15 अगस्त 1947 के दिन भारत को आजादी मिलने को आनेवाले 15 अगस्त को पचहत्तर साल पूरे हो रहे हैं ! आजादी के बाद भारत में सबकुछ अच्छा होगा इस तरह की उम्मीद हमारे देश के सभी नागरिकों की थी ! जिसमें आजादी के आंदोलन में शामिल सानेगुरुजी भी थे ! और 11 जून 1950 को सिर्फ तीन साल भी नहीं हुए थे !

तो सानेगुरुजी के संवेदनशील मन को बहुत चोट पहुँची ! “कि आजादी मिलने के बावजूद आदिवासी जंगल में शेर को नहीं डरते , लेकिन खाकि वर्दी के फॉरेस्ट गार्ड को देखकर जंगल के अंदर छुप जाता है ! आजादी मिलने के बाद भी हमारी मां, बहन, बेटियों के साथ अन्याय-अत्याचार बदस्तूर जारी है ! संविधान में लाख लिखा होगा ! कि आजसे कोई उंच कोई नींच नहीं है ! लेकिन उसके बावजूद दलितों के साथ भेद-भाव बदस्तूर जारी है ! और गैर बराबरी का आलम यह है ! कि कोई मालपुआ खा रहा है ! और आधी आबादी आधे पेट खाने के लिए तरस रही हैं ! उसके खिलाफ कोई आंदोलन करने की कोशिश करते हैं ! तो उन्हें पुलिस के लाठी – गोली का शिकार बनाया जा रहा है ! किसानों की समस्याओं का हल करने की जगह और भी ज्यादा शोषण सेठ – साहुकारों के साथ सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से ! और अधिक अन्याय हो रहा है ! रोजगार के लिए लोग दर – दर की ठोकरें खा रहे हैं ! मतलब गोरे साहब के जगह काले साहब आए ! लेकिन मेरे देश के आम लोगों के जीवन में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है ! ” इन परिस्थितियों के कारण सानेगुरुजीं के जैसे संवेदनशील आदमी ने 11 जून 1950 के दिन आत्महत्या की ! उन्होंने अपने सुसाइड नोट में यह सब लिखा है ! सानेगुरुजी के जैसी संवेदनशीलता हमारी नही होने के कारण ! हम अपने रोजमर्रा के जीवन जी रहे हैं !


मैंने अपने जीवन में दो लोगों को भरी सभाओ में देश और दुनिया की समस्याओं को देखते हुए रोने वाले देखे हैं ! एक सानेगुरुजी और दुसरे जयप्रकाश नारायण ! दोनों फकीरों की जींदगी जीए इसलिए घर – परिवार की समस्या के लिए दुखी होने का सवाल ही नहीं था ! लेकिन देश और दुनिया को ही अपना परिवार मानने वाले लोग होने के कारण ! देश – दुनिया की समस्याओं को लेकर भरी सभा में लाखों लोगोंके सामने रोने वाले दोनों लोग थे ! खैर सानेगुरुजी तो 1950 में ही अपने उम्र के पचास पुरे करने के बाद विदा हो गए ! ( जन्म 24 दिसंबर 1899 और मृत्यु 11 जून 1950) ! लेकिन जयप्रकाश नारायण और तीस साल (जन्म 12 अक्तुबर 1902 और मृत्यु 8 अक्तुबर 1979) तक जिएं ! और कुल इक्यास्सी सालों के जीवन में, शुरू के बीस – इक्कीस साल पढाई के छोड़ दें ! तो साठ साल का एकेक क्षण हमारे देश और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करते रहे ! इसी तरह और भी बहुत लोग हैं ! जिन्होंने इस देश और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए प्रयास किए हैं और आज भी कर रहे हैं ! लेकिन पचहत्तर साल के पस्चात भी हमारे देश के आजादी के बाद कुछ दिखावे के लिए बदलाव हुए हैं ! लेकिन उससे ज्यादा समस्याओं का अंबार खड़ा हो गया है ! अमिर बेतहाशा अमिर बनते जा रहे हैं और गरीब और गरीब हो रहे हैं !


