भारतीय जनता पार्टी को देश के एकमात्र राज्य जम्मू-कश्मीर में सत्ता प्राप्ति के लिए कुछ मुस्लिम चेहरों की तलाश है, जो उसके मिशन-44 के लक्ष्य को पूरा करने में सहयोग दे सकें. मिशन-44 यानि 87 सदस्यों वाली राज्य विधानसभा में सत्ता प्राप्ति के लिए कम से कम 44 सीटों का लक्ष्य भाजपा ने कई महीने पहले ही शुरूकिया था. दरअसल, संसदीय चुनावों में राज्य की कुल 6 में से 3 सीटें जीतने के बाद भाजपा के हौसले इतने बुलंद हुए कि वह राज्य विधानसभा में जीत का परचम लहराकर सरकार बनाने का सपना देखने लगी. संसदीय चुनावों के दौरान हिन्दू बाहुल्य जम्मू क्षेत्र और लद्दाख़ में भाजपा के पक्ष में वोटरों का असाधारण जोश देखने को मिला. भाजपा को लगभग 30 विधानसभा चुनाव क्षेत्रों पर भाजपा का जादू बरक़रार रहा तो इसके लिए विधानसभा चुनाव जीतने के लिए दरकार और 14 सीटों की व्यवस्था करना कोई असंभव बात नहीं होगी. पहले चरण में भाजपा ने घाटी में सोनावार, हबाकदल, अमीराकदल, तराल और सुपोर जैसे इन विधानसभा चुनाव क्षेत्रों पर तवज्जो देनी शुरू कर दी, जहां प्रवासी कश्मीरी पंडितों का बड़ा वोट बैंक है. चूंकि घाटी में अधिकतर मुस्लिम मतदाता चुनाव का बहिष्कार करते हैं, इसलिए भाजपा को उम्मीद है कि वह मुसलमानों के इस चुनावी बहिष्कार का फ़ायदा उठाते हुए कश्मीरी पंडितों के दम पर चंद सीटें जीत सकती है, लेकिन अगर भाजपा कश्मीरी पंडितों के दम पर घाटी में कुछ सीटें जीत भी लेती है तब भी सत्ता के सुख के लिए उसे और जोड़ तोड़ करनी होगी. यही वजह है कि अब भाजपा घाटी में कुछ प्रभावी मुस्लिम चेहरों का साथ लेना चाहती है जो जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के उसके सपने को साकार करने में मदद कर सकें.
अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या भाजपा को घाटी में किसी प्रभावशाली नेता का साथ मिल गया है? 10 नवंबर को सज्जाद ग़नी लोन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई मुलाक़ात और उसके बाद सज्जाद की ओर से मोदी के पक्ष में तारीफ़ों के पुल बांधने के बाद विश्लेषकों को विश्वास हो चला है कि सज्जाद ही भाजपा का वह मोहरा बन सकते हैं जो उसे जम्मू-कष्मीर में सत्ता की दहलीज़ तक पहुंचा सकता है. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार सज्जाद लोन और मोदी की मीटिंग की व्यवस्था आरएसएस नेता राज माधो और वर्तमान केन्द्र स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने करायी थी. ये दोनों नेता कुछ दिन पहले श्रीनगर में सज्जाद लोन से मिले थे. सज्जाद अभी तक घाटी में पृथकतावादी दल के गठबंधन हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता थे. उनके बड़े भाई बिलाल ग़नी लोन अभी भी मीर वाइज़ उमर फारूक़ के नेतृत्व वाली हुर्रियत कांफ्रेंस के एक धड़े के कार्यकारी सदस्य हैं. चौथी दुनिया से बात करते हुए सज्जाद लोन ने इस बात का खंडन किया कि वह चुनाव के बाद भाजपा से हाथ मिलाएंगे. हालांकि उनका कहना था कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि चुनावों में हमें क्या पोज़ीशन मिलती है. 47 वर्षीय सज्जाद लोन का उत्तरी कश्मीर के कई विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में ख़ासा प्रभाव है. इस बार उन्होंने उत्तरी कश्मीर के हिन्दुवा़डा और कुपवाड़ा के 12 विधानसभा क्षेत्रों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिये हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि इनमें से चार-पांच सीटों पर सज्जाद की जीत निश्चित है. पत्रकार अज़हर रफ़ीक़ी कहते हैं कि 2008 के विधानसभा चुनावों के अलावा 2009 और 2014 के संसदीय चुनावों में उत्तरी कश्मीर के कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदान दर का जायज़ा लेने से पता चलता है कि सज्जाद लोन को यहां चार-पांच सीटें जीतने के लिए बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. अगर सज्जाद लोन पांच सीटें भी ले आते हैं कि उनकी सहयोग से भाजपा मिशन-44 के बहुत क़रीब पहुंच सकती है.
