माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी को मिला था आर्म्स डीलर की हत्या का मठेकाफ अभिषेक वर्मा की हत्या की योजना

रक्षा सौदे से जुड़े आर्म्स डीलर और दलालों ने आपसी प्रतिद्वंद्विता में एक दूसरे को निपटाने के लिए उत्तर प्रदेश के माफिया सरगना को सुपारी दी थी. बॉलीवुड की तरह बड़े-बड़े कॉरपोरेट प्रतिष्ठान भी अपने प्रतिद्वंद्वी या विरोधी को हटाने के लिए ‘कॉन्ट्रैक्ट-किलर्स’ का सहारा लेते हैं, इस तथ्य के उजागर होने के बाद भी सीबीआई ने इसकी तह में जाने की जरूरत नहीं समझी, या उसे तह में जाने की इजाजत नहीं दी गई. इस संदर्भ में कई महत्वपूर्ण सूत्र सीबीआई के हाथ लगे, लेकिन यह मामला इसलिए भी आगे नहीं बढ़ा क्योंकि सीबीआई जैसी खुफिया एजेंसियों में भी अफसर अलग-अलग आर्म्स डीलरों के प्यादे के बतौर काम करते, एक-दूसरे को सूचनाएं लीक करते और प्रतिद्वंद्वियों को ठिकाने लगाने में ‘सुगम’ जरिया बनते पाए गए हैं. इसके लिए खास तौर पर जेलों में बंद माफिया सरगनाओं से मदद ली जाती है. माफिया सरगनाओं को जेल से ऑपरेट करने में सुविधा रहती है, वे पकड़े भी नहीं जाते और बाहर इनके ‘हिट-मैन’ अपना काम निपटाते रहते हैं.

आपको यह सूचना अजीबोगरीब लगेगी, लेकिन यह आधिकारिक तथ्य है कि रक्षा सौदे से जुड़े आर्म्स डीलरों, दलालों और उनके मददगार नौकरशाहों ने ‘रोड़े हटाने के लिए’ दाऊद इब्राहीम के भाई अनीस इब्राहीम तक को ‘ठेका’ दिया. इसमें एक ‘ठेका’ आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा को रास्ते से हटाने के लिए उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी को मिला था. इसकी सूचना मिलने पर सत्ता गलियारे से लेकर पुलिस और सीबीआई महकमे तक खूब खलबली मची. सीबीआई के लिए परेशानी यह थी कि आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा अरबों रुपए के रक्षा सौदा घोटाले और नेवल-वार-रूम-लीक मामले में सरकारी गवाह बन चुका था, लिहाजा उसकी हिफाजत बेहद जरूरी थी. अभिषेक वर्मा से सीबीआई को लगातार कई महत्वपूर्ण सुराग मिल रहे थे.

ऐसे में, सीबीआई के लिए यह सूचना हतप्रभ करने वाली थी कि बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण सरकारी गवाह को जेल में ही निपटाने की तैयारी हो चुकी है. जेल में सरकारी गवाह की गतिविधियों की रेकी की जा रही थी और अलग-अलग माध्यमों से धमकियां मिल रही थीं. जेल में उसकी गतिविधियों की निगरानी में सीबीआई के भी कुछ मझोले स्तर के अधिकारी रात-दिन जुटे हुए थे. वे अपने सरकारी अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर रहे थे और ‘कोई’ उन्हें मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. यह बात दस्तावेजों में भी आ चुकी है. सीबीआई एक तरफ रक्षा सौदा घोटाले की ईमानदारी से जांच कर रही थी तो दूसरी तरफ सीबीआई के ही कुछ अधिकारी कुछ अन्य अधिकारियों के साथ मिल कर रक्षा सौदा घोटाले में लिप्त कुछ खास लोगों को बचाने और कुछ को बलि का बकरा बनाने के लिए तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने में लगे थे.

