यह सवाल आम हिन्दुस्तानी को मथने के लिए बड़ा सवाल है । जो व्यक्ति गुजरात में 2002 के दंगों के बाद गुजरात का ब्रांड एंबेसडर बना हो और बाद के सालों में सत्ता की ओर देखता हुआ अपनी सुविधा से अपने कवच के भीतर यह कर सुरक्षित टिप्पणियां करता रहा हो और सत्ता विरोधियों की आंख का कांटा रहा हो वह व्यक्ति अचानक एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपने भाषण से सुर्खियों में आ जाए तो आप चौकेंगे ही । चौंकना स्वाभाविक ही है। पर यह अचानक नहीं हुआ । फिल्म क्रिटिक कावेरी बमजई और जया बच्चन की मानें तो अमिताभ बच्चन भीतर ही भीतर काफी समय से उद्वेलित हो रहे थे । इन आठ सालों में पिछले चार एक सालों की सुध लें तो उन्होंने शायद सार्वजनिक टिप्पणियां करना बंद कर दिया था। कहीं इक्का दुक्का कोई एकाध ।
पिछले दिनों कोलकाता में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अमिताभ बच्चन ने जो लंबा और ऐतिहासिक भाषण दिया उसने गहन बुद्धिजीवियों में हलचल पैदा की । इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि गोदी मीडिया जो अमिताभ बच्चन की किसी भी बात को ले उड़ता है उसने इस भाषण पर ऐसी चुप्पी साध ली जैसे उसे सांप सूंघ गया हो । लेकिन सोशल मीडिया के चैनलों को क्या हुआ । इस पर आगे बात करेंगे । फिलहाल इसी भाषण पर टिकते हैं और जिन दो वेबसाइट ने इस पर बात की वहां आते हैं ।
भाषण के कोई चार दिन बाद ‘न्यूज क्लिक’ पर नीलांजन मुखोपाध्याय ने कावेरी बमजई से बातचीत की । यह बातचीत सुनने लायक है अमिताभ बच्चन को समझने के लिए भी । बहुत दिलचस्प है । कावेरी ने भाषण के कई मुद्दों पर खुल कर बात की। खासतौर पर फ्रीडम ऑफ स्पीच के साथ साथ सत्यजीत रे, मृणाल सेन और ऋत्विक घटक के साथ रे की फिल्म ‘गणशत्रु’ पर । ये सब और इनका जिक्र अमिताभ बच्चन ने अपने भाषण में विस्तार से किया । आप चौंक सकते हैं अमिताभ बच्चन को अचानक यह क्या हुआ । पर यह अचानक नहीं हुआ । यह पक रहा था मन ही मन । इस संदर्भ में कावेरी बमजई को सुनिए । दूसरा ‘द वायर’ पर सिद्धार्थ वरदराजन और अपूर्वानंद की बातचीत सुनिए । अपूर्वानंद ने इस महत्वपूर्ण भाषण की बातों को और खासतौर पर ‘गणशत्रु’ फिल्म को जिस तरह व्याख्यायित किया वह सुनने लायक है । आप फिल्म देखें न देखें अपूर्वानंद की व्याख्या सुनकर संतोष कर सकते हैं। उन्होंने इस फिल्म के कथानक पर चर्चा की । अमिताभ बच्चन में आये इस ‘अचानक’ बदलाव पर सिद्धार्थ और अपूर्वानंद को सुनना बड़ा दिलचस्प था । उधर बमजई मानना था कि कोरोना के दौरान आई खबरों से शायद अमिताभ बच्चन को कहीं न कहीं हैरान परेशान रहे हैं । ‘गणशत्रु’ का उल्लेख इसी अर्थ में देखा जा सकता है।
दूसरी तरफ हैरान कर देने वाला तथ्य यह है कि गोदी मीडिया को तो छोड़िए सोशल मीडिया के चैनलों से यह क्यों गायब था। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि यह अमिताभ बच्चन ने कहा । महत्वपूर्ण यह है कि यह उस व्यक्ति की पीड़ा थी जो हमेशा से उदार कही जाने वाली जमात के निशाने पर अक्सर रहा है। अमिताभ बालीवुड के गिरते और एक तरफ होते झुकाव को भी देख रहे हैं। वे बालीवुड में बन रही ‘जिंगोस्टिक फिल्मों ‘ को भी देख रहे हैं । वे जानते हैं कि यह सत्य से परे है । इसलिए बकौल कावेरी बमजई, वे नये फिल्मकारों को भी संदेश देना चाह रहे हैं (अपने लिए भी) । देश का वातावरण भौकाल पैदा करने वाला दिख रहा है । ऐसे में अगर अमिताभ बच्चन ने करवट बदली है और वे नये फिल्मकारों को संदेश देना चाहते हैं तो यह बड़ी बात है।
