‘अलादीन का जादुई चिराग’ एक ऐसी रोचक और सम्मोहक कहानी है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती रहने के बावजूद अपना आकर्षण कायम रखे है। यह बात दूसरी है कि इस कहानी से कोई सबक नहीं लेना नहीं चाहता। लोगों को चिराग का जादू दिखता है, अलादीन का आत्मबल नहीं। चिराग से निकला ‘जो हुक्म मेरे आका’ कहने वाला ये जिन्न अपने आका के हुक्म का गुलाम तो है, लेकिन चापलूस नहीं है। परी कथा-सी ये कहानी हाल में फिर चर्चा में इसलिए आई कि मेरठ में एक पढ़े-लिखे डाॅक्टर को इसी जादुई चिराग के फेर में 31 लाख रू. गंवाने पड़े। लंदन से तालीमयाफ्ता डाॅक्टर को दो ठगों ने यह कहकर बेवकूफ बनाया कि वो उसे ऐसा जादुई चिराग देंगे, जो उसके सब दुख दूर कर देगा। पुलिस के मुताबिक यूपी में मेरठ के खैरनगर निवासी डॉ. लईक खान बतौर फिजिशियन प्रैक्टिस करते हैं। दो साल पहले इलाज के दौरान एक महिला समीना डाॅक्टर के संपर्क में आई। डाॅक्टर लईक ने उसका आॅपरेशन किया। बाद में मरहमपट्टी के लिए वो महिला के घर जाने लगे। वहीं पर उनकी मुलाकात एक तांत्रिक से हुई। तांत्रिक ने डाॅक्टर को बताया कि उनके पास एक जादुई चिराग है, जिसकी मूल कीमत तो ढाई करोड़ रू. है, लेकिन डाॅक्टर को वो 70 लाख में दे सकते हैं। डाॅक्टर को यकीन दिलाने उन्होंने चिराग घिस कर जिन्न भी निकालकर दिखाया ( जो वास्तव में महिला का पति था)। इसके बाद डाॅक्टर ने तांत्रिक को एडवांस के तौर पर 31 लाख रुपए दे दिए।
डॉ. लईक के मुताबिक, चिराग से जिन्न को प्रकट करने के लिए 12 हजार रू. का एक इत्र मंगाया जाता था। जब भी डाॅक्टर लईक चिराग अपने घर ले जाने की बात करते तो ठग उसे यह कहकर डरा देते कि अगर उन्होंने दो साल के पहले चिराग को छुआ तो अंजाम बुरा होगा। उन्होंने काला जादू करने की धमकी भी दी। इस बीच डाॅक्टर के बेटे की तबीयत खराब हो गई और उसका लंबा इलाज चला। ठगों की बातों में आने और लाखों रू. गंवाने के बाद जब डाॅक्टर लईक की आंखें खुली तो उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट की। पुलिस ने आरोपी इस्लामुद्दीन और उसके साथी अनीस को गिरफ्तार किया और उनके कब्जे से तथाकथित जादुई चिराग और तंत्र-मंत्र की सामग्री बरामद की। बताया जाता है आरोपी शिकार को फांसने के लिए लोगो को अपना विजिटिंग कार्ड देते थे और यह बताते थे कि वो जादुई चिराग से उनकी हर समस्या का समाधान कर सकते हैं। यह चिराग भी स्टील का बना था।
