अमेरिका कच्चे तेल के उत्पादन के लिहाज से सऊदी अरब को पीछे छोड़कर विश्व का सबसे बड़ा देश बनने के क़रीब पहंच चुका है. अमेरिका से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र ग्लोबल एनर्जी के अनुसार, अतीत की तुलना में अमेरिका के कच्चे तेल के उत्पादन में 7 फ़ीसद की वृद्धि हुई है. कच्चे तेल के उत्पादन के लिहाज से अब तक यह श्रेय सऊदी अरब को हासिल था. 2012 के सर्वे के अनुसार, सऊदी अरब विश्व का सबसे बड़ा कच्चा तेेल एवं लिक्विड निर्यात करने वाला देश था. अमेरिका की सहायता से सऊदी अरब प्रति दिन 11.6 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता था और उसमें से 8.6 मिलियन बैरल निर्यात होता था, लेकिन आईईए (इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने इस साल की शुरुआत में सऊदी अरब से ज़्यादा कच्चे तेल का उत्पादन किया. अमेरिका ने मध्य अगस्त से मध्य नवंबर तक अपने कुल उत्पादन में 70 फ़ीसद की वृद्धि दर्ज की है. 2012 तक अमेरिका सामूहिक तौैर पर 7.03 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता था और अपनी ज़रूरत का 30 फ़ीसद हिस्सा विदेश से आयात करता था. जाहिर है, उसे अपनी ज़रूरत के लिए दूसरे राष्ट्रों पर निर्भर रहना पड़ता था. इसलिए अमेरिका की ओर से लगातार यह कोशिश की जा रही थी कि वह अपने यहां कच्चे तेल के उत्पादन में बढ़ोत्तरी करे, ताकि उसे दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े.
अपना यह लक्ष्य पूरा करने के लिए उसने उत्तरी अमेरिका के डकोटा एवं टेक्सास के आसपास कच्चा तेल प्रोजेक्ट का दायरा बढ़ाया और उत्पादन में 70 फ़ीसद की वृद्धि करके प्रथम नंबर पर आ गया. अभी तो अमेरिका स़िर्फ दुनिया का सबसे अधिक कच्चा तेल पैदा करने वाला राष्ट्र बना है, लेकिन अंदाज़ा है कि आने वाले कुछ वर्षों में यह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यात करने वाला राष्ट्र बन जाएगा. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार, अमेरिका ने इस वर्ष के पहले तीन माह में प्रति दिन 11 मिलियन बैरल से अधिक कच्चे तेल का उत्पादन किया. लेकिन, उत्पादन की यह स्थिति हमेशा बरकरार नहीं रखी जा सकती. बावजूद इसके अगर उत्पादन बढ़ने की गति यही रही, तो 2015 तक अमेरिका प्रति दिन 10 मिलियन बैरल और 2020 तक 11.1 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करने की स्थिति में आ जाएगा और तब वह दुनिया का सबसे अधिक कच्चा तेल पैदा करने वाला राष्ट्र बन जाएगा.
