चौथी दुनिया पिछले 4 साल से इस मुद्दे को उठाता रहा है कि आधार को जिस तरीके से लागू किया जा रहा है वो न सिर्फ आम आदमी की निजता का हनन है, बल्कि यह असंवैधानिक भी है. चौथी दुनिया अपनी स्टोरीज के जरिए ये बताता रहा है कि कैसे आगे चल कर इस कार्ड का बेजा इस्तेमाल हो सकता है. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में माना है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह संविधान के आर्टिकल 21 (जीने के अधिकार) के तहत आता है. 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने सर्वसम्मति से यह फैसला किया. अदालत ने 1954 में 8 जजों की संवैधानिक बेंच के एमपी शर्मा केस और 1962 में 6 जजों की बेंच के खड्ग सिंह केस में दिए गए अपने ही फैसले को पलट दिया. इन दोनों ही फैसलों में निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था. जाहिर है ये फैसला केन्द्र सरकार की रुख के उलट है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है. अब इस फैसले का सीधा असर आधार कार्ड और दूसरी सरकारी योजनाओं के अमल पर होगा. लोगों की निजता से जुड़े डेटा पर कानून बनाते वक्त तर्कपूर्ण रोक के मुद्दे पर विचार करना होगा यानी आपके निजी डेटा को लिया तो जा सकता है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. बहरहाल, अदालत इसके बाद अब आधार पर अलग से सुनवाई करेगी.
केएस पुत्तास्वामी ने डाली थी याचिका
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी ने 2012 में आधार स्कीम को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की थी. पुत्तास्वामी ने कहा था कि इस स्कीम से इंसान के निजता और समानता के मौलिक अधिकार का हनन होता है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 से ज्यादा आधार से संबंधित केसों को इस मुख्य मामले से जोड़ दिया. याचिकाकर्ताओं में बी विल्सन, अरुणा रॉय और निखिल डे भी शामिल हैं. याचिका में आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सरकार द्वारा तमाम प्राइवेट डेटा लिए जाने पर सवाल उठाए थे. याचिककर्ता ने कहा था कि यह आम आदमी के निजता के अधिकार में दखल है. आधार स्कीम पूरी तरह से मूल अधिकार में दखल है. संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-21 (जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार) में दखल है.
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निजता के मायने
इस मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि निजता के तीन जोन हैं. पहला है आंतरिक जोन, जैसे शादी, बच्चे पैदा करना आदि. दूसरा है प्राइवेट जोन, जहां हम अपनी निजता को किसी और से शेयर नहीं करना चाहते. जैसे अगर बैंक में हम अपना डेटा देते हैं तो हम चाहते हैं कि बैंक ने जिस उद्देश्य से डेटा लिया है, उसी उद्देश्य से उसका इस्तेमाल करे. किसी और को डेटा न दे. वहीं, तीसरा है पब्लिक जोन. इस दायरे में निजता का संरक्षण न्यूनतम होता है, फिर भी मानसिक और शारीरिक निजता बरकरार रहती है. वहीं, चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने टिप्पणी की थी कि अगर किसी से कोई ऐसा सवाल पूछा जाता है, जो उसके प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो वह निजता का मामला है. चीफ जस्टिस के मुताबिक, दरअसल स्वतंत्रता के अधिकार, मान-सम्मान के अधिकार और निजता के मामले को एक साथ कदम दर कदम देखना होगा. स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में मान-सम्मान का अधिकार है और मान सम्मान के दायरे में निजता का मामला है.
