जब छोटे थे, गांव_कस्बों के टाकीजो से निकलने वाले तांगों से होते ऐलान पर ताज्जुब किया करते थे… जनता की खास फरमाइश पर फलां फिल्म के इतने शो बढ़ा दिए गए हैं….! मन में ख्याल आता था, कौन लोग हैं, जो टॉकीज मालिक से जाकर शो बढ़ाने की गुहार लगाते हैं….? बरसों बाद ये सवाल मन मस्तिष्क में फिर कौंध रहा है… वह कौनसी जनता है, जिसने सरकार का दरवाजा खटखटाया, लॉक डाउन के कुछ और एपिसोड बढ़ाने की फरमाइश कर डाली है…! मप्र के १५ जिलों में लागू हुए लॉक डाउन में राजधानी भोपाल अछूती रह गई थी…! सामाजिक संगठन, धार्मिक संस्थाएं, आम लोगों ने मोर्चा बनाया, सरकार का दरवाजा खटखटाया और जिद कर डाली, क्या हमारा शहर इतना पिछड़ा हुआ और दोयम दर्जे का है, जिसे हफ्ते भर का लॉक डाउन भी नसीब न हो सके…! गुजरिशों, मिन्नतों, पुकारों पर सरकार पिघल गई…! सुबह, सब कुछ नियंत्रण में है, का बयान शाम होते होते बदल गया…! जनता की खास फरमाइश पर राजधानी भोपाल को भी टू प्लस सेवन डेज का लॉक डाउन गिफ्ट दे दिया गया…! जनता खुश है, अपनी फरमाइश पूरी होने पर निहाल है… इतनी मद मस्त हो गई कि लॉक डाउन इजाफे की खबर मिलते ही सड़कों पर आकर उसने अपनी खुशी का इजहार किया…! खुशी की अधिकता का आलम ये था कि वे कभी लहराकर किराना दुकान में घुस जाते, तो कभी सड़ी गली हर तरह की सब्जी बटोरने में जुट जाते… बच्चों के जरूरी सामान से लेकर व्यसन रखने वालों ने भी यहां वहां अपना माथा फोड़ा…! कुछ बिरले तो ऐसे भी थे कि दो घंटे में सब कुछ जुटा लेने की मशक्कत का वक्त इस जुगत में ही गंवा बैठे, कि इस बेवक्त की जरूरत के लिए किसके सामने हाथ फैलाया जाए, किसके आगे गुहार लगाई जाए, किससे अपनी जरूरत बताई जाए…! जनता प्रसन्न है, सरकार ने उसकी मनचाही मुराद दे दी, सरकार खुश है, वह महामारी का सात दिनी इलाज निकालने में कामयाब हो गई…!
पुछल्ला
भोपाल के छीपा
बा (खली)…!
पिछले साल का लॉक डाउन। प्रदेश का शहर इंदौर। मेडिकल टीम पर हमला। जमाने भर में बदनामी। अब राजधानी भोपाल के अस्पताल में हंगामा। वहां जाहिलों की बस्ती थी, यहां पढ़े लिखे, जिम्मेदार नेताओं(?) का हुडदंग। एक अखबार ने माफी मांगने तक बहिष्कार का ऐलान किया है, बाकी शहर इनके सामाजिक तिरस्कार का फैसला सुनाने के लिए किसका इंतजार कर रहा है?
खान आशु