हालांकि अमर्त्य सेन ने ‘अर्ग्यूमेंटिव इंडिया’ नाम से एक किताब लिखी है ! लेकिन उनके आत्मकथा “होम इन द वर्ल्ड” को पढ़ने के बाद ! मै इस नतीजे पर आया हूँ ! कि इंडिया कितना अर्ग्यूमेंटिव है ? उससे पहले अमर्त्य सेन उम्र के पांच साल के थे और रविंद्रनाथ टागौर शांतिनिकेतन के कांच के मंदिर में अपने प्रवचन देते हुए जो कि अमर्त्य को वहां ले जाने के पहले उनकी दादी मां ने ठोक बजाकर कहाँ था कि मंदिर में शांति बनाए रखने के लिए वहां कुछ भी बोलने की मनाही है ! और मैंने भी दादी मां को आश्वासन दिया था कि मैं कुछ भी नहीं बोलुंगा ! लेकिन रविंद्रनाथ टागौर के प्रवचन के बीच में ही मैंने उन्हें पुछा की “फिर आप कैसे बोल रहे हो ? ”
और वैसाही महात्मा गाँधी रविंद्रनाथ टागौर की मृत्यु के बाद 1945 में शांतिनिकेतन गए थे ! और बारह वर्ष के अमर्त्य ऑटोग्राफ लेने के लिए गांधी जी के पास गए ! और गांधी जी अपने ऑटोग्राफ कुछ पैसे हरिजन फंड के लिए पैसे जमा करने के लिए लेते थे तो ! उन्हें पुछा की आपने बिहार भूकंप के लिए हमारी जाति व्यवस्था के पाप की वजह से भुकंप हुआ ऐसा क्यों कहा ?
पांच साल की उम्र में रविंद्रनाथ को आप कैसे बोल रहे हो ? से लेकर महात्मा गाँधी को बारहवें साल की उम्र में भुकंप के लिए जाति-व्यवस्था कैसे जिम्मेदार हैं ? जैसे सवाल करने वाले अमर्त्य अपने नाना क्षीतिमोहन सेन के साथ अपनी पाठाभवन के पढाई के साथ – साथ उनके साथ लगातार संवाद (अर्ग्यूमेंट) आकाशगंगा से लेकर पृथ्वी के रहस्यों से धर्मशास्त्रों और मुख्यतः वेद – उपनिषद, रामायण – महाभारत जैसे ग्रंथों को लेकर, क्योंकि क्षीतिमोहन संस्कृत के ज्ञाता थे ! और मैंने होशसंभाला उसी समय क्षीतिमोहन को बता दिया था ! “कि मुझे धर्म में कुछ भी रुचि नहीं है ! और धर्म का मेरे उपर रत्तीभर का प्रभाव नहीं है !” और उन्होंने कहा कि धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा जबतक तुम खुद गंभीर रूप से सोचने और समझने के काबिल नहीं बन पाते ! और उसके बाद फिर भी कुछ समय के बाद मैंने उन्हें कहा कि “मुझे इतना समय बीतने के बाद भी धर्म के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं बन पाई है ! तो उन्होंने मुझे लोकायत से लेकर माधवाचार्य के चौदवी शताब्दी के संस्कृत ग्रंथ ‘सर्व दर्शन संग्रह ‘ पढ़ने के लिए सलाह दी ! जिसके प्रथम भाग में लोकायत और विवेकवाद के उपर मैंने अपने जीवन में भौतिकवाद और विवेकवाद के उपर इतना सुंदर विवेचन और कही नही देखा हूँ ! और क्षीतिमोहन ने मेरा ध्यान ऋग्वेद के निर्मिती के गित के तरफ खिंचा शायद पंद्रहवीं ख्रीस्त पूर्व में लिखा गया है ! ” Who really knows? Who will here proclaim it ? Whence was it produced ? Whence is this creation ? The gods came afterwards, with the creation of this universes. Who then know whence it ariesen ?
Whence this creation has arisen – perhaps it formed itself, or perhaps it did not – the one who looks down on it, in the highest heaven, only he knows – or perhaps he does not know. “मेरी नजर में दादाजी और नातू के बीच इस तरह के संबंध का उदाहरण और कोई दुसरा नही है ! अमर्त्य सेन के जन्म के बाद क्षीतिमोहन के साथ ! और मुख्यतः शांतिनिकेतन की पाठशाला का समय, जिस पाठशाला में क्षीतिमोहन खुद एक शिक्षक थे !