दूसरी ओर सऊदी अरब, जिसे प्रकृति ने कच्चे तेल का भंडार दे रखा है और जो ओपेक देशों को कच्चा तेल निर्यात करने वाला सबसे बड़ा राष्ट्र है, उसकी यह हैसियत अब ख़त्म हो रही है. उसके उत्पादन में चार फ़ीसद की गिरावट आई है. अगर उसके उत्पादन में इसी तरह कमी आती रही और तेल के कुओं के सूखने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा, तो 2015 तक उसकी उत्पादन क्षमता घटकर 10.9 मिलियन बैरल प्रतिदिन एवं 2020 तक 10.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंच सकती है. ग़ौरतलब है कि इस कमी का प्रभाव उसके तेल के भंडारों पर पड़ेगा. हालांकि सऊदी पेट्रोलियम मंत्री अली नाइमी का कहना है कि सऊदी अरब के पास अभी इतना भंडार मौजूद है कि 80 वर्षों तक उसकी ज़रूरतें पूरी होती रहेंगी. उनका कहना है कि सऊदी अरब के पास अब भी क्रूड तेल के बड़े भंडार मौजूद हैं. इन भंडारों में तेल का अंदाज़ा 264 अरब बैरल बताया गया है. उन्होंने कहा कि सऊदी अरब अगले 80 वर्षों तक अपने कच्चे तेल के वर्तमान निर्यात स्तर को भी बरकरार रख सकता है. लेकिन, जिस तरह से सऊदी अरब की अपनी खपत बढ़ती जा रही है और उत्पादन में कमी हो रही है, उसे देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि उसके भंडार इतने लंबे समय तक उसका साथ दे पाएंगे. सऊदी अरब की अपनी तेल खपत 3.2 मिलियन बैरल प्रति दिन है, जो अगले 20 वर्षों के अंदर 8 मिलियन बैरल तक पहुंच सकती है. इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सऊदी अरब के अंदर तेल की खपत बढ़ती जा रही है और उत्पादन कम होता जा रहा है. अगर कम होने का यह सिलसिला बढ़ा, तो उस स्थिति में निश्चय ही आठ मिलियन बैरल प्रति दिन की खपत की ज़रूरत तेल भंडार से पूरी करनी होगी. तब उक्त भंडार 80 साल से पहले ही ख़त्म हो जाएंगे. यह स्थिति पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है. आज पूरी दुनिया की मशीनरी तेल पर निर्भर है. अगर ओपेक राष्ट्रों का सबसे बड़ा निर्यातक देश ही अपना लक्ष्य हासिल करने में नाकाम हो गया, तो आने वाले समय में कठिनाई पैदा हो सकती है. आज विश्व का 35 प्रतिशत तेल ओपेक राष्ट्र पैदा कर रहे हैं. उनमें सऊदी अरब सबसे आगे है. अभी उक्त राष्ट्र प्रति दिन 1 से 75 मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं, 2018 तक यह आंकड़ा 36 से 75 मिलियन बैरल प्रति दिन हो जाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दामों में इस समय जो गिरावट आई है, उसका कारण भी कहीं न कहीं अमेरिका द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में वृद्धि है. हालांकि यह भी कहा जाता है कि इस गिरावट के पीछे अमेरिका एवं सऊदी की सोची-समझी साजिश है. यह सारा खेल ईरान और रूस की आर्थिक स्थिति तबाह करने के लिए खेला जा रहा है, क्योंकि कच्चे तेल के उत्पादक राष्ट्रों मसलन लीबिया, इराक, नाइजीरिया एवं सीरिया में अशांति के बावजूद कच्चे तेल के दाम इतने कम हो गए हैं, जितने पिछले कई वर्षों में नहीं हुए थे. इस समय ईरान एवं रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा हुआ है और उन्हें सीमित मात्रा में कच्चा तेल बेचने की अनुमति है. अगर कच्चे तेल का दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कम होता है, तो जाहिर-सी बात है कि तय की हुई मात्रा में कच्चा तेल आपूर्ति करने के बदले उन्हें विदेशी मुद्रा कम मिलेगी, जिसका सीधा प्रभाव उनकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. शायद यही कारण है कि ईरान ने ऐसे राष्ट्रों को, जो कच्चे तेल के दाम में कमी करने के पक्ष में हैं, अपना शत्रु बताया है. हालांकि विशेषज्ञ इससे इंकार करते हैं. उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम कम होने का बुनियादी कारण अमेरिका द्वारा बीते कुछ महीनों में किया गया उत्पादन और चीन में औद्योगिक मशीनरी के लिए कच्चे तेल की मांग में कमी होना है. ग़ौरतलब है कि इन दिनों चीन में औद्योगिक मंदी आती जा रही है.
