दिल्ली का सियासी दंगल शुरू हो चुका है. जीत के इरादे और झोली भर वादे लेकर सियासी पार्टियां मैदान में कूद चुकी हैं. चुनावी तैयारियों के लिहाज से आम आदमी पार्टी (आप) सबसे आगे नज़र आ रही है. ऐसा लाजिमी भी है, क्योंकि इस चुनाव से अगर किसी पार्टी का सियासी मुस्तकबिल तय होना है, तो वह आम आदमी पार्टी ही है. इससे पहले भी कई आलेखों के ज़रिये यह बताया जा चुका है कि आप के लिए सबसे बड़ी चुनौती वह मध्य वर्ग है, जिसने पिछले साल तो इस पार्टी का भरपूर साथ दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के समय इससे छिटक कर दूर जा खड़ा हुआ. पार्टी की मुख्य चिंता भी यही है कि कैसे इस मध्य वर्ग को अपने साथ लाया जाए. लेकिन, इस सबके बीच आम आदमी पार्टी के सामने कई और चुनौतियां भी पेश आ रही हैं.
मसलन, पुराने साथियों का पार्टी छोड़ना, टिकट बंटवारे को लेकर कार्यकर्ताओं के बीच नाराज़गी (भले ही वह नाराज़गी अभी खुलकर सामने नहीं आ रही है, लेकिन ऐन चुनाव के वक्त वह भारी पड़ सकती है) और कम मात्रा में चंदा आना. अभी चंदा मिल तो रहा है, लेकिन उतना नहीं, जितने की ज़रूरत है. बहरहाल, सबसे बड़ी समस्या टिकट बंटवारे को लेकर खड़ी होने वाली है. आम आदमी पार्टी ने अपने कई वर्तमान विधायकों के टिकट काट दिए हैं और कई के कटने वाले हैं. टिकट कटने की आशंका से भी कई विधायकों में खलबली मची हुई है. वहीं स्थानीय स्तर पर कुछ नए चेहरों को टिकट देने की बात से भी पार्टी को कार्यकर्ताओं की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है. ताजा उदाहरण है, आम आदमी पार्टी के विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एमएस धीर द्वारा भाजपा का दामन थामना.
आम आदमी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए एमएस धीर का कहना है कि वह पार्टी से नाराज़ नहीं हैं, बल्कि कार्यकर्ताओं से परेशान थे. धीर के साथ आप के राजेश राजपाल और विरोध में आवाज़ उठाने के कारण आम आदमी पार्टी से बाहर किए जा चुके अश्विनी उपाध्याय भी भाजपा में शामिल हुए. उधर पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि धीर का टिकट भी कटने वाला था, इसलिए पहले ही उन्होंने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन इस सफाई से पार्टी को कोई फ़ायदा होगा, ऐसा नहीं लगता. बागी विधायक विनोद कुमार बिन्नी पहले से ही बगावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं. बिन्नी घोषणा कर चुके हैं कि वह उसी सीट से चुनाव लड़ेंगे, जिस पर खुद अरविंद केजरीवाल उतरेंगे.
बात अगर टिकट बंटवारे की करें, तो पहली सूची में 12 पूर्व विधायकों के नाम हैं. दस हारे हुए उम्मीदवारों को भी पार्टी ने टिकट दिया है. दो पूर्व विधायकों, बिन्नी और धीर के भाजपा में जाने के बाद अब रोहिणी से पूर्व विधायक राजेश गर्ग, तिमारपुर से पूर्व विधायक डॉ. हरीश खन्ना एवं सीमापुरी से धर्मेंद्र कुमार समेत कुछ और विधायकों के टिकट कटने क़रीब-क़रीब तय हैं.
