jaat reservationऑल इंडिया जाट आरक्षण संघर्ष समिति के  तत्वावधान में जाटों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर 12 फरवरी से हवा सिंह सांगवान के नेतृत्व में एक शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू हुआ. आंदोलन की शुरुआत हिसार जिले में दिल्ली-हिसार रेल लाइन को ब्लॉक कर दिया गया. गौरतलब है कि वर्ष 2012 में जाटों के आरक्षण के लिए यहां पहले भी आंदोलन हो चुका है. इस बार सांगवान जाटों के लिए आरक्षण के साथ-साथ कुरुक्षेत्र से भाजपा संसद राज कुमार सैनी पर भी कार्रवाई की मांग कर रहे थे. राज कुमार सैनी जाटों के आरक्षण का विरोध करते रहे हैं. सैनी का मानना है कि जाटों को आरक्षण देने से दूसरी पिछड़ी जातियों को नुकसान उठाना पड़ेगा. बहरहाल, जाट समुदाय से संबंध रखने वाले हरियाणा के कृषि मंत्री ओपी धनकड़ के आश्वासन पर (कि जाट आरक्षण पर 31 मार्च तक कोई न कोई फैसला हो जाएगा) 13 फरवरी की रात को सांगवान ने अपना ब्लॉकेड हटा लिया.

लेकिन उसके दूसरे दिन हालात उस समय तनावपूर्ण हो गए जब रोहतक जिले के सांपला में जाट स्वाभिमान रैली निकाली गई. इस रैली में रोहतक, झज्जर और सोनीपत के खाप प्रमुखों ने यह फैसला किया कि यदि सरकार निर्धारित समय अवधि में उनकी मांगे नहीं मानती है, तो छह अप्रैल को राज्य स्तरीय बैठक बुलाकर आगे की रणनीति पर फैसला किया जाएगा. लेकिन रैली में मौजूद नौजवान आरक्षण के मसले पर जल्द कार्रवाई चाह रहे थे. उन्होंने अपने नेताओं के आदेश को न मानते हुए पंजाब-दिल्ली हाईवे जाम कर दिया. अगले दो दिनों तक यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, लेकिन 18 फरवरी के बाद हालत बेक़ाबू  हो गए.

हिंसा की शुरुआत उस समय हुई जब रोहतक के कुछ वकील जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित राष्ट्रद्रोह के मामले में छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक जुलूस निकाल रहे थे. उसी समय 35 बिरादरी संघर्ष समिति के बैनर तले 200 के करीब व्यापारियों का एक जुलूस भी निकल रहा था. इस जुलूस ने वकीलों को जाट आरक्षण का समर्थक समझ कर उनपर हमला कर दिया.

जबकि व्यापारियों का कहना था कि वे जाट आंदोलन की वजह से ठप हो रहे व्यपार के संबंध में कलेक्टर को एक ज्ञापन देने जा रहे थे कि वकीलों ने उन्हें घेर लिया. एक दूसरी घटना जिसे हिंसा भड़काने का कारण बताया जा रहा है, वह है पंडित नेकी राम शर्मा गवर्मेंट कॉलेज, रोहतक में 18 फरवरी की रात ब्लॉकेड हटाने गई पुलिस पर पथराव और पुलिस द्वारा लाठी चार्ज. कॉलेज के छात्रों का आरोप है कि पुलिस हॉस्टल में घुस गई और उन्हें बुरी तरह से पीटा.

इस घटना के बाद दूसरे दिन आसपास के गांव से तकरीबन 5000 जाट, जिनमें अधिकतर छात्र थे, हिंसक प्रदर्शन करने लगे. भीड़ ने न सिर्फ यातायात बाधित करना शुरू किया बल्कि वाहनों और दुकानों को आग के हवाले करना भी शुरू कर दिया. रोहतक जिले के कलानौर में दुकानों के साथ-साथ एक पेट्रोल पंप जला दिया गया.

