संजय अस्थाना : चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में खेती-किसानी पर राष्ट्रीय विमर्श के बीच महाराष्ट्र में अहमदनगर के किसानों ने एलान किया है कि वे आगामी एक जून से अपनी उपज नहीं बेचेंगे.
मंडियो में उपज का वाजिब दाम न मिलने से निराश किसानों ने फैसला किया कि अब उतना ही खेत जोतेंगे जिससे उनकी निजी जरूरतें पूरी हो सके. बिक्री के लिए फल-सब्जी-अनाज पैदा नहीं करेंगे. दूरगामी प्रभाव वाला यह फैसला तीन अप्रैल को अहमदनगर की पुनताम्बा ग्राम सभा में हुई बैठक में किया गया.
बैठक में 40 गांवों के करीब दो हजार किसानों ने भाग लिया. बैठक में समस्याओं पर लंबे विचार-विमर्श के बाद संघर्ष की रूपरेखा तय की गयी. वक्ताओं ने किसानों की समस्याओं के प्रति सरकार के उदासीन रवैये की निंदा की. उन्होंने मांग की कि स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू की जाए. किसानों को लागत का दो गुना मूल्य दिया जाए, सौ फीसदी फसल बीमा, 60 वर्ष से अधिक उम्र वालों को पेंशन, ड्रिप सिंचाई के लिए सब्सिडी दी जाए.
सभा के आयोजक किसान मंच के मराठवाड़ा क्षेत्र के प्रभारी धनन्जय धोरडे पाटिल ने बताया कि उपरोक्त मांगों पर क्षेत्र के किसानों को लामबंद किया जा रहा है. अहमदनगर के अलावा औरंगाबाद, नासिक, पुणे, नांदेड़ आदि जिलों में किसान आंदोलित हैं. किसान मंच के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर किसानों से मिल रहे हैं. तीन अप्रैल को बैठक के बाद विभिन्न ग्राम पंचायतों में सभाएं हो चुकी हैं.
आन्दोलन के अगले चरण में एक मई को तहसील स्तर पर किसानों की बड़ी सभा होगी. तब तक मराठवाड़ा के अतिरिक्त विदर्भ और पश्चिमी महाराष्ट्र में भी किसानों को एकजूट करने का प्रयास किया जाएगा. श्री पाटिल ने विश्वास व्यक्त किया कि एक जून तक यह आन्दोलन पूरे राज्य में फैल जाएगा.
मौजूदा हालात में आन्दोलन को अपरिहार्य बताते हुए श्री पाटिल ने कहा कि किसानों की लगातार बदतर होती जा रही दशा के प्रति सरकार असंवेदनशील बनी हुई है. लगातार दो साल के सूखे के बाद पिछले वर्ष जब बारिश हुई तो बंपर पैदावार हुई. किसानों को उम्मीद थी कि खुशियां घर आएंगी, लेकिन हुआ उलटा. प्याज का उदाहरण देखिये, मंडी में जो दाम मिला वह मुनाफा तो छोड़िए, ट्रैक्टर का भाड़ा देने के लिए भी पर्याप्त नहीं था. नतीजा हुआ कि किसान निराशा व अवसाद में चला गया. यही वजह है कि प्रदेश में आत्महत्या का सिलसिला थम नहीं रहा है. ऐसे में आन्दोलन व संघर्ष ही एक मात्र रास्ता बचता है.
श्री पाटिल ने स्पष्ट किया कि उनका आन्दोलन पूरी तरह गैर राजनीतिक है. किसी भी दल के नेता के लिए मंच पर जगह नहीं है. आन्दोलन को किसानों का व्यापक समर्थन मिल रहा है.
किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनोद सिंह ने खेत न जोतने के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा कि इसके पीछे किसानों की मजबूरी और आक्रोश दोनों छिपा है. अगर वह खेत जोतता है और उसे लागत से भी कम दाम मिलता है तो वह कर्ज में डूब जाता है. साल-दर-साल कर्ज बढ़ता जाता है. कर्ज माफी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह कोई हल नहीं है. अगर सरकार ईमानदारी से किसान हित चाहती है तो उसे अपने चुनावी घोषणापत्र का यह वायदा पूरा करना चाहिए कि किसानों को लागत का दो गुना मूल्य मिलेगा. ऐसा न करके केन्द्र व राज्य दोनों ही सरकारें किसानों को मजबूर कर रही हैं कि वे आन्दोलन का रास्ता अख्तियार करें. अगर सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाया और किसानों ने खेत परती छोड़ दिया तो यह सबके लिए दुर्भाग्यर्पूण होगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार पर होगी.