मैंने इस ओर अपने ‘सत्य हिंदी’ के कुछ मित्रों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी तो उनसे जो जवाब मिले , उन पर कुछ कहने का मन नहीं है । मैं हैरान था जिस विषय या भाषण पर सिद्धार्थ वरदराजन, अपूर्वानंद, नीलांजन मुखोपाध्याय जैसे लोग गम्भीर चर्चा कर सकते हैं उस पर यूट्यूब पर छाया रहने वाला ‘सत्य हिंदी’ कैसे चुप हो सकता है । लेकिन अब यह आश्चर्यजनक नहीं है । यह चैनल पिछले काफी समय से ‘ऊब’ पैदा कर रहा है । यह मैं पहले भी लिख चुका हूं ‌। उनको क्या फीडबैक मिलता है पता नहीं पर मुझे जो फीडबैक मिलता है उससे तो जाहिर है लोग ऊब रहे हैं । अनेक लोगों ने देखना बंद कर दिया है । और केवल यही चैनल नहीं, वायर और दूसरे वेबसाइट भी । उनका मानना है कि अगर गोदी मीडिया सत्ता की गोद में बैठा है तो ये खालिस एक तरफा विरोध में ही खत्म हुए जा रहे हैं । इनके हैडिंग, इनके पैनल सब उबाऊ हो चले हैं । निकल कर कुछ नहीं आता । बस विरोध ही विरोध । देखने लायक केवल इंटरव्यू ही होते हैं ।
सच भी है जबसे एनडीटीवी में हलचल हुई है और रवीश कुमार ने एनडीटीवी को अल्विदा कहा है तभी से गम्भीर दर्शकों का मूड उखड़ गया है । दीर्घकाल के लिए मूड यूं ही नहीं उखड़ जाता और यूंही बन भी नहीं जाता । जब लगता है कि आप मोदी सरकार का कुछ नहीं उखाड़ पा रहे । वह बेहयाई के साथ अपनी धुन में चलती चली जा रही है । जिन चीजों पर वह दूसरों को कोसती है उन्हीं चीजों और बातों को बेशर्मी से करती और भुनाती है आप फिर भी उसका कुछ नहीं उखाड़ पाते और चार छः लोगों को बैठा कर रुदाली कर लेते हैं तो आपसे खुदगर्ज व बेहूदा और कौन है । खुदगर्ज इसलिए कि ये लोग जो कुछ कर रहे हैं वे सब स्वांत सुखाय की श्रेणी में आता है । फिर चाहे वह ‘सत्य हिंदी’ हो, ‘वायर’ या और कोई भी ।
संसद में अनुराग ठाकुर ने बताया है कि देश विरोधी मुहिम चलाने वाले यूट्यूब के 104 चैनल व 6 वेबसाइट के खिलाफ हमने कार्रवाई की है । मतलब देर सबेर दूसरे चैनलों का भी नंबर आएगा ही । देश में जो माहौल बन रहा है वह हमें 2002 की ओर जाता दिख रहा है । ये लोकतंत्र विरोधी शक्तियां इस कदर ताकतवर होती दिख रही हैं कि इन शक्तियों के विरोधी मुठ्ठी भर दिखने लगेंगे । बहुत सी जगहों पर वामपंथी धीरे से दक्षिण पंथ की ओर सरक चुके हैं। सुना है ममता के गढ़ में भी ममता को हराने के लिए वामपंथी दल भाजपा के साथ आने में गुरेज नहीं कर पा रहे हैं । विपक्ष की एकता कभी होगी नहीं । नफ़रत के बाजार में मुहब्बत की दुकान एक जुमला भर बन कर रह जाने वाला है । कारण यह है कि राहुल गांधी को जैसा पाठ पढ़ाया जाता है उसे कई दिनों तक वैसे ही इतना पीटते हैं कि सुनते सुनते ऊब होने लगती है । ऐसे में अगर सोशल मीडिया के चैनलों ने खुद को नहीं बदला तो उन्हें स्टीरियोटाइप होने से कोई रोक नहीं सकता । वैसे काफी हद तक वे हो भी चुके हैं । अमिताभ श्रीवास्तव को चाहिए था कि अमिताभ बच्चन पर भाषण को लोकतंत्र और देश के मौजूदा माहौल के संदर्भ में विस्तृत चर्चा करते । इस समय केवल एक वही कार्यक्रम है जो सिनेमा की प्रमुखता और प्रधानता को शिद्दत के साथ स्थापित कर रहा है क्योंकि सिनेमा अब केवल मनोरंजन के लिए नहीं है । पर उसमें भी लगातार एक से ही लोग हर बार आने पर परेशानी सी होती है । कहीं यह भी स्टीरियोटाइप न हो जाए। बचना होगा । वैसे एक कड़क शब्द तो कहना ही चाहिए कि यदि ‘सत्य हिंदी’ के दिन में छः छः कार्यक्रम होते हैं और उनमें से एक का भी एंकर अमिताभ बच्चन के भाषण की गम्भीरता को नहीं समझता और राहुल, नीतीश, मोदी, चीन , सोनिया, विपक्ष व फूहड़ किस्सों और बयानों को अपनी बहस का विषय बनाता है तो उसे किसी पर तो शर्मसार होना ही चाहिए । शर्म तो आनी ही चाहिए ।
रवीश कुमार वाकई बेरोजगार हो गये । वे अपनी पीड़ा सबके साथ साझा कर रहे हैं । नीलू व्यास ने अपने नये चैनल के लिए उनसे इंटरव्यू लिया । नीलू का तो भाव ही बढ़ गया । इंटरव्यू देखिए आप स्वयं जान जाएंगे । अभय दुबे का शो रविवार को नहीं आता तो रविवार कुछ सूना सूना सा लगता है । यह रविवार सूना था । आगे आने वाले समय में देखिए देश में और क्या क्या होता है ।

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