बहरहाल, सरकारी गवाह को सुरक्षा मुहैया कराने के मद्देनजर तिहाड़ जेल में अभिषेक वर्मा और उसकी रोमानियाई पत्नी आन्का मारिया वर्मा को बुलेट प्रूफ जैकेट मुहैया कराई गई. सुरक्षा कवायद और पीएमओ से लेकर सीबीआई और दिल्ली पुलिस के बीच इस मसले पर मंत्रणा चल ही रही थी कि तभी तिहाड़ जेल में बंद माफिया सरगना और दाऊद इब्राहीम गिरोह से जुड़े रहे कुख्यात अपराधी मुन्ना बजरंगी का एक पत्र तिहाड़ जेल प्रबंधन के हाथ लगा, जिसमें मुन्ना बजरंगी ने रक्षा सौदा घोटाले के सरकारी गवाह अभिषेक वर्मा को मुहैया कराई गई बुलेट प्रूफ जैकेट के बारे में सूचना के अधिकार के तहत अहम जानकारियां मांगी थीं.

आरटीआई का सहारा लेकर यहां तक जानने की कोशिश की गई थी कि अभिषेक वर्मा कब-कब बुलेट प्रूफ जैकेट पहनता है और जेल से कोर्ट ले जाने के वक्त और कोर्ट की कार्यवाहियों के दरम्यान उसे बुलेट प्रूफ जैकेट पहनने की औपचारिक इजाजत मिली हुई है या नहीं? सीबीआई का कानूनी पक्ष देखने वाले एक अधिवक्ता ने कहा कि ये जानकारियां इस इरादे से भी मांगी गई थीं कि मामला इतना तूल पकड़े और विवादास्पद हो जाए कि जेल में मिल रही यह सुविधा उससे वापस ले ली जाए, ताकि फिर आराम से ‘टार्गेट’ निपटाया जा सके. आरटीआई के तहत सूचना मांगने वाले आवेदन पर प्रेम प्रकाश सिंह का हस्ताक्षर था. बाद में यह बात खुली कि प्रेम प्रकाश सिंह कोई और नहीं खुद मुन्ना बजरंगी है. फिर आनन-फानन सरकारी गवाह और उसकी पत्नी को ‘वाई’ कैटेगरी की सुरक्षा के तहत तिहाड़ जेल में ही 24 घंटे की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई गई थी.

विडंबना यह है कि हाई-प्रोफाइल रक्षा सौदा घोटाले के सरकारी गवाह का सफाया करने के लिए किन लोगों ने मुन्ना बजरंगी को ‘सुपारी’ दी थी, इसका पता लगाने के बजाय केंद्र सरकार ने मुन्ना बजरंगी को तिहाड़ जेल से हटा कर यूपी की जेल में रवाना कर दिया. यह पूरा प्रकरण ही दबा दिया गया. जबकि यह संदर्भ अत्यंत संवेदनशील था और इसका खुलना देश-हित में जरूरी था, लेकिन इस तरफ से खुफिया एजेंसियों ने आंख मूंद ली. रक्षा सौदा घोटाले के सरकारी गवाह अभिषेक वर्मा ने इस मसले में सीबीआई को कई महत्वपूर्ण सुराग दिए थे. उसने आर्म्स-डीलिंग में लगे कई प्रतिद्वंद्वियों के नाम भी बताए थे. उसने ऐसे भी लोगों के नाम बताए थे, जो विभिन्न देशों में आर्म्स-डीलिंग में बिचौलिए का धंधा करने वाली अमेरिकी कंपनी गैन्टन लिमिटेड के मालिक सी. एडमंड एलेन से मिलीभगत कर गलत-सलत तथ्य पेश कर कानून को गुमराह करने की कोशिशों में लगे थे. इन्हीं कोशिशों का नतीजा था कि रक्षा सौदा घोटाला मामले में दर्ज एफआईआर में असली गैन्टन लिमिटेड को मुजरिम न बना कर उसकी सब्सीडियरी कंपनी गैन्टन इंडिया लिमिटेड को मुजरिम बना दिया गया था. इसमें भी अभिषेक वर्मा को छोड़ कर किसी अन्य का नाम नहीं था.

