भाजपा को कांग्रेस पार्टी के साथ बातचीत शुरू कर देनी चाहिए और कांग्रेस को भी एक जिम्मेदार पार्टी बननी चाहिए. बजाए एक बाधा उत्पन करने वाली पार्टी के. छोटे दल ऐसा कर सकते है. कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती. भाजपा केवल 5 साल के लिए चुनी गई है. कांग्रेस का उद्देश्य 5 साल के बाद सत्ता वापस पाने का होना चाहिए. उसे सिर्फ एक समस्याएं पैदा करने वाली पार्टी के तौर पर खुद को नहीं प्रदर्शित करना चाहिए और न ही खुद को ऐसा दिखाना चाहिए कि एक चुनाव हार कर वो आगे शासन करने का नैतिक अधिकार खो चुकी है.
पिछले हफ्ते विश्व कप में भारत-पाकिस्तान मैच को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला. हैरत की बात है कि पाकिस्तान कभी भी विश्व कप के मैचों में भारत के खिलाफ नहीं जीत पाया है. ऐसा क्यों होता है. इसे समझना बहुत कठिन है, लेकिन यह तय है कि मनोवैज्ञानिक दबाव में आने की वजह से ही टीम में अच्छे खिलाड़ी होने के बावजूद जीतने में वो सक्षम नहीं हो पाते. मैं इस बार मान रहा था कि कमजोर भारतीय गेंदबाजी की वजह से पाकिस्तान की जीत होगी, लेकिन फिर भी भारत 76 रन की एक मार्जिन के साथ बहुत आराम से जीत गया. यह भारत के लिए खुशी की बात है, लेकिन क्रिकेट के लिए हमें इस पहलू का अध्ययन करना चाहिए. बेशक विश्व कप के फाइनल में 5-6 हफ्तों का समय है. भारत ने एक अच्छी शुरुआत करके अपने मनोबल को ऊंचा कर लिया है. भारत को एक बार फिर से कप जीतने का प्रयास करना चाहिए.
राजनीतिक मोर्चे पर चिंता करने की बात यह है कि भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ किसान आंदोलन शुरू होने वाला है. ब्रिटिश शासन द्वारा पारित पुराना भूमि अधिग्रहण बिल आउट आफ डेट (गैर जरूरी) हो गया है. पश्चिम बंगाल में यह साबित हो चुका है. तत्कालीन सरकार ने वहां किसानों से दो फसली जमीन छीनने की कोशिश की. मेरे हिसाब से वामपंथ के 34 साल पुराने शासन के खात्मे की एक मुख्य वजह यही रही. सरकार के इस कदम को किसान विरोधी माना गया. यूपीए सरकार ने फिर इस बिल पर काम किया. स्थायी समितियां अन्य सभी संबंधित पक्षों से लंबी बहस, राय-मशविरा करने के बाद एक बिल ले कर आई. हालांकि यह बिल भी बहुत संतोषजनक नहीं था, लेकिन यह कम से कम कामचलाऊ था. कम से कम जमीन खोने की स्थिति में किसान को मुआवजे के रूप में एक बड़ी रकम मिलने का आश्वासन यह बिल दे रहा था. अब सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार कॉरपोरेट सेक्टर को खुश करने की कोशिश कर रही है. जहां होना यह चाहिए था कि कम्पनियां सीधे पैसा देकर किसानों से जमीन खरीदे, हो ये रहा है कि सरकार इस कानून के सहारे किसानों से जबरिया जमीन लेकर कॉरपोरेट को देने की कोशिश में लगी हुई है. सरकार का रवैया कॉरपोरेट्स के लिए भी एकसमान नहीं है. किसी एक का फेवर करती है तो दूसरे का नहीं करती है. इस सब में कुछ पारदर्शिता होनी चाहिए. अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी सहमति वाले प्रावधान को हटाने से किसान नाराज है. एनडीए ने यूपीए वाले बिल से कई अन्य जरूरी प्रावधान को भी हटा दिया है.जाहिर है, इन सब से किसान स्वाभाविक रूप से उत्तेजित हो रहे हैं.
