उत्तर प्रदेश में गायब पाकिस्तानियों की तलाश पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है, लेकिन इससे ब़ेखबर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भारत और पाकिस्तान के बीच अमन के सात रंग तलाश रहे हैं. मुख्यमंत्री जिस समय लखनऊ में अमन के सात रंग के तहत भारत-पाक जीवन पद्धति से जुड़ी प्रदर्शनी और खान-पान मेले का उद्घाटन कर रहे थे, क़रीब-क़रीब उसी समय उत्तर प्रदेश आकर गायब हुए पाकिस्तानियों की तलाशी के खुफिया संदेश जारी हो रहे थे. खुफिया एजेंसियां यह मानती हैं कि भारत में बदअमनी फैलाने के इरादे से ही यहां आने वाले पाकिस्तानी संदेहास्पद तरीके से गायब हो जा रहे हैं. भारत आकर गायब हो जाने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या तो बहुत ज़्यादा है, लेकिन उत्तर प्रदेश की खूबी यह है कि यहां गायब होने वाले पाकिस्तानियों को खोज निकालने के प्रति राज्य पुलिस और स्थानीय खुफिया एजेंसियों को तनिक भी चिंता नहीं रहती. राजनीतिक तुष्टिकरण की नीति का असर पुलिस और खुफिया एजेंसियों के कामकाज पर भी सिर चढ़कर बोल रहा है. देश भर में गायब होने वाले पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या हज़ारों में है, जबकि उत्तर प्रदेश में तक़रीबन पांच सौ पाकिस्तानी नागरिक लापता हैं. राजधानी लखनऊ स्थित स्थानीय खुफिया इकाई (एलआईयू) के एसपी अजय कुमार0 रटा-रटाया संवाद कहते हैं कि लापता पाकिस्तानियों की तलाश की जा रही है और इसके लिए स्थानीय पुलिस की भी मदद ली जा रही है. राजधानी की सुरक्षा को लेकर एलआईयू पूरी तरह से मुस्तैद है. पुलिस अधिकारी बदलते रहते हैं, लेकिन संवाद वही रहता है, जिसे अर्से से सुना जा रहा है. इसी संवाद के समानांतर लखनऊ समेत अन्य कई शहरों में बांग्लादेशियों की एक पूरी फौज आकर बस गई है. सतर्क पुलिस व्यवस्था, चौकस खुफिया एजेंसियों और चाक-चौबंद शासन के बीच अकेले लखनऊ में ही लाखों बांग्लादेशी बाकायदा भारतीय नागरिक बनकर बस चुके हैं. उक्त अवैध लोग राजनीतिक दलों के लिए वैध मतदाता हैं, उनके पास बाकायदा बने हुए मतदाता पहचान-पत्र हैं, राशनकार्ड हैं और अब तो आधार कार्ड भी हैं. लखनऊ में एक लाख संदिग्ध बांग्लादेशियों के बसने के मामले की अर्सा पहले जांच भी हुई थी. उनमें से कई ने खुद को असम का रहने वाला बताया था. जांच के लिए टीमें असम भी गईं, जहां जानकारी मिली कि लखनऊ में रह रहे सात सौ बांग्लादेशियों ने असम में प्रवेश कर वहां की नागरिकता हासिल की और फिर लखनऊ पहुंच गए. उन्होंने लखनऊ में भी राशनकार्ड व मतदाता पहचान-पत्र समेत अन्य दस्तावेज तैयार करा लिए. वे आराम से अब भी लखनऊ में रह रहे हैं, पुलिस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाई. यही हाल धीरे-धीरे पाकिस्तानियों के लिए भी हो जाएगा. पाकिस्तान से भारत की तबाही की सारी व्यवस्थाएं किए जाने के ़खतरे के बावजूद उत्तर प्रदेश की खुफिया एजेंसियों और नागरिकों पर भी कोई असर नहीं पड़ रहा. एजेंसियां आंख मूंदे रहती हैं और स्थानीय नागरिक पाकिस्तानियों को पलकों पर बैठाए और घरों में बसाए रखते हैं. नियम यह है कि किसी भी पाकिस्तानी के आने से पहले ही एलआईयू उसकी बाकायदा छानबीन करती है कि वह जिस जगह आना चाह रहा है, वहां कोई संदिग्ध व्यक्ति तो नहीं है. सत्यापन के बाद ही पाकिस्तानी को संबद्ध पते पर आने की मंजूरी मिलती है. जिस थाना क्षेत्र में पाकिस्तानी को आना होता है, वहां का भी ब्यौरा दर्ज किया जाता है. यहां आने के बाद पाकिस्तानी