जबकि गैन्टन इंडिया लिमिटेड के कुछ अन्य कर्ताधर्ता मूल कंपनी गैन्टन लिमिटेड यूएसए के मालिक एलेन और कुछ अधिकारियों के साथ मिल कर एक बकरे को कुर्बान करने की तिकड़म रचने में लगे थे. इसकी गहराई से जांच होती तो कई सफेदपोश चेहरे नंगे होते जो रक्षा सौदे में तह तक लिप्त हैं, लेकिन उनके बारे में लोग कुछ नहीं जान पाए.  जिनके बारे में देश के लोग कुछ जान पाए, उनका भी क्या हुआ? मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुए अगस्टा-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले पर खूब शोर मचाया. लेकिन उस मामले में मोदी सरकार ने क्या किया? वायुसेना के पूर्व प्रमुख एसपी त्यागी को गिरफ्तार करने के अतिरिक्त कुछ नहीं हुआ. रक्षा सौदे में लिप्त पाए गए लंदन के भारतीय मूल के धनाढ्य व्यापारी सुधीर चौधरी, धनाढ्य एनआरआई विपिन खन्ना, पूर्व नौसेना अध्यक्ष सुरेश नंदा जैसी हस्तियों का भी सीबीआई कुछ नहीं बिगाड़ पाई.

सीबीआई के ही कुछ अधिकारी बताते हैं कि रक्षा सौदा घोटाला मामले में अभिषेक वर्मा अगर सरकारी गवाह नहीं बनता तो उसे बड़े ही सुनियोजित तरीके से निपटा दिया जाता. सीबीआई के अधिकारी यह भी मानते हैं कि सरकारी गवाह बनने के बाद अभिषेक वर्मा ने जिन अधिकारियों और जिन दलालों की संदेहास्पद भूमिका के बारे में बाकायदा लिखित तौर पर बताया, उसे सीबीआई ने रक्षा सौदा मामले से संदर्भित नहीं बता कर, दबा दिया. वह मामला आगे नहीं बढ़ा. गैन्टन इंडिया लिमिटेड के एक डायरेक्टर विक्की चौधरी ने सीबीआई इंसपेक्टर राजीव सोलंकी, इंसपेक्टर सतिंदर सिंह और सब इंसपेक्टर अविनाश कुमार के सामने सीबीआई दफ्तर में ही अभिषेक को रास्ते से हटाने की धमकियां दी थीं.

इसकी आधिकारिक तौर पर सूचना सीबीआई की एसपी मीनू चौधरी और सीबीआई निदेशक को दी गई थी. यहां तक कि अभिषेक की रोमानियाई पत्नी आन्का मारिया वर्मा से मिलने आई रोमानिया की राजदूत वेलेरिका एपुरे के सामने ही सीबीआई के एसएसपी रमनीश गीर ने आन्का को धमकियां दीं, इस पर राजदूत ने उन्हें मर्यादा में रहने की ताकीद की थी. सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक ओपी गलहोत्रा ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि टेलीफोन और ई-मेल के जरिए वर्मा दम्पति को धमकियां दी जा रही थीं. इस बारे में उनका और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के बीच आधिकारिक संवाद भी हुआ था, फिर वर्मा दम्पति की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम तो किया गया, लेकिन जांच के नजरिए से यह मसला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

प्रवर्तन निदेशालय के डिप्टी डायरेक्टर रहे अशोक अग्रवाल, सीबीआई के एसएसपी रमनीश गीर और इंसपेक्टर राजेश सोलंकी के नाम इस प्रसंग में सामने आए और सरकारी गवाह को धमकी देने के साथ-साथ रक्षा सौदा मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने की कोशिशें करने की शिकायतें भी हुईं, लेकिन सीबीआई ने उसे अपनी जांच की परिधि में नहीं रखा. जबकि गृह मंत्रालय ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग को जरूरी कार्रवाई करने को कहा था. सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक (पॉलिसी) जावीद अहमद के समक्ष भी यह मामला पहुंचा, लेकिन उन्होंने भी इसकी जांच कराने के बजाय इसे टाल देना ही बेहतर समझा.

