बड़े बड़े राजनीतिक पंडित 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी की हार देख रहे हैं। उनका मानना है कि यदि बालाकोट जैसी कोई घटना नहीं घटी तो मोदी का जीतना नामुमकिन है। लेकिन जो सत्य का दूसरा पहलू भी देख रहे हैं वे तो यहां तक कहते हैं कि यदि बालाकोट जैसी कोई घटना नहीं भी घटी तो भी मोदी की जीत में कोई अड़चन नहीं है। ऐसा क्यों है , इस पर सोचा जाना चाहिए। देश मान चुका है कि विधानसभा के चुनाव और लोकसभा के चुनावों को जनता कैसे अलग अलग करके देखती है। खासतौर पर मोदी के संदर्भ में। 2014 के बाद से भारत पूरी तरह बदल चुका है। हर क्षेत्र में बदला है। इन पांच विधानसभा चुनावों में यदि बीजेपी पांचों राज्यों में भी बुरा प्रदर्शन करे या मान लीजिए कहीं न रह जाए तो भी लोकसभा का पूरा चुनाव मोदी के इर्द गिर्द रहेगा। इस बात का कोई असर नहीं रहेगा कि मोदी या मोदी की पार्टी विधानसभा चुनावों में हारी है। जबकि किसी भी लोकतंत्र में ऐसा नहीं होता। क्योंकि वहां एक परसेप्शन बनता है और वह परसेप्शन काम करता है। इन विधानसभा चुनावों में जो पत्रकार चुनावी सर्वेक्षणों के लिए घूमे हैं और जिन्होंने बेबाक रिपोर्टिंग की है अजीत अंजुम सरीखे पत्रकार । उनसे पूछिए नयी पीढ़ी देश को और मोदी को किस नजर से देख रही है। एकदम नयी पीढ़ी से मतलब है पहली बार के वोटर। उनके सामने अतीत की राजनीतिक समझ कुछ नहीं है। वे सिर्फ वर्तमान को देख रहे हैं और उस वर्तमान में मोदी को दुनिया के पटल पर देख रहे हैं। वे जी 20 के सफल आयोजन और विश्व में भारत की नयी बनती और उभरती छवि का हवाला देते हैं। वे कांग्रेस की वंश परंपरा को दुत्कारते हैं। वे खुलेआम गांधी – नेहरू को गाली देकर सावरकर की प्रशंसा करते हैं। उन्हें व्हाट्सएप से मिल रहे ज्ञान में कुछ बुराई नहीं दिखती। वे मानते हैं कि पहले भारत दुनिया के अंधकार में था मोदी ने आकर उसे उस अंधकार से निकाला है। इस पीढ़ी को अंग्रेजों से कम और मुगल शासकों से ज्यादा चिढ़ है । उसी के आलोक में वे देश के सारे मुसलमानों को देखते और नफरत करते हैं। दूसरे अर्थों में बीजेपी और आरएसएस की ट्रोल आर्मी जैसे नयी पीढ़ी को सिखाना और बनाना चाहती थी वे पूरी तरह से उस रंग में ढल चुके हैं। इसके विपरीत नयी पीढ़ी का दूसरा बड़ा वर्ग उन लोगों का है जिनके बड़े बुजुर्ग कांग्रेस या दूसरे दलों के लोग हैं। इसलिए उन लोगों के भी अपने अपने तर्क हैं। लेकिन साफ है कि इनके तर्क उनकी बातों के सामने कहीं टिकते नहीं। क्योंकि वहां सिर्फ शोर और चिल्ला चिल्ली है। इसलिए मान कर चलिए कि नयी पीढ़ी पर मोदी का गहरा प्रभाव है। इसमें बीजेपी का आईटी सेल सौ फीसदी कामयाब रहा है। इसलिए फर्स्ट टाइम का वोटर अपने वोट से काफी कुछ अदल बदल सकता है। अजीत अंजुम को ऐसे अधेड़ और बुजुर्ग लोग भी मिले जो सीधा कह रहे हैं कि चाहे आप हमें अंधभक्त ही कहो पर हमारा वोट तो मोदी जी को ही है और रहेगा। हमारा मानना है कि यदि बिना राम मंदिर और बिना बालाकोट जैसी घटना के भी लोकसभा के चुनाव हो जाएं तो भी मोदी का पलड़ा भारी रहेगा। आप स्वयं देखें महंगाई हो, बेरोजगारी हो या मोदी जी की नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आने