रोहतक से यह आग झज्जर जिले में भी पहुंच गई जहां उपद्रवियों ने पंजाबियों (भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से आये लोग) और सैनियों की दुकानों और सम्पतियों को जलाना शुरू कर दिया. इसमें सबसे भयावह स्थिति झज्जर के छावनी मोहल्ले की हुई जहां 21 फरवरी को उपद्रवियों ने हमला किया और सैनियों, नाइयों और दूसरी पिछड़ी जातियों की दुकानों, गाड़ियों और घरों को निशाना बनाना शुरू किया. यहां हुई हिंसा में तीन जाट, दो सैनी और एक-एक हलवाई और कुम्हार जाति के लोग मारे गए.

धीरे-धीरे यह आग राज्य के दूसरे क्षेत्रों में भी फैलने लगी पानीपत और सोनीपत में रेल की पटरियां उखाड़ दी गईं. जींद जिले के बुढ़ा-खेड़ा रेलवे स्टेशन के साथ-साथ राज्य के सात रेलवे स्टेशनों को आग के हवाले कर दिया गया. सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया, जिनमें हरियाणा रोडवेज़ की बसें भी शामिल थीं. राज्य के 10 ज़िले जाटों के आरक्षण के नाम पर हुए उपद्रव के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए.

तक़रीबन नौ दिनों तक चले इस हिंसात्मक जाट आरक्षण आंदोलन में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 30 लोग मारे गए और 200 से अधिक ज़ख्मी हुए. पुलिस के मुताबिक झज्जर में सबसे अधिक 13 लोग मारे गए, जबकि सोनीपत में आठ, रोहतक में पांच, जींद में दो और कैथल और हिसार में एक-एक लोगों की जानें गईं. लेकिन सबसे भयानक और शर्मसार करने वाली घटना सोनीपत के मुरथल में घटी, जिसमें एक चश्मदीद के मुताबिक घटना की रात तकरीबन 200 गाड़ियों का क़ाफिला एक साथ निकल रहा था, तभी मुरथल के सुखदेव ढाबा के पास उन गाड़ियों को रोक कर उनमें आग लगा दी गई और महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया.

हालांकि हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद इस घटना की जांच चल रही है और अभी तक एक महिला को छोड़ कर कोई दूसरी पीड़ित इस मामले को लेकर सामने नहीं आई है. इस सिलसिले में पुलिस की भूमिका भी शक के दायरे में आ गई है. कई लोग यह आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने पहले मामले को ऱफा-द़फा करने की कोशिश की, लेकिन हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद उसे कार्रवाई करनी पड़ी. अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन पूरे आंदोलन से उपजी हिंसा को रोकने में इसलिए नाकाम रहा, क्योंकि इसके पीछे गंदी राजनीति का खेल खेला जा रहा था? पुलिस ने कार्रवाई भी की.

पुलिस फायरिंग में प्रदर्शनकारी भी मारे गए. लेकिन यह हकीक़त है कि जब हिंसा पूरी तरह से भड़क गई तो पुलिस की नाकामी हर जगह देखने को मिली और बाद में सेना को बुलाना पड़ा. फिलहाल दंगाइयों पर कार्रवाई हो रही है. अब तक सात सौ से अधिक एफआईआर दर्ज की जा चुकी है और सौ से अधिक लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है.

दरअसल, शांति के बाद अब जाट और ग़ैर-जाट हिंसा के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. लेकिन जाट समुदाय फिलहाल बैकफुट पर नज़र आ रहा है. चुंकि हिंसा जाट समुदाय की तरफ से हुई थी, इसलिए वे अधिक रक्षात्मक हो गए हैं और इसके लिए सफाई दे रहे हैं. दूसरी तरफ ग़ैर-जाट जातियां महापंचायत बुला कर जाटों के सामाजिक बहिष्कार की बातें कर रही हैं.