अमेरिका कच्चे तेल का उत्पादन करने के लिए आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल करता है. यही आधुनिक तकनीक उत्पादन में वृद्धि का कारण बनी. इस तकनीक के तहत पानी की तेज धार और अन्य तत्वों को पहाड़ों के बीच से तेजी से छोड़ा जाता है, ताकि पहाड़ से कच्चे तेल के भंडारों के खनन के लिए उन्हें नर्म किया जा सके. उत्तरी अमेरिका में यह तकनीक अपनाने के चलते अमेरिका आगे बढ़ा और वह 2020 तक विश्व में सबसे अधिक कच्चे तेल का उत्पादन करने की ओर क़दम बढ़ा चुका है. ऐसे में कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले ओपेक देश खासे चिंतित हैं. उन्हें लगता है कि अमेरिका द्वारा इस स्तर पर उत्पादन करने से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल का दाम कम हो जाएगा और जो राष्ट्र तेल पर ही आधारित हैं, उनके लिए आर्थिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि अमेरिका न स़िर्फ कच्चे तेल के उत्पादन में सऊदी अरब को पीछे छोड़ रहा है, बल्कि उसने गैस का उत्पादन करने वाले रूस को भी मात दे दी है. आईईए ने कहा है कि उसे आशा है कि गैस के उत्पादन के क्षेत्र में अमेरिका 2015 तक रूस से आगे निकल जाएगा और वह विश्व का सबसे ज़्यादा गैस उत्पादित करने वाला राष्ट्र भी हो जाएगा. वह ऊर्जा से संबंधित अपनी ज़रूरतें पूरी करने के मामले में 2035 तक आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा. अमेरिका ने अपने गैस उत्पादन में 40 फ़ीसद की वृद्धि दर्ज की है. गैस के उत्पादन में रूस एक लंबे समय से अग्रणी रहा है. अगर अमेरिका गैस उत्पादन का यह स्तर बरकरार रखता है, तो वह पूरे विश्व में कच्चे तेल और गैस का बेताज बादशाह बन जाएगा.
अमेरिकी दैनिक वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि अमेरिका में गैस का बहुत बड़ा भंडार मौजूद है, जिसका अधिकतर भाग ऐसे स्थान में पाया गया है, जहां उसे निकालने का काम अभी शुरू ही हुआ है. अमेरिका अब तक बाहर से ऊर्जा आयात करता था, लेकिन अब वह उस स्थिति में आता जा रहा है कि दूसरे राष्ट्रों को ऊर्जा निर्यात कर सके. बहरहाल, ओपेक देश विशेषकर, सऊदी अरब के लिए यह समाचार चिंता का विषय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी हैसियत कम होती जा रही है. उसे अपनी हैसियत बरकरार रखने के लिए अमेरिका की तरह कोई नई तकनीक इस्तेमाल करनी होगी, लेकिन ऐसा अमेरिका के सहयोग के बिना संभव नहीं है. ऐसे में यह संभावना बहुत कम है कि सऊदी अरब इस स्थिति से खुद को उबार लेगा.
अमेरिका : अवैध अप्रवासियों को क़ानूनी दर्जा
राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिका में रह रहे 50 लाख से ज़्यादा अवैध अप्रवासियों को क़ानूनी दर्जा देने की घोषणा की है. इससे उन भारतीयों को भी फ़ायदा होगा, जो अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं. यह आव्रजन नीति को लेकर उठाया जाने वाला सबसे बड़ा क़दम है. इस घोषणा से आईटी क्षेत्र में काम करने वाले एच-1 बी वीजाधारक भारतीयों को मदद मिल सकती है. ओबामा प्रशासन के इस क़दम से अमेरिका में आवश्यक कागजातों के बिना काम कर रहे एक करोड़ 10 लाख लोगों में से पचास लाख से ज़्यादा लोगों को लाभ मिलेगा. ओबामा ने राष्ट्र के नाम एक संदेश में कहा कि हम आवश्यक कागजातों के बिना रह रहे लाखों अप्रवासियों को लेकर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ व्यवहार करेंगे. ओबामा ने कहा कि अमेरिका को अप्रवासियों का देश कहा जाता है, लेकिन यह क़ानूनों वाला भी देश है. और, वैसे अप्रवासियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जिन्होंने क़ानून तोड़ा है, खासकर वे, जो हमारे लिए ख़तरनाक हैं.
