भाजपा का अध्यक्ष कौन हो, संघ परिवार चुनाव के बाद से ही इसका जवाब तलाश रहा है. जिस दिन भाजपा चुनाव हार गई, लालकृष्ण आडवाणी के इस्ती़फे की बात चल रही थी, उनके ख़िलाफ़ माहौल बन रहा था, तब मोहन भागवत ने संघ के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को लालकृष्ण आडवाणी के घर भेजा. यह संदेश देने के लिए कि वह इस्ती़फा दे दें. आडवाणी के घर गए संघ के तीनों अधिकारियों ने सारी बातें की, लेकिन यह कहने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया कि मोहन भागवत ने इस्ती़फा देने को कहा है.
जैसे-जैसे भाजपा के नए अध्यक्ष के चुनाव का समय नज़दीक आता जा रहा है, संघ परिवार में अभूतपूर्व ख़ेमेबाज़ी और राजनीतिक उठापटक देखने को मिल रही है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा एक के बाद एक उलझनों में उलझती रही है. कभी राज्यों में बग़ावत की स्थिति पैदा होती है, तो कभी मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए दिल्ली में नेताओं के बीच रस्साकशी होती है. कभी नेताओं के बीच बयानबा़जी, तो कभी संघ और भाजपा के रिश्तों में तनाव. भाजपा में वह सब हो रहा है, जो पार्टी को कमज़ोर कर सकता है. पार्टी लगातार कमज़ोर से बहुत कमज़ोर होती जा रही है.
भाजपा का अध्यक्ष कौन हो, संघ परिवार चुनाव के बाद से ही इसका जवाब तलाश रहा है. जिस दिन भाजपा चुनाव हार गई, लालकृष्ण आडवाणी के इस्ती़फे की बात चल रही थी, उनके ख़िलाफ़ माहौल बन रहा था, तब मोहन भागवत ने संघ के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को लालकृष्ण आडवाणी के घर भेजा. यह संदेश देने के लिए कि वह इस्ती़फा दे दें. आडवाणी के घर गए संघ के तीनों अधिकारियों ने सारी बातें की, लेकिन यह कहने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाया कि मोहन भागवत ने इस्ती़फा देने को कहा है. इस बीच मोहन भागवत भागलपुर पहुंच चुके थे. आडवाणी से मिलने के बाद इन तीनों अधिकारियों ने मोहन भागवत को ग़लत जानकारी दी. इन लोगों ने कहा कि उन्होंने आडवाणी जी के सामने इस्ती़फे की बात सा़फ-सा़फ रख दी, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. आडवाणी ख़ामोश रहे. भागवत जब दिल्ली लौटे तो आडवाणी ने अपने चारों सलाहकारों-अरुण जेटली, अनंत कुमार, सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू को उनसे मिलने भेजा. आडवाणी ने भागवत से यह कहा कि इन चारों में से आपको जो भी पसंद हो, उसे भारतीय जनता पार्टी का नया अध्यक्ष नियुक्त कर दें. लेकिन इन मुलाक़ातों में मोहन भागवत ने इन चारों नेताओं से यह सा़फ-सा़फ कह दिया कि आप लोग भाजपा के भावी अध्यक्ष बनने का विचार अपने दिमाग़ से निकाल दें. भागवत से मिलने के बाद इन चारों ने आडवाणी से मुलाक़ात की और मीटिंग की पूरी जानकारी दी, लेकिन तब तक आडवाणी जी को यह पता चल चुका था कि मोहन भागवत इन चारों में से किसी को भी अध्यक्ष बनाने को तैयार नहीं हैं.