नागरिक को सबसे पहले एलआईयू में अपना ब्यौरा दर्ज कराना होता है. इसके बाद एलआईयू महीने में कई बार उसके यहां होने की पुष्टि करती है. किसी भी पाकिस्तानी के पासपोर्ट का विवरण और वीजा की अवधि का पूरा खाका एलआईयू के पास होता है. पाकिस्तानी नागरिक जिस रिश्तेदार या परिचित के यहां रुकता है, उसका भी पूरा विवरण एलआईयू और स्थानीय पुलिस के पास होता है. लेकिन, विडंबना यह है कि नियम होते हुए भी खुद पुलिस और खुफिया एजेंसियां उसकी परवाह नहीं करतीं. न कभी ऐसे पाकिस्तानी नागरिक की खोज-़खबर ली जाती है और न उसके लापता होने पर संबंधित रिश्तेदार या परिचित को ही उसकी फरारी के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. इस लचर सुरक्षा व्यवस्था के कारण सैकड़ों पाकिस्तानी उत्तर प्रदेश आकर लापता हो गए और यह सिलसिला जारी है. एलआईयू या पुलिस ने कभी इस बात की तहकीकात नहीं की कि वीजा अवधि कब पूरी हो गई और संबंधित विदेशी नागरिक यहां से रवाना हो गया कि नहीं. एलआईयू या स्थानीय पुलिस को अपनी प्रतिष्ठा की भी चिंता नहीं कि उसके अस्तित्व को ठेंगा दिखाकर दुश्मन देश का नागरिक यहां आकर गुम हो जाता है और यहीं रह रहा होता है. लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में अपने एक रिश्तेदार के घर आया पाकिस्तानी नागरिक शम्सुद्दीन लापता हो गया है. वह पाकिस्तान के कराची का रहने वाला है. यहां छह महीने तक तो उसका पता चलता रहा, फिर अचानक वह गायब हो गया. पुलिस या खुफिया एजेंसियों ने भारतीय रिश्तेदार को भी इस फरारी के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया. अब पुलिस या खुफिया एजेंसियां इस बात की गारंटी नहीं दे सकती कि कराची निवासी शम्शुद्दीन एक अच्छा व्यक्ति था और भारत में लापता होकर वह समाज-सेवा कर रहा है. चौक इलाके में अपने रिश्तेदार के घर आए पेशावर के रफीउद्दीन ने भी यही किया. खुफिया विभाग का कहना है कि दो साल तक सत्यापन किया जाता रहा, लेकिन इसके बाद रफीउद्दीन का सुराग नहीं मिला. लापता रफीउद्दीन भारत में गायब रहकर क्या गुल खिला रहा होगा, इसके बारे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है. प्रदेश में जारी अलर्ट पर हरकत में आई खुफिया एजेंसियों के सामने कई चौंकाने वाले तथ्य बाहर आए हैं.
पिछले कुछ अर्से में राजधानी लखनऊ आए तक़रीबन डेढ़ सौ पाकिस्तानियों में से 52 पाकिस्तानी लंबी अवधि के वीजा पर रह रहे हैं. स्थानीय खुफिया इकाई का कहना है कि उन पर निगरानी रखी जा रही है. लेकिन, जो 25 पाकिस्तानी गायब हो गए, वे निगाह में क्यों नहीं थे?
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केवल लखनऊ में पिछले कुछ वर्षों में डेढ़ सौ से अधिक पाकिस्तानी आए और उनमें से क़रीब 25 रहस्यमय तरीके से लापता हो गए. उनके पाकिस्तान वापस लौटने की कोई सूचना खुफिया एजेंसियों के पास नहीं है. एजेंसियां कहती हैं कि फरार पाकिस्तानियों की तलाश में वे जुट गई हैं और इसमें पुलिस की भी मदद ली जा रही है, लेकिन इस कथन में पूर्ण सत्यता का घोर अभाव है. खुफिया एजेंसियों के लोग यह भी कहते हैं कि राजधानी लखनऊ में रहने वाले 52 पाकिस्तानियों पर नज़र रखी जा रही है, जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं. चार संदिग्ध आतंकी भी लखनऊ में रह रहे हैं. इनमें से हसनगंज खदरा के मशालची टोला में रहने वाले एक व्यक्ति को दिल्ली एटीएस ने गिरफ्तार किया था. वह पिछले दिनों जेल से रिहा होकर फिर लखनऊ आया है. उसने खदरा स्थित अपना