आज रात के बारह बजे भारत के आजादी के 77 साल पुरे हो रहे हैं ! वैसे ही बगल के बंगला देश में बंगला देश को निर्माण करने वाले शेख मुजबुर रहमान के शहादत को 49 वर्ष पुरे हो रहे हैं ! 15 अगस्त 1975 के दिन बंगला देश फौज के कुछ लोग उनके आवास पर हमला करते हुए घुसकर उन्हें तथा उस समय उस आवासपर जितने भी लोग मौजूद थे, जिसमें छोटे बच्चे भी थे, सभी को मौत के घाट उतार दिया था ! शेख हसीना उस समय जर्मनी में थी इसलिए वह बच गई ! और आजसे दस दिन पहले, शेख हसीना वाजेद को सिर्फ इस्तीफा ही नहीं देना पडा, बल्कि बंगला देश छोड़कर भागने की नौबत गई है ! बंगला देश में मुसलमानों की आर एस एस जमाते इस्लामी सबसे पहले तो बटवारे के खिलाफ थी ! क्योंकि उसे भारत को दारुल इस्लाम बनाना था ! और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अखंड भारत, हिंदुओं का हिंदुस्तान बनाना था ! लेकिन उसके बावजूद बटवारा हुआ ! क्योंकि दोनों का जनाधार उस समय बहुत ही सिमित मात्रा में था !

जमाते इस्लामी भाषा के आधार पर बंगला देश बनाने के भी खिलाफ थी ! बेगम खालिदा जिया की पार्टी का अस्तित्व बंगला देश बनने के बाद का है ! लेकिन जमाते इस्लामी अविभाजित भारत में औरंगाबाद (आज का नाम संभाजीनगर, महाराष्ट्र ) में पैदा हुए मौलाना मौदूदी ने 1941 मे स्थापित की है ! और जमाते इस्लामी का भारत के बटवारे को विरोध था ! जैसे आरएसएस का भी विरोध था ! लेकिन दोनो के विरोध के कारण अलग- अलग थे ! और दोनों का उस समय जनाधार बहुत ही सिमित था ! इसलिए दोनों के विरोध के बावजूद भारत का बटवारा धर्म के आधार पर आज ही के दिन 77 साल पहले हुआ था ! हालांकि दोनों का विरोध भी धर्म के आधार पर ही था !


भारत में भी गत दस सालों से जिस दल ने देश की एकता और अखंडता के साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हुए शासन पर कब्जा किया है ! उसके मातृसंघठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्वतंत्रता आंदोलन से अपने आपको अलग रखने का इतिहास है ! और सबसे हैरानी की बात जब हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के साथ भारत के राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रीगित का ऐलान किया था, उसका भी विरोध आर एस एस ने किया है ! और डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने बनाया हुआ संविधान की जगह मनुस्मृति का समर्थन किया है ! तत्कालीन संघप्रमुख श्री. माधव सदाशिव गोलवलकरने लिखित रूप से हमारे सविंधान हमारे देश के राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान के विरोध करने के रेकॉर्ड मौजूद हैं !

नागपुर में 14 जुलै 1946 को गुरुपौर्णिमा के दिन गोलवलकर गुरुजी ने “भगवा झंडा ही भारतीय संस्कृति का प्रतीक है ! और मुझे विश्वास है कि यही झंडा हमारे देश का राष्ट्रीय झंडा फहराया जायेगा ! ” वैसे ही अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनायझर के संपादकीय में राष्ट्रीय झंडा के शिर्षक से 17 जुलै 1947 के दिन हमारे देश के संविधान के राष्ट्रध्वज के लिए गठित समिति ने सर्वसम्मति से हमारे वर्तमान तिरंगे झंडे को हमारे देश के झंडे के रूप में घोषित करने के बाद यह लेख अंग्रेजी में लिखा गया है कि “हमारे देश का तिरंगा झंडा घोषित किया गया है ! कि यह राष्ट्र का झंडा है ! यह मुर्खतापूर्ण निर्णय है ! क्योंकि तीन आंकडा अशुभ होता है और तीनों रंगों के तथा अशोक चक्र के बारे में भी आलोचना करते हुए, अगर इस देश का झंडा भगवा होगा ! वहीं हिंदुराष्ट्र का झंडा होगा ! जो पांच हजार वर्ष पुराना है ! और हम हमारे देश का झंडे का चयन सिर्फ अन्य जातियों तथा संप्रदायों को खुष करने के लिए, चयन करना सर्वस्वी गलत है ! हमारे देश का झंडा कोई कोट या शर्ट नही है, कि किसी भी टेलर को कहा और तैयार हो गया ! ऐसा नहीं है ! और इसिलिये नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में पंद्रह अगस्त या 26 जनवरी को तिरंगा झंडा फहराया नही जाता था ! अभी कुछ समय पहले आलोचना को देखते हुए शुरू किया है ! और साथ ही देशभक्ति के सर्टिफिकेट बाँटने का काम भी !