विश्लेषकों का कहना है कि इनमें से चार-पांच सीटों पर सज्जाद की जीत निश्चित है. पत्रकार अज़हर रफ़ीक़ी कहते हैं कि 2008 के विधानसभा चुनावों के अलावा 2009 और 2014 के संसदीय चुनावों में उत्तरी कश्मीर के कई विधानसभा क्षेत्रों में मतदान दर का जायज़ा लेने से पता चलता है कि सज्जाद लोन को यहां चार-पांच सीटें जीतने के लिए बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. अगर सज्जाद लोन पांच सीटें भी ले आते हैं कि उनकी सहयोग से भाजपा मिशन-44 के बहुत क़रीब पहुंच सकती है. आश्चर्यजनक रूप से अतीत में भाजपा को एक सांप्रदायिक और मुस्लिम दुश्मन पार्टी बताने वाले सज्जाद लोन ने मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद उनकी शान में तारीफ़ें करते हुए ज़मीन आसमान एक कर दिये. उन्होंने मोदी को अपना ‘बड़ा भाई’ बताते हुए कहा कि मैंने मोदी को एक महान व्यक्ति के रूप में महसूस किया. सज्जाद की सोच में अचानक यह बदलाव कैसे आया, इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मैंने मोदी के साथ मुलाकात के दौरान उनके व्यक्तित्व के बारे में जो कुछ महसूस किया, वही बयान किया है. मुझे वह एक गंभीर और चिंतक नेता लगे. मैं कोई तंगनज़र आदमी नही हूं. मैं यह भी जानता हूं कि अब्दुल्लाह और मुफ्ती ख़ानदानों ने हमेशा कश्मीर और कश्मीरियों का शोषण किया है. कांग्रेस भी कुछ अलग नहीं है. ऐसी स्थिति में अगर भाजपा के नाम से एक विकल्प मिलता है तो हमें उसे पर विचार करना चाहिए. इस समय हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता बाढ़ पीड़ितों का पुर्नवास है. यह एक बहुत बड़ा काम है और भाजपा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. मोदी के साथ मुलाक़ात के दौरान बाढ़ पीड़ितों के पुर्नवास और जम्मू-कश्मीर के निर्माण व विकास पर बात की. मैंने उनका व्यवहार बहुत ही सकारात्मक पाया. ज़ाहिर है कि अगर सज्जाद लोन ने चुनावों में कुछ सीटें जीत लीं तो वह भाजपा के साथ हाथ मिलाने में ज़रा देर नहीं लगाएंगे. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सज्जाद लोन को मिलने वाली सीटें भाजपा के मिशन 44 का हिस्सा होंगी.
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार भाजपा में और मुस्लिम नेताओं का साथ पाने की कोशिशें जारी हैं और इस संबंध में वह डेमोक्रेटिक पार्टी नेशनलिस्ट के अध्यक्ष गुलाम हसन मीर, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता हकीम मोहम्मद यासीन और अवामी इत्तेहाद पार्टी के अध्यक्ष इंजीनियर अब्दुल रशीद के साथ लगातार संपर्क में हैं. अज़हर रफ़ीक़ी का मानना है कि अगर भाजपा को सज्जाद लोन के साथ-साथ कामयाब हो जाने वाली कुछ छोटी पार्टियों और कुछ कामयाब उम्मीदवारों का सहयोग मिल जाता है तो उसे जम्मू-कश्मीर में अगली सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है. देश में मोदी सरकार के गठन के बाद भाजपा जम्मू-कश्मीर में बड़ी तेज़ी से अपनी जड़ें मज़बूत करने की काशिशें कर रही है. यह पार्टी जहां हिन्दू बाहुल्य जम्मू क्षेत्र में मतदाताओं को लुभाने के लिए राम मंदिर का निर्माण, समान सिविल कोड के लागू करने और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली दफ़ा 370 के ख़ात्मे का वादा करती नज़र आती है. वहीं यह पार्टी ‘चित भी मेरी पट भी मेरी’ की तरह घाटी में कुछ मुस्लिम नेताओं का समर्थन प्राप्त करने के लिए विकास और बाढ़ पीड़ितों के पुर्नवास के नारे को भी बुलंद कर रही है, लेकिन भाजपा के इस दोहरे मापदंड के बावजूद राज्य की सत्ता पर उसकी पहुंच संभव है, क्योंकि लोकतंत्र तो बहरहाल नंबरों का खेल है. यह बात भी भाजपा के पक्ष में जाती है कि राज्य की सबसे पुरानी पार्टी यानी नेशनल कांफ्रेंस राज्य में अपनी साख बुरी तरह खो चुकी है. राज्य कांग्रेस का भी बुरा हाल नज़र आ रहा है, जबकि मुफ्ती मोहम्मद सईद की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी केवल घाटी में सक्रिय नज़र आ रही है. दूसरी ओर जम्मू और लद्दाख़ में मतदाता भाजपा के पक्ष में नज़र आ रहे हैं. इसके अलावा घाटी में सज्जाद लोन जैसे नेताओं का साथ पाकर भाजपा अन्य दलों के मुक़ाबले बेहतर पोज़ीशन में नज़र आ रही है. वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य में भाजपा अपने ‘मिषन 44’ के नज़दीक आती लग रही है. तो क्या जम्मू-कश्मीर में आने वाली सरकार भाजपा की होगी, इस सवाल का जवाब पाने के लिए डेढ़ महीने का इंतेज़ार करना होगा.