मित्रों, आज इस वर्ष का बहुप्रतीक्षित चुनाव यज्ञ समाप्त हो रहा है । वोटरों की अग्निपरीक्षा का समय आया है ।इन चुनावों में इस प्रश्न को कुछ समय के लिए छोड़ दें कि वोटर अपनी समझदारी से वोट दे रहा है या नहीं । क्योंकि यह जो यूपी में चुनावी हवा बही है यह नकार की हवा है । ऐसा हम सब मान रहे हैं । आज सोशल मीडिया पर बहसों का एक पक्ष समाप्त हो जाएगा । तीन दिन बाद जब वोट गिने जाने शुरू होंगे तब नयी बहसों का श्रीगणेश होगा । बहुत से लोग चट गये इन बहसों से । लेकिन सत्ता और सत्ता का मीडिया समझ चुका है कि हवा बदलाव की है । इसलिए इस बार चांदी सोशल मीडिया की हो गयी ।इतने डिजिटल चैनल कि क्या देखें, क्या न देखें । फिर भी जिसे देखना था उन्हें तो देखा ही गया ।हमने इस बार डिबेट्स से ज्यादा कुछ भी और देखा । ‘लाउड इंडिया टीवी’ के संतोष भारतीय ने कुछ नया ही शुरू किया है । ताजे हालात पर पत्रकारों से बातचीत । कुछ समझ नहीं आया कि यह सीरिज वह क्यों चलाना चाहते हैं । और अगर चाहते भी हैं तो रोजाना देखें सुने जाने वाले पत्रकारों से ही क्यों ।यह सीरिज दूसरे क्षेत्र के जाने माने लोगों से होती तो क्या ही बात थी । जैसे रामचंद्र गुहा से, अपूर्वानंद से, अशोक वाजपेई से, अरुणा रॉय से, मेधा पाटकर से, अरुंधति राय से , नसीरुद्दीन शाह से, नंदिता दास आदि आदि जैसे लोगों से । खैर यह उनकी सोच है । उन्होंने अभिसार शर्मा से बात की । मैं थोड़ा चौंका । होना तो यह चाहिए था कि अभिसार शर्मा संतोष भारतीय से बात करते । अभिसार शर्मा और दीपक शर्मा को मैं देखने से मैं बचता हूं । मित्र अनिल त्यागी ने सुझाया था कि दीपक शर्मा के वीडियो मैं देखा करूं । मेरा जवाब था कि जो गम्भीरता के साथ अपनी बात करते हैं मैं उन्हीं को ज्यादा देखता हूं ।दीपक शर्मा और अभिसार शर्मा में बड़ी नाटकीयता होती है । क्या जरूरी है कि इन्हें देखा ही जाए । संतोष जी ने आरफा खानम शेरवानी से बात की , आलोक जोशी से बात की और कल रात आशुतोष से बात की । आशुतोष के साथ बढ़िया बातचीत रही । लेकिन लग रहा था जैसे आशुतोष अपने शनिवारीय कार्यक्रम सवाल जवाब में सवालों का जवाब दे रहे हैं । फिर भी अच्छा लगा और संतोष जी ने बताया कि सबसे लंबा इंटरव्यू उन्होंने यह किया ।पर मैं बात करना चाहूंगा आरफा खानम और आलोक जी की । बिला शक आलोक जी की गम्भीरता, गहनता और विद्वत्ता का परिचय हुआ ।तिस पर उनकी आवाज !! ऐसी आवाज बचपन में सुनी थी । गुजरे जमाने के चरित्र अभिनेता सप्रू की । मामूली से थे पर भर्राती आवाज के मालिक । आलोक जी की आवाज स्टूडियो में गूंज की आवाज है । आकाशवाणी के एनाउंसर होते तो देवकीनंदन पाण्डेय की याद आती । बहरहाल , उनका इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा ।
आरफा खानम शेरवानी ने तो इस दौर में साबित किया है कि महिला पत्रकारों में वे अग्रणी हैं । जिस तरह भरपूर विद्वता , समझदारी और तर्कों से वे धाराप्रवाह बोलती हैं उसका कोई सानी नहीं । मैं तुलना तो नहीं करना चाहता फिर भी कहूंगा शीबा असलम फहमी भी आरफा के जोड़ की हैं । वाक् पटुता यदि विद्वता के साथ हो तो इंसान को आगे जाना ही जाना है । इतने पर भी आरफा में कोई गुमान नहीं । एक आत्मविश्वास है जो उप्र के छोटे से कस्बे से उन्हें महानगर तक लाया है । उनसे हाल फिलहाल दो लोगों ने बातचीत की । संतोष जी ने और आशुतोष ने । दोनों में वे मुखर थीं । उनका मानना है कि यदि यूपी में बीजेपी हारती है तो यह उसकी हिंदू राष्ट्र की कल्पना का ‘रिजेक्शन’ होगा । बात तो सच लगती है । संतोष जी के साथ वे विश्वास में दिखीं तो आशुतोष के साथ ज्यादा कंफर्ट नजर आयीं । वे अपनी बहसों के संचालन में निष्पक्ष रहें ,ऐसी उम्मीद मैं उनसे करता हूं ।
