क्या कोई मिठाई या ‘मिष्टी हब’ भी चुनावी मुद्दा हो सकता है ? बात अगर बंगाल विधानसभा चुनाव की करें तो जवाब ‘हां’ में होगा। वैसे इस बार पश्चिम बंगाल के कड़वाहट भरे विधानसभा चुनावों में सियासी पार्टियों के हिसाब से मिठाइयां भी ‘इस’ या ‘उस’ खेमे मे पहले ही बंट गई थीं, लेकिन राज्य के बर्द्धमान जिले में बना मिष्टी हब ( मिठाई केन्द्र) मुख्यो राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों तृणमूल कांग्रेस ( टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है। बर्द्धमान में ममता दीदी की पहल पर बने इस मिष्टी हब को लेकर भाजपा इस आरोप के साथ हमलावर है कि यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट फेल हो गया है और यदि बीजेपी सत्ता में लौटी तो इसकी गरिमा बहाल करेगी। उधर टीएमसी का कहना है कि भाजपा को बंगाल के इतिहास, संस्कृति ( और मिठाइयों के भी) के बारे में कोई जानकारी नहीं है। जबकि इस मिष्टी हब में दुकानें चला रहे मिठाई व्यवसासियों का कहना है कि राजनीति अपनी जगह है, लेकिन उनका कारोबार ठीक चल रहा है।
ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव कटुता के उस मुकाम तक पहुंच गया है, जहां मिठाई में भी मिठास की जगह कड़वाहट महसूस होने लगी है। राज्य में राजनीतिक मुद्दों और नारों के आधार पर मिठाइयों का बंटवारा तो पहले ही हो गया था। मिठाई निर्माताअों ने माहौल को भांपते हुए ‘वोट स्वीट्स’ (मत मिठाई) पहले ही लांच कर डाली थीं। इस बारे में मिठाई बनाने वालों का कहना है कि उन्होंने तो यह प्रयोग ‘फनी’ मूड में किया था, लेकिन इसे मिष्ठान्न प्रेयमियों का जो रिस्पांस मिला वह हैरतअंगेज था। याद करें कि जब पिछले माह ममता दीदी ने जब ‘खेला होबे’ जुमला चुनावी माहौल में फेंका था तो राजनेताओं के साथ मिठाई वालों ने भी इसे हाथों-हाथ लिया था। इसके पहले भाजपा की अोर से ‘जयश्री राम’ का नारा चलाया जा ही रहा था। लिहाजा नवाचारी मिठाई निर्माताअों ने बाजार में ‘खेला होबे’ मिठाई और ‘जयश्री राम संदेश’ लांच कर दिए। बताया जाता है कि दोनो पार्टियो के राजनीतिक विचार के इस मिष्ठान्नरूप को समर्थकों का खासा प्रतिसाद मिला। यह संदेश भी गया कि सियासी कटुता को कुछ हद तक मिठास में बदला जा सकता है।
कहा जाता है कि बंगाली माछ के अलावा मिष्टी ( मिठाई) के भी गजब दीवाने होते हैं। पिछले साल संपूर्ण लाॅक डाउन में जब राज्य में मिठाई की दुकाने भी बंद थीं तो तमाम बंगाली बेचैन हो उठे थे। काफी दबाव के बाद मिठाई की दुकानों को कुछ समय के लिए खोलने की इजाजत राज्य सरकार ने दी थी। बंगालियों के िमष्टी प्रेम का यह आलम है कि वहां लड़कियों के नाम ‘मिष्टी’ रखना आम बात है। कुछ वर्ष ‘टाइ्म्स आॅफ इंडिया’ में छपे एक लेख में बताया गया था कि पूरे देश में लोग मिठाई खाने पर जितना खर्च करते हैं, उसका आधा अकेले बंगाली करते हैं, जबकि बंगाल की आबादी कुल देश की आबादी का 8 फीसदी ही है।
जो भी हो, बर्द्धमान में तो मिष्टी हब प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है। अब यह मिष्टी हब है क्या? गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने अपने पहले कार्यकाल में बंगाली मिठाइयों को एकजाई मार्केट उपलब्ध कराने के उद्देश्य से चार साल पहले बर्द्धमान जिले में ‘मिष्टी हब’ खोलने की योजना को क्रियान्वित किया। इसमें बंगाल के कई छोटे बड़े मिठाई निर्माताअों की दुकाने हैं, जो बडे पैमाने पर बंगाली मिठाइयां तैयार कर बेचते हैं। इनमें प्रमुख हैं सीताभोग, मिहीदाना और लांगचा। पूर्व बर्द्धमान जिले में पड़ने वाले इस मिष्टी हब में मिठाइयों की पांच सौ से ज्यादा दुकाने हैं। जबकि बर्द्धमान शहर की आबादी तीन लाख के करीब है। कहते हैं कि बर्द्धमान का मिठाइयों का अपना समृद्ध इतिहास और पहचान है। ये तीनो मिठाइयां यहीं की देन हैं। इन्हें ब्रिटिश राज के जमाने में स्थानीय राज परिवार ने तैयार कराया था।