और वह वर्तमान समय के बंगला देश के छोटे कस्बों में एक सोनारंग विक्रमपूर जिला ढाका के करीबी जगह पर क्षितिमोहन के पिता भुनवनमोहन एक आयुर्वेदिक डॉक्टर थे ! और अच्छी – खासी प्रॅक्टिस रहने के बावजूद वह निवृत्त होने के बाद क्षितिमोहन को लेकर बनारस चलें गए ! अमर्त्य सेन अपनी आत्मकथा में लिखा है ! कि “बाप बेटे में संवाद नहीं के बराबर था ! क्योंकि मैंने जब भी कभी उन्हें उस विषय पर पुछने की कोशिश की वह बात को टाल देते थे !” हालांकि भुनवनमोहन अपने बेटे की बनारस के क्विन कॉलेज की पढाई से बहुत ही संतुष्ट थे ! और क्षितिमोहन ने अलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम. ए. डिग्री प्राप्त की है ! लेकिन उनकी रुचि बनारस के पुराने संस्कृत पाठशालाओं में भी थी ! जिन्हे ‘चतुस्पाठी ‘बोला जाता था ! वहां के अध्ययन से उन्हें संस्कृत पंडित की उपाधि मिली थी ! और भुवनबाबु उन्हें पारंपरिक रूप से हिंदू धार्मिक कर्मकांड में ढालना चाहते थे ! लेकिन क्षितिमोहन का रूझान पंद्रहवीं शताब्दी के कबीर के काव्य और भक्ति संप्रदाय के संतों की रचनावली में आकर्षित हुए ! और उन्होंने उस के लिए पर्सियन भाषा का भी अध्ययन किया ! और इस काम में अपने बड़े भाई अवनीमोहन जो पहले से ही पर्सियन भाषा का अध्ययन कर चुके थे ! तो उन्होंने क्षितिमोहन को इस काम में काफी मदद की है ! उम्र के चौदह साल में क्षितिमोहन ने कबीर पंथ की विधिवत रूप से दिक्षा ग्रहण करते हुए ! देखकर भुवनबाबु बहुत दुखी हुए ! और इस बारे में क्षितिमोहन ने अपने पिता को खत भी लिखा है कि ” To keep me in the Conservative (Hindu) fold, various strict arrangements were made (for exclusion from Christian influence), but the God who governed my life would have been amused by this. Attempts to keep me traditional were certainly undermined, but the danger did not come from the English.
17 साल की उम्र में वह 1897 में छांबा के लिए निकल पड़े ! और उसमे भी मुख्य उद्देश्य था उत्तर – पस्चिम भारत में कबीर के साथ अन्य संतों के साहित्य को संग्रहित करना ! और हिंदू-मुस्लिम धर्म में आपसी भाईचारे को बढ़ावा देना ! 126 साल पहले की कोशिश ! जबकि संघ की स्थापना होने के अठ्ठाईस साल पहले ! और हिंदू महासभा के अठारह साल पहले ! और मुस्लिम लीग की स्थापना के दस साल पहले ! अमर्त्य सेन ने अपने बेटे का नाम कबीर रखने की वजह भी यही है ! कि नाति और नाना के रिश्ते सिर्फ औपचारिक रूप से नहीं थे ! दोनों की उम्र में भले ही पचास साल से भी अधिक का फासला था ! क्षितिमोहन 1880 में पैदा हुए थे और अमर्त्य 1933 में ! और पिता ढाका के विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफेसर थे ! लेकिन अमर्त्य सेन की पढाई की शुरुआत शांतिनिकेतन के पाठाभवन में ! और बाद में कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और बाद में इंग्लैंड के ट्रिनिटी ! तथा बाद में अमेरिका के एम आईटी ! एक तरह से अमर्त्य सेन ने विश्व के सबसे बेहतरीन शिक्षा संस्थानों में पढाई करने और पढाने के लिए आज विशेष रूप से मशहूर है ! लेकिन उम्र के शुरू में क्षितिमोहन जैसे नाना कम शिक्षक का मिलना ! और विश्व भारती के अन्य शिक्षक तथा कलकत्ता के और इंग्लैंड के सभी जगहों पर ! शिक्षा के समय और कौन सा समय ?
