मिशन 2019 को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तीन दिवसीय दौरे पर रांची आये थे. यहां भाजपा ने शाह का स्वागत शहंशाह की तरह किया. आखिर हो भी क्यों नहीं, शाह का रुतबा पार्टी में क्या है, ये तो सभी को पता है. मुख्यमंत्री रघुवर दास भी यह भली-भांति जानते हैं कि शाह खुश तो सब खुश. इस बार भी मुख्यमंत्री ने शाह को खुश करने में कोई कोर-कसर नही छोड़ी. पूरे शहर को बैनर होर्डिंग्स एवंं झंडों से पाट दिया गया था. कार्यक्रम स्थल इतना भव्य बनाया गया कि उसे देखकर अमित शाह गदगद हो गए. अमित शाह का ये दौरा कई मायनों में खास था. यह दौरा एक तरह से आलाकमान की तरफ से रघुवर दास के प्रदर्शन का निरीक्षण भी था और जिस तरह इस से अमित शाह की आवभगत हुई, उससे वे खूब खुश भी हुए. मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी पता है कि अगर शाह का आर्शीवाद इन्हें मिलता रहा, तो फिर किसी अन्य के समर्थन की जरूरत नहीं है.
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को खुश करने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पानी की तरह पैसे बहाए. उनके स्वागत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गई. कारों के काफिले से लेकर, आयोजन स्थल पर भव्य पंडाल और रहने-खाने के लिए भी शाही व्यवस्था की गई थी. पूरे शहर को भाजपाई झंडों, बैनरों और होर्डिंग्स से पाट दिया गया था. राष्ट्रीय अध्यक्ष के ठहरने के लिए लगभग तीन करोड़ की लागत से स्टेट गेस्ट हाउस को सजाया-संवारा गया था. गेस्ट हाउस में पंद्रह लाख कीमत का रिमोट कंट्रोल वाला झुमर भी लगा था. लेकिन मीडिया में इसे लेकर खबरें आने के बाद अमित शाह ने भाजपा कार्यालय में ही रुकने का मन बनाया. उसके बाद आनन-फानन में भाजपा कार्यालय को भी सजाया-संवारा गया. पार्टी के एक वरीय नेता की बातों पर विश्वास करें, तो शाह के इस तीन दिवसीय दौरे पर उनके स्वागत में 20-25 करोड़ रुपए खर्च किए गए. उत्तम स्वागत व्यवस्था व आवभगत से खुश अमित शाह ने रघुवर सरकार के कार्यकलापों पर तो अपनी मुहर लगा दी, लेकिन वे संगठन के कार्यों से खुश नजर नहीं आए.
अमित शाह ने अपने इस दौरे पर प्रदेश सरकार, प्रदेश भाजपा संगठन और आरएसएस के बीच समन्वय बनाने की कोशिश भी की. इस दौरे पर अमित शाह के साथ पार्टी के दो महासचिव एवं संगठन मंत्री भी थे. पार्टी अध्यक्ष आरएसएस कार्यालय जाकर संघ के नेताओं से मिले. वहां संघ के नेताओं के साथ अमित शाह की गहरी मंत्रणा हुई. संघ के नेताओं ने भाजपा संगठन एवं सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की. उनका साफ तौर पर कहना था कि न तो रघुवर सरकार संघ के नेताओं को तवज्जो देती है और न ही पार्टी संगठन के लोग किसी मुद्दे पर संघ के नेताओं से विचार विमर्श करते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि यहां समन्वय का घोर अभाव है. पार्टी संगठन में ही नेताओं के बीच समन्वय नहीं है. कार्यकर्ताओं एवं नेताओं की घोर उपेक्षा होती है, जिसके कारण कार्यकर्ताओं में नाराजगी है और इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ सकता है.