मकान बेचकर मड़ियांव क्षेत्र में ठिकाना बनाया है. ऐसे ही तीन अन्य संदिग्धों की भी निगरानी की जा रही है. लखनऊ जेल में बंद कुछ संदिग्ध आतंकियों के मुलाकातियों पर भी नज़र रखी जा रही है. लखनऊ को सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील ज़िलों में रखा गया है. यहां आने-जाने वाले हर विदेशी की जानकारी भी जुटाई जा रही है. पिछले कुछ अर्से में राजधानी लखनऊ आए तक़रीबन डेढ़ सौ पाकिस्तानियों में से 52 पाकिस्तानी लंबी अवधि के वीजा पर रह रहे हैं. स्थानीय खुफिया इकाई का कहना है कि उन पर निगरानी रखी जा रही है. लेकिन, जो 25 पाकिस्तानी गायब हो गए, वे निगाह में क्यों नहीं थे? इस सवाल का जवाब एलआईयू के पास नहीं है. आधिकारिक तौर पर बताया गया कि पाकिस्तान से यहां आकर लापता पाकिस्तानियों के आतंकी गतिविधियों में शामिल होने की आशंका है. पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश आतंकवादियों की शरणस्थली रहा. अब लखनऊ भी उसमें शुमार हो गया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से नौ पाकिस्तानियों को लापता हुए अर्सा हो गया. इसी तरह रामपुर से आठ, गाज़ियाबाद से तीन, हापुड़ से छह, गौतमबुद्धनगर एवं बागपत से एक-एक और बुलंदशहर से तीन पाकिस्तानी गायब हैं. सभी संबद्ध ज़िलाधिकारियों को गायब पाकिस्तानियों को सर्विलांस के ज़रिये ढूंढने के निर्देश दिए गए हैं. ऐसे लोगों पर भी नज़र रखी जा रही है, जो देखते-देखते धनी हो गए हैं. मदरसों और उन कश्मीरी छात्रों पर भी नज़र रखने के लिए कहा गया है, जो इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट कॉलेजों में पढ़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान के क्षेत्र रामपुर में ऐसे सैकड़ों परिवार मिल जाएंगे, जिनकी रिश्तेदारी पाकिस्तान में है. देश विभाजन के वक्त भी रामपुर से ढेर सारे लोग पाकिस्तान चले गए थे. रामपुर के कई घरों में पाकिस्तानी बहुएं हैं, तो कई दामाद पाकिस्तानी हैं. हर साल यहां से सैकड़ों की संख्या में लोग पाकिस्तान जाते हैं और वहां से आते हैं. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान से रामपुर आए आठ नागरिक गायब हो चुके हैं. खुफिया अधिकारी इसे पुराना मामला बताकर टालने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनके (पाक नागरिक) गायब होने के संबंध में संतोषजनक क़ानूनी जवाब नहीं दे पाते. दूसरी तऱफ का नज़ारा और भी विचित्र है. उत्तर प्रदेश सरकार की गतिविधियां देखकर यह नहीं लगता कि दुश्मन देश के नागरिकों के संदेहास्पद तरीके से प्रदेश में गुम हो जाने के बारे में उसे कोई चिंता है. प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पिछले दिनों लखनऊ स्थित पर्यटन भवन में अमन के सात रंग कार्यक्रम में बड़े उत्साह से शरीक हुए और उन्होंने इंडो-पाक लाइफ स्टाइल एक्जिबिशन और फूड फेस्टिवल का उद्घाटन किया. अखिलेश ने कहा कि दो देशों के लोगों के आपसी जुड़ाव से रिश्ता मजबूत होता है, इन रिश्तों की डोर से संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता है, कारोबारी रिश्ता भी बनता है, सरकारें भी परस्पर संवाद करती हैं. इसलिए रिश्तों को स्थायित्व और मजबूती प्रदान करने के लिए लोगों का एक-दूसरे से जुड़ना ज़रूरी है. व्यवहारिकता से दूर किताबी बातें कहते हुए अखिलेश ने ऐसे मौक़े पर यह कहना उचित नहीं समझा कि रिश्तों की इसी डोर का इस्तेमाल कर पाकिस्तान भारत में बारूद के बीज बोता रहा है और उसकी यह हरकत आज भी जारी है.
