जिस देश के आजादी के अठहत्तर साल के भीतर और संविधान लागू करने के 75 साल पूरे होने के पहले ही. सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता राजनीति करके देश के सर्वोच्च स्तर की सत्ता के उपर आसिन होते हो सकते हैं . और बाबरी मस्जिद को सुरक्षित रखने की कोर्ट में अफेडिवेट करने के बावजुद, उसके मुख्यमंत्री रहते हुए बाबरी मस्जिद की इट से इट बजाई जाती है. और उसे अपने इस गुनाह के लिए सजा भी होती है. और उसे इस देश का दो नंबर का पद्मविभूषण सम्मान देने का वर्तमान केंद्र सरकार की घोषणा से कौन-सा संदेश देश और दुनिया को जा रहा है ? जानबूझकर कल्याणसिंग को इस सम्मान से सम्मानित करते हुए भाजपा ने देश को साफ – साफ संदेश दे दिया है, कि हमें बाबरी मस्जिद के विध्वंस करने की घटना पर गर्व है. क्योंकि कल्याणसिंग के संपूर्ण राजनीतिक जीवन को देखते हुए उनका दूसरा ऐसा कोई भी काम नजर में नहीं आता कि उन्हें इतना बड़ा सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया जा सकता है.
उसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में, भोपाल की लोकसभा के प्रतिनिधि के रूप में, प्रज्ञा सिंह ठाकुर जो मालेगाँव, समझौता एक्सप्रेस और अन्य आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपी, होने के बावजूद लोकसभा जैसे सर्वोच्च सभागृह की सदस्य बनाने की घटना, तथा नथुराम गोडसे के महिमा मंडन करने की घटनाएं. और क्या संदेश दिया जा रहा है ? हमारे अपने परिवार के सदस्यों ने भले ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की होगी, या किसी भी जधन्य आतंकवाद को अंजाम दिया होगा, तो भी हम उसे अपराधी नही मानते हैं. वैसे देखा जाए तो देश के सर्वोच्च पद पर बैठे प्रधानमंत्री या गृहमंत्री के पूर्वचरित्र को देखते हुए भारतीय संविधान तथा सभी संसदीय मानमर्यादाओ का सवाल मन में पैदा होता है. भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को गुजरात दंगों में की उनकी भूमिका जिसके बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “आपने राजधर्म का पालन नहीं किया है ! ” वही शख्सियत आज देश के प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान हैं. और हमारे देश के कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी जैसे संवेदनशील विभाग पर जानबूझकर एक अत्यंत विवादास्पद व्यक्ति अमित शाह ऊको नियुक्त करना भी जानबूझकर संविधान को ठेंगा बताने का लक्षण है . और संविधान के प्रति तुच्छता ही दर्शाता है.
तथा धर्मसंसद के नाम पर (जो धर्म तथा संसद दोनों का कद छोटा करने की कोशिश चल रही है ) और उन आयोजनों में अल्पसंख्यक समुदायों से लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे मे आपत्तिजनक टिप्पणीया की जा रही है. क्या यह सब एक ही कार्यक्रम के अलग- अलग उदाहरण नही है ?
एक तरफ आज 75 वा प्रजासत्ताक दिवस मनाया जा रहा है . मतलब आजही के दिन 75 साल पहले हमारे देश में संविधान लागू करने से लेकर प्रजातांत्रिक पद्धति की शुरुआत की गई है. तो इस प्रजातंत्र में 140 करोड़ लोग जो इस देश के नागरिक हैं. वह सभी को लगना चाहिए कि हम इस देश के नागरिक हैं. लेकिन गत कुछ समय से कुछ सांप्रदायिक तत्वों के आचरण से लगने लगा कि यह देश अब सिर्फ कुछ चंद लोगों की प्रायवेट प्रापर्टी बनाने की कोशिश की जा रही है. जो हमारे देश के संविधान के विपरीत है. और इसी संविधान के बारे में तत्कालीन संघ प्रमुख श्री माधव सदाशिव गोलवलकर ने क्या कहा था ? कि
“Our Constitution too is just a cumbersome and heterogeneous piecing together of various articles from various Constitutions of Western Countries. It has absolutely nothing which can be called our own, Is there a single word of reference in its guiding principles as to what our national mission is and what our keynote in life is ? ”
और आगे चलकर उन्होंने कहा कि इससे बढ़िया हजारों वर्ष पुराने संविधान मनुस्मृति के रहते हुए इस संविधान की क्या आवश्यकता है?
जिस राजनीतिक दल के संस्थापक हमारे संविधान की जगह पर मनुस्मृति जैसे स्रि, शुद्रो के साथ गुलामों के जैसे व्यवहार करने की सूचना करती है. और ब्राम्हण के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने की वकालत करती हो. और वर्तमान संघ प्रमुख अयोध्या के राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पुनः ब्राम्हण ही संपूर्ण विश्व में कैसे सत्ताधारी होने का अधिकारी होता है, यह मनुस्मृति का श्लोक का उच्चारण करता हो. ऐसे लोगों से क्या सचमुच ही हमारे प्रजासत्ताक की रक्षा हो सकती है ? मुझे उम्र के पंद्रह वर्ष के भी पहले ही आर एस एस के बारे में ज्ञात हो गया था कि, भविष्य में अगर कभी आर एस एस की सत्ता आई तो वह संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करते हुए, इस देश को हजारों वर्ष पुरानी सडीगली मनुस्मृति के अनुसार चलाएंगे. जो पिछले दस सालों से जारी है. और इसिलिये सचमुच ही हमारे देश के संविधान के प्रति अगर किसी को आदर सम्मान है, तो मनुस्मृति को लागू करने वाले लोगों को सत्ता से बाहर करना चाहिए. यही भारतीय संविधान की 75 वी वर्षगांठ पर मुझे लगता है.