मैं नहीं जानता कि पुलिस के पास कितने हथियार हैं. लेकिन इतना पता है कि पुलिस के पास एक रिवॉल्वर है जिसके  इस्तेमाल वो नहीं करती क्योंकि इसके इस्तेमाल में समस्या आती है. लेकिन किसी बार पर छापा मारने में कोई समस्या नहीं आती. किसी अमीर आदमी के बेटे को डिटेन करने (पकड़ने) और उनसे पैसा लेने में कोई समस्या नहीं आती.

img_3772मैं यह कॉलम एक अत्यंत ही दुःखद घटना (नृशंस हत्याकांड) के साये में लिख रहा हूं. ऐसी घटना हाल फिलहाल किसी ने न देखी थी न सुनी थी. हर बच्चा भगवान का बच्चा है, चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से का हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी देश का हो. ये जो भी आतंकवादी हैं, उन्होंने सिर्फ लागों को डराने के लिए, आतंकित करने के लिए ऐसा किया. लेकिन इन आतंकियों ने बच्चों के साथ जो किया वह अक्षम्य है. बच्चों की इनसे या इनकी बच्चों से क्या दुश्मनी थी? हाफिज सईद और परवेज मुशर्रफ इस बात के लिए भारत पर आरोप लगा रहे हैं. उनके मुंह से यह सब सुनना मजाकिया लगता है. कुछ संगठन हैं, उन्होंने इसकी ज़िम्मेदारी ली है. इसमें भारत कहां से आ गया? मैं इसे उनकी बेहतरीन योजना मानता हूं कि अपनी हर समस्या के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा दो. हमारा दिल, हमारी भावना उन शोक संतृप्त परिवारों के साथ है जैसा कि उन्होंने कहा कि इन छोटे ताबूतों को उठाना बहुत भारी है. जब बच्चे की मौत होती है तो माता-पिता पर क्या गुजरती है, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत-पाकिस्तान की बात करने की जगह उन परिवारों के लिए सहानुभूति महसूस करनी चाहिए. इस मामले में भारत-पाकिस्तान की बात अप्रासंगिक है.
इस घटना के बाद हम कहां खड़े हैं इस पर विचार करना चाहिए. भारतीय सुरक्षा एजेंसियां और विशेष रूप से सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी) की बैठक होनी चाहिए. हमें अपने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए. भारत में लगभग सभी शहरों (बड़े और छोट) में आईएसआई और इंडियन मुजाहिद्दीन के स्लीपर सेल मौजूद हैं और अपने ऑपरेशन चला रहे हैं. हम क्या कर रहे हैं? मैं महाराष्ट्र की बात कर सकता हूं, मुंबई की बात कर सकता हूं. दो साल पहले की बात कर रहा हूं. यहां की पुलिस अनौपचारिक रूप से स्लीपर सेल की जानकारी के बारे में बता चुकी है. यह भी कह चुकी है कि पॉलिटिकल क्लियरेंस नहीं मिलने की वजह से वह कुछ नहीं कर पा रही है. अब यह बकवास नहीं है तो क्या है? पुलिस को एक

बलात्कार की घटना के साथ भी यही सब कुछ लागू होता है. दुनियाभर में बलात्कार होते हैं. बलात्कार भी अन्य अपराध की तरह ही एक अपराध है. लेकिन दुःखद यह है कि लोगों के बीच यह आम धारणा बन चुकी है कि बलात्कारी बच निकलेगा. इस अपराध से सख्ती से निपटना चाहिए. दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि वह अन्य के लिए उदाहरण बन जाए. अपराधी को ऐसी सजा मिले   जिससे गलत लोगों में भय पैदा हो और निर्दोष के मन में विश्‍वास जागृत हो.