भारत में भुगत रहे पाकिस्तानी हिंदू
एक तऱफ भारत आकर पाकिस्तानी मुस्लिम यहां गुम होकर बड़े आराम की ज़िंदगी जी रहे हैं, अवैध रूप से भारत आए बांग्लादेशी वैध हो चुके हैं, लेकिन पाकिस्तान में धार्मिक अत्याचार और जबरन धर्मांतरण से त्रस्त जो पाकिस्तानी हिंदू भारत आए, वे यहां आकर भुगत रहे हैं. पाकिस्तान में अत्यंत अल्पसंख्यक समुदाय में तब्दील हो चुके हिंदुओं के साथ हो रहे बर्बर अत्याचार के कारण वे शरण लेने के लिए किसी तरह भाग कर भारत आते हैं, लेकिन यहां उनके साथ शासनिक-प्रशासनिक बदसलूकियां होती हैं, उन्हें शरणार्थी शिविरों में अल्प अवधि के लिए रोका जाता है और बदहाली भरी अवधि काटने के बाद जबरन पाकिस्तान भेज दिया जाता है. धर्मनिरपेक्षता पर बात-बहादुरी करने वाला कोई भी नेता पाकिस्तानी हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के ़िखला़फ बोलने के लिए आगे नहीं आता और पाकिस्तानी मुसलमानों के यहां आकर लापता हो जाने के मसले पर शातिराना चुप्पी साधे रहता है. अत्याचार से विवश होकर भागे पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने का मसला भी अर्से से कांग्रेस के पेच में फंसा रहा है और अब लाल-फीताशाही की पेच में फंसा है. गुजरात सरकार की एक पहल पर अब जाकर केंद्र सरकार ने गुजरात या कुछ अन्य राज्यों में रह रहे पाकिस्तानी हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने पर सहमति दे दी है. पहले मौजूदा सरकार ने ही उनकी वीजा अवधि बढ़ाने से इंकार कर दिया था. अब जब केंद्र ने सहमति दे दी, तो उसे नौकरशाही के जाल में उलझाया जा रहा है. अब यह सात साल के प्रवास का प्रावधान डाल दिया गया है कि जिन्हें भारत में रहते हुए सात साल से अधिक हो चुके हैं, उन्हें ही भारत की नागरिकता देने पर विचार किया जाएगा. आप समझ सकते हैं कि पाकिस्तान में त्रासदी भोग रहे अल्पसंख्यकों का क्या हश्र हो रहा है. पाकिस्तान में कट्टरपंथी धार्मिक अत्याचार और जबरन धर्मांतरण के कारण सैकड़ों हिंदू परिवारों ने भारत में शरण ले रखी है. उन्हें विभिन्न शरणार्थी शिविरों में रखा गया है. कराची से आए हिंदू शरणार्थी राजकुमार जेसरानी का कहना है कि उनकी नागरिकता को लेकर सरकार और सरकारी तंत्र बिल्कुल उदासीन है. जेसरानी पेशे से डॉक्टर हैं, लेकिन विडंबना देखिए, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के कारण उन्हें भाग कर भारत आना पड़ा, लेकिन यहां उनकी कोई सुध नहीं ले रहा. डॉ. जेसरानी कहते हैं कि जो लोग भारत के क़ानून का सम्मान करते हैं और क़ानूनी तौर पर नागरिकता चाहते हैं, उनकी राह में तरह-तरह के रोड़े अटकाए जा रहे हैं, लेकिन जो पाकिस्तानी मुस्लिम भारत आकर गायब हो जाता है, उसकी सरकार को कोई फिक्र नहीं रहती.
भारत पर आजम का बड़ा एहसान…
आजम खान के भारत विरोधी बयानों पर भाजपा सांसद महंत आदित्य नाथ ने जब यह कहा कि आजम खान जैसे लोगों को पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए, तो बड़ा बवाल मचा था. इस पर कई बार मर्यादा की सीमाएं लांघकर आजम खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया कि मोदी उन्हें पाकिस्तान कब भेजेंगे. लेकिन, आज जब आजम खान खुद यह बोल रहे हैं कि विभाजन के समय पाकिस्तान न जाकर उन्होंने भारत पर एहसान किया, तो ऐसे बयान पर कोई सुगबुगाहट नहीं हो रही है. आजम खान ने पिछले दिनों मथुरा में आयोजित एक कार्यक्रम में महात्मा गांधी के कंधे पर सांप्रदायिक सियासत की बंदूक रखकर नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर धांय-धांय फायरिंग की. उन्होंने कहा कि वह और उनके समुदाय के अन्य लोग महात्मा गांधी को ही देखकर भारत में रुक गए और जिन्ना की बात नहीं मानी. आजम ने यह नहीं कहा कि वह और उनके समुदाय के अन्य लोगों के लिए भारत अपना देश और अपना घर था, जिसके कारण वे पाकिस्तान नहीं गए. आजम खान उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्यमंत्री हैं और वह विधानसभा में आधिकारिक तौर पर बता चुके हैं कि उत्तर प्रदेश के 34 ज़िलों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई सक्रिय है. इन ज़िलों में मेरठ भी शामिल है, जिसके आजम खान प्रभारी मंत्री हैं. मेरठ, कानपुर, आगरा, मथुरा, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और हापुड़ को पाकिस्तानी गतिविधियों के कारण अत्यंत संवेदनशील ज़िलों में शुमार किया गया है.