जैसे ही दिल्ली एक और चुनावी मुकाबले के लिए तैयार हो रही है, राजनीतिक माहौल में तनाव और प्रत्याशा उभर रहा है। भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी से नियंत्रण छीनने के लिए बेताब है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कई रणनीतियों का उपयोग करने के लिए तैयार दिखती है। इसके कारण अशांति और हिंसा भड़काने का प्रयास हो सकता है। यह आलेख दिल्ली में चल रहे राजनीतिक संघर्ष को गहराई से समझने के क्रम में मौजूदा स्थिति की ओर ले जाने वाली अंतर्निहित प्रेरणाओं और ऐतिहासिक संदर्भों की पड़ताल करता है।

नियंत्रण की लड़ाई : 2015 के बाद से केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से सेवाओं का नियंत्रण छीन लिया है। आप प्रशासन को कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इनका उद्देश्य आप के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करना था। हाल ही में 5,000 स्कूल शिक्षकों का अचानक स्थानांतरण किया गया। शहर की शिक्षा प्रणाली को अपंग बनाने की धमकी दी गई थी। इसे सार्वजनिक विरोध के बीच जल्दी ही वापस ले लिया गया। ऐसे कार्य आप की सरकार को बाधित करने का सुनियोजित प्रयास ही है। यह कथित “ब्रह्मास्त्र” के नाम पर मुस्लिम विरोधी ध्रुवीकरण व हिंसा का प्रयोग कर मतदाताओं को प्रभावित करने की नीति है।

आप की घेराबंदी और शत्रुता के कारण: आप और अरविंद केजरीवाल के प्रति सत्ताधारी पार्टी की शत्रुता कई प्रमुख घटनाओं से जुड़ी है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर करती है। अन्ना हजारे आंदोलन के पहले से ही केजरीवाल सक्रिय रूप से प्रणालीगत भ्रष्टाचार और अक्षमता को चुनौती दे रहे थे।

केजरीवाल की सूचना का अधिकार पर केंद्रित गतिविधि ने 2005 में तत्कालीन दिल्ली सरकार द्वारा शहर की जल आपूर्ति का निजीकरण कर इसे प्राइसवाटरहाउसकूपर्स को सौंपने की योजनाओं का पर्दाफाश किया। हजारों पृष्ठों के सबूत जुटाकर व सार्वजनिक विरोध को संगठित कर केजरीवाल निजीकरण के प्रयास को सफलतापूर्वक विफल करते हैं। इसके कारण दिल्ली के गरीब लोगों के लिए आवश्यक जल सेवा सुलभ बना रहा। यह जीत आप की सामाजिक और सार्वजनिक कल्याण के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता के पहले की बात है।

अंबानी समूह का सामना : 2013 से 2015 तक केजरीवाल ने शक्तिशाली अंबानी समूह का सामना किया। उनके मनमाने गैस मूल्य वृद्धि को चुनौती दी और सरकारी नीतियों पर उनके अनुचित प्रभाव का पर्दाफाश किया।

राडिया टेप्स का खुलासा : कुख्यात राडिया टेप्स ने और अधिक उजागर किया कि किस हद तक कॉर्पोरेट हित राजनीतिक निर्णय लेने में घुसपैठ कर चुका है। इस संदर्भ में अंबानी समूह कहता रहा कि “कांग्रेस तो अपनी दुकान है”।

मीडिया आउटलेट्स का अभियान : स्थापित शक्तियों का सामना करने में केजरीवाल के दुस्साहस ने यथास्थिति से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान को चिह्नित किया। इससे इन कॉर्पोरेट दिग्गजों द्वारा नियंत्रित मीडिया आउटलेट्स ने आप को बदनाम करने के लिए एक निरंतर अभियान शुरू किया।

नवउदारवादी मिथकों का खंडन : आप की सरकार की एक परिभाषित विशेषता उन नवउदारवादी आर्थिक नीतियों का खंडन है जो निजीकरण और कठोरता को सार्वजनिक कल्याण पर प्राथमिकता देती है। इस प्रचलित मान्यता के विपरीत कि “मुफ्त लंच नहीं है” और “पैसे कहाँ से आएंगे?” के सवाल को चुनौती देते हुए केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिखाया है कि प्रभावी सरकारी हस्तक्षेप से निजीकरण का सहारा लिए बिना सार्वजनिक सेवाओं में सुधार किया जा सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश करके आप की दिल्ली सरकार ने दिखाया कि व्यापक आबादी को लाभान्वित करने वाली सुलभ और उच्च गुणवत्ता वाली सार्वजनिक सेवाएं बनाई जा सकती हैं।

