रामदेव (बाबा ?) को खतरों से खेलना आता है। रामदेव का यह हुनर मोदी जी से ज्यादा कौन जानता होगा। सारे संत बाबाओं के अलावा मोदी जी आसाराम जैसों के भी करीब रहे पर मित्रता तो निभाई रामदेव से ही। हर कोई मानता था कि मोदी के शासन में आसाराम तो खुले में सांस लेगा ही। पर ऐसा नहीं हुआ। रामदेव पर मोदी कृपा बरसी। बाकी सारे अंदर हैं और उनके छूटने की अब किसे परवाह है। पर रामदेव पर कभी कोई आंच नहीं आयी। बल्कि वो दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करता रहा और घमंड से सराबोर होता रहा। इसे समझने की जरूरत है।
हमारे देश में हर प्रदेश का अपना एक चरित्र है। उसी तरह जैसे हर शहर का अपना एक चरित्र होता है। और शहरों का समुच्चय ही प्रदेशों में तब्दील होता है। हरियाणा के जाटपन और पंजाबियत का मिला जुला रूप हर प्रदेश से उसे अलग करता है। यूपी और राजस्थान के जाटों का स्वरूप और स्वभाव किंचित हरियाणा के जाटों से भिन्न है और यहां की पंजाबियत झांगियों वाली कहलाती है क्योंकि ये पाकिस्तान से आये रिफ्यूजियों के चरित्र की देन है। हरियाणा से योगेन्द्र यादव और अरविंद केजरीवाल जैसे लोग भी हैं। केजरीवाल के व्यक्तित्व में आप तमाम अच्छाईयों के साथ धूर्तता भी बड़े प्रमाण में देखेंगे। शालीन व्यक्तित्व वाले योगेन्द्र यादव जब अपने देसीपन पर आते हैं तो वे भी ठेठ हरियाणवी हो जाते हैं। रामदेव की इन लोगों से कोई तुलना नहीं है।
उसके व्यक्तित्व में मूल रूप से हरामीपन समाहित है। एक बात और है जिसे मनोविज्ञान कहता है कि अधिकांश केसों में यदि किसी व्यक्ति में शारीरिक तौर पर कोई अपंगता हो तो वह उस ग्रंथि के साथ जीता हुआ कुछ अधिक अलग या नटखट प्रतीत होता है। रामदेव ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। हरियाणा के छोरों समान उसकी आदतें फिल वक्त तक बनी हुई हैं। हरामीपन स्वभावतः है। उसके भीतर की महत्वाकांक्षाओं ने उसे यकायक योग की दिशा दी। बड़ी चतुराई से उसने हिंदुस्तान के उस वर्ग पर अपना प्रभुत्व जमाया जो भोला, नादान और कम समझ या बुद्धि का था। कहा जाता है कि आसाराम के भक्तों की संख्या पांच करोड़ से ज्यादा की है। राम रहीम और रामपाल के भक्तों की संख्या भी कहीं कम नहीं। ये भक्त ही हमेशा जमूरों की भूमिका में होते हैं।
हरियाणवी समझ ने रामदेव को योग की मार्केटिंग की ओर प्रवृत्त किया। प्राण वायु की क्रियाएं और पेट के भौचक कर देने वाले आलोड़न (करतब) ने तो कहिए मध्यवर्ग क्या उच्च वर्ग तक की महिलाओं और पुरुषों तक को प्रभावित किया। ‘आजादी बचाओ आंदोलन’ से निकला राजीव दीक्षित रामदेव से प्रभावित होकर जुड़ा। भाजपा के राजीव दीक्षित की खूबी उसकी वकृत्व शैली और इतिहास ज्ञान से ओतप्रोत थी। उस पर दिग्गज इतिहासकार धर्मपाल जी का हाथ था और धर्मपाल जी के पास इंग्लैंड से अर्जित किये गये महत्वपूर्ण दस्तावेज थे जिनका उपयोग राजीव दीक्षित ने रामदेव के मंच से अपने भाषणों में जमकर किया। रामदेव और राजीव दीक्षित की यह जोड़ी तब तक सफल रही जब तक राजीव दीक्षित को रामदेव के असल उद्देश्य की भनक नहीं लगी।
