आज अचानक मुझे उनके साथ की आखिरी मुलाकात याद आयी ! यह तीन अक्तूबर 2016 की फोटो हैं ! कश्मीर के स्वघोषित फियादिन के कमांडर, बुरहान वनी के हत्या के बाद, कश्मीर के इतिहास का, और शायद विश्व का भी सबसे लंबा बंद चल रहा था ! उस समय मैं राष्ट्र सेवा दल के तरफसे कश्मीर की परिस्थिति का जायजा लेने के लिए गया था ! और पहुचने के साथ ही मेरे मित्र मोहम्मद याकुब दर ने कहा कि श्रीनगर में सुब्बाराव भी अपने कुछ साथियों के साथ आए हुए हैं ! और वह आज वापस जाने वाले हैं ! शायद आंतरभारती के तरफसे श्री. सुब्बारावजी तथा प्राचार्य सदाविजय आर्य, राममोहन राय और युवा साथी विशाल जैन भी कश्मीर में उस परिस्थिति का अवलोकन करने के लिए आए हुए थे ! और मुझे पता चला तो ! मैं खुद उन्हें मिलने के लिए चला गया था ! और शायद वहीं उन दोनों के ( सुब्बारावजी तथा सदाविजय आर्य ) साथ मेरी आखिरी मुलाकात हुई थी ! आज दोनों भी इस दुनिया में नहीं रहे !
सुब्बाराव कुछ दिनों पहले ही चले गए ! सुब्बारावजी नब्बे के उपर जीवन जीए थे और शुरुआत के दिन छोड़कर शायद मेरी उम्र से अधिक समय उन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम से लेकर अपनी सुरीली आवाज में राष्ट्र की एकता के गितो से मरते दम तक काम किए है !


और अब 17 सितंबर को प्राचार्य सदाविजय आर्य ! साने गुरुजी ने अपने जीवन के अंतिम समय में, भारत की विविधता को देखते हुए ! भाषाओं से लेकर खानपान, रहन – सहन और हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक विशेषता से ! आपसी परिचय, तथा एक दूसरे से मित्रता के लिए, आंतरभारती की स्थापना की थी !
और इस कल्पना का उदय सानेगुरुजी के मन में, आजादी के आंदोलन के समय ! सानेगुरुजी को तमिलनाडु के त्रिचनापल्ली के जेल में, बंद कर दिया था ! और वहां उन्होंने दक्षिण की सभी भाषाओं को सीखने की कोशिश की थी ! जिसमें तमिल, तेलुगु तथा कानडी और मलयालम भाषाओं का समावेश था ! और उसी समय उन्हें अपने देश की विभिन्नता में एकता के लिए आंतरभारती की कल्पना सुझी थी !


उनके चले जाने के बाद, उनके मानसपुत्र प्रकाश मोहाडीकर और यदुनाथ थत्तेजी, प्रविण भाई मश्रुवाला, चंद्रकांत शाह तथा बा य परीट गुरुजि ने इस कल्पना को लेकर काफी काम किया है ! श्री प्रकाश मोहाडीकर ने शैक्षणिक संस्थाओं में मुखतः मुंबई के स्कूलों में, और यदुनाथ थत्तेजीने लगभग संपूर्ण देश में ! कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और ऐझवाल से लेकर ओखा तक कभी भारत जोडो ! तो कभी एक प्रदेश के बच्चों को दुसरे प्रदेश के परिवारों में महिना – महीनों रखने का अनुठा प्रयोग किया है ! जिससे उन बच्चों को वहां की संस्कृति का नजदीक से परिचय हो ! और जाती – धर्म के उपर उठकर एक इन्सानियत का नाता तैयार हो ! उसी तरह एक दूसरे की भाषा सिखने के लिए जगह – जगह भाषा केंद्र शुरू किए थे ! यह सब सत्तर के दशक से नब्बे तक !
लेकिन यह सब प्रयासों के बावजूद दुसरी तरफ जाति-धर्म को लेकर सौ वर्ष से अधिक समय से कुछ तत्वों की कोशिश जादा रंग लाई है ! यह वास्तव पंजाब के खलिस्तानी आंदोलन तथा शाहबानो के बहाने तलाक के मामले में मुस्लिम समुदाय के मुलतत्ववादी लोगों के, तलाक के समर्थन में प्रदर्शन ! और उसी से एक घोषणा निकली कि सवाल आस्था का है कानून का नही !