भाजपा विधायकों, पार्टी एवं संघ के पदाधिकारियों एवं बोर्ड निगम के अध्यक्ष की बैठक के बाद शाह को भी यह अहसास हुआ कि यहां लोगों के बीच गंभीर मतभेद है. इसके बाद अमित शाह ने उन्हें कई नसीहतें दी. मंत्रियों और विधायकों को कहा गया कि वे जनसंवाद करें, लोगों की समस्याएं सुनें और उनका हल निकालने का काम करें. अमित शाह ने मंत्रियोें और भाजपा के पदाधिकारियों को संकेतों के जरिए ही सही, ये संदेश जरूर दिया कि वे जल्द से जल्द सुधर जाएं और गुटबाजी से बाज आएं. पार्टी के अंदरखाने में टकराव और विघटन की राजनीति करने वालों के लिए उन्होंने कहा कि अब पार्टी के अंदर टकराव की राजनीति को स्वीकार नहीं किया जाएगा. लंबे समय से निष्क्रीय रहे राज्य संगठन के पदाधिकारियों को उन्होंने फटकार लगाई और कहा कि वे तत्काल प्रभाव से पार्टी के कार्यक्रमों और सरकार के कामों के प्रचार-प्रसार में जुट जाएं. दरअसल झारखंड भाजपा के भीतर सरकार और पार्टी के लिए विपक्ष से ज्यादा बड़ी चुनौती अपने लोग पेश कर रहे हैं.
हाल के दिनों में सीएनटी-एसपीटी, धर्मान्तरण सहित अन्य मुद्दों पर सरकार को विपक्ष से ज्यादा अपने लोगों के ही विरोध का सामना करना पड़ा है. पार्टी के अंदर से ही आए दिन होने वाली सरकार विरोधी बयानबाजी भाजपा के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन जाती है. वैसे भी भाजपा अध्यक्ष का सबसे ज्यादा फोकस झारखंड और बिहार पर ही है. इन दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार रहने के बाद भी पार्टी के भीतर की गुटबाजी को खत्म नहीं किया जा सका है. यही कारण भी है कि इन दोनों राज्यों में भाजपा संगठन सुदृढ नहीं हो पाया है. अमित शाह भी इन सब बातों को भलीभांति जानते हैं और यही कारण है कि उन्होंने सभी को एकसाथ मिलकर काम करने की नसीहत दी है.
अमित शाह मिशन 2019 के तहत झारखंड में पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ ही दलितों और आदिवासियों का मन टटोलने भी आए थे. उन्होने लोकसभा की सभी चौदह सीटों और विधानसभा की 60 सीटों के बारे में चर्चा करते हुए पार्टी नेताओं को कई नसीहतें भी दी. आदिवासियों का दिल जीतने के लिए उन्होंने आदिवासी परिवार के यहां भोजन भी किया. साथ ही आदिवासियों का भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा की जन्म स्थली उलिहातू जाकर आदिवासी समुदाय को भाजपा के पक्ष में बोलबंद करने का काम किया. उलिहातु में वे बिरसा मुंडा के परिजनों से मिले. अमित शाह ने बिरसा मुंडा के गांव वालों को आश्वासन दिया कि वे आधुनिक ढंग से उलिहातु का विकास कराएंगे. राजधानी हरम में अमित शाह ने भव्य गरीब कल्याण मेला का उद्घाटन किया और गरीबों के बीच लगभग चार सौ करोड़ की परिसंपत्तियों का वितरण किया. इसके जरिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि भाजपा गरीबों के उत्थान के प्रति कृत संकल्पित है.
गौरतलब है कि झारखंड में ज्यादातर आदिवासी नेता और कार्यकर्ता मुख्यमंत्री रघुवर दास के उपेक्षित व्यवहार के कारण भाजपा से नाराज हैं. उनलोगों ने इसकी शिकायत पार्टी के आला नेताओं से भी की है. सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक, धर्मान्तरण विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक आदि को लेकर पहले से ही आदिवासियों में असंतोष व्याप्त है. लिट्टीपाड़ा विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भाजपा भुगत भी चुकी है. अमित शाह ये बात भलिभांति जानते हैं कि भाजपा से आदिवासियों की नाराजगी का असर लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता हैं. इसलिए वे अभी से आदिवासियों में पैठ बनाने और उन्हें भाजपा की तरफ मोड़ने की कोशिश में जुट गए हैं.