वह हमेशा यही मानता रहा कि रामदेव सात्विक उद्देश्यों से योग का प्रचार प्रसार कर रहा है। जैसे ही राजीव दीक्षित को यह अहसास हुआ कि रामदेव योग की आड़ में धंधा कर रहा है वैसे ही उसने रामदेव से अलग होकर उसकी पोल खोलनी शुरू की। नतीजा हम सब जानते हैं कुछ समय बाद राजीव दीक्षित की मृत्यु हुई। उस मृत्यु पर हमेशा सवाल उठे पर अनुत्तरित ही रहे। राजीव दीक्षित के नीले पड़ चुके शव का आनन फानन में क्रियाकर्म क्यों कर दिया गया। और उसका भाई प्रदीप क्यों सब कुछ जान कर भी चुप रहा, बल्कि उसने यह कहने से गुरेज नहीं किया कि सब कुछ सामान्य है।
बहरहाल, इन दिनों रामदेव फिर चर्चा में है। कोई सामान्य बुद्धि वाला भी यह कह सकता है कि वह जिस तरह की भाषा के साथ ऐलोपैथी डाक्टरों पर कीचड़ उछालने का काम कर रहा है उसके पीछे किसका हाथ हो सकता है। ऐसे वक्त में जब पूरा देश महामारी के चंगुल में फंसा हुआ है और देश के समस्त अस्पतालों में ईलाज ऐलोपैथी से हो रहा है उस वक्त रामदेव का यकायक परदे पर आकर ऐलोपैथी पद्धति और ऐलोपैथी डाक्टरों के खिलाफ जंग छेड़ने देना, इसके पीछे क्या है? मंशा दो हो सकती हैं। पहली, अपनी दवा ‘कोरोनील’ की बिक्री करवाना। दूसरा, मोदी सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाना। रामदेव का गेमप्लान आश्चर्यजनक है।
कोई मूर्ख ही ऐसे वक्त में ऐलोपैथी पर उंगली उठाएगा। तो रामदेव ने ऐसा इस वक्त क्यों किया और किसकी ताकत से उसमें यह कहने का हौसला आया कि मुझे गिरफ्तार तो किसी का बाप भी नहीं कर सकता। कौन खेल रहा है रामदेव की आड़ में। ध्यान से देखें तो रामदेव के व्यक्तित्व और चरित्र में और मोदी के व्यक्तित्व और चरित्र में आपको कई समानताएं नजर आएंगी। दोनों ने देशवासियों को जमूरा समझा है। आने वाले दिन क्या कहानी कहते हैं पता चलेगा।
अब से कोई 34 साल पहले मेरठ के पास हाशिमपुरा और मलियाना इलाकों में मुसलमानों का पुलिस द्वारा कत्लेआम हुआ था। यह घटना छिपा दी गयी होती यदि गाजियाबाद के तत्कालीन एसपी विभूति नारायण राय, पत्रकार कुर्बान अली, वीरेंद्र सेंगर और संतोष भारतीय न होते। जब इस घटना को कई अखबारों ने तवज्जो नहीं दी तब संतोष भारतीय ने अपने अखबार ‘चौथी दुनिया’ में यह स्टोरी ब्रेक की। और तब की इस महत्वपूर्ण स्टोरी को 34 साल बाद न्याय मिला। इस अर्थ में कि हाशिमपुरा में अपराध सिद्ध हुआ और पीड़ितों को मुआवजा मिला। लेकिन मलियाना का न्याय अभी बाकी है। एक बार फिर कुर्बान अली और वी एन राय इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस केस को लेकर सक्रिय हुए हैं।