और उसी घोषणा को संघ परिवार ने हथियाकर सोमनाथ से रथयात्रा शुरू कर के ! रामजन्मभूमी – बाबरी मस्जिद के आंदोलन को विभिन्न यात्राओं का लगातार विस्तार करते हुए ! आखिर में 6 दिसंबर 1992 के दिन पांचसौ साल पुरानी, बाबरी मस्जिद को गिराने का काम किया है ! और संपूर्ण राजनीति का केंद्र सिर्फ और सिर्फ, धार्मिक ध्रुवीकरण के इर्द-गिर्द ! आज तीस साल से भी अधिक समय से ! बदस्तूर जारी है ! और उन्हें काफी सफलता भी मिली है ! यह वास्तव स्वीकार करना होगा ! और आजादी का अमृतमहोत्सवी वर्ष में, देश का माहौल विषैला बनाने का काम किया है ! क्योंकि पचहत्तर सालों के सफर में इतना धार्मिक ध्रुवीकरण कभी नहीं हुआ था ! जितना आज हो गया है ! और देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए लोग इस काम के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ! भारत के इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री दंगों की राजनीति करते-करते इतने बड़े लोकतंत्र के देश का प्रधानमंत्री बनना ही हमारे देश की बहुआयामी संस्कृति का अपमान है ! और जनतंत्र की मर्यादा का भी !


दुसरी तरफ आंतरभारती की गतिविधिया, भारत की बहुआयामी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए, यदुनाथ थत्ते, प्रकाश मोहाडीकर, प्रवीण भाई मश्रुवाला तथा चंद्रकांत शाह, परीट गुरुजिके सामुदायिक प्रयास से बखूबी चला रहे थे ! और आंतरभारती नाम से पत्रिका भी ! जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के जनजीवन से लेकर भाषाओं को सीखने के लिए पुणे, मुंबई, वडोदरा, मदुराई,इंदौर, केरल तथा बंगाल में कुछ जगहों पर भाषा केंद्रों की स्थापना की थी ! जीसमे एक दूसरे की भाषा सिखने और सिखाने का काम होता था !
उसी तरह गुजरात की शैक्षणिक संस्थानों में 1970 – 80 के दशक में ! (वर्तमान गुजरात मॉडल में नहीं ! ) अन्य प्रदेशों के शिक्षकों की यात्राओं को, ले जा कर वहां चल रहे प्रयोगों को देखने – समझने के लिए, इस तरह के एक्सचेंज कार्यक्रम किए हैं ! इतनी अच्छी शिक्षा के प्रयोग भूमि चंद दिनों में ही क्यों बदल गई ? नरसि मेहता से लेकर महात्मा गाँधी,सरदार वल्लभभाई पटेल, विठ्ठलभाई पटेल, रविशंकर महाराज,इंदूलाल याज्ञनिक, जूझर बंदुकवाला, उमाशंकर जोशी, महादेव देसाई – नारायण देसाई,दिगंतभाई ओझा, प्रकाश शाह, महेश भट, मुकुल सिन्हा, चुन्नी काका, इलाबेन भट्टका सेवा का काम कहा चला गया ?
आज के गुजरात की फाईल्स को देखते हुए ! मुझे लगता है कि ! इन सभी महानुभावों का काम, एक तरफ आयसोलेशन में चलते रहा ! और सांप्रदायिक तत्वों ने, अपनी जमीन तैयार करने के लिए , सोमनाथ से अयोध्या के नाम पर ! संपूर्ण देश की एकता और अखंडता की ऐसी की तैसी करते हुए ! तथाकथित गुजरात नाम का मॉडल, समस्त गुजरात के, और हमारे जैसे देशभर के, सभी लोगों को धता बताते हुए ! आज देश की छाती पर मुंग दल रहे हैं ! और वह भी देश के आजादी के, अमृतमहोत्सव के दौरान ! यह देश के स्वतंत्रता के समय विकसित हुए मुल्यो को नष्ट – भ्रष्ट करने की कोशिश का महोत्सव मना रहे हैं !