पिछले दिनों गुड़गांव में 35 ग़ैर-जाट जातियों के 100 गांवों की महापंचायत हुई जिसमें जाटों के सामाजिक बहिष्कार का निर्णय लिया गया. इसमें महत्वपूर्ण बात यह रही कि पंचायत ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रति अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया. गुड़गांव के एक ग़ैर-जाट नेता ओमप्रकाश ने चौथी दुनिया को बताया कि पंचायत यह मानती है कि जाट आंदोलन आरक्षण के लिए कम और राजनीति से अधिक प्रेरित था. उनके मुताबिक यह आंदोलन एक ग़ैर-जाट मुख्यमंत्री को कमज़ोर करने की साज़िश के तौर पर शुरू हुआ था.

जाट आंदोलन का एक दूसरा पक्ष भी है. कुछ लोगों का मानना है कि आरक्षण की मांग के पीछे कुछ वास्तविक सामाजिक और आर्थिक कारण भी हैं. आम तौर यह पर माना जाता है कि हरियाणा में जाट एक समृद्ध जाति है और राज्य की सत्ता पर आम तौर पर उसी का वर्चस्व रहा है. सरकारी नौकरियों में भी उसकी
हिस्सेदारी कम नहीं है. लेकिन कुछ लोग जाटों की बेचैनी का कारण मौजूदा सरकार और पूर्व की सरकारों की दीर्घकालिक नीतियों की नाकामी बता रहे हैं. उनका कहना है कि हरियाणा में कृषि अब लाभदायक नहीं रही.

इसके सामाजिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. दरअसल कृषि पैदावार में कमी और मुना़फे की कमी ने नौजवानों को शहर की तरफ पलायन को मजबूर किया है. ज़ाहिर है कि हरियाणा में उद्योग धंधे भी लगे हैं, लेकिन यहां उद्यमी राज्य के लोगों को नौकरी देने के बजाय दूसरे राज्यों से आये सस्ते मजदूरों को प्राथमिकता देते हैं. राज्य के युवाओं के पास डिग्रियां तो हैं, लेकिन रोज़गार नहीं है. ऐसे में वे सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग करने लगे हैं.

जाटों के आरक्षण आंदोलन का कारण रोहतक यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर देशराज भी कृषि की असफलता को ही मानते हैं. उनका कहना है कि कृषि पैदावार कम होने और कृषि में कम मुना़फा कम होने के कारण लोगों का शहरों की तरफ पलायन हो रहा है जिसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ रही है. वह यह भी मानते हैं कि हिंसा जातीय आधार पर हुई है, जिसकी वजह से जातियों के बीच दूरी बढ़ी है.

राज्य जातीय स्तर पर इतना विभाजित कभी नहीं हुआ था. कुछ लोगों, जिनमें राज्य के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं, को आरक्षण आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा ने देश विभाजन के समय हुए दंगों की याद दिला दी. अब राज्य में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा रहे हैं. भजपा-कांग्रेस पर यह
आरोप लगा रही है कि उसने भीड़ को उकसा कर हिंसा पर आमादा किया. उनकी तरफ से यह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्‌डा के सलाहकार प्रोफेसर वीरेंद्र सिंह के कथित ऑडियो क्लिप का हवाला दिया जा रहा है जिसमें वह किसी से आंदोलन को तेज़ करने की बात करते सुने जा रहे हैं.

हिंसा के लिए एक दलील यह भी दी जा रही है कि मौजूदा भाजपा सरकार में राज्य की सबसे बड़ी जाति जाटों को उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है. कांग्रेस और जाट समर्थक भाजपा नेता कुरुक्षेत्र से सांसद राज कुमार सैनी पर जाटों को उकसाने का आरोप लगा रहे हैं. इस पूरे आंदोलन पर सरकार और विपक्ष की तरफ से जो प्रतिक्रियाएं आईं. वे साफ तौर पर राजनीतिक ऩफा-नुक़सान से प्रेरित थीं. जहां सरकार ने हिंसा को कुचलने के लिए ठोस क़दम नहीं उठाए वहीं विपक्ष, जिसकी नज़र जाट वोटरों पर है, ने भी सख्त निंदा नहीं की. कानून व्यवस्था की स्थिति सियासी ऩफा-नुक़सान का खेल बन गया.

