भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया है कि उसका एजेंडा क्या है? कांग्रेस बात तो सही करती रही, लेकिन उसने काम ग़लत किए और आज उसी का नतीज़ा वह झेल रही है. भारतीय जनता पार्टी इस सबके लिए दु:खी होती भी नहीं दिख रही है. अगर भाजपा यह कहे कि अमीरों को और अमीर होने दो, व्यवसायी समुदाय को आगे बढ़ने दो, क्योंकि इससे ग़रीबों का भला होगा, तो आपको आश्चर्य नहीं करना चाहिए.
विश्व युद्ध से पहले अमेरिका की आर्थिक स्थिति कैसी थी, इसे जानना बेहद दिलचस्प होगा. विश्व युद्ध से पहले अमेरिका की आय और संपदा वहां के चंद मुट्ठी भर लोगों के हाथों में सिमटी हुई थी. दूसरी तऱफ बहुसंख्यक लोग इससे वंचित थे. विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी नागरिकों के मन में यह धारणा व्याप्त हुई कि यह सब ग़लत है. ऐसे लोग, जो अपना जीवन जीने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उन्हें अपनी आय के ज़रिये आनंद उठाने का मौक़ा मिलना चाहिए. वे इस योग्य बन सकें, ताकि एक अच्छी ज़िंदगी जी सकें. उस हिसाब से लोगों पर कर लगने चाहिए, ताकि कर उन पर बोझ न बन सके. उस समय एक विचार सामने आया कि जो लोग अमीर हैं, उन पर ज़्यादा और जो लोग ग़रीब हैं, उन पर औसत कर लगाया जाए.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में कमोबेश इसी तरह की व्यवस्था लागू हुई. यह व्यवस्था सत्तर के दशक तक क़ायम रही, लेकिन उसके बाद इसमें का़फी उलट-फेर हो गया. जब रोनाल्ड रीगन सत्ता में आए, तो उन्होंने यह पूरी व्यवस्था ही बदल कर रख दी. उसके बाद पिछले पैंतीस वर्षों में अमेरिका में जो हुआ, वह सबके सामने है. बीते पैंतीस वर्षों के दौरान अमेरिका में धनी लोग और अधिक धनी हुए, वहीं दूसरी तऱफ कामगार तबके लगातार संघर्ष कर रहे हैं. नतीजतन, अमेरिका की महज़ एक फीसद आबादी ही देश की ताक़त, संपदा, धन और अपनी आय का आनंद उठा रही है. वहीं देश की बाकी जनता अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है. इस ग़ैर-बराबरी के ख़िला़फ अब अमेरिका में भी लोग आवाज़ उठा रहे हैं, लेकिन वहां की सरकार कुछ नहीं कर पा रही है.
रिपब्लिकन तो घोषित तौर पर अमीरों की पार्टी है और डेमोक्रेट्स चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. ओबामा का़फी प्रयासों के बाद भी इस समस्या का समाधान निकाल पाने में नाक़ाम साबित हो रहे हैं. इसके बरअक्स हम लोग यह सोच रहे हैं कि हम भारत में कुछ अच्छा कर सकते हैं, वह भी भाजपा की सरकार में. भाजपा शुरू से ही प्रो-रिच पार्टी रही है,
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में कमोबेश इसी तरह की व्यवस्था लागू हुई. यह व्यवस्था सत्तर के दशक तक क़ायम रही, लेकिन उसके बाद इसमें का़फी उलट-फेर हो गया. जब रोनाल्ड रीगन सत्ता में आए, तो उन्होंने यह पूरी व्यवस्था ही बदल कर रख दी. उसके बाद पिछले पैंतीस वर्षों में अमेरिका में जो हुआ, वह सबके सामने है. बीते पैंतीस वर्षों के दौरान अमेरिका में धनी लोग और अधिक धनी हुए, वहीं दूसरी तऱफ कामगार तबके लगातार संघर्ष कर रहे हैं. नतीजतन, अमेरिका की महज़ एक फीसद आबादी ही देश की ताक़त, संपदा, धन और अपनी आय का आनंद उठा रही है. वहीं देश की बाकी जनता अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है.
प्रो-ट्रेड और प्रो-इंडस्ट्री पार्टी रही है. अर्थशास्त्री भी बता रहे हैं कि भारत में महज़ एक फीसद आबादी का नौ फीसद आय पर नियंत्रण है. इस एक में से दशमलव एक फीसद लोग ही इस नौ फीसद आय के नब्बे फीसद हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं. भारत में आर्थिक ताक़त और धन का संकेंद्रण (जमाव) अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है. यदि नई सरकार भी प्रो-इंडस्ट्री रही, तो मध्य वर्ग वहीं रह जाएगा, जहां अभी है. यानी नौकरी के लिए संघर्ष, बसों एवं ट्रेनों में धक्के खाते हुए यात्रा करना, बग़ैर क़र्ज़ के अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा न दिला पाना और बिना क़र्ज़ लिए अच्छे ढंग से इलाज़ न करा पाना आदि. ऐसे में जीवन स्तर सुधारने की बात तो ही भूल जाइए.
अगर यह स्थिति बनती है, तो अमीर और अमीर होते जाएंगे. यहां सवाल यह है कि क्या हम लोग एक बार फिर से पूंजीवाद के युग में आ गए हैं? भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया है कि उसका एजेंडा क्या है? कांग्रेस बात तो सही करती रही, लेकिन उसने काम ग़लत किए और आज उसी का नतीज़ा वह झेल रही है. भारतीय जनता पार्टी इस सबके लिए दु:खी होती भी नहीं दिख रही है. अगर भाजपा यह कहे कि अमीरों को और अमीर होने दो, व्यवसायी समुदाय को आगे बढ़ने दो, क्योंकि इससे ग़रीबों का भला होगा, तो आपको आश्चर्य नहीं करना चाहिए. दरअसल, यह दलील कई त्रुटियों से भरी हुई है. जब अमेरिका ऐसा नहीं कर सकता है, तो मैं नहीं समझता कि भारत ऐसा कर पाएगा.