इसमे भी सीताभोग मिठाई छेना, चावल के आटे और शकर से बनती है। इसके ऊपर गुलाब जामुन के टुकड़े सजाए जाते हैं। इसी प्रकार मिहिदाना उत्तर पश्चिम भारत की बूंदी का चचेरा भाई है। यह स्थानीय गोबिंदभोग चावल, बासमती चावल के आटे और बेसन से मिलाकर बनाया जाता है। जिसमें रंग के लिए केसर मिलाई जाती है। कहते हैं कि इन दोनो मिठाइयों का आविष्कार एक बंगाली क्षेत्रनाथ नाग ने किया था। 1904 में बर्द्धमान के राजा बिजयचंद मेहताब के निमंत्रण पर तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन बर्द्धमान आए थे और उनके सम्मान में ये मिठाइयां पेश की गई थी। कर्जन को ये दोनो मिठाइयां काफी पसंद आई। उसके बाद तो यह बर्द्धमान की पहचान ही बन गईं। बंगाल को सीताभोग और मिहिदाना का जीआई टैग भी मिला हुआ है।
एक और खास मिठाई है लांगचा। यह कुछ- कुछ गुलाब जामुन की बहन है। यानी बेलनाकार गुलाब जामुन। इसकी जन्मस्थली बर्द्धमान जिले का शक्तिगढ़ को माना जाता है। यह मावा, मैदे से बनती है। जिसे तलकर चाशनी में काफी समय तक डुबोया जाता है। इस मिठाई का नामकरण इसे पहली बार बनाने वाले लांगचा दत्ता के नाम पर किया गया है।
जाहिर है कि अन्य कई बंगाली मिठाइयों के साथ ये तीनों मिष्टी भी मिष्टी हब की पहचान है। भाजपा का आरोप है कि बर्द्धमान का मिष्टी हब फेल हो चुका है। इसके लिए ममता और उनकी सरकार जिम्मेदार है, क्योंकि यह सरकारी प्रोजेक्ट था। बीजेपी नेताओं का कहना है कि अगर वो सत्ता में आए तो मिष्टी हब की तस्वीर बदल देंगे। दूसरी तरफ टीएमसी नेता बीजेपी के इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि भाजपा को बंगाली संस्कृति और इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है।
दो साल पहले मिष्टी हब तब भी चर्चा में आया था, जब राष्ट्रीय राजमार्ग 2 के चौड़ीकरण परियोजना के तहत हब का कुछ हिस्सा तोड़े जाने की बात उठी थी। उस वक्त भी मिष्टी हब पर राजनीति हुई, क्योंकि राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण केन्द्रीय एजेंसी करती है और केन्द्र में मोदी सरकार है। दरअसल मिष्टी हब तो एक निमित्त है। लड़ाई की असली वजह यह है कि 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने बर्द्धमान पूर्व और पश्चिम की सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार मुकाबला बहुकोणीय है और भाजपा भी जीत की अहम दावेदार है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के एस.एस.अहलूवालिया ने बर्द्धमान-दुर्गापुर सीट जीतकर तृणमूल को भीतर से हिला दिया था।
हालांकि उनकी जीत का अंतर बहुत मामूली था। तृणमूल यहां अपनी बढ़त फिर बनाना चाहती है तो भाजपा लोकसभा चुनाव नतीजों को दोहराना चाहती है। लिहाजा हिंदू- मुस्लिम, बंगाली बनाम गैर बंगाली, दीदी बनाम दादा, खेला बनाम विकास जैसे मुद्दों के साथ-साथ ‘मिष्टी हब’ का मुद्दा भी चुनावी चाशनी में पग रहा है। किस पार्टी के जीतने पर मिष्टी हब का क्या होगा, यह देखने की बात है। बर्द्धमान की इन सीटों पर 17 अप्रैल को मतदान होना है। सवाल यह है कि क्या स्थानीय मतदाता ‘मिष्टी हब’ के भविष्य को लेकर वोट देंगे या और किन्हीं मुद्दों को महत्व देंगे, यह तो नतीजों से पता चलेगा। लेकिन संतोष की बात यही है कि मिष्ठान्न भी सियासत केन्द्र में आ गया है। ऐसा शायद बंगाल में ही हो सकता है।
वरिष्ठ संपादक
अजय बोकिल