काम करने के लिए पैसा दिया जाता है. अगर उन्हें पता है कि कहीं अपराध हो रहा है तो उन्हें कार्रवाई करनी चाहिए, इसमें पॅालिटिकल क्लियरेंस लेने की क्या जरूरत है? कैबिनेट कमेटी ऍान सिक्योरिटी को बैठक करके एक विशेषाधिकार प्राप्त सेल बनाना चाहिए, जो इन स्लीपर सेल्स को पूरी तरह से खत्म कर सके. यह रातोंरात नहीं हो सकता. इसमें दो या पांच साल लग सकते हैं. लेकिन इसकी शुरुआत अभी होनी चाहिए.
हमारे देश में अगर ये तथाकथित स्लीपर सेल्स हैं तो ये फिलहाल सोये हुए हैं और सीमापार से संकेत मिलने का इंतजार भर कर रहे हैं. इसका मतलब है कि हम आग के साथ खेल रहे हैं. हमारा कोई मुख्यमंत्री क्या सोचता है, क्या करता है, कोई नहीं कह सकता. लेकिन हम इस तरह का एक नरसंहार भारत में हो, यह त्रासदी बर्दाश्त नहीं कर सकते. सौभाग्य से 26/11 के बाद अभी तक हम बचे हुए है. 26/11 में सीएसटी स्टेशन पर हमने बहुतों को खोया है. मैं गृह मंत्री, प्रधानमंत्री के बयान को समझ सकता हूं. उन्होंने नवाज शरीफ को सांत्वना दी है. यह सब ठीक है. लेकिन अब हमें धरातल पर कुछ कड़े कदम उठाने चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो लोग हमें एक सॅाफ्ट स्टेट मानते रहेंगे. कोई भी देश खुद की रक्षा नहीं कर सकता, यदि बाहर यह संदेश जाये कि वह एक सॅाफ्ट स्टेट है.
बलात्कार की घटना के साथ भी यही सब कुछ लागू होता है. दुनियाभर में बलात्कार होते हैं. बलात्कार भी अन्य अपराध की तरह ही एक अपराध है. लेकिन दुःखद यह है कि लोगों के बीच यह आम धारणा बन चुकी है कि बलात्कारी बच निकलेगा. इस अपराध से सख्ती से निपटना चाहिए. दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिले ताकि वह अन्य के लिए उदाहरण बन जाए. अपराधी को ऐसी सजा मिले जिससे गलत लोगों में भय पैदा हो और निर्दोष के मन में विश्‍वास जागृत हो. दुर्भाग्य से हमारा सिस्टम बहुत ढ़ीला है. इसलिए ऐसा नहीं हो पाता. छोटे-मोटे अपराध के मामलों में पुलिस हमेशा कार्रवाई करने के लिए तैयार है. वह मुंबई के सब-अर्बन इलाके में जाकर किसी बार में छापा मारेगी जहां ड्रग्स की खपत होती है. बड़े परिवार के
बीस-तीस लोगों को पकड़ लेंगे और उनसे पैसे ले लेंगे. कुल मिलाकर कुछ निकलेगा नहीं. पुलिस को ऐसे अपराधों पर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. अगर अमीर लोग ड्रग्स खरीद कर, उसका सेवन कर खुद को हानि पहुंचाना चाहते हैं तो ऐसा होने दें. उनकी देखभाल करना उनके माता-पिता का काम है. जनता का पैसा उनपर बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए. बच्चियों को बचाने की जरूरत है, निर्दोष लोगों को आतंकियों से बचाने की जरूरत है. इन सब कामों के लिए पुलिस की हमें जरूरत है.
मैं नहीं जानता कि पुलिस के पास कितने हथियार हैं. लेकिन इतना पता है कि पुलिस के पास एक रिवॉल्वर है जिसके इस्तेमाल वो नहीं करती क्योंकि इसके इस्तेमाल में समस्या आती है. लेकिन किसी बार पर छापा मारने में कोई समस्या नहीं आती. किसी अमीर आदमी के बेटे को डिटेन करने (पकड़ने) और उनसे पैसा लेने में कोई समस्या नहीं आती. पुलिस ही सॅाफ्ट हो गई है. पुलिस राज्य का विषय है. लेकिन राजनाथ सिंह को सभी राज्य के गृह मंत्रियों और गृह सचिवों की बैठक बुलानी चाहिए और गंभीरता से इस समस्या का समाधान करना चाहिए. यह बात करनी चाहिए कि अगर पुलिस वालों का वेतन बढ़ाना है, उन्हें इंश्योरेंस (बीमा) देना है तो दीजिए, लेकिन हमें मजबूत कदम उठाने ही होंगे और हमारे पुलिस बल को मजबूत बनाना होगा. आम आदमी के मन में विश्‍वास पैदा करना होगा कि हम असुरक्षित नहीं है. उनके लिए बेहतर किया जाना बाकी है.

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