हमारे देश में महिलाओं के साथ भेदभाव की कहानी परिवार से ही शुरू हो जाती है. कई बार तो लड़की को दुनिया में आने से पहले ही बोझ समझ कर मां के गर्भ में ख़त्म कर दिया जाता है. अगर लड़की परिवार में जन्म ले भी लेती है, तो लड़कों के मुकाबले उसे हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. और तो और, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को शिक्षा देने में भी कमी की जाती है. इसके पीछे हमारे पुरुष प्रधान समाज की सोच यह होती है कि लड़की पढ़-लिखकर क्या करेगी, उसे तो शादी करके अपने घर जाना है?
हर साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को हर क्षेत्र में समान अधिकार दिलाने के साथ उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित करना है. इसमें कोई शक नहीं कि महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं, लेकिन 21वीं सदी के इस दौर में जहां एक तरफ़ महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं, वहीं लाखों महिलाएं आज भी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पूरे विश्व की महिलाएं जाति-पांत, रंगभेद, वेशभूषा एवं भाषा से परे एकजुट होकर मनाती हैं. महिला दिवस महिलाओं को अपनी दबी-कुचली आवाज़ अपने अधिकारों के प्रति बुलंद करने की प्रेरणा देता है.
हमारे देश में महिलाओं के साथ भेदभाव की कहानी परिवार से ही शुरू हो जाती है. कई बार तो लड़की को दुनिया में आने से पहले ही बोझ समझ कर मां के गर्भ में ख़त्म कर दिया जाता है. अगर लड़की परिवार में जन्म ले भी लेती है, तो लड़कों के मुकाबले उसे हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है. और तो और, लड़कों के मुकाबले लड़कियों को शिक्षा देने में भी कमी की जाती है. इसके पीछे हमारे पुरुष प्रधान समाज की सोच यह होती है कि लड़की पढ़-लिखकर क्या करेगी, उसे तो शादी करके अपने घर जाना है? घर का सारा काम करने के बावजूद आज भी ज़्यादातर परिवारों में महिलाएं पुरुषों के बाद ही भोजन करती हैं.
महिलाओं के साथ भेदभाव की यह दास्तां यहीं नहीं थमती. आज़ादी के 66 वर्षों के बाद भी हम महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली घरेलू हिंसा पर पूरी तरह लगाम नहीं लगा सके. बाल विवाह और दहेज प्रथा की बेड़ियां आज भी हमारे समाज को जकड़े हुए हैं. बलात्कार के मामलों में लगातार इज़ाफा हो रहा है. शायद ही कोई ऐसा दिन जाता होगा कि महिलाओं के उत्पीड़न और उनके साथ अत्याचार की दास्तां अख़बारों की ख़बर न बनती हो. महिलाओं के साथ सामाजिक दुर्व्यवहार के बहुत से मामले हैं, जिन्हें अनदेखा करना आम बात हो गई है. कुल मिलाकर हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति खराब है. आज महिलाओं को आरक्षण से ज़्यादा ज़रूरत है उचित सुविधाओं की, उनकी प्रतिभा एवं महत्वाकांक्षा के सम्मान की.
सबसे बढ़कर तो यह कि अगर नारी ही नारी को सम्मान देने लगे, तो समस्या काफी हद तक कम हो सकती है. महिलाएं भी अपनी उस सोच को बदलें कि वे पुरुष प्रधान समाज का हिस्सा हैं. वे जब तक अपनी यह सोच नहीं बदलेंगी, तब तक आगे नहीं बढ़ पाएंगी. सवाल यह है कि जब महिलाओं की दशा में कोई सुधार नहीं हो रहा है, तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का भारत में क्या महत्व है? जब तक पुरुष वर्ग महिलाओं को सम्मान से नहीं देखता, तब तक महिलाओं की स्थिति नहीं बदलेगी. पुरुषों को महिलाओं के प्रति अपने नज़रिये में बदलाव लाना होगा. जब तक पुरुषों का नज़रिया नहीं बदलेगा, तब तक महिलाएं अपने हक़ से वंचित रहेंगी. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पुरुषों को महिलाओं के प्रति अपना नज़रिया बदलने की हिदायत भी देता है.
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