चौथी दुनिया ने क्या लिखा था
चौथी दुनिया अपने स्टोरीज के जरिए पाठकों को आधार डेटा के खतरे से आगाह करता रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने भी कभी आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया और सरकार से कहा कि आधार कार्ड को सबके लिए अनिवार्य बनाने का आदेश तुरंत वापस ले. न्यायालय ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को भी निर्देश दिया कि वह बायोमैट्रिक डाटा किसी दूसरी संस्था को नहीं दे. सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के उस फैसले पर भी रोक लगा दी, जिसके तहत आतंकवाद और बलात्कार के मामलों में यह डाटा साझा करने की छूट दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार कार्ड न होने से किसी भी व्यक्ति को सरकारी सेवा हासिल करने से वंचित न किया जाए. इसका मतलब यह है कि चाहे रसोई गैस हो या कोई और सेवा, अब बिना आधार कार्ड के भी आप इन सेवाओं को ले सकते हैं. वैसे आधार कार्ड को लेकर एक मामला कोर्ट में चल रहा है, जिसके बाद सरकार एवं नंदन नीलेकणी की और भी किरकिरी हो सकती है. आधार कार्ड आज विवादों में इसलिए भी है, क्योंकि चौथी दुनिया साप्ताहिक अख़बार ने सबसे पहले आधार कार्ड से होने वाले ख़तरों का खुलासा किया था. हमने यह खुलासा किया था कि किस तरह आधार कार्ड सीआईए और अन्य विदेशी खुफिया एजेंसियों के पास हमारी और आपकी सारी जानकारी पहुंचाने की साजिश है. समय के साथ-साथ चौथी दुनिया की सारी बातों पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग रही है.
सूचना का अधिकार क़ानून के तहत निकली एक जानकारी के मुताबिक, यह बताया गया है कि बायोमैट्रिक सिस्टम 100 ़फीसद एक्यूरेट नहीं है और दूसरी बात यह कि आधार कार्ड की विशिष्टता भी काल्पनिक है. यह जानकारी योजना आयोग के साथ करार करने वाली एर्नेस्ट एंड यंग प्राइवेट लिमिटेड और नेटमैजिक सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड ने दी है. इस सूचना के साथ ही आधार कार्ड का आधार ख़त्म हो जाता है. इस कार्ड को लेकर नंदन नीलेकणी ने जो बड़े-बड़े दावे किए थे, वे सब झूठे साबित होते हैं. नंदन नीलेकणी ने इस योजना की शुरुआत में दावा किया था कि यह अब तक का सबसे सटीक व अति विशिष्ट कार्ड है और इसकी नकल नहीं की जा सकती. नंदन नीलेकणी को यह बताना चाहिए कि उन्होंने देश को गुमराह क्यों किया? केंद्र सरकार ने जब आधार कार्ड की योजना लॉन्च की, तो उसकी शान में जमकर कसीदे काढ़े गए थे. बड़े-बड़े दावे हुए कि आधार कार्ड बनने के बाद लोगों को तरह-तरह के पहचान पत्र दिखाने के झंझट से आज़ादी मिल जाएगी, लेकिन यूपीए सरकार के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में धांधली चरम पर है. चंद रुपये खर्च कर कोई भी आधार कार्ड बनवा सकता है. हाल में स्टिंग ऑपरेशन के जरिये यह खुलासा हुआ है कि अवैध बांग्लादेशी चंद रुपये देकर आसानी से आधार कार्ड बनवा लेते हैं और भारत के मान्यता प्राप्त नागरिक बन जाते हैं और फिर मतदान में हिस्सा लेने के लिए वैध हो जाते हैं.
आधार एक घोटाला इसलिए भी है, क्योंकि अब आधार कार्ड का तकनीकी और क़ानूनी आधार ही सवालों के घेरे में है. हमें यह याद रखना चाहिए कि आधार कार्ड का कोई क़ानूनी आधार ही नहीं है. यह देश का अकेला ऐसा कार्यक्रम है, जिसे संसद में पेश करने से पहले ही लागू करा दिया गया. संसदीय कमिटी ने कहा है कि आधार योजना तर्कसंगत नहीं है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश के किस क़ानून के आधार पर लोगों के बायोमैट्रिक्स को एकत्र किया जा रहा है? देश में मौजूद सारे क़ानून खंगालने के बाद पता चलता है कि ऐसा क़ानून स़िर्फ जेल मैन्युअल में है. यह स़िर्फ कैदियों का लिया जा सकता है और इसमें भी एक शर्त है कि जिस दिन वह कैदी रिहा होगा, उसके बायोमैट्रिक्स से जुड़ी फाइलें जला दी जाएंगी, लेकिन इस योजना के तहत सरकार लोगों की सारी जानकारियां एकत्र कर रही है और उसे विदेश भेजने पर तुली है. सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दे दिया है कि प्राधिकरण लोगों के बायोमैट्रिक डाटा किसी को नहीं दे सकता है. यह जनता की अमानत है और इसे दूसरी एजेंसियों के साथ शेयर करना आम लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है.