नाइजीरिया : बोको हराम ने 45 लोगों को मारा
उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया में बोको हराम आतंकियों के एक हमले में 45 लोग मारे गए. उक्त आतंकी 50 मोटरसाइकिलों पर सवार होकर आए और उन्होंने गांव में काम कर रहे लोगों को मारना शुरू कर दिया. यह हमला बोरनो प्रदेश के माफा इलाके के अजायाकुरा गांव में हुआ. ग्राम प्रधान के मुताबिक, हमले के बाद 45 लोग मृत पाए गए. स्थानीय निवासियों के मुताबिक, अगर लोग भागकर झाड़ियों में न छिपे होते, तो मरने वालों की संख्या और अधिक होती. समीपवर्ती इलाके में ही पिछले महीने बोको हराम के आतंकियों ने 30 से अधिक लड़के-लड़कियों का अपहरण कर लिया था. दरअसल, बोको हराम देश से मौजूदा सरकार का तख्ता पलट करना चाहता है और उसे एक इस्लामिक देश में तब्दील करना चाहता है. कहा जाता है कि बोको हराम के समर्थक कुरान के उस कथन से प्रभावित हैं कि जो भी अल्लाह द्वारा कही गई बातों पर अमल नहीं करता है, वह पापी है. बोको हराम इस्लाम के उस संस्करण को मानता है, जो मुसलमानों को पश्चिमी समाज से संबंध रखने वाली किसी भी राजनीतिक या सामाजिक गतिविधि में हिस्सा लेने से मना करता है.
आईएसआईएस : ब्रिटिश बंधक का सातवां वीडियो
आतंकी संगठन आईएसआईएस ने ब्रिटिश बंधक जॉन कैंटली का सातवां वीडियो जारी किया है. उक्त वीडियो में कैंटली ने अमेरिका की नाकाम कोशिशों के बारे में खुलासा किया है. इस बार भी वह नारंगी कपड़ों में संदेश देते नज़र आ रहे हैं. नौ मिनट के इस वीडियो में ब्रिटिश बंधक कैंटली ने दावा किया कि अमेरिका जुलाई में बंधकों को छुड़वाने में नाकाम रहा है. उसकी कार्रवाई से पहले ही आईएसआईएस के आतंकियों ने सभी बंधकों को अन्य जगह पर भेज दिया था. उन्होंने बताया कि अमेरिका के इस क़दम में डेल्टा फोर्स कमांडो, ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर सहित कई लड़ाकू जेट विमान शामिल थे, लेकिन हम वहां थे ही नहीं. कैंटली कहते हैं, मुझे भी अन्य बंधकों की तरह मार दिया जाएगा. मैं तब तक ही बोल पाऊंगा, जब तक आतंकी मुझे जीवित रखेंगे. कैंटली को दो साल पहले सीरिया में बंधक बना लिया गया था. ग़ौरतलब है कि ब्रिटिश बंधक का यह नया वीडियो अमेरिकी बंधक पीटर कासिग की हत्या के कुछ ही दिनों बाद सामने आया है.
संयुक्त अरब अमीरात : लश्कर, आईएम आतंकी संगठन घोषित
संयुक्त अरब अमीरात ने लश्कर-ए-तैयबा एवं इंडियन मुजाहिदीन समेत 74 संगठनों को आतंकवादी संस्थान घोषित किया है. आतंकवाद निरोधक क़ानून के तहत घोषित इस सूची में तालिबान, अलकायदा, दाओश एवं मुस्लिम ब्रदरहुड नामक आतंकी संगठन भी शामिल हैं. संयुक्त अरब अमीरात का आतंकवाद निरोधक क़ानून वहां की सरकार को आतंकी संगठनों की सूची प्रकाशित करने का अधिकार देता है. अब किसी व्यक्ति या समूह द्वारा उक्त सूची में शामिल आतंकी संगठनों से संपर्क करना, उनकी गतिविधियों में शामिल होना और उन्हें किसी भी तरह का सहयोग देना अपराध माना जाएगा. अगर कोई आतंकी संगठनों से संपर्क रखता है और उनके हितों के लिए काम करता है, तो उसे उम्रकैद की सजा दी जाएगी, जबकि आतंकी वारदात करने पर सजा-ए-मौत दी जाएगी.