अगले दिन सुबह मोहन भागवत लालकृष्ण आडवाणी के घर आए, नाश्ता किया, लेकिन पार्टी के भविष्य के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई. भागवत ने आडवाणी से स़िर्फ इतना कहा कि वह भाजपा को ठीकठाक करने की कोशिश ज़रूर करें. एक महीने बाद दोनों की फिर मुलाक़ात हुई. इस मुलाक़ात में पार्टी के भविष्य के बारे में चर्चा हुई. आडवाणी ने भागवत से जानना चाहा कि भाजपा को कैसे ठीक किया जाए और अध्यक्ष कौन बने? मोहन भागवत ने कहा कि उन्हें राजनीति की ज़्यादा समझ नहीं है और न ही संघ को, इसलिए भाजपा को आप ही मार्गदर्शन दीजिए. कहने का मतलब यह था कि मोहन भागवत भाजपा में आडवाणी को एक मार्गदर्शक के रूप में देखना चाहते हैं. जिस तरह कांग्रेस में सोनिया गांधी के दिशानिर्देश पर सब कुछ होता है, कुछ वैसी ही भूमिका आडवाणी की होगी. प्रधानमंत्री कोई और बनेगा, लेकिन आडवाणी पार्टी के स़िर्फ सलाहकार या मार्गदर्शक बने रहेंगे.
यहां से भाजपा में दूसरा खेल शुरू हुआ. आडवाणी के चारों सलाहकारों ने एक रणनीति बनाई. आरएसएस से भाजपा को मुक्त कराने की रणनीति. जेटली, अनंत, सुषमा और वेंकैया को जैसे ही यह मालूम चला कि संघ इनमें से किसी को भी अध्यक्ष बनाने को तैयार नहीं है तो इन लोगों ने आरएसएस के संगठन मंत्रियों और पूर्णकालिक सदस्यों को पार्टी से बाहर करने की रणनीति तथा भाजपा को एक पूर्णतया दक्षिणपंथी पार्टी, जिसमें संघ का कोई हस्तक्षेप न हो, बनाने की योजना पर काम शुरू कर दिया. इस चाल को आडवाणी विरोधी ख़ेमे ने समझ लिया और बयानबाजी शुरू हो गई. कोई संघ को ऑपरेशन करने को कहता है, तो कोई संघ से सीधे भाजपा की कमान थामने को कहता है. जो नेता इन चारों का विरोध करते हैं, वे संघ की शरण में चले गए हैं. अब स्थिति यह है कि पार्टी का अध्यक्ष कौन हो, यह तय करने की ज़िम्मेदारी आडवाणी के पास है. आडवाणी दुविधा में हैं. उन्हें अध्यक्ष चुनना है, लेकिन जिसे वह चुनना चाहते हैं, उसे चुन नहीं सकते. आडवाणी को अगला अध्यक्ष इन चारों के अलावा किसी दूसरे को चुनना होगा.
भारतीय जनता पार्टी का नया अध्यक्ष कौन नहीं होगा, यह मोहन भागवत ने पूरी दुनिया को बता दिया. इस ख़बर के आते ही दिल्ली के भाजपा मुख्यालय में ख़ुशी की लहर फैल गई. जो कार्यकर्ता और अधिकारी गुपचुप बातें करते थे, वे अब खुलकर बोल रहे हैं. उन्हें लगता है कि यह फैसला पार्टी के हित में है. पार्टी की कमान उनके हाथ में नहीं होना चाहिए, जो नेता एयरकंडीशन रूम में बैठ कर देश भर में राजनीति करते हैं. राजनीति का मिजाज़ भी बड़ा निर्लज्ज है. जो कार्यकर्ता कल तक इन नेताओं की तारी़फ कर रहे थे, आज उनमें स़िर्फ बुराइयां ही बुराइयां नज़र आ रही हैं. वे कहते हैं कि इन चारों नेताओं के पास न तो जनता का समर्थन है और न ही कार्यकर्ताओं का.
अब सवाल यह है कि अगर अगला अध्यक्ष इन चारों में से नहीं होगा, तो भाजपा का अगला अध्यक्ष कौन होगा? क्या नया अध्यक्ष बिखर रही इस पार्टी को फिर से उसी दिशा की ओर मोड़ सकता है, जो पार्टी को एकजुट कर सके.
