नीतीश कुमार के इस्ती़फे के बाद जीतनराम मांझी ने प्रदेश की कमान संभाली. बतौर मुख्यमंत्री उनके समक्ष क्या चुनौतियां हैं. साथ ही विकास को लेकर उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं, इसी मसले पर चौथी दुनिया संवाददाता अशरफ़ अस्थानवी ने मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी से बातचीत की, प्रस्तुत है उसके मुख्य अंश…
बतौर मुख्यमंत्री आपके नाम की चर्चा दूर-दूर तक नहीं थी, लेकिन अचानक आपको विधायक दल का नेता चुना गया. इस पूरे घटनाक्रम को किस रूप में आप देखते हैं?
भारतीय लोकतंत्र की यह एक विशेषता है, क्योंकि इसमें कोई शासक नहीं होता. प्रजातंत्र में सभी लोगों के लिए समान अवसर उपलब्ध हैं. अगर आप सार्वजनिक जीवन में ईमानदार और ज़िम्मेदार हैं, तो आपको देश और समाज की सेवा करने का अवसर मिलना स्वभाविक है. राज्य का मुख्यमंत्री बनना मेरे लिए वाकई हर्ष का विषय है. इसके लिए मैं समस्त प्रदेश वासियों का आभार प्रकट करता हूं. बिहार सामाजिक न्याय की भूमि रही है और एक महादलित समुदाय के व्यक्ति का मुख्यमंत्री बनना लोकतंत्र के प्रति आम जनों की आस्था को मज़बूत करता है. एक मुख्यमंत्री के रूप में हमारे ऊपर कई बड़ी ज़िम्मेदारियां है.
कहा जाता है कि आप एक कमज़ोर मुख्यमंत्री हैं, इसलिए राज्य के प्रशासनिक अधिकारी आपके आदेशों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं?
इसमें तनिक भी सच्चाई नहीं है. किसी ने आपको ग़लत जानकारी दी है. मुख्यमंत्री की असली तक जनता, जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि और संविधान होता है. अधिकारियों को जनता द्वारा चुनी गई सरकार के आदेशों का पालन करना होता है. राज्य में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति अच्छी है और सभी प्रशासनिक अधिकारी पूरी ज़िम्मेदारी से अपना काम कर रहे हैं. ऐसा कोई अधिकारी नहीं है, जो मेरे आदेश का पालन नहीं करता हो या मेरा सहयोग न करता हो.
आपको मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद जदयू में काफ़ी असंतोष देखा जा रहा है. कई विधायक बाग़ी तेवर अपनाए हुए हैं. इस स्थिति में आपकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी, इसमें भी संदेह है?
जदयू के विधायक पूरी तरह एकजुट हैं, इसलिए सरकार को कोई ख़तरा नहीं है. हालांकि भाजपा की ओर से सरकार को अस्थिर करने की असफल कोशिशें ज़रूर हो रही है. बावजूद इसके सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और अगले साल अक्टूबर-नवंबर में ही विधानसभा के चुनाव होंगे. मध्यावधि चुनाव का तो प्रश्न ही नहीं उठता. बेशक, भाजपा सरकार को अस्थिर कर मध्यावधि चुनाव की संभावना तलाश रही है. मेरी सरकार को कांग्रेस, राजद और सीपीआई का बिना शर्त समर्थन हासिल है. जदयू को यह समर्थन धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मिला है, जिसकी हिफ़ाजत करना हमारी सरकार की प्राथमिकता है. जहां तक पार्टी में असंतोष का सवाल है, तो यह लगभग सभी दलों में होता है. जदयू के शीर्ष नेता पार्टी के भीतर पैदा हो रहे असंतोष की वजह तलाश रहे हैं.
लोकतंत्र की मज़बूती में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है. जनप्रतिनिधियों की तरह अधिकारियों का भी काफ़ी बहुत महत्व है. योजनाओं को लागू करने की ज़िम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों पर होती है, इसलिए दोनों के बीच बेहतर सामंजस्य होना ज़रूरी है. जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों के अपने-अपने अधिकार क्षेत्र हैं, इसलिए दोनों के बीच आपसी तालमेल ज़रूरी है.
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राजद, कांग्रेस और सीपीआई ने आपकी सरकार को समर्थन दिया है, क्या यह उम्मीद की जानी चाहिए कि विधानसभा चुनाव आप साथ मिलकर लड़ेंगे?
