सन् 1919 को अफगानिस्तान औपचारिक तौर पर ब्रिटिश शासन के चंगुल से मुक्त हुआ था. 19 अगस्त अफगानिस्तान अपनी स्वाधीनता दिवस मनाता है. इस संदर्भ में अपनी किताब विश्व इतिहास की झलक में जवाहर लाल नेहरू लिखते हैं कि
“1919 ई. के शुरू में अफगान राजदरबार की साजिशें और लाग-डांट भीतर से ऊपर को निकल कर फूट पड़ीं, और राजमहलों की दो लगातार क्रांतियां तुर्त-फुर्त हो गईं…अमीर हबीबुल्ला की हत्या कर दी गई, उसके बाद उसका भाई नसरूल्ला अमीर हुआ, लेकिन नसरूल्ला भी बहुत जल्दी हटा दिया गया, और हबीबुल्ला का छोटा पुत्र अमानुल्ला अमीर बना.
गद्दी पर बैठते ही उसने 1919 ई. में भारत पर (ब्रिटिश औपनिवेशिक भारत) एक छोटा सा हमला कर दिया……अमानुल्ला ब्रिटिश सरकार का किसी भी तरह से मोहताज बनने से सख्त नाराज था और अपने देश की पूरी स्वाधीनता कायम करना चाहता था. शायद उसने यह भी सोचा कि हालात उसके माफिक हैं…अंग्रेजों के साथ अफगानों का युद्ध छिड़ गया, पर युद्ध थोड़े ही दिन चला… नतीजा यह हुआ कि अफगानिस्तान को स्वाधीन देश मान लिया गया, और दूसरे देशों के साथ विदेशी रिश्तों के मामलों में उसका पूरा अख्तियार कबूल कर लिया गया.
इस तरह अमानुल्ला ने अपने उद्देश्य हासिल कर लिए, और यूरोप और एशिया में हर जगह उसकी शान बढ़ गई. अंग्रेजों का उससे नाराज होना लाजिमी ही था.” (विश्व इतिहास की झलक, खंड-2, पृ. 1089)
फिर अमीनुल्ला ने आधुनिक तुर्की के निर्माता कमाल पाशा, रूसी क्रांति और दुनिया भर में हो रहे क्रांतिकारी सुधारों और परिवर्तनों का अनुकरण करते हुए अफगानिस्तान में भी क्रांतिकारी सुधार एवं परिवर्तन करना शुरू किया.
वह अफगानिस्तान को मध्यकालीन युग से निकाल कर एक आधुनिक अफगानिस्तान में तब्दील करना चाहता था. इस संदर्भ में नेहरू लिखते हैं-
“अमानुल्ला ने अपने देश में जो नई नीति बरती, उससे लोगों का ध्यान उसकी ओर खिंचने लगा. यह नीति थी पश्चिम (यूरोप-अमेरिका) के ढंग पर तेजी के साथ सुधार, जिसे अफगानिस्तान का ‘पश्चिमीकरण’ कहा जाता है. इस काम में उसकी बेगम सुरैय्या ने उसे बहुत सहायता दी. उसने यूरोप से कुछ शिक्षा पाई थी, और बुर्के में स्त्रियों का परदा उसे बहुत अखरता था.
इस तरह एक पिछड़े हुए देश को कुछ ही दिनों में बदल डालने का, यानी अफगानों को धकेलकर और पुराने ढर्रे से निकालकर नये रास्ते पर डालने का अनोखा सिलसिला शुरू हुआ.
मालूम होता है कि अमानुल्ला ने मुस्तफा कमाल पाशा को अपना नमूना (आदर्श) बनाया था, और कई बातों में उसकी नकल करने की कोशिश की, यहां तक कि अफगानों को कोट-पतलून और यूरोपीय टोप भी पहना दिए और उनकी दाढ़ियां भी मुंड़वा दी.” (वही,पृ.1090)
अमानुल्ला को इन क्रांतिकारी सुधारों यानि अफगानिस्तान के आधुनिकीकरण में एक हद तक सफलता भी मिल रही थी. इस संदर्भ में नेहरू लिखते हैं-
“उसने (अमानुल्ला) बहुत से अफगान लड़के व लड़कियों को शिक्षा पाने के लिए यूरोप भेजा. उसने अपने राजकाज में बहुत से सुधार किये. उसने अपने पड़ोसी देशों और तुर्की के साथ संधियां करके अन्तरराष्ट्रीय मामलों में अपनी हैसियत मजबूत बनाई.
सोवियत रूस (1917 की क्रांति के बाद का रूस) ने चीन से लगाकर तुर्की तक सारे पूर्वी देशों के साथ जान-बूझकर शरीफाना और दोस्ताना नीति अपनाई थी, और तुर्की और ईरान को विदेशी पंजे से छुटकारा दिलाने में रूस की यह दोस्ती और सहायता बड़ा भारी हेतु बनी थी.
1919 ई. में इंग्लैंड से चंद रोजा युद्ध में अमानुल्ला ने आसानी से अपना मकसद हासिल कर लिया था, उसका भी यह (सोवियत रूस) बड़ा हेतु रही होगी.
बाद के वर्षों में सोवियत रूस, तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान इन चार शक्तियों के बीच काफी संधियां और आपसी कौल-करार हुए. अमानुल्ला ने सोवियत रूस के साथ दोस्ती की” (वही, पृ.1090)
नेहरू आगे लिखते हैं कि इस सब से मध्यपूर्व में अंग्रेजों के असर पर गहरी चोट पड़ रही थी.