रोहतक यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. रणबीर गुलीया का कहना है कि पूरा मामला राजनीति से प्रेरित था. उन्होंने भी भाजपा सांसद राज कुमार सैनी पर जाटों को उकसाने का आरोप लगाया. उनका कहना है कि भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ नहीं मिल पाएगा और राज्य में अलग-अलग जातियों के बीच फिर से भाईचारा क़ायम हो जाएगा. लेकिन हरियाणा की सियासत पर गहरी नज़र रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने इस संवाददाता को बताया कि कांग्रेस ने यह खेल शुरू किया था जिसमें बाद में भाजपा भी शामिल हो गई.

दोनों पार्टियों ने मिलकर जाट आंदोलन को हवा देने और इसे उकसाने का काम किया. उनका मानना है कि इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अधिक लाभ भाजपा को हुआ है, क्योंकि भले ही राज्य में चुनाव जीत गई हो, लेकिन यह जीत मोदी लहर की वजह से हासिल हुई थी. राज्य में पार्टी का कोई बड़ा जनाधार नहीं था. लेकिन इस जातीय हिंसा ने ग़ैर-जाट जातियों को भाजपा के पीछे खड़ा कर दिया है.

आर्थिक नुक़सान बेमिसाल

जाट आरक्षण आंदोलन और उससे भड़की हिंसा के कारण राज्य और देश को ज़बरदस्त आर्थिक नुकसान सहना पड़ा है. औद्योगिक संगठन पीएचडी चैम्बर ऑ़फ कॉमर्स के एक सर्वे के मुताबिक राज्य में भड़की हिंसा की वजह से हरियाणा के साथ-साथ उत्तर भारत को 34,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. मारुति सहित कई कंपनियों को इस आंदोलन के दौरान अपना प्रोडक्शन स्थगित रखना पड़ा. कच्चे माल की सप्लाई नहीं मिलने और तैयार माल बाहर भेजने में शामिल खतरे की वजह से राज्य के कपड़ा उद्योग को भी काफी नुक़सान उठाना पड़ा.

हिंसा की मार भुगत रहे व्यापारी राज्य छोड़कर किसी दूसरे राज्य में जाने की बात कर रहे हैं. यह अफवाह उड़ रही थी कि एक कंपनी हिंदुस्तान विद्युत लिमिटेड हरियाणा से अपना प्रोडक्शन समेट कर किसी और राज्य में जा रही है. लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि कंपनी किसी और वजह से दूसरे राज्य में जा रही है. व्यापारी पंकज गुप्ता ने कहा कि राज्य में व्यापारियों में ख़ौ़फ ज़रूर है, लेकिन वे अभी राज्य छोड़ कर जाने की नहीं सोच रहे हैं. उन्होंने यह ज़रूर माना कि जाट आंदोलन से भड़की हिंसा के कारण व्यापारी वर्ग बेचैन है. राज्य में 7-8 मार्च से हैप्पेनिंग हरियाणा ग्लोबल इन्वेस्टर सम्मिट होने वाला है.

इसमें देश और विदेश के उद्यमियों को शामिल होने का निमंत्रण दिया गया है. जिस तरह विदेशी अख़बारों ने हरियाणा के जाट आंदोलन से उपजे दंगों को कवर किया. उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस सम्मिट के प्रति विदेशियों में उतना उत्साह देखने को नहीं मिलेगा. अब तक सम्मेलन में भाग लेने के लिए हुए रजिस्ट्रेशन में विदेशी उद्यमियों की तादाद भारतीय उद्यमियों के मुकाबले बहुत कम है.

आंदोलन की वजह से राज्य सरकार ने 9 मार्च से शुरू होने वाले प्रवासी सम्मेलन को भी रद्द कर दिया है. प्रवासी सम्मेलन में मुख्यमंत्री हरियाणा से संबंध रखने वाले प्रवासी भारतीयों से एक-एक गांव गोद लेने का आह्वान करने वाले थे. ज़ाहिर है कि इस वजह से भी राज्य को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. बहरहाल, आर्थिक मामलों के कुछ जानकारों का कहना है कि हरियाणा आर्थिक तौर पर पांच वर्ष पीछे चला गया है.

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