तवांग आ जाते हैं. ये पक्षी मुख्य रूप से चीन में पाए जाते हैंै. आईयूसीएन (इंटरनेशनव यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर) ने इस पक्षी को विलुप्त होने की सूची में रखा है जबकि भारत में वन्यजीव कानून में इसे पहली अनुसूची में रखा गया है. इसके अलावा इस क्षेत्र में अन्य जीव जैसे लाल पांडा, स्नो-लियोपर्ड पाए जाते हैं. इस संबंध में तवांग घाटी में रहने वाले लोगों ने कई बार स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार की एजेंसीज को पत्र लिखे. थक-हारकर उन्होंने राष्ट्रीय हरित प्रधिकरण (एनजीटी) का रुख किया. एनजीटी ने प्रोजेक्ट के लिए दी पर्यावरणीय मंजूरी को 7 अप्रैल 2016 को निरस्त कर दिया.
एनएपीएम के उमेश बाबू बताते हैं कि 26 अप्रैल 2016 को स्थानीय नेता ग्यात्सो को एनजीटी के निर्णय के फलस्वरूप बदला लेने के लिए गिरफ्तार किया गया, लेकिन उन्हें उसी दिन रिहा कर दिया गया. इसके बाद 28 अप्रैल को जिला पंचायत अध्यक्ष ने तवांग घाटी क्षेत्र के विकास के मुद्दे पर परिचर्चा के लिए एक जनसभा आयोजित की, वहां लोगों ने एक काग़ज पर अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए दस्तखत किए. बाद में उस अटेंडेंस शीट को साजिशन एक अन्य काग़ज के साथ अटैच कर दिया गया और ग्यात्सो को धार्मिक भावना भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद चार दिन तक उन्हें अदालत से ज़मानत नहीं मिली. 2 मई 2016 को जिलाधिकारी कार्यालय के सामने एकत्रित होकर लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपने नेता को रिहा करने की मांग कर रहे थे.
इस घटना के बाद आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग स्थानीय लोगों ने की. जब सरकार और प्रशासन ने उनकी नहीं सुनी तो 60 बौद्ध भिक्षुओं का एक दल विरोध प्रदर्शन करने दिल्ली के जंतर-मंतर पहुंचा और सरकार के सामने अपनी मांग रखी. तवांग से दिल्ली आए लोसांग चौदुप ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत सरकार इस मसले पर ध्यान दे. अरुणाचल प्रदेश के लोगों को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि भारत सरकार उन्हें नज़रअंदाज कर रही है. साउथ एशियन नेटवर्क फॉर रिवर्स, डैम एंड पीपुल के हिमांशु ठाकुर ने विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा कि इस परियोजना से पैदा हुई बिजली तवांग के लोगों तक पहुंचेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है, लेकिन उनका विनाश होना तय हैै. ह्यूमैनिटी फाउंडेशन के जंपा टेसरिंग ने कहा कि तवांग के लोगों को माइक्रो हाइड्रो प्रोजेक्ट की आवश्यकता है न कि बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की.
पुलिस फायरिंग को बर्बरतापूर्ण करार देते हुए नेशनल अलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट के विमल भाई ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश देश के सबसे शांत प्रदेशों में से एक है. यहां बौद्ध भिक्षु बहुतायत में रहते हैं. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा गोली चलाने का कोई कारण नज़र नहीं आता, वह भी बिना किसी चेतावनी के. यह घटनाक्रम हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या यह पूर्वनियोजित थी? लोगों की मांग है कि इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज द्वारा की जानी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि आखिरकार पुलिस ने किसके आदेश पर यह कदम उठाया.
यहां काम कर रहे एसएमआरएफ, एनएपीएम, डीएसजी जैसे समूह प्रशासन के इस मनमाने रवैये की आलोचना कर रहे हैं. उनका कहना है कि निजी कंपनियों और सरकारी महकमे का गठजोड़ लोकहित के खिलाफ काम कर रहा है. क्या सरकार लोगों को डरा धमकाकर निजी कंपनियों को पर्यावरणीय मंजूरी दिलाना चाहती है. क्या वह लोगों को यह संदेश देना चाहती है कि वह किसी न किसी तरह दोबारा पर्यावरणीय मंजूरी कंपनी को दिला देगी. भले ही उसे लोगों की लाश पर से ही क्यों न गुजरना पड़े. एसएमआरएफ के सदस्य लोसांग चोदप ने आरोप लगाया कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं न केवल तवांग के पारिस्थितिकी तंत्र को बर्बाद कर रही हैं बल्कि बौद्ध समुदाय के लोगों के धार्मिक स्थलों को भी खत्म कर रहे हैं. चीन के साथ सीमा लगे होने की वजह से तवांग क्षेत्र में कई जगहों पर सेना का कब्जा है. इसके बाद हाइड्रो प्रोजेक्ट इस क्षेत्र को लील रहे हैं, ऐसे में स्थानीय लोग और उनकी संस्कृति खतरे में है.
