दक्षिण एशिया की किसी भी महिला नेता का नाम लीजिए, तीन को छोड़ कर बाकि सब के पीछे एक समृद्ध पारिवारिक विरासत थी या है. ममता बनर्जी, मायावती और जयललिता, ही ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने दम पर भारतीय राजनीति में एक मुकाम हासिल किया. लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह एक बहुत बडी उपलब्धि है. इन तीनों महिला नेताओं में भी जयललिता का नाम शायद सबसे पहले लिया जाएगा.
कम से कम तमिलनाडु की राजनीति में उनकी हैसियत, उनकी लोकप्रियता को देखते हुए तो यही लगता है. आखिर, जयललिता के व्यक्तित्व का वो कौन सा करिश्माई पहलू था, जिसने उन्हें जीते-जी देवी बना दिया था. आखिर क्यों वो लाखों तमिल लोगों की अम्मा बन गई थीं? इस सवाल का एक आसान और आमतौर पर दिया जाने वाला जवाब यही है कि दक्षिण भारत में शुरू से ही फिल्म अभिनेताओं का बहुत प्रभाव रहा है. लेकिन, जयललिता के व्यक्तित्व का आकलन सिर्फ इसी जवाब के आधार पर कर देना शायद सही नहीं होगा.
भारतीय राजनीति और भारतीय सिनेमा का बहुत गहरा संबंध है. नेता और अभिनेता के बीच का फर्क आज बहुत बारीक रह गया है. अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि हमारे नेता, अभिनेताओं से बेहतर अभिनय कर लेते हैं. यह बात बहुत हद तक सही भी है. लेकिन, यहीं पर जयललिता अन्य नेताओं से अलग नजर आती थीं. तमिल सिनेमा की इस बेहतरीन अदाकारा ने राजनीति में आने के बाद कभी अभिनय नहीं किया.
यानी, जयललिता ने अपने लोगों से जो वादा किया, उसे पूरा किया. न कि अभिनय का सहारा ले कर अपनी वादाखिलाफी और अपनी गलती को कभी तार्किक बनाने की कोशिश की. उनके व्यक्तित्व का, उनकी राजनीति का यही हिस्सा शायद उन्हें एक जननेता बनाता था. यानी, उन्होंने जो भी किया, पूरी शिद्धत से किया. चाहे वो अभिनय हो या राजनीति.
एक और बात है, जो उन्हें बाकि नेताओं और खास कर उत्तर, पूरब या पश्चिम भारत के नेताओं से अलग खड़ा करता है. 90 के दशक में बिहार और यूपी में सामाजिक न्याय की जो लडाई लड़ी गई और उस लडाई के नाम पर जो राजनीति हुई, उसे सबने देखा और समझा है. जयललिता उस दौर में मुख्यमंत्री बनी थीं जब देश में मंडलवाद का बोलबाला था. मंडल कमिशन ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी.
दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की 50 फीसदी की अधिकतम सीमा तय कर दी थी. उसी दौर में जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. तमिलनाडु में एससी, एसटी और ओबीसी को मिलाकर 69 फीसदी आरक्षण पहले से चल रहा था. जयललिता चाहतीं तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दे कर इसे कम कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने 69 फीसदी आरक्षण का विधेयक तमिलनाडु विधानसभा से पारित कराया और केंद्र सरकार को मजबूर कर दिया कि संविधान संशोधन कर इस विधेयक को 9वीं अनुसूची में डाले, ताकि यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए.
इस वजह से संविधान में 76वां संशोधन हुआ और आज तमिलनाडु में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सीमा से कहीं अधिक यानी 69 फीसदी आरक्षण मिलता है. यह काम बिहार या उत्तर प्रदेश के वे कोई नेता नहीं कर सके, जो खुद को सामाजिक न्याय का पुरोधा कहते हैं. शायद यही वजह है कि जयललिता के लिए वहां की जनता ने जो स्नेह दिखाया, जो प्यार लुटाया, वो शायद भारत के बाकि हिस्सों के नेताओं को नसीब न हो.
