शायद यह महात्मा गाँधी जी के हत्या के बाद मार्च के 11से लेकर 15 मार्च तक, 1948 में सेवाग्राम वर्धा मे हुई बैठक की फोटो है ! जिसमें विनोबा भावे तथा जयप्रकाश नारायण के अलावा, जेसी कुमाराप्पाजी, आचार्य कृपलानी, तुकडोजी महाराज, मौलाना आझाद, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, दादा धर्माधिकारी और अन्य लोग ईकठ्ठे हुए थे !
बापू अब रहे नही आगे क्या ? इस नाम की किताब तत्कालीन पस्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री. गोपाल कृष्ण गाँधी जी ने इस बैठक के इतिवृत को संपादित करके एक किताब छपी है !


इस बैठक में विनोबा भावे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में जो कुछ कहा है आज पचहत्तर साल के बाद भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि गांधी हत्या के समय था !


विनोबा ने कहा कि , “मैं कुछ कहना चाहता हूँ ! मै उस प्रांत का हूँ, जिसमें आर. एस. एस. का जन्म हुआ ! जाति छोड़कर बैठा हूँ ! फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी जाति का हूँ, जिसके द्वारा यह घटना हुई ! कुमाराप्पाजी और आचार्य कृपलानीजी ने फौजी बंदोबस्त के खिलाफ परसों सख्त बातें कहीं ! मै चुप बैठा रहा ! वे दुख के साथ बोलते थे! मै दुख के साथ चुप था ! न बोलने वाले का दुःख जाहिर नहीं होता ! मै इसलिए नही बोला कि मुझे दुःख के साथ लज्जा भी थी! पौनार में मै बरसों से रह रहा हूँ ! वहां पर भी चार – पांच आदमियों को गिरफ्तार किया गया है ! बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का उन पर शुबह है ! वर्धा में गिरफ्तारियां हुई, नागपुर में हुई, जगह – जगह हो रही है ! यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बडी कुशलता के साथ फैलाया गया है ! इसके मूल बहुत गहरे पहुंच चुके हैं ! यह संगठन ठीक फैशिस्ट ढंग का है ! उसमे महाराष्ट्र की बुद्धि का प्रधानतया उपयोग हुआ है ! चाहें वह पंजाब में काम करता हो या मद्रास में ! सब प्रांतों में उसके सालार और मुख्य संचालक अक्सर ब्राम्हण, रहे हैं ! गोलवलकर गुरुजी भी महाराष्ट्र के ब्राम्हण है ! इस संगठन वाले दुसरो को विश्वास में नहीं लेते ! गाँधी जी का नियम सत्य का था ! मालूम होता है, इनका नियम असत्य का होना चाहिए ! यह असत्य उनकी टेक्निक – उनके तंत्र – और उनकी फिलॉसफी का हिस्सा है !


एक धार्मिक अखबार में उनके गुरुजिके का एक लेख या भाषण पढा उसमे लिखा था कि ” हिंदू धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है, उसे अपने गुरुजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने गुरुजनों को प्रणाम किया और उनकी हत्या की, इस प्रकार की हत्या जो कर सकता है वह स्थितप्रज्ञ है ! वे लोग गीता के मुझसे कम उपासक नही है ! वे गीता उतनी ही श्रद्धा से से रोज पढते होंगे जितनी श्रद्धा मेरे मन में है ! मनुष्य यदि पूज्य गुरुजनों की हत्या कर सके तो वह स्थितप्रज्ञ होता है, यह उनकी गीता का तात्पर्य है! बेचारी गीता का इसप्रकार उपयोग होता है! मतलब यह कि यह सिर्फ दंगा-फसाद करने वाले उपद्रविकारियो की जमात नही है ! यह फिलासॉफरो की जमात है ! उनका एक तत्वज्ञान है और उसके अनुसार निश्चय के साथ वे काम करते हैं ! धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी अपनी एक खास पद्धति है !


गाँधी जी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में कुछ अजीब हालत है ! यहां सब कुछ अत्यांतिक रुप में होता है ! गाँधी हत्या के बाद गांधीवालो के नाम पर जनता की तरफ से जो प्रतिक्रिया हुई वह भी भयानक हुई, जैसी पंजाब में पाकिस्तान के निर्माण के वक्त हुई थी !

नागपुर से लेकर कोल्हापूर तक भयानक प्रतिक्रिया हुई ! सानेगुरुजीने मुझे आवाहन किया कि मैं महाराष्ट्र में घुमू जो पौनार को भी सम्हल नही सका, वर्धा – नागपुर के लोगों पर असर न डाल सका, वह महाराष्ट्र में घुमकर क्या करता ? मै चुपचाप बैठा रहा !
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और हमारी कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा है ! जब हम जेल जाते थे, उस वक्त उनकी निति फौज और पुलिस में दाखिल होने की थी ! जहाँ हिंदू-मुसलमानों का झगड़ा खडा होने की संभावना होती, वहां वे पहुंच जाते ! उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फायदे की समझती थी ! इसलिए उसने भी इनको उत्तेजन दिया ! नतीजा हमको भुगताना पड रहा है !
आजकी परिस्थिति में मुख्य जिम्मेदारी मेरी है, महाराष्ट्र के लोगो की है ! यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है ! महाराष्ट्र के लोग ही उसकी जडो तक पहुंच सकते हैं ! इसलिये आप मुझे सूचना करें, मै अपना दिमाग साफ रखुंगा और अपने तरीके से काम करुंगा ! मै किसी कमेटी में कमिट नही हूँगा ! आर. एस. एस. से भिन्न, गहरे और दृढ विचार रखने वाले सभी लोगों की मदद लूंगा ! जो इस विचार पर खड़े हो कि हम सिर्फ शुद्ध साधनों से काम लेंगे, उन सब की मदद लुंगा ! जो इस इस विचार पर खड़े हो कि हम सिर्फ शुद्ध साधनों से काम लेंगे, उन सब की मदद लुंगा ! हमारा साधन – शुद्धि का मोर्चा बने ! उसमे सोशलिस्ट भी आ सकते हैं ! और दुसरे सभी आ सकते हैं ! हमको ऐसे लोगों की जरूरत है जो अपने आप को इन्सान समझते हैं !
यह है आचार्य विनोबा भावे की महात्मा गाँधी जी के हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निपटने के लिए विशेष रूप से सुझाया हुआ उपाय है जो आज भी उतना ही व्यवहारिक है जितना कि आजसे पचहत्तर साल पहले !

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