दूसरी तरफ़, धन की कमी से जूझ रही पार्टी ने अब डिनर पार्टी के ज़रिये फंड जुटाने की पहल शुरू कर दी है. इसके तहत अरविंद केजरीवाल के साथ किसी को डिनर करने के लिए 20 हज़ार रुपये देने होंगे. पिछला विधानसभा चुनाव महज 20 करोड़ रुपये में लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने इस बार अपना बजट बढ़ाकर 30 करोड़ रुपये कर दिया है. अभी पार्टी को रोजाना स़िर्फ दो से ढाई लाख रुपये अधिकतम चंदा मिल पा रहा है. जाहिर है, अगर इस रफ्तार से चंदा मिला, तो पार्टी के लिए तीस करोड़ रुपये जुटाना आसान नहीं होगा. वैसे, पार्टी पैसा इकठ्ठा करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है और उसे उम्मीद है कि जैसे ही चुनाव की तारीख घोषित होगी, चंदा मिलने की रफ्तार भी बढ़ती जाएगी. लेकिन, इस सबसे एक बात तो साफ़ होती ही है कि दिल्ली की सत्ता छोड़ने का खामियाजा पार्टी को आर्थिक रूप से भी भुगतना पड़ा है.
बात अगर टिकट बंटवारे की करें, तो पहली सूची में 12 पूर्व विधायकों के नाम हैं. दस हारे हुए उम्मीदवारों को भी पार्टी ने टिकट दिया है. दो पूर्व विधायकों, बिन्नी और धीर के भाजपा में जाने के बाद अब रोहिणी से पूर्व विधायक राजेश गर्ग, तिमारपुर से पूर्व विधायक डॉ. हरीश खन्ना एवं सीमापुरी से धर्मेंद्र कुमार समेत कुछ और विधायकों के टिकट कटने क़रीब-क़रीब तय हैं. राजेश गर्ग पहले से ही चुनाव न लड़ने की बात कर रहे थे और सरकार से इस्तीफ़ा देने के मसले पर पार्टी के साथ उनके मतभेद भी थे. इसके अलावा, पार्टी कुछ और विधायकों के टिकट काट सकती है और नए जुड़े लोगों को टिकट दे सकती है. इस मसले को लेकर भी स्थानीय स्तर पर अभी से ही नाराज़गी के स्वर उभरने लगे हैं. जाहिर है, अगर पार्टी इस मुद्दे को समय रहते नहीं सुलझा पाती है, तो चुनाव के समय उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है.
बहरहाल, अगर बात फिर से मध्य वर्ग के मतदाताओं की करें, जो यह आम आदमी पार्टी के लिए चिंता का एक विषय है. इस वर्ग विशेष को रिझाने के लिए आम आदमी पार्टी भरपूर कोशिश कर रही है. पार्टी ने 8 लाख नई नौकरियां देने का वादा किया है. दिल्ली डायलॉग कार्यक्रम के तहत युवाओं के लिए एक अलग मेनिफेस्टो लाया गया, जिसमें रोज़गार, शिक्षा और वाई-फाई की घोषणा की गई. दिल्ली सरकार में 55 हज़ार रिक्त पदों पर नियुक्तियां करने और बंद पड़ीं 20 औद्योगिक इकाइयों को फिर से शुरू करने की बात कही गई. अरविंद केजरीवाल यह भी कहते हैं कि हम दिल्ली को देश का दूसरा पंजाब नहीं बनने देंगे, हम ड्रग्स को दिल्ली से ख़त्म करेंगे. आम आदमी पार्टी ने शिक्षा, रोज़गार एवं खेलकूद से जुड़ीं योजनाएं शुरू करने, दिल्ली को वाई-फाई जोन और गांवों द्वारा ज़मीन दिए जाने पर स्टेडियम बनाने की भी बात कही है.
जाहिर है, इन वादों के सहारे पार्टी मध्य वर्ग और खासकर, युवा वर्ग को आकर्षित करना चाहती है. ग़ौरतलब है कि मध्य वर्ग के साथ-साथ दिल्ली का युवा वर्ग भी लोकसभा चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी की ओर चला गया था. नतीजतन, दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी थी.