वाली तमाम विपरीत रिपोर्ट हों या अडानी, राफेल, चीन या देश से पैसा लेकर भागने वाले भगोड़ों की बात हो कौन सा आरोप है जो मोदी पर टिका है। सब जानते हैं कि यह सब सत्य है लेकिन यह सत्य बार बार क्यों फिसल जा रहा है। गड़बड़ कहां है। गड़बड़ दरअसल हमारे विपक्ष में है। मध्य वर्ग के पैसे वाले लोग और असंगठित क्षेत्र के लोगों में जो छवि मोदी की बनी थी वह यथावत बनी हुई है। गरीब और अनपढ़ लोगों को छोड़ कर हर वर्ग अपने अपने स्वार्थ के चलते मोदी की सत्ता को चाहता है। इस कदर देश को बांटा जा चुका है। प्राथमिकता पर देश की तरक्की कहीं नहीं है। प्राथमिकता पर हिंदू राष्ट्र का एजेंडा है और इसके लिए मुसलमानों से खुली नफरत है। पहले मुसलमान बाद में दूसरे अल्पसंख्यक।
लेकिन मोदी परेशान हैं।‌ वे बेशक भीतर से परेशान हैं लेकिन जता नहीं सकते। परेशानी जताना उनकी फितरत में नहीं है। उनकी परेशानी यह है आजकल उनकी तमाम चीजें धराशायी हो रही हैं। सबसे ज्यादा जो डेंट उनकी छवि पर लगा है वह भारत -आस्ट्रेलिया मैच के दौरान लगा। यहां से देश में उनके लिए एक नया शब्द चल पड़ा – पनौती। मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब कांग्रेस और राहुल गांधी हैं। जिस कांग्रेस का भारत से मुक्ति का सपना (खामख्याली) मोदी और आरएसएस ने देखा था और जिस राहुल गांधी को शहंशाह और पप्पू कह कह कर छवि तहस नहस करने की कोशिश की गई थी वह कांग्रेस और वह राहुल गांधी तेजी से नये और बड़े विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। बीजेपी ने बहुत चाहा कि चौबीस का ‘युद्ध’ मोदी बनाम राहुल किया जाए लेकिन राहुल ने सत्ता की राजनीति से अलग होकर बीजेपी की रणनीति पर पानी फेर दिया है। कोई नहीं जानता था कि राहुल गांधी एक बड़ी यात्रा करेंगे और अपना व कांग्रेस के रिवाईवल का मजबूत कारण बनेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि राहुल की यात्रा ने टूटी फूटी और लंगड़ी लूली कांग्रेस को जो नयी शक्ल दी है उससे राहुल गांधी देश के बड़े विपक्षी नेता का सम्मान पा चुके हैं। आज राहुल गांधी से कोई भी बात शुरु होकर राहुल गांधी पर ही समाप्त होती है।‌ वे कांग्रेस का विकल्प बन चुके हैं। लेकिन सत्ता की राजनीति से अलग होकर भी वे अलग नहीं हैं। सारी राजनीति उनके इर्द-गिर्द घूम रही है। यही मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब है। लेकिन दूसरी तरफ राहुल गांधी भले ही राजनीतिक रूप से सचेत तबकों में मान्य हुए हों लेकिन वह बड़ा तबका जो चिंतन के स्तर पर लगभग शून्य है उसकी नजर में राहुल गांधी वही हैं जो अब से पांच साल पहले थे । इसका सीधा दोष देश के कांग्रेसियों पर है। मोदी की समाज में यदि आज भी स्वीकार्यता है तो वह इसलिए कि कांग्रेस और विपक्ष केवल अपने अपने स्तर पर राजनीति करते रहे। यदि ये लोग जनता के बीच जाकर जनजागरण का काम करते और बताते कि मोदी सरकार की सारी योजनाएं आधी अधूरी और केवल प्रचार के लिए हैं तो आज तस्वीर दूसरी होती। यह बताया जाना जरूरी था कि कि सरकार केवल और केवल प्रचार के बल पर जिंदा है। पेट्रोल के दाम, महंगाई और बेरोज़गारी की वास्तविक सच्चाइयां जनता को समझायी जानी चाहिए थीं । विपक्ष को