भारत की आजादी के आंदोलन तथा बंगाल के 1943 के बदनाम अकाल के समय ! अमर्त्य सेन की उम्र दस साल की थी ! और शांतीनिकेतन के अगल-बगल में भूख से मरते हुए लोगों को देखते हुए बड़े हुए हैं ! फिर उम्र के चौदह साल में देश का बटवारे के साथ ! आजादी और कौन सा बटवारा ? जिसमें विश्व के इतिहास का सबसे बड़ा विस्थापन ! और हत्या का माहौल देखा है ! खुद के पिता को जिसका खामियाजा भुगतना पडा ! 1945 में ही माहौल को बिगडते हुए देखकर उन्हें अपने ढाका का घर, और नौकरी छोड़कर दिल्ली आना पड़ा है ! लेकिन अमर्त्य सेन की संवेदनशीलता की दाद देनी होगी ! कि उन्होंने अपनी नोबल पुरस्कार की राशि का बंगला देश और पस्चिम बंगाल की प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए ‘प्रतिति’ नाम जो उनके शांतिनिकेतन के घर का भी नाम है ! उसी नाम से यह न्यास आज पच्चीस साल पहले से काम कर रहा है ! और अमर्त्य सेन सिर्फ शांतिनिकेतन की हवा खाने के लिए नही आते हैं ! वह अपने नोबल पुरस्कार की राशि से बने हुए न्यास के द्वारा हो रहें काम की जानकारी लेने के लिए विशेष रूप से आते-जाते हैं !
शिक्षक के लिए रविंद्रनाथ टागौर ने क्षीतिमोहन सेन को शांतिनिकेतन के लिए लाने के लिए विशेष रूप से जो पत्राचार किया है ! वह भी बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तावेजों में शुमार होने के लायक हैं ! 1907 के समय क्षीतिमोहन सेन छांबा के रियासत वर्तमान हिमाचल प्रदेश के किसी स्कूल के मुख्याध्यापक की नौकरी में थे ! और वहां के महाराज भुरी सिंह के करीबी लोगों में से एक थे ! लेकिन रविंद्रनाथ टागौर के लगातार आग्रह के कारण वह छांब छोड़कर शांतिनिकेतन आ गए ! और पचास साल उन्होंने शांतिनिकेतन के विकास कार्यों को रविंद्रनाथ टागौर की मृत्यु के पश्चात वहीं पूरी जिम्मेदारी का निर्वाह करते रहे !
सबसे महत्वपूर्ण बात वह कबीर के प्रभाव में आकर उन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय कबीर के अध्ययन में ! बनारस जैसे जगह पर व्यतीत किया है ! उम्र की चौदह वर्ष में उन्होंने कबीर पंथ जो हिंदू और मुसलमान धर्म बेहतरीन संगम है ! 1440 में पैदा हुए कबीर ने पंद्रहवीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में इतना अनुठा प्रयोग दो धर्मों में एकता स्थापित करने की कोशिश का अद्वितीय उदाहरण है ! जो कि क्षीतिमोहन के पीता उन्हें सनातनी हिंदू धर्म की और खिंचने की कोशिश कर रहे थे ! लेकिन पंद्रह साल के भीतर उम्र में ही ! उन्होंने कबीर पंथ का रास्ता चुन लिया ! हालांकि बनारस के क्विन्स कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की है ! उस समय की अलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम ए डिग्री प्राप्त की है ! इस तरह के नाना की सोहबत में पले-बढ़े अमर्त्य सेन आज जो भी कुछ है उसमें उनके आत्मकथा होम इन द वर्ल्ड के अनुसार बहुत सारे लोगों की नामावली लिखनी पडेगी ! लेकिन मेरे हिसाब से क्षितिमोहन सेन और शांतीनिकेतन के पाठशालाओं से अमर्त्य सेन के व्यक्तित्व का विकास होने के लिए एक बुनियादी ढांचा बनाने का काम किया है !
वर्तमान समय में उसी शांतिनिकेतन की परंपरा तथा विरासत को खत्म करने की कोशिश हो रही है ! विश्व इतिहास के क्रम में इस तरह के प्रसंग विक्रमशिला, राजगीर, नालंदा विश्वविद्यालय के साथ भी आए थे और आज हमारे अपने आंखों के सामने शांतिनिकेतन तथा कम-अधिक – प्रमाण में संपूर्ण भारत में ही इस तरह की हरकते पिछले नौ सालों से जारी है ! क्योकि वर्तमान समय की सरकार, बगल के अफगानिस्तान के तालिबान के तरह ! हिंदू तालिबान की राहपर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं ! जिसे रोकना हर स्वातंत्र्य, समता, जाति-धर्म निरपेक्ष और जनतंत्र में विश्वास करने वाले हर आदमी औरत का नैतिक दायित्व है !
डॉ. सुरेश खैरनार, 22 मई, 2023, नागपुर.