यह हैरतनाक वाकये पर कई प्रतिक्रियाएं आईें। पहली तो यही थी कि इस देश में पढ़े-लिखे लोगों के दिमाग भी तंत्र मंत्र के जालों से मुक्त नहीं हैं। मुखर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे सियासी एंगल देते हुए कटाक्ष किया कि लगता है देश 6 साल पहले के उस दौर में लौट रहा है, जब देशवासियों से काले धन के 15-15 लाख रू. लौटाने का वादा किया गया था। इसमें तंज यही था कि 15-15 लाख रू. लौटाने के लिए भी वैसा ही कोई जादुई चिराग चाहिए, जो अलादीन के हाथ लगा था। दरअसल अलादीन के इस जादुई चिराग और उससे निकलने वाले इच्छापूरण जिन्न की कहानी हमारे भीतर इतने गहरे तक पैठी है कि कर्मवादी होने के बाद भी मन के किसी कोने में जिंदगी में कभी कोई चमत्कारी चिराग हाथ लगने की आस टिमटिमाती रहती है। सत्ता और सुखों पर सवारी की यह वो अवस्था है, जो दुनिया में उंगली पर गिनने लायक लोगों को ही नसीब होती है और शायद वैसी तो नहीं ही, जो अलादीन को मिली थी।
अलादीन के जादुई चिराग की यह अमर कथा किसने और कब रची, इसके बारे में सही जानकारी आज तक नहीं है। लेकिन इसका कथानक अरब देश, चीन और अफ्रीका तक फैला हुआ है। संक्षेप में कहानी यह है कि बगदाद में रहने वाला अलादीन एक गरीब दर्जी का बेटा है, अपने पिता के स्वर्गवासी होने के बाद भी निठल्लेगिरी ही करता है। इसको लेकर उसकी मां बहुत चिंतित रहती है। इसी बीच अलादीन की मुलाकात एक ऐसे हब्शी जादूगर से होती है, जो उसे कई सपने दिखाता है। वह उसे एक गड्ढे में उतार देता है, जिसके नीचे धन दौलत की चकाचौंध कर देने वाली दुनिया होती है। वहीं एक पुराना चिराग भी रखा होता है, जिसे अंगूठी से घिसने पर जिन्न प्रकट होता है। जादूगर वो चिराग हासिल करना चाहता है, लेकिन अलादीन कहता है कि वो चिराग तभी देगा, जब उसे जादूगर गड्ढे से बाहर निकाले। गुस्से में जादूगर गड्ढे पर ढक्कन रखकर चला जाता है। अनजाने मे अलादीन की अंगूठी उस चिराग से रगड़ जाने पर उससे एक जिन्न बाहर आता है और पूछता है कि क्या हुक्म है मेरे आका। अलादीन जिन्न को उसे अपने गड्ढे से बाहर निकालने का हुक्म देता है।
जिन्न वो पूरी करता है। जिन्न की बदौलत अलादीन मालामाल हो जाता है और चीन के बादशाह की बेटी से ब्याह करता है। उधर बरसों बाद जादूगर को अलादीन की याद आती है। वह षड्यंत्र पूर्वक अलादीन से जादुई चिराग चुरा लेता है। नतीजतन अलादीन के बुरे दिन शुरू हो जाते हैं। लेकिन अलादीन हार नहीं मानता और किसी तरह जादूगर को मार डालता है। इसके बाद जादूगर का छोटा भाई बड़े भाई की मौत का बदला लेने वो चिराग फिर से हासिल करने की साजिश रचता है। वह अलादीन की पत्नी को झांसा देकर रूख नामक पक्षी का अंडा लाने के लिए तैयार करता है। लेकिन जिन्न यह काम करने से अलादीन को साफ इंकार कर देता है, क्योंकि वह अंडा ही जिन्न का असली मालिक होता है। जिन्न मालिक का वफादार होता है। अंतत: अलादीन अपनी हिम्मत और हिकमत के साथ फिर सारे सुखों को न सिर्फ प्राप्त करता है बल्कि खुद गरीबों का मददगार बनकर काम करता है।