समझ आना चाहिए था कि मोदी की राजनीति पारंपरिक राजनीति से बिल्कुल अलग है। यह इंस्टेंट राजनीति का नया और फूहड़ मॉडल है। लेकिन विपक्ष ने जनता में कोई काम इन नौ सालों में नहीं किया। वे देश बांटते रहे और इधर ये हाहाकार करते रहे। बस इतना ही हुआ। आज भी हमारे विचार से तो विपक्ष के मुकाबले मोदी का पलड़ा भारी है लोकसभा चुनावों में। इंडिया गठबंधन अगर अपनी पूर्व में तय की गयी बातों पर अमल करता है तो सम्भावनाएं मोदी की हार की बन सकती हैं। वरना जरा सी चूक मोदी को मौका देगी विपक्ष को उखाड़ कर फेंकने का ।
इधर लाउड इंडिया टीवी में एक नया शो शुरु किया गया है – ‘द ग्रेट स्टार्स ऑफ इंडिया’ के नाम से। जिसे संतोष भारतीय प्रस्तुत कर रहे हैं। शनिवार और रविवार दोपहर दो बजे। मुझे याद है इससे पहले भी इसी मंच से ‘द ग्रेट जर्नलिस्ट ऑफ इंडिया’ नाम से कार्यक्रम चलाया गया था जो काफी लोकप्रिय हुआ था। उम्मीद है उसी तर्ज पर यह कार्यक्रम भी चलेगा। कल पहला शो देश के जाने-माने व कई प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के मुख्य चिकित्सक रहे डॉक्टर मोहसिन वली से लिया गया। इस बातचीत में मेहमान के जीवन और उनके पेशे के अलावा समाज के प्रति उनकी राय जानी जाती है।‌ इसीलिए कार्यक्रम रोचक भी बन पड़ता है। डॉ वली ने पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और दूसरे राष्ट्रपतियों के साथ अपनी यादें साझा कीं। अगला कार्यक्रम प्रसिद्ध लेखिका ममता कालिया जी से है। देखा जाना चाहिए।
इधर मीडिया में कान्क्लेव करने का चलन खूब बढ़ गया है। आजकल जहां ‘आज तक’ चैनल साहित्य और राजनीतिक पत्रकारों के साथ अपना जमावड़ा कर रहा है वहीं ‘लल्लनटाप अड्डा’ भी अपनी धूम जमाए हुए है । कल नीलांजल मुखोपाध्याय, विजय त्रिवेदी और रशीद जैसे पत्रकारों को आज तक पर देखा। थोड़ी हैरानी हुई। अंजना ओम कश्यप जिसे शरारत में लोग अंजना ओम मोदी कश्यप के नाम से बुलाते हैं (समझा जा सकता है इसका अर्थ क्या है) वह इन पत्रकारों से बातचीत कर रही थी और एक तरह से गोदी मीडिया का अपना धर्म भी निबाह रही थी। नीलांजल का वहां जाना काफी हैरानी भरा लगा।
मोदी को मालूम है कि वे क्या कर रहे हैं, बीजेपी को मालूम है कि वह किस रास्ते पर चल रही है, सारी एजेंसियों को मालूम है कि वे झूठ के किस पुलिंदे को लेकर चल रही हैं, पीएमओ के एक एक अफसर को मालूम है कि उसे किस तरह मोदी की नजरों में बने रहने के लिए क्या क्या करना है। सब देश और राष्ट्र की कीमत पर अधर्म के रास्ते पर हैं। लेकिन देश फिर भी चल रहा है। क्योंकि भारतीय लोग दिमाग से नहीं दिल से सोचते और काम लेते हैं। यहां तर्क नहीं भावनाएं प्रधान होती हैं। यह देश जिस दिन तर्क से सोचने लगेगा उसी दिन विकसित होता नजर आएगा। वामपंथी दल यहीं मात खा गये। वे तर्कों को लेकर चलते रहे और धीरे धीरे अप्रासंगिक हो गये। वामपंथ एक तार्किक विचार है जिसे भारत के वामपंथी ठीक से ढो नहीं सके। मोदी को हटाना है तो विपक्ष को पूरी तरह ‘प्रैक्टीकल’ नजरिए से एक एक गोट फिट करनी पड़ेगी। वरना भूल जाइए कि मोदी को मात दी जा सकती है। समाज में जहर बुरी तरह फ़ैल चुका है।

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