उपरोक्त पूरी परिस्थिति में आधुनिक अफगानिस्तान का निर्माण अमानुल्ला कर रहे थे.
1928 के शुरू में अमानुल्ला और बेगम सुरैय्या ने यूरोप का दौरा किया. वे रोम, पेरिस, बर्लिन, लंदन, मास्को आदि जगहों पर गए. दोनों लौटते समय कमाल पाशा के तुर्की और ईरान भी गए. इन दौरों ने दोनों की आधुनिक सोच और परिपक्व हुई, दोनों ने अफगानिस्तान का तेजी से आधुनिकीकरण करने और आधुनिक सुधार करने का फैसला लिया. इससे दुनिया में अफगानिस्तान का महत्व बहुत बढ़ गया.
लेकिन इस सबसे ब्रिटेन और अफगानिस्तान की वर्चस्वशाली शक्तियों को खतरा महसूस होने लगा.
ब्रिटेन ने अमानुल्ला को बदनाम करने, अफगानिस्तान के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को रोकने और अमानुल्ला को सत्ता से बेदखल करने के लिए स्थानीय वर्चस्वशील पिछड़े (मुल्लाओं-अमीरों) तत्वों से हाथ मिलाकर अमानुल्ला के खिलाफ षड्यंत्र रचा. उन्हें और उनकी पत्नी को बदनाम करने और इस्लाम विरोधी ठहराने के लिए ब्रिटेन ने काफी धन खर्च किया.
अमानुल्ला की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए पिछड़े तत्वों को हथियार और अकूत धन मुहैया कराया गया. यह सब इस्लाम की रक्षा के नाम पर किया गया.
अमानुल्ला को इस्लाम विरोधी ठहराने के लिए बड़े पैमाने पर पर्चे बांटे गए.
इतना ही नहीं, उनकी और उनके पत्नी की आधुनिक तस्वीर पूरे अफगानिस्तान में ब्रिटेन की मदद से वितरित की गईं, जिसमें दोनों के आधुनिक वस्त्रों-चित्रों के माध्यम से उन्हें इस्लामी परंपरा को तोड़ने और ध्वस्त करने वाला ठहराया गया. इस संदर्भ में नेहरू लिखते हैं-
“उसे बदनाम करने के लिए हर तरह की साजिशें की गईं और अगनिगत अफवाहें फैलाई गईं.
इस अमानुल्ला विरोधी प्रचार के लिए न मालूम कहां से रूपए की मानों नदी बही चली आ रही थी! मालूम होता है कि बहुत से मुल्लाओं को इस काम के लिए रूपया मिल रहा था. ये लोग देश भर में फैल गए और अमानुल्ला को काफिर करार देकर फतवे निकालने लगे!
यह दिखाने के लिए कि बेगम सुरैय्या कितनी भद्दी पोशाक पहनती हैं, उसकी ऐसी हजारों तस्वीरें गांव-गांव में बांटी गईं, जिनमें वह यूरोपीय ढंग की शाम की पोशाक या कोई ढीला-ढाला गाउन पहने दिखाई गई थीं.
इस तूल-तबील और खर्चीले प्रचार के लिए कौन जिम्मेदार था? अफगानों के पास न तो इसके लिए पैसा था और न कभी उन्होंने यह काम सीखा था, वे इसके लिए सिर्फ काम का मशाला थे.
मध्य- पूर्व और यूरोप में आमतौर पर यह खयाल किया जाता था, और कहा जाता था, कि इस प्रचार के पीछे ब्रिटिश खुफिया विभाग का हाथ था.” (वही, पृ.1092)
फिर भी अमानुल्ला आधुनिक सुधारों से पीछे नहीं हटे, वे और जोश के साथ सुधारों को आगे बढ़ाने में जुट गए.
उन्होंने अमीर वर्ग की उपाधियां मिटा दीं और मुल्लाओं की ताकत कम करने का प्रयत्न किया.
उन्होंने लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाते हुए मंत्रियों की एक कौंसिल के हाथ में सरकार की बागडोर देने की भी कोशिश की, और इस तरह खुद अपने एकाधिकारों को कम करने की कोशिश की!!
महिलाओं की गुलामी के बंधन काटने के लिए जोर-शोर से काम शुरू किया.
लेकिन ब्रिटेन ने अपने पैसे और हथियारों के दम पर और मुल्लाओं एवं अमीरों को अपने साथ करके अमानुल्ला की सत्ता पलटने और आधुनिक संप्रभु अफगानिस्तान को खत्म करने की कोशिश तेज कर दी!
आखिर ब्रिटेन को सफलता मिल गई. उसने मुल्लाओं और अफगानिस्तान के अमीरों के सहयोग से अमानुल्ला की सत्ता को पलट दिया और सारे आधुनिक सुधारों को रोक दिया गया और अप्रत्यक्ष तौर पर ब्रिटेन की सत्ता अफगानिस्तान पर कायम हो गई.
यह सारा घटनाक्रम 1929 में हुआ. ब्रिटेन ने बच्चा-सुक्का बादशाह के रूप में अपना एक कठपुतली अफागिस्तान में बैठा दिया और इस क्रांतिकारी सुधारों को प्रतिक्रांति में बदल दिया!
इस तरह अपनी नियति एवं भविष्य तय करने की कोशिश को ब्रिटेन नाकामयाब कर दिया.
अफगानिस्तान की नियति का पहला अपराधी ब्रिटेन था!
(जनचौक के सलाहकार संपादक डॉ. सिद्धार्थ की प्रस्तुति)