इस बार के अभय दुबे शो और विजय त्रिवेदी शो सामान्य रहे । अभय जी ने यूपी चुनाव संबंधी चार स्थितियों की बात कही । जो थोड़ा चिंता तो पैदा करतीं हैं पर सुकून भी देती हैं । विजय त्रिवेदी शो में इस बार संतोष भारतीय और श्रवण गर्ग थे । गर्मागर्म संवाद थे दोनों के । इसलिए कुछ रोचक बना पड़ा ।इसी तरह दो लोगों से ज्यादा न हो तो अच्छा रहता है ।
इन दिनों ‘सत्य हिंदी’ की बहसों में उन्हीं उन्हीं चेहरों की भरमार है ।सब अटकल पच्चू। इन सबके बीच मुकेश कुमार के कार्यक्रम कुछ हटकर होते हैं । जैसे 28 फरवरी की चर्चा जो यूपी चुनाव की भांय भांय से अलग मोदी के 2024 पर टिकी थी ।पैनल भी बढ़िया था और इसमें शीबा असलम फहमी का विश्लेषण भी । इन बहसों में भाग लेने वाले लोग अक्सर भटक जाते हैं ।पूछो कुछ और जवाब कुछ देते देते कहीं के कहीं चले जाते हैं । त्रिलोचन शास्त्री भाषण देते थे तो थोड़ी देर में नामवर सिंह को उन्हें बताना पड़ता था कि आप यहां थे । तब ठहाकों की गूंज होती थी । नामवर सिंह वाला काम मुकेश कुमार को करना पड़ता है अपने पैनलिस्टों के साथ । एक और बीमारी है बीच बीच में बोलने और ठहाके लगाने की । बीच में बोलने में तो मित्र अनिल त्यागी और वीरेंद्र भट्ट हैं और ठहाका लगाने वालों में अशोक वानखेड़े और शरद प्रधान । शरद प्रधान कई लोगों के चहेते हैं लेकिन अपने मन से तो उसी दिन से उतर गये थे जब उन्होंने कहा था कि 2014 में उन्होंने मोदी जी के लिए वोट दिया था । ये ‘वायर’ पर भी अपना कार्यक्रम देते हैं और सबके चहेते हैं ।पर मैं गम्भीरता और गहराई को पसंद करता हूं । जो हिन्दी का पत्रकार हिंदी ठीक से न बोल पाये , ‘श’ का उच्चारण ‘स’ करें । अनाप-शनाप हिंदी के शब्द और संदेहभरे तथ्य रखे । उसमें गम्भीरता कैसे आ सकती है ।नाम लेना इसलिए ठीक नहीं कि नाहक बैर हो जाएगा । समझने वाले समझ सकते हैं । पर यह बात शरद प्रधान के लिए नहीं है ।
कुछ लोगों का जिक्र करना लाजिमी है । भाषा सिंह निरंतर चलायमान हैं ।कहां कहां से अपने वीडियो भेज रही हैं । बेमिसाल लगन की पहचान देतीं । नीलू व्यास की चर्चाएं रूस- यूक्रेन युद्ध पर काफी अच्छी रही हैं । जैसे 2 मार्च वाली विशेष । शीतल भाई ने तो मोबाइल रह कर कमाल ही कर दिया है । पूरे यूपी का एक एक कस्बा तक नाप लिया । यह भी गजब की लगन है । इधर शैलेष जी भी अच्छे आंकलन प्रस्तुत कर रहे हैं ।कभी तो बहुत सटीक होते हैं । न्यूज़ लाण्ड्री और अजीत अंजुम भी खूब लोकप्रिय हो रहे हैं । वाजपेई जी अपनी उसी गति में हैं तिरछी गरदन, सरसराती हुई हथेलियां और झेंपती मुस्कुराहट जो अगले ही पल छायावादी गद्य में बदल कर पन्ने खोलने लगती है , अनूठे सचों के साथ । रोजाना के कथानक ।पर जाहिर है उनके चाहने वाले भी बहुत होंगे और उन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं होगा कि क्या बोल रहे हैं । …. पर वाह ! क्या बोल रहे हैं । यह भी उनके कान सुनते होंगे ही ।तभी तो ऊर्जावान हैं ।
कई लोगों ने मुझसे पूछा कि कन्हैया आजकल कहां है तो बता दूं वे पंजाब और गोवा में कांग्रेस के लिए बैटिंग कर रहे हैं ।पर पता नहीं क्यों लग रहा है जैसे वे किसी और की जूठन साफ कर रहे हैं ।आज का कन्हैया वह कन्हैया नहीं । कुछ ऐसा सा महसूस होता है ।
अंत में संतोष जी से एक विनती – श्रवण गर्ग का इंटरव्यू ज़रूर करें । आशुतोष के शनिवार को वन टू वन इंटरव्यू रोचक होते हैं । समय बदल रहा है और पत्रकार और पत्रकारों की दुनिया भी । अगर यूपी में यह सरकार जाती है तो एक जोरदार धक्का देने की और ज़रूरत है – 2024 में । समाज की नसों से चिपट गयीं ‘जोंक’ से छुटकारा मिलेगा ।दूरंदेशी अनिल त्यागी यह काम करें और करवायें ।
आरफ़ा ख़ानम ने कहा ‘अगर यूपी में भाजपा हारती है तो यह हिंदू राष्ट्र का पहला ‘रिजेक्शन’ होगा’ ….
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