1..फ़ितरते ‘
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आपकी भी बड़ी मासूम सी
फ़ितरते है
कुछ न कुछ तोड़ -फोड़ करने की
फिर मुँह मोड़ कर चले जाने की।
कभी दिल ,कभी जज़्बात
शीशे की तरह चटकाते रहते हो ,
फिर शरीर बच्चे की तरह
इठलाकर चले जाते हो।
आप अपनी इसी हरकत पर मशहूर हो।
ईट ईट लगा कर
मैं जोड़ती रही हर टूटन को
सुई धागे लिए पैबंद बन
सिलती रही हर उधड़न को.
शहादत होती रही ख्वाईशें
यही मेरी फ़ितरत की हक़ीक़त है
और मैं इसी हरक़त में मशरूफ़ हूँ।

2….’ हसरत ‘
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‘मुद्दत से इक हसरत थी इस तन्हा दिल की
हम भी कभी जनाब की
अजीज़ किताब बनेंगे ,
जिसे आप कांपते हाथों से सहलायेंगे
हसरत भरी निगाहों से निहारेंगे
खूबसूरत तस्वीरों को लबों से लगाएंगे
हर्फ़ दर हर्फ़ पढ़ते हुए
तारीफों के क़सीदे कसते जायेंगे
और हम दिल ही दिल में
आपके शेर ओ नज़्म बन जायेंगे
हसरत ही रह गयी
इस फ़ना दिल की दिल में
जब आपने उठाकर इस किताब को
अलमारी के आले में ‘सज़ा ‘ कर रख दिया-
-अर्चना नायडू

 

3… मेरी सजा ”

कैसे करू मै.क्षमा -याचन

भेज रहा हूँ ,तुझे वृद्धा-आश्रम

ना जान सका ,तेरे उस अहसास को ,

तेरे प्यार भरे ,आभास को,

बना हूँ मै ,तेरे ही रक्त -कणों से

और तेरा ही लख्त -ए -जिगर बनता गया

भूल कर सारी खुशियाँ

मेरे सपनों को तुमने ,नीला आकाश दिया

नहीं थी तेरे प्यार में,कमियां कोई ,…

मै ही ,महत्वाकाशाओ के आकाश मे

पागल पंछी बन उड़ चला

तब तू चुप थी

नहीं थी ,तेरी परवरिश मे गलतियाँ

मै ही ,खुदगर्जी के गर्त मे,

खुद को डुबो चला

तब भी तू खामोश थी

आज आत्मग्लानि के बोझ तले,

बरसो के जज्बात को ,अब लिख रहा हूँ

तेरे ,टूटे हर अहसास को .अब जी रहा हूँ मै

माँ ! तुझसे क्षमा भी ना मांग सका

तू क्यों मौन है

छुपा कर दो बूंद सूनी आँखों में

जाते जाते तुने ,बस ..यही कहा

बेटा ! तू हमेशा खुश रहना !!
– अर्चना नायडू

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