8चुनाव अभियान जोरों पर है. अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव हो चुके हैं और हम अपना वोट डाल चुके हैं. अगर लोगों की बात और विभिन्न मीडिया द्वारा की जा रही भविष्यवाणी को सच मान लिया जाए, तो भारतीय जनता पार्टी या उसके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन दो, तीन या चार सहयोगियों के साथ एक गठबंधन सरकार बना सकता है. ठीक है, हम पिछले 20 वर्षों से गठबंधन सरकारें देख रहे हैं. एक और सही. चिंताजनक मुद्दा इस सबसे अलग है. आप भ्रष्टाचार, क़ानून-व्यवस्था या कांग्रेस की विफलता की बात कर रहे हैं, ठीक है. शायद एक नई सरकार तुरंत शासन को पटरी पर ला सके, ताकि चीजें सही जगह पर आ जाएं.
लेकिन, कई ऐसे मुद्दे हैं, जो इससे बड़े हैं और सरकार के हाथ में नहीं हैं. सबसे पहले मुद्रास्फीति की बात. मुद्रास्फीति के लिए कांग्रेस की आलोचना ठीक है, लेकिन किसी को भी यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि मुद्रास्फीति के कारण क्या हैं? भाजपा मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए क्या करेगी? मुद्रास्फीति बहुत है, भाजपा अपने हर विज्ञापन में इसकी बात कर रही है, इसे कम करने का वादा कर रही है. अब सवाल यह है कि आप इसके लिए करेंगे क्या? क्या मांग में वृद्धि के कारण मुद्रास्फीति है या आपूर्ति कम होना या फिर जमाखोरी इसकी बड़ी वजह है? क्या कारण है? इसकी एक बड़ी वजह है जमाखोरी और ज़्यादा से ज़्यादा ऐसे ही लोग भाजपा का समर्थन करते हैं. तब तो भाजपा कुछ भी करने में सक्षम नहीं होगी. मुद्रास्फीति एक ऐसा मुद्दा है, जिसका समाधान निकालने की ज़रूरत है. भाजपा को तुरंत पांच अर्थशास्त्रियों के एक पैनल की घोषणा करनी चाहिए, जो अपना दिमाग लगाकर एक खाका दें और बताएं कि कैसे वे मुद्रास्फीति नियंत्रित करना चाहते हैं.
इसी तरह सुरक्षा की चिंता और विदेश नीति का सवाल है. भाजपा के घोषणापत्र में, जो बहुत देर से आया, यह नहीं बताया गया है कि वह कैसे इन मुद्दों पर कुछ अलग करेगी. आज़ादी के बाद से, देश में सरकार के बदलाव से भी विदेश नीति कभी नहीं बदली. मोरारजी सरकार में भी विदेश नीति में परिवर्तन नहीं किया गया. देवेगौड़ा और गुजराल सरकार आई, तो भी विदेश नीति में परिवर्तन नहीं किया गया. मामूली परिवर्तन हुए, लेकिन बुनियादी परिवर्तन नहीं हुए. यहां भाजपा कहती है कि पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध खराब हैं. कांग्रेस की आलोचना करते हुए वह कहती है कि हम अमेरिका के आगे नहीं झुकेंगे, लेकिन यह नहीं बता रही है कि आख़िर वह इस सबके लिए करेगी क्या? मुझे लगता है कि विकल्प सीमित हैं. अब यह उसे पता है या नहीं, मुझे नहीं मालूम. अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है. आप इस संबंध में क्या करने जा रहे हैं? क्या आप उसके साथ व्यापार बंद करेंगे या कम कर देंगे?
चीन हमारे यहां अपने माल की डंपिंग कर रहा है. आपकी विदेशी मुद्रा चीन जा रही है. नरेंद्र मोदी चीन के फैन हैं. तो आप क्या करने जा रहे हैं? हम साल दर साल चालू खाता घाटा देख रहे हैं. उधर आप बोल रहे हैं कि एक डॉलर पचास या चालीस रुपये तक आ जाएगा. क्या आप विदेशी मुद्रा चीन को लीक करने की अनुमति देंगे? क्या खुदरा और अन्य जगहों पर अमेरिका से विदेशी निवेश होगा? खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का बेशक वे सार्वजनिक रूप से खंडन करते हैं, लेकिन एफडीआई के मुक्त प्रवाह को स्वीकारने की बात भी कर रहे हैं. तो, हमारी अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक अमेरिकी पैसा आएगा और अनावश्यक आयात से अधिक से अधिक नुकसान. मैं नहीं जानता कि लोग कैसे इन चीजों को देखते-समझते हैं. हम सात अरब डॉलर का आयात कर रहे हैं. क़रीब 48 बिलियन डॉलर का हम स़िर्फ सेल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान का आयात कर रहे हैं. क्या हम भारत में सेल फोन नहीं बना सकते? हम डॉलर में भुगतान करते हैं. सेल फोन के लिए हमें चीन की ज़रूरत है. कोई भी इसका समाधान नहीं देता.

हम साल दर साल चालू खाता घाटा देख रहे हैं. उधर आप बोल रहे हैं कि एक डॉलर पचास या चालीस रुपये तक आ जाएगा. क्या आप विदेशी मुद्रा चीन को लीक करने की अनुमति देंगे? क्या खुदरा और अन्य जगहों पर अमेरिका से विदेशी निवेश होगा? हम सात अरब डॉलर का आयात कर रहे हैं. क़रीब 48 बिलियन डॉलर का हम स़िर्फ सेल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान का आयात कर रहे हैं. क्या हम भारत में सेल फोन नहीं बना सकते? हम डॉलर में भुगतान करते हैं. सेल फोन के लिए हमें चीन की ज़रूरत है. कोई भी इसका समाधान नहीं देता.