क्या वह देश भर में फैले असंख्य असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को फिर जोड़ सकेगा और सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या वह पार्टी को फिर से इतना मज़बूत कर सकेगा, जो कि भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मुक़ाबला कर सके . भाजपा का नया अध्यक्ष बनने से पहले ही उसकी राहों में कांटे बिछा दिए गए हैं. उसकी सफलता उसके नाम को इतिहास में दर्ज़ करा देगी, जबकि विफलता उसके साथ-साथ पार्टी को भी गर्त में ले जाएगी. भाजपा के नए अध्यक्ष के लिए यह मौक़ा ऐतिहासिक है, लेकिन आज़माइश बहुत कड़ी है.
सबसे पहला नाम जिसकी सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, वह है महाराष्ट्र के नितिन गडकरी. इनके नाम को लेकर ज़्यादातर कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं है. भाजपा के कई कार्यकर्ताओं को लगता है कि अगर गडकरी अध्यक्ष बनते हैं तो पार्टी पहले से ज़्यादा कमज़ोर हो जाएगी. उनका मानना है कि गडकरी को ज़्यादातर लोग जानते तक नहीं हैं. कई कार्यकर्ता तो उनके नाम से भी वाक़ि़फ नहीं हैं. उत्तर भारत में इनकी कोई साख नहीं है और न ही महाराष्ट्र के बाहर उनका कोई योगदान ही है. जो लोग गडकरी को नहीं चाहते हैं, उन्होंने उनके ख़िला़फ बोलना भी शुरू कर दिया है. उनका सबसे बड़ा आरोप यह है कि संघ गडकरी को आसमान से टपका कर भाजपा के सिर पर बिठाना चाहता है. गडकरी को अध्यक्ष इसलिए बनाया जा रहा है, क्योंकि वह नागपुर के संघ मुख्यालय के सारे ख़र्च का इंतज़ाम करते हैं. जो लोग भाजपा में संघ के हस्तक्षेप को ग़लत समझते हैं, उन भाजपा नेताओं का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तो महाराष्ट्र्र का संगठन है, इसलिए जब भाजपा कमज़ोर होगी और जब भी संघ पार्टी में दख़ल देगा तो अध्यक्ष हमेशा महाराष्ट्र का होगा, यह तय है. संघ विरोधी भाजपा नेताओं का यह तर्क बाल आप्टे के लिए भी काम करता है. संघ की तऱफ से यही दो नाम आगे किए जा रहे हैं.
इस बीच देश भर से भाजपा कार्यकर्ता और नेता मोहन भागवत को चिट्ठी लिख रहे हैं. इन चिट्ठियों में भाजपा के नए अध्यक्ष को लेकर कई लोग सुझाव भी दे रहे हैं. कुछ तो मांग कर रहे हैं और कुछ पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चिंता ज़ाहिर कर रहे हैं. कुछ चिट्ठियों को पढ़कर लगता है कि भाजपा के ज़्यादातर कार्यकर्ता मानते हैं कि पार्टी छोड़कर गए नेताओं की वापसी का यह सबसे उचित व़क्त है. इन चिट्ठियों में ज़्यादातर लोग एक ऐसे नाम के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिन्हें भाजपा अध्यक्ष बनाने में कई रुकावटें हैं. लेकिन यह भी तय है कि उनके बनते ही पार्टी में नई ऊर्जा का संचार ज़रूर हो जाएगा. इन चिट्ठियों में गोविंदाचार्य का नाम सबसे ऊपर है. गोविंदाचार्य संघ के पूर्णकालिक रहे हैं. भाजपा के संगठन मंत्री रह चुके हैं. कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय हैं और ज़मीनी स्तर पर राजनीति करने में विश्वास करते हैं. भाजपा से निकलने के बावजूद वह देश भर में चल रहे कई आंदोलनों से जुड़े रहे. विचारधारा से लेकर संगठन चलाने तक में वह निपुण हैं. गोविंदाचार्य में वे सारे गुण हैं जो किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के लिए ज़रूरी हैं.