सबसे मुख्य समस्या विकास की अवधारणा की है ! जिसे आजसे एक सौ बत्तीस साल पहले महात्मा गाँधी ने इंग्लैंड के औद्योगिकीकरण को अपनी आंखोंसे ! प्रथम बार बैरिस्टरी की पढाई करने हेतु 1888 में इंग्लैंड जाने का मौका मिला तब ! उस समय वह उन्नीस साल के थे ! और बाद में, भारत की आजादी के संबंध में दुसरी राऊंड टेबल कॉंफ्रेंस लंडन 1932 चालीस साल से अधिक समय तक ! इंग्लैंड के प्रवास के दौरान जो स्थिति उन्होंने अपने खुद के आंखों से देखी थी !
और एक जुलाई 1909 के दिन उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की समस्या को लेकर, इंग्लैंड में कदम रखा था ! उसी दिन मदनलाल धींग्रा ने सर कर्जन वायली की लंडन मे हत्या की थी ! और लगभग चार महीने गांधी लंडन में रहे ! तो उस समय 24 अक्तूबर 1909 दशहरे के दिन नझीमुद्दीन होटल लंडन के कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में शामिल हुए ! जिसमें अन्य वक्ताओं के साथ बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर भी शामिल थे ! और उन्होंने भारत की आजादी के लिए शस्त्रों के साथ लडाई करने के लिए जबरदस्त भाषण दिया था ! और औद्योगिकीकरण तथा पस्चिम के विकास के मॉडल के जैसा भारत में भी होना चाहिए इत्यादि बातों की वकालत की थी ! चार महीने के बाद इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका के वापसी के दिन 14 जुलाई अहमदाबाद में लॉर्ड मिंटो और उनके पत्नी पर किसी ने बम से हमला किया था ! इन सब परिस्थितियों के बाद, उन्होंने लंडन से दक्षिण अफ्रीका को वापस आने के प्रवास के दौरान ! अपने जहाज से 1909 में हिंदस्वराज्य नामकी सौ से भी कम पन्नौकी किताब में पस्चिम की सभ्यता से लेकर आलोचना लिखा है ! और अहिंसा से लेकर भावी भारत और विश्व की दुनिया के लिए पस्चिमि सभ्यता जिसे गांधी जी ने सैतानी सभ्यता की उपमा दी है ! इसलिए पर्यायी सभ्यता का खाका तैयार किया ! जिसका नाम हिंदस्वराज्य हैं !


और आस्चर्य की बात देखीए ! महात्मा गाँधी जी के हत्या के बाद ! दिल्ली स्थित राजघाट स्मृति समिति की पत्रिका “अंतिम जन” के ताजा अंक ! उनके विचारों से लेकर उनकी हर बात के विरोधी ! बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर विशेषांक प्रकाशित करने की कृती ! वह भी आजादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में ! करने वाले लोगों की मानसिकता को क्या कहेंगे ? सावरकर ने हिंदुत्व नामकी किताब का खाका अंदमान जेल में जाने के पहले ही इंग्लैंड के वास्तव्य में 1906 से 1910 दौरान अपना ध्यान केंद्रित किया था ! (यह बात हिंदुत्व नामकी मराठी किताब के अनुवादक, और सावरकर के सब से छोटे भाई डॉ नारायण दामोदर सावरकर ने खुद शुरू में ही कारण शिर्षक से लिखा है !) 1911 में अंदमान की जेल में जाने के बाद जेल की दिवारों पर और उनके स्मरण शक्ति में बंद थी जो रत्नागिरी के स्थानांतरण के समय चुपचाप 1923 में बाहर भेजा जिसे अभिनव भारत के सदस्य नागपुर के एडवोकेट विश्वनाथ विनायक केळकर ने पहली बार लेखक का मराठा नाम से छपवाया ! क्या कहते हैं हिंदुत्व में सावरकर ? हिंदु और मुसलमानों का एक राष्ट्र नही हो सकता ! यह द्विराष्ट्र सिंद्धांत के उद्गगाता ( बैरिस्टर जीना से भी 30 साल पहले ! ) सावरकर ने हिंदु – मुस्लिम दो राष्ट्रों की वकालत करने वाले ! और हिंदस्वराज्य में गांधी जी पृष्ठ क्रमांक 30 पर “हिंदु – मुसलमान” शिर्षक में गांधी जी लिखते हैं कि “हिंदुस्तान में चाहे जिस धर्म के आदमी रह सकते हैं; उससे यह राष्ट्र मिटनेवाला नही है !


और उसके बावजूद सावरकर विशेषांक ! वह भी गांधी स्मृति समिति के तत्वावधान में ! गांधीजी की शारीरिक हत्या के बाद, यह वैचारिक हत्या का प्रयास जारी है ! क्योंकि हिंदुत्ववादीयो ने कभी भी महात्मा गाँधी जी के विचारों को स्वीकार नहीं किया ! उल्टा गांधी जी के विचारों में अहिंसा से लेकर, हिंदु – मुस्लिम एकता को लेकर, ही तो उनको मुस्लिम पस्त बोलकर हत्या करने वाले, वैचारिक स्कूल के लोगों के हाथों में, देश की बागडोर चले जाने के कारण ! आज यह दिन देखने को मिल रहे हैं ! और वह भी हमारे देश की आजादी के पचहत्तर साल के दौरान !
क्या यह भारतीय संसदीय लोकतंत्र के पतन की शुरुआत नही है ? जिन लोगों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेना तो दूर की बात है ! उल्टा अंग्रेजों को साथ देने का काम किया है ! और वह आज आजादी के पचहत्तर साल का जश्न मना रहे हैं ! इसलिये महात्मा गाँधी जी के संसदीय राजनीति के बारे में आजसे एक सौ बत्तीस साल पहले !