इस कहानी में कई मोड़ हैं, जो पाठक को बांधे रखते हैं। इसमें रहस्य है, रोमांच है। साहस है, धूर्तता है, चतुराई और मानवता है। बाकी दुनिया को सबसे पहले इस कहानी से 18 वीं सदी में एक फ्रेंच राजनयिक एंतोनी गेलांद ने परिचित कराया। एंतोनी इस्तांबूल में फ्रांसिसी राजनयिक और विद्वान थे। उन्होंने फ्रेंच एनसाइक्लोपीडिया पर काफी काम किया था। उन्होंने ही सबसे पहले ‘एक हजार रातें: अरबी कहानियां’ का मूल अरबी भाषा से फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया था। उन्होंने इसे कई खंडो में प्रकाशित कराया। खुद गेलांद ने अपनी डायरी में लिखा था कि अरेबियन नाइट्स की ये अद्भुत कहानियां उन्होंने सीरिया के अलेप्पो शहर के एक स्टोरी टेलर हन्ना दियाब से सुनी थी। इस बारे में कुछ और भी किस्से प्रचलित हैं।बहरहाल मामला डाॅक्टर लईक का। एक सुशिक्षित डाॅक्टर होने के बाद भी लईक का अंधविश्वास कथित जादुई चिराग की बात पर कैसे हो गया, यह सोचने की बात है। शायद इसलिए कि हर इंसान के भीतर बिना हाथ पैर हिलाए हर सुख सम्पत्ति हासिल करने का एक सपना पलता रहता है।
जीवन की कठोर सच्चाइयां और चुनौतियां कल्पना में रमने वाले इस जीव को कहीं दबाकर रखती हैं, लेकिन अगर कोई धोखे से भी उसे खाद-पानी दे देता है तो भाग्यवाद और अंधविश्वास का वायरस अपना रंग दिखाना शुरू कर देता है। वैसे अलादीन ही क्यों, ‘अरेबियन नाइट्स’ की तमाम कहानियां,जिसमे ‘अलीबाबा और चालीस चोर’ भी शामिल है, इतनी रंजक और कुतूहलभरी है कि बीती तीन सदियों में इन्हें लेकर न जाने कितने नाटक व लेख लिखे जा चुके हैं। कितनी ही फिल्मे, एनीमेशन, टीवी सीरियल आदि बन चुके हैं। आज भी लोग इन्हें विस्मित भाव से देखते-सुनते हैं, लेकिन उन कहानियों के मर्म तक शायद ही कोई जाता है। अलादीन और उसका जादुई चिराग भी वास्तव में कोई चमत्कार नहीं है। असल में वह मनुष्य के आत्मविश्वास और आत्मबल की असमाप्त कथा है। इस कहानी का सबक यही है कि दुनिया आपको कितना ही हतोत्साहित करे, आप पर कितना ही शक करे, आपको धैर्य नहीं खोना है और अपने लक्ष्य से नहीं डिगना है। अलादीन के रूप में शुरूआती आवारा युवक उस जादुई चिराग के सहारे एक पुरूषार्थी के रूप में उभरता है और हर बाधा को ध्वस्त करते हुए अपने लक्ष्य को पा लेता है। लेकिन कहानी के इस मर्म पर जाने वाले बहुत कम लोग हैं। उसे परी कथा मानकर अलादीन जैसा जादुई चिराग घिसकर चुटकियों में वैभव हासिल कर लेना चाहते हैं। हमारे नेताओं में भी सत्ता का लोभ भी कुछ इसी तरह का होता है। ऐसे कई लोग सत्ता हासिल करने के लिए कोई न कोई जादुई चिराग कबाड़ने की तलाश में रहते हैं। इसके लिए वो अपने आका की गुलामी के लिए भी हरदम तैयार रहते हैं। क्योंकि हुक्म चलाने के लिए हुक्म बजाने का हुनर भी अच्छे से आना चाहिए। अलादीन ने मुश्किलों को मात देकर अंतत: अपनी मंजिल पा ली। उसने जादुई चिराग की मदद जरूर ली, लेकिन उसके भरोसे नहीं रहा। लेकिन डाॅ.लईक हुक्मबरदार जिन्न की आस में खुद लुटते रहे।
वरिष्ठ संपादक
अजय बोकिल