भाजपा के अध्यक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के सारे नेताओं को संतुष्ट करना है. जो नेता पार्टी से नाराज़ हैं, उन्हें मनाना होगा, ताकि पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं को हर क्षेत्र और राज्यों में नेतृत्व मिल सके . यह काम कठिन होगा, लेकिन इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है. दूसरा सबसी बड़ी चुनौती उन कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ने का और उनके हौसले को बुलंद करने का होगा, जो एयरकंडीशन रूम के नेताओं के रवैये से नाराज़ होकर निष्क्रिय हो गए हैं. इसके लिए पार्टी को वर्तमान कार्यशैली को बदलने की ज़रूरत पड़ेगी और कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लानी होगी. तीसरी महत्वपूर्ण चुनौती पार्टी के खोए हुए समर्थकों और वोटरों के दिल को फिर से जीतने की होगी, ताकि पार्टी चुनाव में दूसरी पार्टियों का मुक़ाबला कर सके. इसके लिए पार्टी को अपनी विचारधारा को वर्तमान परिस्थितियों में ढालना होगा. इसके साथ-साथ पार्टी को भविष्य की ख़ातिर युवाओं को भी साथ जोड़ना होगा. जिस तरह राहुल गांधी कांग्रेस के साथ युवाओं को जोड़ रहे हैं, उसी तरह भाजपा को भी युवाओं की एक नई फौज तैयार करनी होगी. इसके अलावा भाजपा को देश चलाने के लिए कांग्रेस से अलग आर्थिक और सामाजिक एजेंडा सामने रखना होगा, जिसमें देश के ग़रीब मज़दूर व किसान और विकास की धारा से अलग-थलग पड़े लोगों की परेशानियों के स्थायी निदान का रास्ता हो. अगर भाजपा के नए अध्यक्ष इनमें से एक भी चुनौती को पूरा करने में विफल होते हैं तो आने वाले किसी भी लोकसभा चुनावों में पार्टी कांग्रेस का मुक़ाबला नहीं कर सकेगी.
फिलहाल पार्टी की स्थिति ऐसी है, जैसी महाभारत के युद्ध के पहले कौरवों की थी. आडवाणी की स्थिति धृतराष्ट्र जैसी है. संघ के लोगों का कहना है कि आडवाणी की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह है कि वह किसी भी तरह अपने पुत्र-पुत्री को भारतीय जनता पार्टी में स्थापित करना चाहते हैं. आडवाणी के पुत्र तो अंतर्राष्ट्रीय सौदे कराने वाली एक बड़ी एजेंसी चलाते हैं, लेकिन वह अपनी बेटी को लेकर चिंतित हैं. संघ के लोगों का कहना है कि इसी मोह ने आडवाणी को अंधा बना दिया है. किसी पब्लिक रिलेशन कंपनी की सलाह पर आडवाणी की बेटी ने टीवी पर कई प्रोग्राम किए, लेकिन अ़फसोस, ये सारे कार्यक्रम फिल्मों पर आधारित थे. इसलिए उनकी कोई राजनीतिक साख नहीं बन पाई. पिछले कुछ सालों से वह अपने पिता के साथ हर रैली और यात्रा में नज़र आती हैं. चुनाव प्रचार के दौरान भी वह हमेशा आडवाणी जी के साथ ही रहीं. आडवाणी अपनी बेटी को पार्टी के केंद्रीय संगठन में जगह देकर पार्टी में अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं. यही मोह उनके और भाजपा के लिए जी का जंजाल बन गया. उन्होंने इस वजह से अपने कई चहेतों को निराश किया. येदियुरप्पा ने आंसू बहाकर अपने दिल के बोझ को हल्का कर लिया. अपनी कुर्सी की ख़ातिर अपनों का समझौते करने की बात मान कर अपनी नज़र में गिरने से बच गए. भाजपा में ऐसे कई आंसू गिरने अभी बाक़ी हैं.