काफ़ी महत्वपूर्ण सवाल आपने पूछा है, क्योंकि इस समय देश की हालत सही नहीं है. फ़िरकापरस्त ताक़तें इस कोशिश में हैं कि देश का माहौल ख़राब किया जाए. लिहाज़ा भाजपा जैसी सांप्रदायिक पार्टी के ख़िलाफ़ देश की धर्मनिरपेक्ष शक्तियों को एक साथ आना चाहिए. मेरे ख्याल से यह देश आज दोराहे पर खड़ा है. देशभक्तों को यह तय करना होगा कि यह देश गांधीवाद के रास्ते पर चलेगा या गोडसे के रास्ते पर. राष्ट्रीय स्तर
ग़ैर-कांग्रेस और ग़ैर वाममोर्चे का दौर अब ख़त्म हो चुका है. अब स़िर्फ एक ही मुद्दा है सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता, इसलिए सभी धर्मनिरपेक्ष ताक़तों को एकजुट होकर इन शक्तियों से मुक़ाबला करना होगा. बिहार में धर्मनिरपेक्ष ताक़तों ने जिस एकता का परिचय दिया है, वह आगामी विधानसभा चुनाव में भी जारी रहेगा.
डेढ़ साल के बाद विधानसभा के चुनाव होंगे, ऐसे में विकास के प्रति आपकी मुख्य प्राथमिकताएं क्या होंगी?
हमारी सरकार की प्राथमिकताएं वही होंगी, जो नीतीश सरकार की थीं. बिहार के विकास के प्रति हमारी सरकार गंभीर है. प्रदेश की जनता को स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध हों, इसलिए हम सतत प्रयत्नशील हैं. अल्पसंख्यकों और समाज के वंचित समुदाय के लिए हमारी सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं चलाई हुई हैं, इसे और बेहतर बनाने की कोशिश की जाएगी. बिहार को विशेष राज्य का दर्ज़ा दिलाने की जो लड़ाई नीतीश सरकार ने शुरू की थी, उसे जारी रखा जाएगा.
विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि जदयू सरकार में अफसरशाही बढ़ा है, जिससे आम लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं?
लोकतंत्र की मज़बूती में प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है. जनप्रतिनिधियों की तरह अधिकारियों का भी काफ़ी बहुत महत्व है. योजनाओं को लागू करने की ज़िम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों पर होती है, इसलिए दोनों के बीच बेहतर सामंजस्य होना ज़रूरी है. जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारियों के अपने-अपने अधिकार क्षेत्र हैं, इसलिए दोनों के बीच आपसी तालमेल ज़रूरी है.
बिहार सरकार के अधीन कई अल्पसंख्यक संस्थानों की हालत दयनीय है. इसे लेकर अल्पसंख्यकों में सरकार के प्रति नाराज़गी है. आपकी सरकार इन संस्थानों कैसे बेहतर बनाएगी?
अल्पसंख्यक संस्थानों की बेहतरी के लिए हमारी सरकार ज़ल्द ही एक समीक्षात्मक बैठक करेगी. जिन आयोगों, समितियों और बोर्डों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उसमें शीघ्र ही ईमानदार और ज़िम्मेदार लोगों की नियुक्ति की जाएगी. एक महीने के भीतर मौजूदा सभी समितियों, आयोगों और कॉरपोरेशनों को पुनर्गठित किया जाएगा, ताकि हमारी सरकार के प्रति अल्पसंख्यकों का यकीन पहले की तरह क़ायम रहे.
सरकार ने पिछले दिनों उर्दू डायरेक्टोरेट को वित्तीय और प्रबंधन अधिकार तो सौंप दिए, लेकिन एक पूर्णकालिक उर्दू डायरेक्टर की नियुक्ति अब तक नहीं की जा सकी है. आख़िर इसकी क्या वजह है?
उर्दू डायरेक्टोरेट को वित्तीय और प्रबंधन का अधिकार सौंपे जाने के फौैरन बाद लोकसभा चुनाव की तारीख़ों का ऐलान हो गया. आदर्श चुनाव आचारसंहिता लागू होने की वजह से डायरेक्टर की नियुक्ति नहीं हो सकी, लेकिन हमारी सरकार बहुत ज़ल्द इस बारे में फैसला लेगी.
राज्य के अधिकांश सरकारी विद्यालयों में उर्दू के शिक्षक नहीं हैं, जबकि सरकार ने हर स्कूल में उर्दू यूनिट स्थापित करने का वादा किया था. इसमें हो रही देरी की क्या वजह है?
बिहार के प्रत्येक विद्यालय में उर्दू यूनिट की स्थापना करना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. इसे प्रभावी बनाने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है. हमारी सरकार इस काम में तेज़ी लाएगी, ताकि इस लक्ष्य की पूर्ति की जा सके.
आप प्रदेश की जनता को क्या संदेश देना चाहेंगेे?
धर्मनिरपेक्षता भारत की पहचान है और इसे बरक़रार रखना हर भारतीय का कर्तव्य है. मैं अपनी ओर से प्रदेश की जनता से अपनी करना चाहता हूं कि वे इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब का सम्मान करें. धर्मनिरपेक्षता ही हमारे लोकतंत्र की आत्मा है, इसलिए समस्त जनता को इसकी मज़बूती पर ध्यान देना चाहिए.