इन दिनों मैं एक वेब सीरिज ‘SHE’ (शी) देख रहा हूं । इसमें नायक नामक ड्रग के वर्ल्ड माफ़िया का मानना है कि मज़बूत बनने के लिए अपने प्रिय से प्रिय का कत्ल करना जरूरी होता है । इसलिए वह ‘शी’ की जासूस नायिका को अपने प्रेमी का कत्ल करने को कहता है जब वह इस प्रयास में विफल होती है तो नायक उसका कत्ल कर नायिका को वीडियो दिखाता है । वह नायिका को एक मौका और देते हुए कहता है कि इस बार वह अपनी बहन का कत्ल करे । यह प्रसंग हमें आज क्यों याद आया और आज की राजनीति से इसका क्या संबंध है ।

वर्तमान सत्ता के आठ सालों के क्रमिक घटनाक्रमों को देखिए नोटबंदी से अग्निपथ तक, तो आप पाएंगे कि हर बार उन्हीं लोगों पर गाज गिरी है जो अपने हैं । उन्हीं लोगों के अनचाहे कत्ल हुए हैं जिन्होंने वोट देकर इस सत्ता को दिल्ली में ‘सादर’ बैठाया है । यह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सत्ता है और मोदी जी लोकतांत्रिक तरीके से चुने गये प्रधानमंत्री हैं । पर चंद सालों का बीता इतिहास बताता है कि मोदी जी का दिमाग कम लोकतांत्रिक और ज्यादा ‘शैतानी बालक’ समान है । शायद बचपन से हो । फ्रायड को पढ़ने वाले इस पर शोध कर सकते हैं । इस पर भी सोचा जा सकता है कि हमें यह सब लिखने से पहले ‘शी’ का नायक ही क्यों याद आया । इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि हम नायक की तुलना मौजूदा प्रधानमंत्री के भीतर के ‘नायक’ से कर रहे हैं । पर अचानक उस प्रसंग का याद आना एक कौतूहल तो है ही ।
मोदी जी की मिडिल क्लास या लोअर मिडिल क्लास मानसिकता इस बात का भी द्योतक है कि इस सरकार में इन्हीं वर्गों को प्रभावित करने के लिए जुमलेबाजी और लच्छेबाजी भी बहुत होती है जैसे थ्री सी, फोर डी, फाइव एम आदि आदि । इसी तरह ठोक ठोक कर पैदा किए राष्ट्रवाद को सामने रख कर दो शब्द ईजाद की किये गये हैं – ‘अग्निपथ’ और ‘अग्निवीर’ । हम यह नहीं कह सकते कि ये बिना सोचे समझे रखे गये हैं पर इतना जरूर मान सकते हैं कि ये दोनों शब्द एक आदमी की जिद पर रखे गये हैं । पिछले आठ सालों में यह भी देखा जा रहा है कि अपने देश में की तुलना यूरोप या दूसरे देशों से खूब की जा रही है बिना यह सोचे समझे कि हमारा देश यूरोप और इज़राइल नहीं है और महज़ जनसंख्या को छोड़कर हमारी चीन से भी कोई तुलना नहीं । लेकिन हर बात में तुलनाएं की जाती हैं । अग्निपथ योजना भी इसी तर्ज पर लायी गयी है जो निश्चित ही भौचक कर देने वाली है । अधिकांश रिटायर्ड फौजी भी भौंचक हैं और जो फौजी परलोक सिधार चुके हैं उनकी आत्माएं भी भौंचक तो जरूर होंगी ।
पर मोदी जी को खेलना आता है । ऐसे व्यक्ति के ग्रह नक्षत्र समय समय पर उसकी परीक्षा लेते रहते हैं और कमोबेश वह अधिकांश में सफल भी होता रहता है । हर चुनाव से पहले मोदी जी को वोट डलने तक घबराहट होती है । लेकिन परीक्षा में वे हर बार सफल होते हैं । इस बार फिर परीक्षा आ रही है । इन दो सालों में कई छोटी छोटी परीक्षाओं के बाद 2024 में बड़ी परीक्षा आ रही है ।


वर्ष 2002 में गुजरात में नरसंहार हुआ था। 2016 में नोटबंदी के दौरान लोग मरे थे । कोविड के कुप्रबंधन में तो यकीनन लोग मारे गये थे । लाकडाउन में हजारों किलोमीटर पैदल चलने वालों पर जो आफत आयी थी वह दुनिया तक जानती है । फिर किसान आंदोलन के बाद अब अग्निपथ योजना । न मोदी जी चैन से बैठे हैं, न समर्थक और न उनके विरोधी । तो चैन से कौन बैठा है । मोदी जी यह भी फलसफा दे सकते हैं कि चैन से बैठना यानी मौत हो जाना है । यह अजीब सरकार है और अजीब सत्ता है । जैसेकि हम जादुई चिराग के समय में जी रहे हैं । अब हमारे पत्रकार बंधु नये सिरे से 2022, 23 और 24 के चुनावों पर अपने अपने आकलन शुरू करेंगे , जो अधिकांश कूड़े में फेंकने लायक होंगे । लगता यही है कि मोदी को समझने में ज्यादातर ने गलती की । वे नेहरू से चल कर राजीव गांधी तक पहुंचते हैं पर मोदी पर आकर गच्चा खा जाते हैं । क्योंकि हमारे पत्रकार परंपरागत राजनीति को समझने वाले पुरोधा हैं ।
लेकिन मोदी और उनकी सरकार का एक विश्लेषण अभय दुबे भी करते हैं । वह अलग और बढ़िया होता है । वह भी खासकर ‘लाइव इंडिया’ के शो में संतोष भारतीय के साथ । अब तो संतोष भारतीय और अभय दुबे की कैमिस्ट्री खूब अच्छी बन पड़ी है , क्योंकि अभय यहां नियमित हैं और निश्चित समय पर हैं ।
तो हमने ‘शी’ के नायक से बात शुरू की थी । दोनों नायकों की मानसिकता समूची नहीं तो कहीं कहीं मेल खाती है । एक मानसिकता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी है। जिसे हम रोज फलीभूत होते देख रहे हैं । सर संघ चालक का दृष्टिकोण ‘दिखता कुछ और होता कुछ’ वाला है । यानी दूसरे अर्थों में हम खतरनाक राजनीतिक दौर से गुजर रहे हैं। देखना है यह दौर 2024 में थमता है या आगे तक चलता है। फिलहाल तो दिशाहीन विपक्ष को देख कर यह लंबा चलता लगता है । सैंट्रल विस्टा इसका प्रमाण है ।

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