अभिषेक वर्मा पर रक्षा सौदे में करोड़ों रुपए की दलाली और घूस खाने का जो आरोप सीबीआई के एसएसपी रमनीश गीर और अशोक अग्रवाल ने लगाया था, वह साबित नहीं हुआ और अदालत ने उसे बरी कर दिया. सीबीआई के ही कुछ अधिकारी कहते हैं कि इसके बाद तो उन लोगों के खिलाफ जांच होनी चाहिए थी जिन्होंने पूरे रक्षा सौदा मामले को तोड़ने-मरोड़ने की आपराधिक हरकतें की थीं, लेकिन कार्रवाई आगे बढ़ाने की हरी झंडी नहीं मिली. आरोप था कि रक्षा उपकरण बनाने वाली जर्मनी की कंपनी ‘रेइनमेटल’ ने वर्मा को देश के रक्षा सौदे से जुड़े अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए करीब साढ़े पांच लाख डॉलर दिए थे. लेकिन अदालत में यह आरोप प्रमाणित नहीं हुआ.

इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि तिहाड़ जेल प्रबंधन के हस्तक्षेप पर दिल्ली के लोधी रोड थाने में दर्ज एफआईआर में यह तथ्य सामने रखा जा चुका था कि विक्की चौधरी और अशोक अग्रवाल ने दाऊद इब्राहीम के कॉन्ट्रैक्ट-किलर मुन्ना बजरंगी को सुपारी दी है. उधर, सरकारी गवाह को मिली बुलेट प्रूफ जैकेट के बारे में आरटीआई के जरिए सुराग लेने की कोशिश करने वाले माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी से भी सीबीआई ने कोई पूछताछ नहीं की. सरकार ने बस इतना किया कि मुन्ना बजरंगी को तिहाड़ जेल से हटा कर पहले सुल्तानपुर जेल फिर झांसी जेल भेज दिया. माफिया

सरगनाओं के जेलों से धंधा चलाने की सूचना मिलने पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जेलों में बंद कई माफियाओं को इधर-उधर भेजने का आदेश जारी किया. इसी में मुन्ना बजरंगी को झांसी से पीलीभीत जेल ट्रांसफर किया गया, लेकिन उसने सुप्रीम कोर्ट से अपना ट्रांसफर रुकवा लिया. मुन्ना बजरंगी लंबे समय से झांसी जेल में बंद है. उसकी पत्नी सीमा सिंह ने इस बार अपना दल (कृष्णा पटेल) और पीस पार्टी के साझा उम्मीदवार के बतौर मड़ियाहू विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गई.

मुन्ना बजरंगी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का रहने वाला है. 29 नवम्बर 2005 को गाजीपुर जिले में मोहम्मदाबाद क्षेत्र के विधायक कृष्णानन्द राय की हत्या के बाद उसका नाम सुर्खियों में आया था. इस हत्याकांड के बाद वह नेपाल भाग गया था और दाऊद के करीबी मंत्री मिर्जा दिलशाद बेग के घर में छुपा था. मुन्ना बजरंगी की जड़ें महाराष्ट्र में भी बहुत गहरी हैं. ठेके पर हत्या करना उसका सबसे बड़ा कारोबार है. पुर्तगाल में गिरफ्तार अबू सलेम के भारत लाए जाने के बाद दाऊद इब्राहीम ने उसका सफाया करने का ठेका मुन्ना बजरंगी को ही दिया था. मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह है. मुंबई में रहते हुए ही उसका अंतरराष्ट्रीय अपराधी गिरोहों से सम्पर्क बना और कई बार वह विदेश भी गया. नजफगढ़ के विधायक भरत सिंह की हत्या के पीछे भी मुन्ना बजरंगी का ही नाम आया था.