और इसी तरह हमारे देश के राष्ट्रगान के बारे में की यह इंग्लैंड के राजा पंचमजॉर्ज की स्तुति करने के लिए लिखा गया है ! इससे अच्छा बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा आनंद मठ उपन्यास में लिखा हुआ, वंदे मातरम ही हमारे देश का राष्ट्रगीत होना चाहिए ! और इसिलिये संघ के कार्यक्रमों में कभी भी जन गण मन नही गाया जाता है ! वंदे मातरम और वह भी पूरा गाया जाता है ! हमारे आजदी के आंदोलन में भाग न लेने वाले लोगों के भारतीय संविधान से लेकर राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत को नकार देना कहा तक उचित है ? और अब सबसे अधिक तिरंगा झंडा तथा राष्ट्रीयता का भौंडा प्रदर्शन करने में सब से आगे चल रहे हैं ! इतना पाखंड तो सिर्फ संघ के लोग ही कर सकते हैं !


जिस तरह बंगला देश बनने के बाद जमाते इस्लामी बंगला देश में लगातार धर्म के आधार पर राजनीति कर रही है ! जैसे भारत में आर एस एस और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा किए जा रहे हैं ! भारत में भी अल्पसंख्यक समुदाय इतिहास के क्रम में कभी भी इतना असुरक्षित महसूस नहीं करता था जितना कि अभी पिछले दस सालों से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं ! उसी तरह बंगला देश के अल्पसंख्यक जिसमें सबसे ज्यादा हिंदू, बौद्ध तथा कुछ ख्रिश्चन धर्म के लोग भी रहते हैं ! उन्हें समय-समय पर इस्लामिक मुलतत्ववादीयो के तरफसे होने वाली हिंसा का शिकार होना पड़ता है ! और अभी भी पांच अगस्त से बंगला देश में शेख हसीना वाजेद के इस्तीफे के बाद लगातार चल रहा है ! कल बंगला देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री डॉ. मोहम्मद यूनुस को ढाका के धनमंडी स्थित ढाकेश्वरी के मंदिर को भेट देने की एकमात्र वजह बंगला देश में रह रहे हिंदूओ के खिलाफ चल रहे हमलों को रोकना ! हालांकि धनमंडी ढाका का मध्यवर्ती इलाका है! जहाँ पर राष्ट्रपति भवन तथा पार्लियामेंट तथा प्रधानमंत्री आवास से लेकर वीआईपी लोगों का इलाका है ! और भद्र बंगाली हिंदूओ की संख्या भी अधिक मात्रा में है ! लेकिन बंगला देश के अन्य हिस्सों में जो हिंसा जारी है ! जिसमें नामशुद्रो की संख्या अधिक है, जिनके उपर चल रहे हमलों को रोकना होगा !


बटवारे के बावजूद पाकिस्तान – भारत – तथा बंगला देश में हिंदू तथा ख्रिश्चन बौद्ध धर्म के लोगों का अस्तित्व कम – अधिक अनुपात में है ! और इन तीनों देशों के अंदर जब भी कोई धार्मिक विवाद के चलते तनाव निर्माण होता है ! तो अक्सर हिंसक वारदातें होती है ! जिसमें सभी अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों की जानमाल दांव पर लग जाती है ! हालांकि तिनो देशों की सरकारों का दावा रहता है, कि हम अल्पसंख्यक समुदायों को पुरी तरह से सुरक्षा देंगे ! लेकिन वास्तव में तीनों देशों के अंदर अल्पसंख्यक समुदाय दंगों के दौरान हिंसा का शिकार बनाया जाता है ! भारत में गुजरात के दंगों से लेकर लगभग सभी दंगो में यही हुआ है ! और बंगला देश तथा पाकिस्तान में भी बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तथा अन्य समय में हिंसक वारदातें होती है !

भारत की वर्तमान सरकार पिछले दस सालों से अधिक समय से एक सांप्रदायिक दल की सरकार के अधीन चल रहा है ! और पाकिस्तान तथा बंगला देश में सरकार किसी की भी हो, वहाँ के अल्पसंख्यक हमेशा दहशत में रहने के लिए मजबूर है ! आनेवाले बाईस सालों के बाद बटवारे को सौ वर्ष पुरे होंगे ! जिस कारण बटवारा किया गया था ! वह पहले दिन से ही गलत साबित हुआ है ! हा अंतराष्ट्रीय दादाओ को अपने अस्र – शस्र बेचने और अपनी तथाकथित कुटनिति के लिए यह देश इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध हो गए हैं ! अब तीनों भी देशों के लोगों को सोचने और समझने का समय आ गया है ! और कितने दिनों तक बेकसूर लोग मारे जाएंगे ? इन तीनों देशों के राजनेताओं से कोई भी उम्मीद करना बेकार है ! अब तीनों देशों के सर्व सामान्य लोगों ने ही सोचना चाहिए कि, 78 सालों के बटवारे से सचमुच तीनों देशों में से किसे और कितना लाभ हुआ है ? मेरा अपना तीनों देशों में जाने – आने के अनुभवों के आधार पर मुझे लगता है, कि कुछ डिग्री का फर्क छोड़कर तीनों देशों के बीच समस्याएं लगभग एक जैसी हैं !


1945-46 दुसरे महायुद्ध के बाद जर्मनी को भी तथाकथित दोस्त राष्ट्रों ने आपस में बंदरबांट करते हुए, जर्मनी का भी बटवारा किया था ! लेकिन सोवियत रूस के पतन के बाद पूर्वी यूरोप के देशों में भी बदलाव के तुफान में बर्लिन की दिवार दोनों देशों के लोगों द्वारा धराशाई की गई ! और अब संयुक्त जर्मनी अस्तित्व में आकर पैतिस वर्ष से अधिक समय हो रहा है ! क्या हम तीनों देशों के लोग इस उदाहरण से कुछ भी सिख नही सकते ?

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