नई दिल्ली (ब्यूरो, चौथी दुनिया)। बीजेपी अपने उस पड़ाव पर है जहां दो पीढ़ियों के बीच भीतर ही भीतर जबरदस्त टकराव हो रहा है। ये टकराव अहम और जिद्द का है। एक तरफ वो वरिष्ठ नेता हैं जिन्होने पार्टी के पौधे की नींव रखी थी, उसे अपने खून पसीने से सींच के खड़े होने के काबिल बनाया था। तो दूसरी तरफ वो नेता हैं जिन्होने पार्टी के पौधे को फलदार वृक्ष बनाया। जी हां, हम बात कर रहे हैं बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में बैठे नेताओं और मोदी टीम की।
बाबरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आए एक हफ्ता बीत चुका है। मोदी टीम की तरफ से कोई भी सीनियर नेता अब तक आडवाणी और जोशी से मुलाकात करने नहीं पहुंचा। न ही इस तरह का कोई आश्वासन दिया है कि पार्टी उनके साथ हैं। हालांकि पत्रकारों के सवालों पर ये जरूर कहा कि पार्टी के सीनियर नेताओं की अनदेखी जैसी कोई बात नहीं है। हम विचार कर रहे हैं।
तो क्या पार्टी के बर्ताव से ये मान लिया जाए कि आडवाणी और जोशी जैसे नेताओं के लिए बीजेपी में कोई जगह नहीं बची। दोनों ही वरिष्ठतम नेता सिर्फ लोकसभा से सांसद हैं इसलिए विरोधी भी उनका जमकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। जोशी और आडवाणी के अलावा उमा भारती भी बाबरी मामले में नामित हैं। वो खुद अपना स्टैंड ले रही हैं पार्टी की तरफ से भी चहलकदमी दिख रही है।
अगले कुछ दिनों में राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा तेज हो जाएगी। अब तक माना जा रहा था कि आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी को इस पद पर भेजा जा सकता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस पर भी संस्पेंस के बाद आ गए। आडवाणी खेमे के कहे जाने वाले विनय कटियार ने इसे सीबीआई की साजिश करार देकर लगभग साफ कर दिया कि मोदी एंड टीम की तरफ से आडवाणी और जोशी को कोई खास तवज्जों नहीं दी जा रही है।