हालांकि यह बिल अध्यादेश के माध्यम से पारित किया गया है और इसे संसद के दोनों सदनों से पारित होना है और यह तब तक नहीं हो सकता, जबतक कि सभी पार्टियां इसका समर्थन न करें. कांग्रेस यहां कोई समझौता नहीं करना चाहेगी. संसद की अनदेखी कोई समाधान नहीं है, लेकिन इसे लेकर अति सक्रियता भी ठीक नहीं है. विपक्ष को केवल बाधा डालने का काम नहीं करना चाहिए और न ही सरकार को सब कुछ अध्यादेश के जरिए पास करवाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. ये दोनों पहलू लोकतंत्र में गलत हैं. अमेरिका में हम देखते हैं कि एक बिल को पास करने के लिए सरकार को सीनेट में कम से कम 60 सदस्य की जरूरत होती है. शायद ही किसी अमेरीकी राष्ट्रपति को कोई बिल पास कराने के लिए इतना समर्थन होता है, लेकिन वे दोनों पार्टियों के सदस्यों का समर्थन लेकर, थोड़े बहुत संशोधन के साथ बिल पास करा लेते हैं. यही फार्मूला भारत में भी आजमाया जाना चाहिए.
भाजपा को कांग्रेस पार्टी के साथ बातचीत शुरू कर देनी चाहिए और कांग्रेस को भी एक जिम्मेदार पार्टी बननी चाहिए. बजाए एक बाधा उत्पन करने वाली पार्टी के. छोटे दल ऐसा कर सकते है. कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती. भाजपा केवल 5 साल के लिए चुनी गई है. कांग्रेस का उद्देश्य 5 साल के बाद सत्ता वापस पाने का होना चाहिए. उसे सिर्फ एक समस्याएं पैदा करने वाली पार्टी के तौर पर खुद को नहीं प्रदर्शित करना चाहिए और न ही खुद को ऐसा दिखाना चाहिए कि एक चुनाव हार कर वो आगे शासन करने का नैतिक अधिकार खो चुकी है. खतरा यह है कि कांग्रेस अभी यही धारणा पुष्ट कर रही है. एक जिम्मेदार तरीके से कांग्रेस यह कह सकती है कि हमने आपसे बात कर के यह बिल पारित किया था. अब आप बहुमत में हैं, कुछ मुद्दों पर हम सहमत हो सकते हैं, लेकिन जो मुद्दे किसानों के हित से जुड़े हैं, हम उन पर समझौता नहीं कर सकते.
और यह बिल कुछ ऐसे बड़े उपाय के साथ, जो किसानों की रक्षा कर सके, पारित किया जाना चाहिए. किसान आंदोलन का स्वरूप क्या होगा, यह कैसे आगे जाएगा, हम नहीं जानते. अन्ना हजारे भी राजगोपाल के साथ दिल्ली जा रहे हैं. संसद शुरू होने के साथ ही तीन समूह दिल्ली में एक ही बिंदु पर आंदोलन कर रहे हैं. यह एक गंभीर मुद्दा बन सकता है और मामला अनियंत्रित हो सकता है. सरकार को अपना दिमाग लगाना चाहिए. इस मामले का संबंध किस पोर्टफोलियो से है, मुझे नहीं मालूम. वित्त मंत्री बजट में व्यस्त होंगे, लेकिन प्रधानमंत्री या गृहमंत्री राजनाथ सिंह, जो खुद उत्तर प्रदेश से हैं और किसानों की समस्या से वाकिफ हैं, को अपना दिमाग इसमें लगाना चाहिए और सिर्फ कानून और व्यवस्था की समस्या मानने की जगह एक तर्कसंगत उचित समाधान ढूंढा जाना चाहिए.