जे जयललिता की जिन्दगी, एक ऐसी कहानी है जिसके कई मोड़ हैं. हर मोड़ पर एक नई मंजिल. लेकिन, जयललिता किसी मंजिल पर नहीं थमीं. वो चलती रहीं, ब़ढती रहीं. ये चलना और ब़ढना ही उनकी सफलता की कहानी बन गया. कभी न रूकने, कभी न झुकने का जज्बा ही उन्हें जननेता बना गया. वर्ना, 2 साल की उम्र में सिर से पिता का साया हट जाने के बाद एक आम भारतीय परिवार की हालत क्या हो सकती है, इसका अन्दाजा हम उत्तर भारतीय लोग आसानी से लगा सकते हैं.
24 फरवरी 1948 को एक अय्यर ब्राम्हण परिवार में जन्मी जयललिता के पिता जयराम की मृत्यु, उनके जन्म के दो साल बाद ही हो गई थी. मां संध्या ने उन्हें पाला-पोसा. मां उन्हें लेकर बैंगलोर चली आईं. उनकी मां ने तमिल सिनेमा में काम करना शुरू कर दिया. जयललिता की प्रारंभिक शिक्षा पहले बैंगलोर और बाद में चेन्नई में हुई. चेन्नई के स्टेला मारिस कॉलेज में पढ़ने की बजाय उन्होंने सरकारी वजीफे से आगे पढ़ाई की.
स्कूल के दिनों में जयललिता काफी प्रतिभाशाली थीं. अभिनेत्री से राजनेता बनीं जयललिता के बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि वो अभिनेत्री कतई नहीं बनना चाहती थीं. स्कूल के दिनों में उन्हें सर्वश्रेष्ठ छात्रा का शील्ड मिला और दसवीं कक्षा की परीक्षा में उन्होंने पूरे तमिलनाडु में दूसरा स्थान हासिल किया. गर्मियों की छुट्टियों के दौरान वो अपनी मां के साथ एक समारोह में गई थीं, जहां प्रोड्यूसर वीआर पुथुलू ने उन्हें अपनी फिल्म में काम करने का प्रस्ताव दिया.
मां ने उनसे पूछा और उन्होंने हां कर दी. 1961 में स्कूली शिक्षा के दौरान ही उन्होंने एपिसल नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया. सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में ही वे कन्नड़ फिल्मों में मुख्य अभिनेत्री की भूमिकाएं निभाने लगीं. अपनी दूसरी ही फिल्म में जयललिता को उस समय तमिल फिल्मों के चोटी के अभिनेता एमजी रामचंद्रन के साथ काम करने का मौका मिला.
तमिल सिनेमा में उन्होंने लगभग 300 फिल्मों में काम किया. जयललिता ने 1982 में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही एमजी रामचंद्रन के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कर दी. 1983 में उन्हें पार्टी का प्रोपेगेंडा सचिव नियुक्त किया गया. बाद में, अंग्रेजी में उनकी वाक् क्षमता को देखते हुए पार्टी प्रमुख रामचंद्रन ने उन्हें राज्यसभा में भिजवाया और फिर राज्य विधानसभा उपचुनाव जीतकर उन्होंने विधानसभा की सदस्यता ग्रहण की.
वर्ष 1987 में रामचंद्रन का निधन हो गया और इसके बाद अन्ना द्रमुक दो धड़ों में बंट गई. एक धड़े की नेता एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन थीं और दूसरे की जयललिता. जयललिता ने खुद को रामचंद्रन की विरासत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. पार्टी में विरासत की लड़ाई छिड़ गई. एक हिस्सा एमजीआर की पत्नी जानकी के पक्ष में था.
तब जयललिता ने अलग पार्टी बना ली. 1989 में उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा में 27 सीटें जीती और वे तामिलनाडु की पहली निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष बनीं. 25 मार्च 1989 को तमिलनाडु विधानसभा में बजट पेश किया जा रहा था. मुख्यमंत्री करुणानिधि बजट भाषण पढ़ रहे थे. कांग्रेस के एक सदस्य ने आवाज उठाई कि पुलिस ने विपक्ष की नेता जयललिता के खिलाफ अलोकतांत्रिक तरीके से काम किया है.
जयललिता ने भी उठ कर शिकायत की कि मुख्यमंत्री के उकसाने पर पुलिस ने उनके ख़िला़फ कार्रवाई की है और उनके ़फोन को टैप किया जा रहा है. स्पीकर ने बहस की अनुमति नहीं दी. विधानसभा सदस्य बेकाबू हो गए. एआईडीएमके के सदस्य चिल्लाते हुए सदन के वेल में पहुंच गए. एक एआईडीएमके सदस्य ने बजट के पन्नों को फाड़ दिया. विधानसभा अध्यक्ष ने सदन को स्थगित कर दिया.