इस क्षेत्र में काम कर रहे पर्यावरणीय सिविल सोसयटी एसएमआरएफ के प्रतिनिधियों ने नेशनल एलांयस फॉर पीपुल्स मूवमेंट और दिल्ली सॉलीडैरिटी ग्रुुप के प्रतिनिधियों के एक समूह ने अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव से दिल्ली में क्रमशः 24 और 25 मई को मुलाक़ात की. अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने आश्वासन दिया कि राज्य के अधिकारियों पर अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 के तहत मामला दर्ज किया जाए और मामले की जांच सीबीआई या न्यायिक आयोग का गठन करकी जाए. साथ ही जांच में स्थानीय पुलिस को शामिल नहीं किया जाए. इसके अलावा पुलिस फायरिंग में मारे गए और घायल लोगों को मुआवजा देने के लिए कहेंगे.पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने आश्वासन दिया कि वे एनजीटी के 7 अप्रैल के आदेश को चुनौती नहीं देंगे. इसके साथ ही उन्होंने भारतीय वन्यजीव संस्थान से विलुप्तप्राय पक्षी के संबंध में अध्ययन कराने का आश्वासन भी दिया.
असम में पुलिस उत्पीड़न का सिलसिला जारी, आयोग गंभीर
असम में पुलिस तंत्र की अराजकता और लोगों के उत्पीड़न के मामले लगातार दर्ज होते आए हैं. हाल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने असम में हुई मुठभेड़ के चार मामलों को फर्जी ठहराते हुए असम सरकार और रक्षा मंत्रालय को सख्त निर्देश दिया कि फर्जी मुठभेड़ में मारे गए छह युवकों के परिवारों को राहत के तौर पर कुल 30 लाख रुपए अदा किए जाएं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सेना और अर्धसैनिक बलों की इकाइयों के साथ असम पुलिस द्वारा की गई मुठभेड़ के चार मामलों को फर्जी पाया. इनमें से तीन मामलों में आयोग ने असम सरकार से मृतकों के निकट परिजनों को राहत के तौर पर कुल 25 लाख रुपए अदा करने को कहा. वहीं आयोग ने मुठभेड़ के चौथे मामले में रक्षा मंत्रालय को राहत के तौर पर पांच लाख रुपए अदा करने को कहा है. सभी मामलों में आयोग की नोटिस के जवाब में न तो असम सरकार और न ही रक्षा मंत्रालय आयोग को तसल्ली करा सका कि मुठभेड़ असली थी. पुलिस और सेना ने पहले कहा था कि सशस्त्र बलों को उस वक्त आत्मरक्षा में गोलीबारी करनी पड़ी जब उन पर बदमाशों और उग्रवादियों ने हमला किया था.
गौरतलब है कि पीकू अली 23 जुलाई 2008 को नगांव जिले में पुलिस गोलीबारी में मारा गया था. मृगांक हजारिका और हिमांशु गोगोई नाम के दो युवक 23 फरवरी 2011 की रात दिसपुर में पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे. आयोग ने दोनों मृतकों के निकट परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए राहत के तौर पर देने का निर्देश दिया है. जॉनम बासुमतारी और ओखोफट बासुमतारी सोनितपुर जिले में जून 2009 में ही पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे. आयोग ने प्रत्येक परिवार को पांच-पांच लाख रुपए देने का आदेश दिया है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सोनितपुर जिले में नौ जुलाई को हुई मुठभेड़ में रोजित नारजारे उर्फ अबराम के मारे जाने के मामले में रक्षा मंत्रालय को मृतक के निकट परिजन को छह हफ्ते के अंदर पांच लाख रुपए अदा करने को कहा है.
इसके पहले भी फर्जी मुठभेड़ के छह मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर असम सरकार ने मृतकों के परिजनों को 40 लाख रुपए का मुआवजा दिया था. आयोग के मुताबिक राज्य में 2010 और 2011 के दौरान हुई मुठभेड़ों में से छह घटनाएं फर्जी पाई गई थीं. जांच पड़ताल के दौरान राज्य सरकार इन घटनाओं की सत्यता साबित नहीं कर पाई थी.