इसी विषय पर भाषा सिंह ने भी इन दोनों लोगों के अलावा इस केस की धुरंधर वकील रहीं वृंदा ग्रोवर से खुल कर बात की। संतोष भारतीय ने जो बातचीत की उसमें तब के एक चश्मदीद के अलावा विनोद अग्नीहोत्री और अपूर्वानंद की भी सहभागिता थी। चर्चा जोरदार रही। अभय दुबे का ‘लाउड इंडिया’ पर शो इसी चर्चा के कारण सोमवार को प्रसारित हुआ। अशोक वानखेड़े की दो बातें गौर करने वाली हैं कि रामदेव मोदी सरकार का ATM है और योग गरीबों का ‘हिंदुत्व’ है। दूसरी बात काबिलेगौर है। अशोक वानखेड़े के साथ संतोष भारतीय का शो हर दिन प्रसारित होता है।
पुण्य प्रसून वाजपेयी के विश्लेषण भी सामयिक होते हैं। इसलिए कभी कभी बहुत धारदार भी होते हैं। ‘सत्य हिंदी’ पर पैनल उबाऊ होने लगा है। आलोक जोशी को छोड़ कर किसी और को सुनने की इच्छा नहीं होती। हां, कल रात को ट्विटर या कहिए सोशल मीडिया वाले कार्यक्रम में पैनल नया दिखा। ताजगी थी। एक बात मुझे कई लोगों ने आपत्तिजनक तरीके से दर्ज करायी कि इन चर्चाओं में पैनलिस्ट चाय या काफी के अपने कद से ज्यादा बड़े मगों में (विशेष कर विजय त्रिवेदी) चर्चा की गम्भीरता को हल्का करते हैं। यह फैशन मेरे विचार में बड़े, व्यापक और खुले आयोजनों का रहा है। पर छोटे परदे की चर्चाओं में कहीं न कहीं कुछ आपत्तिजनक जैसा लगता है।
दिग्गज विनोद दुआ वैसे ही अपने दंभ में रहते हैं उस पर जब वे काफी या चाय सुढ़कते हैं और फिर गला खखारते हैं तो सुनने वालों में अपमानजनक अहसास होता है। वाजपेयी या रवीश भी यदि शुरू कर दें। आरफा या उर्मिलेश जी भी शुरू कर दें तो। संतोष भारतीय के शो में हमने कभी किसी को चाय – काफी सुढ़कते हुए नहीं देखा। खैर इस पर आपत्ति हो सकती है पर उस आपत्ति के कोई मायने नहीं होंगे। बल्कि इसे समझा जाए। नीलू व्यास के वीडियो इधर गम्भीर आ रहे हैं। विशेषतौर पर जेएनयू की मृदुला मुखर्जी से उन्होंने ‘सैंट्रल विस्टा’ पर बढ़िया बातचीत की। आरफा ने रामदेव पर बढ़िया और तार्किक बातों के आधार पर महिला वकील से बात करते हुए जोरदार वीडियो बनाया।
कुल मिलाकर यह सप्ताह रामदेव की आश्चर्यजनक बड़बोली बातों और सोशल मीडिया से सरकार की खींचतान पर गुजर रहा है। इस रविवार को अभय दुबे का शो क्या कहता है। इस पर नजर रहेगी। लेकिन इतना तय है कि ऐसे गमगीन और मारक माहौल में रामदेव की हरकतें यदि सरकार प्रायोजित हैं तो यह देश के साथ साथ इस सरकार को भी भारी पड़ेगा। कोई मूर्ख ही होगा जो मानेगा कि रामदेव ने अपनी ‘कोरोनील’ दवा की बिक्री के लिए डाक्टरों पर इतना बड़ा बैठे बिठाए वार किया है। इसके पीछे की मंशा अंततः पता तो चलनी ही है।
गुजरात की कवियत्री पारुल खक्कड़ के साथ उनकी कविता ‘शव वाहिनी गंगा’ को लेकर जो कुछ हुआ वह निहायत ही शर्मनाक है। पर जिन्हें नंगा होना था वे नंगे हुए ही हैं। आरफा को इस पर पारुल के साथ एक कार्यक्रम बनाना चाहिए। पर सुना है पारुल एकांतवास में चली गयी हैं।