जैसे ही जयललिता सदन से निकलने के लिए तैयार हुईं, एक डीएमके सदस्य ने उन्हें रोकने की कोशिश की. उसने उनकी साड़ी इस तरह से खींची कि उनका पल्लू गिर गया. जयललिता ज़मीन पर गिर गईं. जयललिता ने इसी के बाद कसम खाई कि वह विधानसभा में तभी लौटेंगी, जब डीएमके सरकार गिरा देंगी. दो साल बाद, 1991 में वो सीएम बन चुकी थीं.
वह भी राज्य की 95 फीसदी सीटें जीतकर सबसे कम उम्र की सीएम. वर्ष 1992 में उनकी सरकार ने बालिकाओं की रक्षा के लिए ‘क्रैडल बेबी स्कीम’ शुरू की ताकि अनाथ और बेसहारा बच्चियों को खुशहाल जीवन मिल सके. राज्य में ऐसे पुलिस थाने खोले गए, जहां केवल महिलाएं ही तैनात होती थीं.
2001 में वे फिर एक बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने में सफल हुईं. दोबारा सत्ता में आने के बाद उन्होंने लॉटरी टिकट पर पाबंदी लगा दी, हड़ताल पर जाने की वजह से दो लाख कर्मचारियों को एक साथ नौकरी से निकाल दिया, किसानों की मुफ्त बिजली पर रोक लगा दी, राशन की दुकानों में चावल की कीमत बढ़ा दी, 5000 रुपये से ज्यादा कमाने वालों के राशन कार्ड रद्द कर दिए गए, बस किराया बढ़ा दिया गया और मंदिरों में जानवरों की बलि पर रोक लगा दी गई.
हालांकि बाद में जब वो फिर से सत्ता में आईं, तो उन्होंने इनमें से कई फैसलों को रद्द भी किया. अप्रैल 2011 में वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं. उन्होंने 16 मई 2011 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 2016 की भी विधानसभा चुनाव जीत कर उन्होंने इस मिथक को थोड़ा कि तमिलनाडु की राजनीति में लगातार दुबारा सत्ता पाना संभव नहीं है. मुख्यमंत्री रहते हुए जयललिता ने कन्या भ्रूण हत्या के मामलों पर सख्ती दिखाई.
नतीजा ये हुआ कि तमिलनाडु के लिंगानुपात में सुधार हुआ. स्कूल में बच्चों के लिए पिता के नाम की अनिवार्यता खत्म की. जयललिता ने कहा कि स्कूल में मां का नाम ही काफी है. उन्होंने ट्रांसजेंडर्स की स्कूल-कॉलेज में एडमिशन की व्यवस्था कराई. गरीबों के मुफ्त इलाज की व्यवस्था कराई गई. 1991 में इसी योजना के चलते जयललिता को अम्मा नाम मिला. अम्मा कैंटीन में दो रुपये में 2 इडली, सांभर के साथ मिलती है.
तीन रुपये में 2 रोटी-दाल और 5 रुपये में लेमन राइस या कर्डराइस, सांभर के साथ मिलता है. जयललिता ने राज्य में राशनकार्ड धारकों को 20 किलो चावल फ्री देने के एलान किया. मिक्सर-ग्राइंडर, पंखा, गाय-बकरी मुफ्त में दिए गए. इसके साथ अम्मा पानी, अम्मा नमक, अम्मा सीमेंट और गरीब महिलाओं के लिए मुफ्त सेनेटरी नैपकिन बंटवाईं.
द्रविड़ पार्टी की नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी. हिंदू परंपरा से अलग द्रविड़ मूवमेंट से जुड़े नेता अपने नाम के साथ जातिसूचक उपाधि का भी इस्तेमाल नहीं करते, जयललिता ने भी कभी कोई उपनाम नहीं अपनाया और परंपरा से हट कर ही उन्हें दफनाया भी गया. अपने समर्थकों के बीच अम्मा और पुरातची तलाईवी यानी क्रांतिकारी नेता को आखिरी सलाम. अलविदा, अम्मा.