हिंदस्वराज्य में गांधी जी ने पृष्ठ क्रमांक 13 पर “इंग्लैंड की हालत” शिर्षक के साथ पार्लमेंटपर अपने विचारों को व्यक्त करते हुए कहा ” कि मैं तो भगवान से यही मांगता हूँ, कि हिंदुस्तान की ऐसी हालत कभी न हो ! जिसे आप पार्लियामेंट की माता कहते हो , वह पार्लियामेंट तो बांझ और बेसवा है ! ये दोनों शब्द बहुत कडे है, तो भी उसे अच्छी तरह लागू होते हैं ! मैंने उसे बांझ कहा, क्योंकि अब तक उस पार्लमेंटने अपने आप एक भी अच्छा काम नहीं किया ! अगर उसपर जोर – दबाव डालने वाला कोई नहीं हो ! तो वह कुछ भी न करें, ऐसी उसकी कुदरती हालत है ! और वह बेसवा है ! क्योंकि जो मंत्रीमंडल उसे रखें उसके पास वह रहतीं है ! आज उसका मालिक एक्विथ है, कल बालफर होगा और परसों कोई तीसरा ! क्या भारतीय पार्लियामेंट की स्थिति के बारे में कश्मीर के 370 समाप्त करने से लेकर नागरिकता वाले बील से लेकर कृषि और आठ साल में कितने उदाहरण है ! इसके पहले कांग्रेस के सत्ता के रहते हुए ! 1975 -76 में आपातकाल के निर्णय से लेकर, श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने खुद के लिए किऐ संविधान संशोधन बिलों को लाने के उदाहरण (41,42वे संशोधन और) जिन्हें देखने के बाद महात्मा गाँधी जी के आजसे एक सौ तेरह साल पहले की, हिंदस्वराज्य में लिखी हुई बातों में, और वर्तमान समय में भारत के पार्लमेंटमे कोई फर्क नजर आता है ?
उसके बावजूद भारत भले ही उन्हें राष्ट्रपिता मानता होगा ! लेकिन उन्होंने विकास की अवधारणा के बारे में लिखि हुई किसी भी बात की आजादी के बाद ही भारत के सत्ताधारी लोगों ने अनदेखी की है ! जिसमे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री तो विकास पुरुष के नाम से प्रसिद्ध है ! और जिस पस्चिमि सभ्यता की आलोचना गांधी जी ने की थी ! लगभग उसीकी नकल करते हुए, भारत ने अपने पचहत्तर साल का सफर तय किया है !


और उसी की बदौलत पर्यावरण से लेकर, विस्थापन जैसी विकराल समस्याओं का सामना करने की नौबत आ पडी है ! आज समस्त विश्व ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या से निपटने के लिये गोष्ठियों के उपर गोष्ठियाँ कर रहा है ! आज इंग्लैंड का तपमान 40 डिग्री सेल्सिअस हो गया है ! और भारत में कुछ जगहों पर बारिश का कहर जारी है ! तो बहुत बडे हिस्से में सुखे की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है ! समुद्र का जलस्तर बढते जा रहा है ! और ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं ! हालांकि इस समस्या से संपूर्ण विश्व संकट के दौर से गुजर रहा है ! भारत उसीका हिस्सा है ! अभिभी कोरोना नाम की महामारी की चर्चा जारी है ! और इसके अलावा काफी नये-नये नाम की बिमारीया संपूर्ण विश्व में फैलने की खबरें सुन चुके हैं ! इसके अलावा प्राकृतिक अपदाओ के भी कैटरीना से लेकर काफी अलग – अलग नाम के तुफान, त्सुनामी, भुस्खलन से लेकर अॅसिड रेन, बादल फटने के विभिन्न आपदाओं से संपूर्ण विश्व बधित हो रहा है ! और विश्व के दोसौ से अधिक वैज्ञानिक ग्लोबल वॉर्मिग को लेकर चेतावनी दे चुके हैं ! तो क्या भारत से लेकर विश्व के अन्य देशों के लोगों ने मिलकर सोच – विचार कर के अगर इस तरह के विनाश से बचाने के लिए वर्तमान विकास की अवधारणा को बारे में गंभीर रूप से तत्काल निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है ?
डॉ सुरेश खैरनार 19 जुलै 2022, नागपुर

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