आर्म्स डीलर की फरारी पर खुफिया एजेंसियों का झूठ

अरबों रुपए का बैंक लोन हड़प कर विदेश भागे उद्योगपति विजय माल्या के बारे में तो खूब हल्ला मचा और उंगलियां उठीं. माल्या को विदेश भागने में किसने मदद की, इसे लेकर खूब आरोप-प्रत्यारोप लगे. लेकिन देश के रक्षा सौदों में घूसखोरी और कमीशनखोरी कराने वाले हथियार डीलर संजय भंडारी को देश से भगाने में किन हस्तियों ने और किन एजेंसियों ने मदद की इस पर कोई बात नहीं उठी. संजय भंडारी सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा का खास दोस्त है. फरार संजय भंडारी को तलाशने में भी खुफिया एजेंसियां कोई रुचि नहीं ले रही हैं. कहा गया कि संजय भंडारी की गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल से नोटिस जारी हो गई है. लेकिन आपको बता दें कि खुफिया एजेंसियां इंटरपोल की नोटिस के नाम पर सफेद झूठ परोस रही हैं. संजय भंडारी की गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल से कोई नोटिस जारी नहीं हुई है. यहां तक कि सीबीआई की वांटेड-लिस्ट में भी संजय भंडारी का नाम शुमार नहीं है. इंटरपोल और सीबीआई दोनों एजेंसियों की वांडेड-लिस्ट की स्कैन-कॉपी आपके समक्ष भी रख रहे हैं, जिसमें संजय भंडारी का नाम कहीं नहीं है.

खुफिया एजेंसियों के सूत्र आर्म्स डीलर संजय भंडारी की फरारी को माफिया-नेता-नौकरशाह गठजोड़ का योजनाबद्ध परिणाम बताते हैं. फरारी में किस माफिया गिरोह से मदद ली गई, यह आधिकारिक तौर पर तो जांच का विषय है, लेकिन अनधिकृत तौर पर खुफिया एजेंसियों के खास सूत्रों को उस माफिया के बारे में पता है, जिससे संजय को भगाने में मदद ली गई. अंतरराष्ट्रीय हथियार डीलरों के उस माफिया सरगना से ‘क्लोज-लिंक’ हैं.

आर्म्स डीलर संजय भंडारी जिन स्थितियों में देश छोड़ कर भागा, वह सुनियोजित सरकारी बंदोबस्त के बगैर संभव ही नहीं है. आयकर विभाग ने संजय भंडारी का पासपोर्ट पहले ही जब्त कर रखा था. फिर वह विदेश कैसे भागा? सरकारी एजेंसियां कहती हैं कि संजय भंडारी नकली पासपोर्ट के जरिए भागा, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि भी नहीं करतीं. अगर सरकारी एजेंसियां यह आधिकारिक तौर पर पुष्ट कर दें कि संजय भंडारी नकली पासपोर्ट के जरिए भागा तो उन्हें नकली पासपोर्ट बनने से लेकर उस एयरपोर्ट तक का ब्यौरा देना होगा, जहां से उसकी रवानगी हुई और इमिग्रेशन ने उसे क्लीयरेंस दी. गृह मंत्रालय यह कह चुका है कि किसी बंदरगाह या एयरपोर्ट से उसके निकलने की सूचना नहीं मिली है.

आर्म्स डीलर संजय भंडारी के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत दिल्ली में केस दर्ज हुआ था. दिल्ली के डिफेंस कॉलोनी स्थित संजय भंडारी के घर से वायुसेना से जुड़े कुछ गोपनीय दस्तावेज मिले थे. आर्म्स डीलर ने खुफिया एजेंसियों के समक्ष यह स्वीकार भी किया था कि उसके कम्प्यूटर से बरामद ई-मेल संदेश उसके और रॉबर्ट वाड्रा के बीच के थे. संजय भंडारी के खिलाफ बाकायदा रक्षा मंत्रालय की तरफ से संसद मार्ग थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी. संजय की रहस्यमय फरारी पर अंधेरे में हाथ भांजती एजेंसियों ने झेंप मिटाने के लिए उसकी 21 करोड़ रुपए की सम्पत्ति जब्त की है. जबकि उन्हीं एजेंसियों का कहना है कि विदेशों में संजय भंडारी की अकूत सम्पत्ति है. प्रवर्तन निदेशालय को संजय भंडारी और रॉबर्ड वाड्रा की विदेशों में कई साझा सम्पत्तियों का भी पता चला है. रॉबर्ड वाड्रा के मित्र आर्म्स डीलर संजय भंडारी ने यूपीए कार्यकाल में भारतीय वायुसेना के लिए स्विट्जरलैंड की कंपनी ‘पाइलैटस’ से चार हजार करोड़ रुपए के ट्रेनर एयरक्राफ्ट की खरीद की डील कराई थी. इसमें अरबों रुपए की कमीशनखोरी हुई थी, जिसकी जांच चल ही रही थी कि संजय को विदेश भगा दिया गया.