यह सब, आंतरभारती के वर्तमान चालक, प्राचार्य सदाविजय आर्य के चले जाने की वजह से ही ! आज मुझे पहली बार लिखने की प्रेरणा हुईं हैं ! क्योंकि आंतरभारती की निंव ही भारत की बहुआयामी संस्कृति को, विभिन्नता में एकता का संकल्प लेकर, बढ़ावा देने के लिए डाली गई थी ! लेकिन वर्तमान समय के गुजरात से लेकर, कमअधिक प्रमाण में समस्त भारत ही बिखरता हुआ दिखाई देता है ! इसकी जडतक जाने की आवश्यकता है ! अन्यथा भारत के बिखरने की संभावना बढ़ रही है ! क्योंकि सांप्रदायिक तत्वों ने संपूर्ण राजनीति से लेकर समाजनिति तक दुषित कर डाला है ! और वह भी देशप्रेम के नाम पर ! आंतरभारती के लक्ष्य बिखरते हुए नज़र आ रहे हैं !
बाबा आमटेजिकी सोमनाथ ! (फिर से स्पष्टीकरण देने की जरूरत पड गई है ! यह गुजरात का सोमनाथ नही है ! यह जिला चंद्रपूर, महाराष्ट्र में का सोमनाथ है ! ) श्रमसंस्कार छावणी की शुरुआत यदुनाथ थत्तेजी की कल्पना से (बाबा आमटेजी यदुनाथ थत्तेजी को मेरे सपनों का सौदागर बोलते थे ! यह साल यदुनाथ थत्तेजी के शताब्दी का साल चल रहा है ! ) 1966-67 के मई माह में शुरू किया है ! जिसमें मैंने भी मेरे उम्र के तेरह या चौदह वर्ष के रहते हुए भाग लिया है ! जो आज भी पचपन साल से भी अधिक समय से शुरू है ! देश भर के युवा आते हैं और एक सप्ताह से भी अधिक समय रहते हुए श्रम के साथ बौद्धिक कसरत भी करते हैं !
उन सभी लोगों के चले जाने के बाद, प्राचार्य सदाविजय आर्य ने पत्रिका से लेकर, आंतरभारती की, कुछ गतिविधियों को चलाने की कोशिश की है ! अब आंतरभारती कौन चलाए ? यह प्रश्न मेरे मन में बार- बार कौंध रहा है ! क्योंकि देश के ध्रुवीकरण की राजनीति का मुकाबला करने के लिए ! विभिन्न प्रयासों में एक ! आंतरभारती पचहत्तर साल से भी अधिक समय से ! चलने के बावजूद कहा कमी रह गई ?
कि आंतरभारती के बजाय भारत में रहने वाले लोगों के अंदर भाषाओं से लेकर, जाति-धर्म को लेकर, भेद-भाव बढ़ाने में ! विघटनकारी शक्तियों को दिन – प्रति – दिन कामयाबी हासिल हो रही है ! साने गुरूजी से लेकर बाबा आमटेजिको , यदुनाथ थत्ते, सुब्बाराव, प्रकाश मोहाडीकर, प्रवीण भाई मश्रुवाला, चंद्रकांत शाह, परीट गुरुजी से लेकर ! आज प्राचार्य सदाविजय आर्य को सही श्रद्धांजली उन्होंने किए हुए काम की समीक्षा करके, आगे की योजना बनाना चाहिए ! अन्यथा नेकी कर दरिया में डाल जैसा होगा !
इस फोटो में चष्मा लगाए हुए और सफारी पहने हुए ! प्राचार्य सदाविजयजी आर्य को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ !
डॉ सुरेश खैरनार 19 सितंबर 2022, नागपुर

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