यह दृष्टिकोण आप को नवउदारवादी स्थापना के पक्ष में नहीं लाया है, जो पार्टी की नीतियों को अपने हितों के लिए प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखती है। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी व उसके सहयोगी दल बाजार संचालित विकास के विचार को वरीयता देते हैं। शत्रुता से परिपूर्ण प्रतिक्रिया देते हैं। आप और उसके नेताओं को आर्थिक व्यवस्था को उलटने के लिए खतरनाक कट्टरपंथियों के रूप में ब्रांडिंग भी किया है। वामपंथी बयानबाजी के साथ स्पष्ट रूप से संरेखित न होने के बावजूद, नवउदारवादी मिथकों को खंडित करने में आप की व्यावहारिक उपलब्धियों ने इसे यथास्थिति के लिए एक दुर्जेय प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित किया है।

आगे की राह : जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है दिल्ली के निवासियों को संभावित अशांति के लिए तैयार रहना चाहिए। किसी भी कीमत पर नियंत्रण फिर से हासिल करने के लिए केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी का दृढ़ संकल्प विभिन्न प्रकार के व्यवधान और संघर्ष के रूप में प्रकट हो सकता है। हालाँकि इस संघर्ष के व्यापक निहितार्थों को पहचानना महत्वपूर्ण है। आप और भाजपा के बीच की लड़ाई केवल राजनीतिक शक्ति के लिए संघर्ष नहीं है। यह दिल्ली और भारत के भविष्य के लिए विचारधाराओं और दृष्टिकोणों का टकराव है।

पारदर्शिता, जवाबदेही और सार्वजनिक कल्याण पर आप का जोर भारतीय राजनीति पर लंबे समय से हावी ताकतों को चुनौती देता है। भ्रष्टाचार को उजागर कर, निजीकरण का विरोध कर और सार्वजनिक सेवाओं में निवेश कर आप ने एक ऐसा मार्ग प्रशस्त किया है जो कॉर्पोरेट लाभ से अधिक सामान्य भलाई को प्राथमिकता देता है। यह दृष्टि दिल्लीवासियों के साथ मेल खाती है, जिन्होंने आवश्यक सेवाओं तक बेहतर पहुंच का प्रत्यक्ष रूप से लाभ उठाया है।

हालाँकि सत्ताधारी पार्टी के व्यापक संसाधन और प्रभाव एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करते हैं। सामुदायिक ध्रुवीकरण और हिंसा की संभावना एक गंभीर अनुस्मारक है कि सत्ता बनाए रखने के लिए किस हद तक जा सकते हैं। दिल्ली के मतदाताओं को इस तनावपूर्ण परिदृश्य को सतर्कता और विवेक के साथ नेविगेट करना होगा। यह जानते हुए कि उनके द्वारा किए गए चुनाव शहरी जीवन के भविष्य पर स्थायी प्रभाव डालेंगे।

अंत में दिल्ली में चल रहे राजनीतिक संघर्ष समकालीन भारतीय राजनीति को चिह्नित करने वाले गहरे तनावों और प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोणों को उजागर करते हैं। जैसे ही आप पारदर्शिता और सामाजिक समानता का समर्थन करना जारी रखती है, यह सत्ताधारी पार्टी से निरंतर विरोध का सामना करती है, जो अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित है। इस संघर्ष का परिणाम न केवल दिल्ली के तत्काल भविष्य को बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और आर्थिक विकास की व्यापक दिशा को भी आकार देगा।

रणधीर कुमार गौतम 

समाजशास्त्री और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो ग्वालियर के एक निजी विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। उनका कार्य अकादमिक दृष्टिकोण को गांधीवादी सिद्धांतों के साथ मिलाकर समकालीन सामाजिक मुद्दों को संबोधित करता है। अपने सक्रियता और शिक्षण के माध्यम से, वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा देते हैं।

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