कांग्रेस दस सालों से सत्ता में रहते हुए इसी नीति पर चलती रही, लेकिन अगर भाजपा सत्ता में आने की बात कर रही है, तो उसे जनता को आश्‍वस्त करना चाहिए कि वह कैसे कांग्रेस से अलग इन मुद्दों पर काम करेगी. नरेंद्र मोदी को पहली बात यह कहनी चाहिए कि वह चीन से अनावश्यक आयात रोकने जा रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. नरेंद्र मोदी एक साल में तीन बार चीन की यात्रा करना पसंद करते हैं, उन्हें चीन से प्यार है. इसी तरह हमारे पड़ोसियों के साथ हमारी नीति क्या होने वाली है? धमकी और अंध-राष्ट्रीयता तो ठीक है, लेकिन पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है और भारत भी एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है. तो, युद्ध विकल्प की संभावना बिल्कुल भी नहीं है. यह बात पाकिस्तान बहुत अच्छी तरह से जानता है और हम भी. लेकिन, जम्मू में कुछ भाषणों में, बहुत आश्‍चर्य की बात है, नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान हमारे लिए एक ख़तरा है. कैसे? यहां तक कि पाकिस्तान को नहीं लगता कि वह हमारे लिए एक ख़तरा है. भारत में भी कोई नहीं सोचता कि पाकिस्तान हमारे लिए ख़तरा है.
मोदी ने ए के एंटनी, एके-47, एके-A49 जैसी बातें कहीं. केजरीवाल को इतना और ऐसा महत्व दिया, मानों वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से जुड़े हों. मैं नहीं जानता कि कैसे? केजरीवाल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. उन्होंने दिल्ली में एक चुनाव जीता. वह भ्रष्टाचार न होने की बात कर रहे हैं, पुलिस ठीक से व्यवहार करे इसकी बात कर रहे हैं. इससे हर कोई सहमत हो सकता है. मैं यह कह रहा हूं कि अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो हम किधर जाएंगे?
आरएसएस बिल्कुल अपनी शाखाओं में वृद्धि करेगा, अगर यही लक्ष्य है, तो ऐसा होगा. उनकी 57 हज़ार शाखाओं की संख्या घटकर 40 हज़ार तक आ गई है, इसे फिर से बढ़ाया जाएगा. मोरारजी भाई के जनता शासन में ऐसा हुआ था. देश का क्या होगा? देश एक बहुत महत्वपूर्ण मोड़ की ओर  अग्रसर है. देश में बड़ी आबादी युवाओं की है, क्या उन्हें काम मिलेगा? चुनाव के उद्देश्य से यह कहना कि वृद्धि 4 फ़ीसद, 5 फ़ीसद तक नीचे आ गई है, सही है, लेकिन जो लोग विश्‍व अर्थव्यवस्था को जानते हैं, उनके मुताबिक यह बहुत अच्छी वृद्धि दर है. चिदंबरम मुद्रास्फीति और दस सालों के शासन की वजह से मुसीबत में रहे, लेकिन मुझे लगता है कि उन्होंने एक वित्त मंत्री के रूप में बहुत अच्छी तरह से काम किया. मैं नहीं जानता कि श्री मोदी के वित्त मंत्री इससे बेहतर क्या कर सकते हैं?
विश्‍व अर्थव्यवस्था यूरो जोन में, अमेरिका में मुसीबत में है.  भारत इसकी तुलना में ज़्यादा बेहतर स्थिति में है. असल समस्या कुछ और है, जिसे नरेंद्र मोदी सामने नहीं ला रहे हैं और उसका समाधान नहीं बता रहे हैं. वह है, बैंकों का बढ़ता हुआ एनपीए (बैड लोन, जो वापस नहीं होता). निर्माण उद्योग और बिजली उद्योग बैंकों से मोटा ऋण ले लेते हैं, वे अपनी परियोजनाओं को पूरा नहीं करते और इस तरह न ब्याज चुकाते हैं और न ही लोन. इनमें से ज़्यादातर भाजपा के साथ हैं. ये भाजपा का साथ देते हैं. यही लोग हैं, जिन्होंने सबसे पहले भाजपा को अपना समर्थन देने की बात कही थी. इसका अर्थ है, ये कहेंगे कि हम आपका समर्थन करते हैं और हम ऋण वापस नहीं करेंगे. मतलब यह कि एक दिन उनका ऋण ख़त्म कर दिया जाएगा. असल समस्या काफी अलग है और इस समस्या का जितना सामना श्री चिदंबरम ने किया, उतना ही सामना श्री मोदी के वित्त मंत्री को भी करना होगा. मेरे हिसाब से, इन मुद्दों पर बात करने और इनका समाधान निकालने का वक्त आ गया है. 16 मई को हम सब परिणाम से वाकिफ हो जाएंगे, लेकिन मुझे लगता है कि एक आदमी, जो गंभीरता से प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में है और इस देश को चलाना चाहता है, उसे इस देश को चलाने के तौर-तरीके का एक ब्लूप्रिंट देश की जनता के समक्ष रखना चाहिए और यह बताना चाहिए कि उसे आख़िर क्यों इस देश की जनता का जनादेश मिलना चाहिए.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here