ghatiअमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले ने आंतकवाद की घटनाओं में होने वाली नागरिक मौतों को लेकर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं. हालांकि मारे गए सभी लोग कश्मीर से बाहर के थे, लेकिन फिर भी इस घटना ने घाटी में आंतकवाद की घटनाओं में मारे गए आम नागरिकों की संख्या में इजाफा तो कर ही दिया है. 10 जुलाई की रात 7 अमरनाथ यात्रियों की मौत से पहले, 30 जून 2017 को आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पिछले एक वर्षों के दौरान कश्मीर में आंतकवाद के कारण होने वाली नागरिकों को मौतों में 164 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

दिल्ली स्थित एक संस्था इंस्टिट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट द्वारा संचालित दक्षिण एशियाई आतंकवाद पोर्टल के द्वारा कश्मीर में आंतकी घटनाओं से संबंधित आंकड़े जारी किए गए हैं. इन आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल के दौरान कश्मीर में आंतकी गतिविधियों में 45 फीसदी की वृद्धि हुई है और इनमें मरने वाले नागरिकों की संख्या में 164 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015-16 में नागरिकों, सुरक्षाकर्मियों और आतंकवादियों को मिलाकर कुल 216 लोगों की मौत हुई थी, जो संख्या 2016-17 में बढ़कर 313 हो गई. पिछले पांच वर्षों में यह साल-दर-साल की उच्चतम वृद्धि है. केवल नागरिकों की मौत की बात करें, तो 2015-16 में आंतकी घटनाओं में 14 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2016-17 में 37 लोग आंतक का शिकार हुए. इसी अवधि के दौरान आंतकवादियों की मौत में 18 फीसदी की वृद्धि हुई है. वर्ष 2016-17 में पुलिस और सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 178 आतंकी मारे गए हैं.

पिछले साल सेना द्वारा बुरहान वानी को मारे जाने के बाद से आंतक की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिली है. एक साल पहले 8 जुलाई, 2016 को सुरक्षा बलों ने बुरहान वानी को मार गिराया था. इसके बाद पूरे जम्मू-कश्मीर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए और कई महीनों तक कर्फ्यू लगा रहा. गौर करने वाली बात ये भी है कि बुरहान की बरसी पर जब घाटी में किसी अनहोनी की आशंका को लेकर सेना पूरी तरह से चौकसी बनाए हुए थी, उसी समय 8 जुलाई, 2017 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने वानी को श्रद्धांजलि अर्पित की.

शरीफ ने ये भी कहा कि वानी की मौत ने कश्मीर घाटी में आजादी के संघर्ष में एक नई भावना को जगाया है. इससे साफ समझा जा सकता है कि पाकिस्तान किस तरह से कश्मीर में आंतक को हवा दे रहा है. हालांकि सुरक्षा और राजनयिक मोर्चे दोनों के लिहाज से वैश्विक मंच पर भारत को आतंकवाद के खिलाफ सफलता मिली है और पाकिस्तान ने मुंह की खाई है.

27 जून 2017 को वाशिंगटन-डीसी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मोदी की बैठक से पहले, संयुक्त राज्य अमेरिका ने हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन को विश्व आतंकवादी घोषित किया. सैयद सलाहुद्दीन संयुक्त जिहाद परिषद का नेतृत्व करता है, जो लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे भारत-विरोधी आतंकवादी संगठनों के लिए एक सहायक संगठन है. यह संगठन पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर से भारत में आंतक फैलाने का काम करता है. पिछले साल 2 जनवरी को पंजाब के पठानकोट में भारतीय वायु सेना के बेस पर हुए हमले का मास्टरमाइंड सैयद सलाहुद्दीन ही था.

आतंक की भेंट चढ़े 60 से ज्यादा अमरनाथ यात्री

पिछले 10 सालों से अमरनाथ यात्रा शांतिपूर्ण ढंग से चल रही थी. लेकिन 10 जुलाई को आतंकियों द्वारा एक यात्री बस पर किए गए हमले में 7 लोगों की मौत ने फिर से पुराने जख्म को हरा कर दिया है. अमरनाथ यात्रा सबसे पहले सन 2000 में आंतक के निशाने पर आई थी, जब पहलगाम बेस कैंप पर आतंकियों ने हमला किया था. इस हमले में श्रद्धालुओं, पुलिस के जवान और स्थानीय नागरिकों को मिलाकर 30 लोग मारे गए थे और 60 से ज्यादा घायल हुए थे. इसके अगले ही साल फिर से एक यात्री कैम्प पर आतंकियों ने दो हथगोले फेंके, जिसमें 12 लोग मारे गए और 15 लोग घायल हुए थे. फिर जुलाई 2002 में भी आतंकियों ने जम्मू के पास यात्रियों पर हथगोला फेंका और गोलियां चलाईं, जिसमें दो यात्री मारे गए और दो घायल हुए. इसके एक महीने बाद ही 06 अगस्त 2002 को अमरनाथ यात्रियों के एक कैम्प पर आतंकियों ने हमला किया. इस हमले में 10 से ज्यादा लोग मारे गए और तीस अन्य लोग घायल हुए. इसके बाद चार वर्षों तक अमरनाथ यात्रा शंतिपूर्ण ढंग से चलती रही. लेकिन 2006 में आतंकियों ने फिर से एक बार अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाया और इस हमले में एक श्रद्धालु की मौत हो गई. अब 10 साल बाद फिर से अमरनाथ यात्रा पर आतंक के बादल मंडराए हैं.

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