राहुल के करीबी रहे हैं अभिषेक और आन्का

एक तरफ आर्म्स डीलर संजय भंडारी की रॉबर्ट वाड्रा से दोस्ती रही है तो दूसरी तरफ आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा के राहुल गांधी से गहरे ताल्लुकात रहे हैं. अभिषेक की रोमानियाई पत्नी आन्का मारिया भी राहुल गांधी से मिल चुकी है. राहुल ने अपने घर पर ही आन्का से मुलाकात की थी. रक्षा सौदे की छानबीन की प्रक्रिया में यह बात भी सामने आई थी कि हथियार कंपनी ‘सिग सॉउर’ के अधिकारियों के साथ राहुल गांधी ने छह दिसंबर 2011 को अपने घर पर एक घंटे तक बैठक की थी. इस मुलाकात में भी अभिषेक वर्मा और उसकी पत्नी शामिल थी. उसी बैठक के अगले ही दिन वर्मा और जर्मन हथियार कंपनी के अधिकारियों ने गृह मंत्रालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी सुरेश कुमार से जैसलमेर हाउस में मुलाकात की थी. इसके बाद अभिषेक वर्मा और उसकी पत्नी व हथियार बनाने वाली कंपनी के अन्य अधिकारियों की तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री एम पल्लम राजू से रक्षा मंत्रालय में मुलाकात हुई थी. यह भी बताते चलें कि अभिषेक वर्मा वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सांसद श्रीकांत वर्मा व पूर्व सांसद वीणा वर्मा का बेटा है. इंदिरा गांधी के करीबी रहे श्रीकांत वर्मा ने ही मशहूर नारा बनाया था, ‘जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’.

मनी लॉन्ड्रिंग में भी काम आ रहे संगठित अपराधी गिरोह

काले धन को सफेद करने के धंधे में संगठित अपराधी गिरोहों की सक्रियता लगातार बढ़ती ही जा रही है. इस काम के लिए भी अब अपराधी गिरोहों से ही मदद ली जा रही है. स्विट्जरलैंड सरकार यह आधिकारिक तौर पर खुलासा कर चुकी है कि मनी लॉन्डरिंग कारोबार के तार संगठित अपराध के गिरोहों से जुड़े हैं. इसमें भारत के आपराधिक गिरोह भी शामिल हैं. स्विट्जरलैंड सरकार की एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग रिपोर्टिंग ऑफिस स्विट्जरलैंड (एमआरओएस) ने कहा कि वर्ष 2013 में 1,411 संदिग्ध गतिविधियों में तीन अरब स्विस फ्रैंक शामिल थे. यह राशि भारतीय मुद्रा में करीब 20,000 करोड़ रुपए से भी अधिक होती है. इसमें संगठित अपराधी गिरोहों की सक्रिय भूमिका निहित देखी गई. काले धन को सफेद करने के काम में संगठित अपराधी गिरोहों की भूमिका लगातार बढ़ती ही जा रही है. केवल स्विट्जरलैंड के प्रसंग में वर्ष 2012 में ऐसे मामले 97 थे, जो 2013 में बढ़ कर 104 हो गए. मनी लॉन्ड्रिंग कारोबार में संगठित अपराधी गिरोहों की लिप्तता वर्ष 2014 में 135, 2015 में 150 और 2016 में करीब दो सौ तक पहुंच गई. काला धन सफेद करने में लगे संगठित गिरोहों में भारत, चीन और ब्राजील के गिरोह अव्वल पाए गए हैं. काला धन जमा करने के मामले में स्विट्जरलैंड को स्वर्ग कहा जाता रहा है. स्विट्जरलैंड की सरकारी रिपोर्ट यह भी कहती है कि वहां से होने वाली टेरर-फंडिंग में भारत के संगठित गिरोहों की भूमिका नगण्य है.

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