2014 में मोदी की फतह ने आम भारतीय की निगाह में जो जगह बनायी वह किसी जांबाज योद्धा से कम नहीं थी। उस जीत का प्रतिशत भले कम रहा हो पर जो लहर चली थी उसने आज तलक मोदी को मन के कोने के पायदान में कहीं नीचे नहीं किया। ये वे प्रशंसक थे जो आज भी कहते पाये जाते हैं कि हम तो सात जन्मों में भी मोदी जी जैसे नहीं बन सकते। उन्होंने चारों तरफ से आंखें बंद की हुई हैं। वे आज भी मोदी भक्ति में लीन हैं। और बीजेपी का आईटी सेल उनकी इस मुद्रा को भंग भी नहीं होने देता।

2014 के मोदी आज डर गये हैं। बेशक उन्होंने गलत लक्ष्य नहीं साधा था लेकिन महात्मा गांधी के विचार तत्वों के आधार पर कहें तो उन्होंने साधन गलत और अशुद्ध अपनाये थे। महत्वाकांक्षा गलत नहीं होती पर महत्वाकांक्षा जब सही गलत के विवेक से भटक जाए तो वह व्यक्ति को ‘मैं’ के घोड़े पर ऐसा सवार करती है कि वह फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखता। वह वक्त ही खो देता है जो उसे पीछे मुड़ कर देखने पर विवश करे। मोदी के व्यक्तित्व में अच्छा क्या है इसे आप कभी ढूंढ नहीं पाएंगे क्योंकि सपाट रूप से कुछ अच्छा दिखता ही नहीं।

चालाकी, धूर्तता, छल, झूठ, कपट, ड्रामेबाजी, ढोंग यह सब उनके व्यक्तित्व की पहली सतह पर हमेशा से मौजूद रहे हैं। अकड़ और गुरूर ने आत्ममोह को ऐसा प्रबल किया हमेशा कि निरंकुशता उनमें कब प्रवेश कर गयी उन्हें स्वयं भी इसका भान नहीं हुआ। आज वे निरंकुशता के निर्द्वन्द्व स्वामी हैं। आज सत्ता में मोदी ही मोदी हैं। या कहिए आज सत्ता में वे ही वे हैं। व्यक्ति में डर की सीमा यहीं से शुरू होती है। काश वे बादशाह होते और लोकतंत्र, संविधान के कोई मायने नहीं होते तब के मोदी और लोकतंत्र, संविधानमय वाले मोदी में यही अंतर है।

वे मोदी भयमुक्त होते पर ये मोदी भय से सराबोर हैं। 2019 के चुनावों में मोदी के चेहरे की हवाईंया उड़ी हुई थीं। पर वे यह भी जानते थे कि समाज का वह कौन सा तबका है जिसके मन मंदिर में आज तक मेरी छवि यथावत है। षड्यंत्रकारी दिमाग ने तुरुप का पत्ता चला ‘बालाकोट’ के नाम पर और जो परिणाम निकला हुआ वह सबने देखा। चेहरे की उड़ी हवाईंयां फिर से लौट आयीं।लेकिन बंगाल चुनाव की पराजय ने वे हवाईंयां फिर से चेहरे पर से उड़ा दी हैं। ऐसे में षड्यंत्र का कोई पत्ता न बचे तो दिमाग बौखला जाता है। हम उसी बौखलाहट को इन दिनों स्पष्ट देख रहे हैं। कहते हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में सातवां साल भारी परीक्षाओं का होता है। यह साल पार हो जाए तो समय राहत देता है। यह धारणा विश्वास और अंधविश्वास के बीच की है। पर है तो ! मोदी ने साधन गलत अपनाए और आज भी अपना रहे हैं इसलिए अंत सुखद नहीं हो सकता। वह कब होगा 2024 में या उसके बाद यह देखना है।

वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय ने अपनी पुस्तक ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ में वीपी सिंह के व्यक्तित्व और उनकी कार्यप्रणाली का जो अनूठा विवरण प्रस्तुत किया है उससे एक बात सिद्ध होती है कि वीपी सिंह एक ओर जहां बेहद ईमानदार, सीधे, सरल, भावुक और मिलनसार थे वहीं ठंडे, किसी पर भी विश्वास कर लेने वाले, निर्णय लेने में निढाल, बेपरवाह से और बेफिक्र से ऐसे शासक थे जिनके शासन में हर कोई अपनी तूती अलग बजाता था। ऐसा लगता था जैसे वीपी सिंह मुख्य प्रधानमंत्री हों और उनके सारे मंत्री प्रधानमंत्री। यही संतोष जी ने लिखा है। तो यहां हम दो प्रधानमंत्री को देख रहे हैं एक वीपी सिंह जो प्रधानमंत्री के रूप में ‘लूल’ हैं और दूसरे मोदी जो प्रधानमंत्री के रूप में ऐसे तानाशाह हैं कि जिनके मंत्रियों को ढूंढें तब वे मिलते हैं।सर्वत्र मोदी ही मोदी हैं। यानी सरकार का नाम ही मोदी है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दोनों ही बेमेल प्रधानमंत्री हैं। ऐसे प्रधानमंत्रियों का शीघ्रातिशीघ्र पदमुक्त हो जाना देश के लिए लाभकारी है। लेकिन दोनों प्रधानमंत्रियों में यही द्वंद्व और अंतर है कि एक साधु बन कर चुपचाप पदत्याग करने की हमेशा कूवत रखता है और दूसरा स्वप्न में भी पदत्याग की कल्पना नहीं कर सकता।

वह जिद्दी है, बेशर्म है, हठी है और झूठ को सच साबित करने में माहिर है। लेकिन फिर भी डरा हुआ है क्योंकि हर तानाशाह डरा हुआ होता है। उसका डर चुनाव है। वह संविधान बदलना चाहता है और ऐसा संविधान लाना चाहता है जिसमें उसे राज करने का बेमुद्दत अधिकार हो। क्या जनता इसे समझ रही है। अफसोस कि पूरा देश नहीं समझ रहा अभी। बस समझने वाले ही समझे बैठे हैं। सामने के राजनीतिक दलों के भीतर से जैसे बुद्धि और विवेक का हरण हो गया है। तो अट्टहास अगर आने वाले दिनों में होगी भी तो उस भयभीत तानाशाह की। क्योंकि देश का अंतिम आदमी आज भी मोदी के साथ खड़ा है वह नहीं जानता ‘पैगोसस’ क्या है, कहां छापे पड़े हैं, जीडीपी कौन चिड़िया होती है और मेहुल भाई कौन हैं। आज भी उसके मन मस्तिष्क में मोदी उसी भांति अंकित हैं फिर वह चाहे रिक्शा चालक हो, मजदूर हो, किसानी करता हो, छोटा व्यापारी और किराना वाला हो या सब्जी फल बेचने वाला। उसे कुछ नहीं पता और वह चाहता भी नहीं पता करना । यह मोदी को पता है।

पिछले एक साल में नयी पीढ़ी में मोदी को लेकर विवाद हुआ है। यही मोदी के लिए परेशानी का सबब है। देखना है वे इससे कैसे पार पाते हैं और कौन सा हथकंडा अपनाते हैं। यह तो निश्चित है कि मध्यवर्ग में उनकी छवि धूमिल हुई है। तानाशाह अपनी छवि को लेकर हमेशा भयभीत रहता है। बस यही उसकी कमजोर नस है। देखें इस नस को कौन दबाता है इस बार।

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